31 दिसंबर 2010

Happy New Year


नये साल की नयी भोर उम्‍मीद बन कर आये,
खुशियों की दिवाली मुरादों की ईद बन कर आये,
इससे ज्‍यादा और क्‍या शुभकामनायें दूँ 'आकुल'
इक दोस्‍त तेरे घर फ़रिश्‍ता जदीद बन कर आये।

10 दिसंबर 2010

तुम सृजन करो

तुम सृजन करो मैं हरित प्रीत शृंगार सजाऊँगा
वसुंधरा को धानी चूनर भी पहनाऊँगा
देखे होंगे स्वप्न यथार्थ में जीने का है वक्त
ग्रामोत्थान और हरित क्रांति की अलख जगाऊँगा
त्तुम सृजन करो-----

बढ़ते क़दम शहर की ओर रोकूँगा जड़वत हो
ग्राम्य विकास का युवकों में संज्ञान अनवरत हो
नई-नई तकनीकी उन्नत कृषि कक्षाएँ हों
साधन संसाधन लाने की कार्यशालाएँ हों
कहाँ कसर है ग्राम्य चेतना शिविर लगाऊँगा
तुम सृजन करो-----

गोबर गैस,सौर ऊर्जा का हो समुचित उपयोग
साझा चूल्हा साझा खेती पर हों नये प्रयोग
पर्यावरण सुरक्षा, सघन वन,पशुधन संवर्धन हो
पंचायत के हों निर्णय मान्य,ना भूखा कोई जन हो
श्रम का हो सम्मान मैं ऐसी हवा चलाऊँगा
तुम सृजन करो-------

कृषि प्रधान है देश कृषि पर ध्यान रहे हर दम
वर्षा पर न हों आश्रित जल संग्रहण हो ना कम
उन्नत बीज,खाद मिले बाजार यहीं विकसित हों
चौपाल सजें आधुनिक कृषि पर चर्चाऍं भी नित हों।
अभिनव ग्राम बनें मैं ऐसी जुगत लगाऊँगा
तुम सृजन करो-------

कोटा। 10-12-2010

9 दिसंबर 2010

जनकवि रघुनाथ मिश्र की दिल्‍ली-मेरठ-झाँसी की सांस्‍‍‍कृतिक व साहित्यिक यात्रा

कोटा। प्रख्‍यात जनकवि-रंगकर्मी वरिष्‍ठ साहित्यकार श्री रघुनाथ मिश्र ने अपने दिल्ली-मेरठ के दस दिवसीय निजी, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक प्रवास से लौट कर जलेस के सदस्यों को अपनी सामान्य बैठक में मेरठ में स्थापित एवं कार्यरत यूनाइटेड प्रोग्रेसिव थियेटर एसोसिएशन (अप्टा) के संगीतकार, साहित्यकार और रंगकर्मी एवं सेना के वरिष्ठ पदाधिकारियों श्री अनिल कुमार शर्मा आईएडीएस, सहायक नियंत्रक रक्षा लेखा (पेंशन वितरण) और श्री एस एन वत्सल साहित्यकार एवं प्रख्यात एंकर के साथ अपनी महत्वपूर्ण मुलाकात की विस्तार से चर्चा की। मिश्र ने उक्त प्रवास में साहित्यिक, सांस्कृतिक और रंगकर्म से सम्बंधित उक्‍त प्रख्यात हस्ताक्षरों से मुलाकात को अविस्मरणीय बताया। उनके साथ हुई सार्थक-यादगार चर्चा से मिले अमूल्य अनुभवों को बताया। राष्ट्रीय स्‍तर पर साहित्यिक-सांस्कृतिक संदर्भों में अपेक्षित प्रयासों के अभाव में संभाव्य रिक्तता और क्षरण पर चिंता व्यक्त करते हुए श्री शर्मा और श्री वत्सल के मूल्य आधारित संगीत, साहित्य और रंगकर्म के राष्ट्रीय स्तर पर सार्थक और प्रभावी बनाकर उसे सामाजिक रूपांतरण की दिशा में प्रेरणात्मक-अनुकरणीय बनाने व देशभर के शब्द शिल्पियों, कलाकारों के बीच एकता व प्रेरक संवाद कायम करने व अपने महान् दायित्व निर्वहन में जुटने-जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करने के अथक प्रयासों और अप्टा की गतिविधियों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। ज्ञातव्य है कि इप्टा की दयनीय दशा के चलते उसकी तर्ज पर अप्टा उत्तर प्रदेश में अपनी एक जगह बना रहा है। जलेस प्रकाशन कोटा से अब तक प्रकाशित सभी 13 काव्य संग्रहों के प्रकाशनों की महत्ता पर महानुभावों व उनके कतिपय साथियों के साथ चर्चा करते हुए स्वयं के हिन्दी-उर्दू ग़ज़ल संग्रह ‘सोच ले तू किधर जा रहा है’, हाड़ौती के जनवादी कवियों की प्रतिनिधि रचनाओं के संग्रह ‘जन जन नाद’,और प्रख्यात जनकवि, साहित्यकार, संगीतकार और क्रॉसवर्ड मेकर श्री गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’ के काव्य संग्रह ‘जीवन की गूँज’ साहित्‍य उन्होंने उन्हें भेंट किया, जिसे पा कर वे अभिभूत हो गये। उक्त पुस्तकों में व्यक्त सार्थक कथ्य अनुकरणीय सुंदर और आकर्षक कलेवर में उनका प्रकाशन और समाज को बेहतर बनाने की रचनाकारों की प्रेरक भावनाओं की प्रशंसा करते हुए श्री शर्मा व श्री वत्सल ने मिश्र, आकुल और सदस्य साथियों के प्रयासों के लिए श्री मिश्र को बधाई दी। भेंट दी गयी पुस्तकों को पढ़ कर जनवाद की अमूल्य धरोहर पुस्तकों पर वे अपनी सार्थक समीक्षा भी श्री मिश्र को भेजेंगे, उन्होंने आश्वासन दिया। मिश्र ने वहाँ चर्चा करते हुए राष्ट्रीय स्तर पर वैचारिक वर्चस्व के शिकंजे को विफल करने के लिए सांस्कृतिक प्रतिरोध के सभी प्रयासों में कोटा जलेस व अन्य संस्थाओं, व्यक्ति समूह के साथ कंधे से कंधा मिला कर सहयात्री-सहकर्मी की भूमिका में प्रभावी तरीके से साथ होने की अपनी अथक यात्रा के बारे में उन्हें बताया। इस यात्रा के अविस्मरणीय क्षणों, जन नाट्य मंच की उनकी रंगकर्म यात्रा, जलेस की स्थापना, कोटा जलेस, कोटा जलेस द्वारा दिये जा रहे ठाड़ा राही सम्मान, कोटा जलेस से जुड़े साहित्यकारों, कवियों, रचनाकारों के बारे में बताते हुए सन् 2008 में सृजन वर्ष मनाये जाने और 9 पुस्तकों के प्रकाशनों के ऐतिहासिक प्रयासों की भी उन्होंने चर्चा की। वर्तमान में आकुल व चक्रवर्ती के बहु आयामी व्‍यक्तित्‍व के बारे में भी उन्‍होंने श्री शर्मा व श्री वत्‍सल को बताया। कोटा में साहित्यिक गतिविधियों पर भी प्रकाश डालते हुए उन्होंने राजस्थान के हाड़ौती अंचल में चम्बल की अजस्र धारा के साथ-साथ साहित्‍य की बहती अविरल धारा के बारे में भी जानकारी दी। अखिल भारतीय स्तर के कवियों, साहित्यकारों, रचनाकारों की भूमि कोटा के बारे में भी उन्होंने विस्तार से उनसे चर्चा की और विशेष अभियानों में उन्हें कोटा आने का विशेष आग्रह करने व आमंत्रित करने का दृढ़ आश्वासन भी दिया। अंत में मिश्र ने दिल्ली-कोटा जन नाट्यमंच द्वारा स्थापना से लगायत अब तक की गाँव-गाँव, शहर-शहर, ढाणी-ढाणी में अपने राष्ट्र, समाज हित में जन जागरण के लिए अपनी अनेकों नाट्य प्रस्तुतियों से असंख्य दर्शकों पर सार्थक प्रभाव की चर्चा करते हुए बताया कि कोटा में वे जन नाट्य मंच के संस्थापक रहे हैं और मजदूर आंदोलनों से लंबे समय तक जुड़े रहे हैं। आज भी वे अधिवक्‍ता होने के नाते उनके हितों के लिए सहयोग देने में पीछे नहीं हैं। पिछले दिनों पूरे एक माह तक सफ़दर हाशमी मेमोरियल ट्रस्ट दिल्ली द्वारा अमेरिका में सैंकड़ों नाट्य मंचनों की चर्चा की तो माहौल उत्साह से भर गया । अप्टा के पदाधिकारियों के मध्य वे जनवाद के हुतात्मा सफ़दर हाशमी के बारे में बताने से नहीं चूके। अप्टा के पदाधिकारियों ने सफ़दर हाशमी की 1989 में उत्त‍र प्रदेश के साहिबाबाद में नुक्कड़ नाटक के मंचन के दौरान शहादत को भी श्रद्धा से याद किया। मिश्र ने कोटा व राजस्थान के अमन पसंद कलमकारों-कलाकारों की ओर से श्रेष्ठ प्रयासों में सभी सम्भव-सार्थक सहयोग का आश्वासन दिया और शीघ्र ही एकजुट प्रभावी अभियानों की शुरुआत की अपील की। अप्टा के सभी उपस्थित सदस्यों ने हाड़ौती के रचनाकारों और जलेस परिवार को साधुवाद दिया और आगे ऐसे ही नये राष्ट्र हित, समाज हित, जन जन के लिए किये जाने वाले कार्यों, अभियानों व प्रकाशनों में बढ़-चढ़ कर सहयोग देने का आश्वासन दिया। मिश्र ने भी सेना के लिए अथक परिश्रम के साथ-साथ जनहित में लगे अप्टा के अधिकारियों को साधुवाद दिया और अपनी इस यात्रा को एक मायनों में ऐतिहासिक बताया। स्व0 मिथलेश रामेश्वर प्रतिभा सम्मान से सम्मानित हुए इसी दौरान मेरठ में उन्हें दिल्ली के ‘हम सब साथ साथ’ पत्रिका के श्री किशोर श्रीवास्ताव से स्व0 मिथलेश रामेश्वर प्रतिभा सम्मान के लिए चुने जाने का शुभ समाचार मिला। दस दिवसीय अपनी महत्वपूर्ण इस साहित्यिक और सांस्कृतिक यात्रा के साथ-साथ प्रतिभा सम्मान के लिए चुने जाने के अविस्मरणीय क्षणों को सहेज कर उर्जस्‍वी बन वे कोटा लौटे और जलेस पदाधिकारियों आकुल, चक्रवर्ती और डॉ0 नलिन को सम्‍मान के बारे में अवगत कराया। प्रतिभा सम्मान के लिए श्री मिश्र 28 नवम्बर को कोटा से झाँसी के लिए रवाना हुए। वहाँ उन्हें माननीय प्रदीप जैन ‘आदित्य', केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री द्वारा स्मृति चिह्न, प्रशस्ति पत्र और शाल उढ़ा कर सम्मानित किया गया। साथ ही डाकुओं से साहसपूर्वक सामना कर विकलांग बनी दिलेर एक महिला को भी समारोह में सम्मानित किया गया। बुंदेलखंड महाविद्यालय के समीप आई एम ए भवन में आयोजित इस भव्‍य समारोह में झाँसी के विधायक श्री कैलाश साहू, अरुण श्रीवास्तव व ‘हम सब साथ साथ’ के सम्पादक श्री किशोर श्रीवास्तव भी उपस्थित थे। दिल्‍ली की पत्रिका 'हम सब साथ साथ' प्रायोजित स्व0 मिथलेश रामेश्वर प्रतिभा सम्मान 2009 से प्रतिवर्ष एक पुरुष और एक महिला साहित्यिक और सांस्कृतिक प्रतिभा को दिया जाता है। 2010 के इस प्रतिभा सम्मान को प्राप्त करने वाले श्री मिश्र दूसरे और झाँसी के ही युवा साहित्यकार सुधीर गुप्ता 'चक्र' त्तीसरे प्रतिभाशाली रचनाधर्मी एवं रंगकर्मी है। इस प्रतिभा सम्मान से मिश्र ने हाड़ौती का ही नहीं, राजस्थान को भी गौरवान्वित किया है। अपनी संक्षिप्त झाँसी यात्रा के बारे में उन्होंने बताया कि अखिल भारतीय कायस्थ समाज 'चित्रांश ज्योति' के तत्वावधान में हर वर्ष कायस्थ समाज के प्रतिभावान् छात्र छात्राओं का एक भव्य समारोह में अभिनंदन किया जाता है। यह प्रतिभा सम्मान दिल्ली की द्विमासिक पत्रिका ‘हम सब साथ साथ’ के सौजन्य से श्री मिश्र को दिया गया। समारोह में विशिष्ट अतिथि श्री करुणेश श्री वास्तव, डिप्‍टी सी एम ई (एनसीआर) रेल्वे कारखाना, झाँसी, अतिथि श्री हरिवल्लभ खरे, प्रान्तीय अध्यक्ष, अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, श्रीमती रमा श्रीवास्तव, डिस्ट्रिक्ट चेयर पर्सन, लायनेसेस मूवमेंट, राष्ट्रीय ब्यूरो चीफ, अधिवक्ता‍ कल्याण समिति, मेनेजिंग डाइरेक्टर मदर टेरेसा ग्रुप्स ऑफ स्कूल्स थे। समारोह की अध्यक्षता श्री संतोष कुमार श्रीवास्तव, प्रदेशीय अध्यक्ष, अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, ललितपुर थे। समारोह में उत्कृष्ट कार्य करने वाले कायस्थ बंधुओं को सम्मानित किया गया। मेधावी छात्र-छात्राओं का भी अभिनंदन किया गया। सांस्कृतिक कार्यक्रम और फि‍ल्मी गीतों पर कायस्‍थ समाज के बालक बालिकाओं के नृत्यों ने समारोह में चार चाँद लगा दिये। पधारे अतिथियों, अध्यक्ष और श्री मिश्रा ने भी अपने विचार व्यक्त किये। श्री मिश्र ने समाज के साथ-साथ अखिल भारतीय स्तर पर प्रतिभावान् रचनाधर्मी और भारतीय धरा की संस्कृति से जुड़े रंगकर्मी और साहसी युवक युवतियों को प्रेरणा देने वाले इस कार्यक्रम की प्रशंसा की और भविष्य में इसे और भी सफलतायें मिलें, देश को कायस्थ समाज से ढेरों प्रतिभायें मिलें, जो राष्ट्र के विकास और उत्थान में अपना सहयोग दें, ऐसी शुभकामनायें दीं। जलेस के प्रकाशनों की प्रदर्शनी भी लगाई गई! लोगों ने सराहा। सहभोज के बाद श्री मिश्र ढेरों स्‍मृतियाँ सहेज कर कोटा लौटे। कोटा में जलेस सदस्‍यों ने उनका स्‍वागत कर बधाइयाँ दीं।
रिपोर्ट जलेस, कोटा। 9-12-2010

25 नवंबर 2010

सृजन करो

सृजन करो फि‍र हरित क्रांति का बिगुल बजाना है।
धरती सोना उगले ऐसी अलख जगाना है।
सृजन करो--
पवन बहेगी सुरभित हर द्रुमदल लहरायेंगे।
सरिता कल कल नाद करेगी जलधर भी आयेंगे।
कानन उपवन फूल खिलेंगे भँवरे भी गायेंगे।
बंजर भूमि हर्षेगी दुर्भाग्य सभी जायेंगे।
धानी चूनर से वसुधा का भाल सजायेंगे।
लोक गीत गूँजेंगे घर-घर प्रीत बढ़ायेंगे।
ग्राम्य चेतना की शिक्षा का पाठ पढ़ाना है।
सृजन करो--
गोधन संवर्धन अपना प्रथम मनोरथ होगा।
कंटकीर्ण है मार्ग अग्निपथ सा जीवनपथ होगा।
सुलभ करेंगे हर साधन घर-घर में लाना होगा।
उन्नत कृषि का हर संसाधन यहीं बसाना होगा।
गोबर गैस, सौर ऊर्जा को भी अपनाना होगा।
उत्तम खाद नई-नई तकनीक जुटाना होगा।
सघन वन, पर्यावरण समृद्धि की हवा बहाना है।
सृजन करो--
शहरों में महँगाई, भष्टाचार, प्रदूषण भारी।
जनता में आक्रोश भरा है निर्धन में लाचारी।
युवा वर्ग में प्रतिस्पर्द्धा है बढ़ी हुई बेकारी।
जिसकी लाठी भैंस उसी की धन की दुनियादारी।
राम राज्य की बात करें क्या ‘बापू’ है लाचारी।
अब तो हैं हालात यहाँ डर लगता करते यारी।
बचे हुए हैं गाँव अभी यह शर्त लगाना है।
सृजन करो--
पंचायत में ही हों निर्णय और पंच बनें परमेश्वर।
कोर्टों के क्यों चक्कर काटें क्यों घर से हों बेघर।
फसलों का मूल्य मिले घर पर ही शहर जायें क्यूँ लेकर।
मेले, हाट त्‍योहार मनायें गाँवों में ही रह कर।
शिक्षा संकुल और व्यापारिक केंद्र खुलें बढ़-चढ़ कर।
पर मुख्यतया खेती विकास का ध्यान रहे सर्वोपर।
ग्रामोत्थान संस्कृति का अब यज्ञ कराना है।
सृजन करो--
कृषि प्रधान है देश सजग हो ग्राम समग्र हमारा।
ना बदलेंगे संस्कार और ना परिवेश हमारा।
अपनी है पहचान धरा से इससे नाता प्यारा।
इसके लिए कटें सर चाहे बहे रक्त की धारा।
चले हवा संदेश शहर में पहुँचाये हरकारा।
रामराज्य आ रहा बहेगी पंचशील की धारा।
हर मौसम में रंग बसंत का पर्व मनाना है।
सृजन करो--

24 नवंबर 2010

कोटा के जनवादी कवि रघुनाथ मिश्र को मिथलेश-रामेश्‍वर प्रतिभा सम्‍मान

कोटा 22 नवम्बर। अखिल भारतीय कायस्थ समाज की पत्रिका चित्रांश ज्योति द्वारा स्व0 मिथलेश श्रीवास्तव की स्मृति में दिया जाने वाला मिथलेश-रामेश्वर प्रतिभा सम्मान वर्ष 2010 के लिए कोटा के वरिष्ठ साहित्यकार, रंगकर्मी और जनवाद के पुरोधा जनकवि श्री रघुनाथ मिश्र का चयन किया गया है।
श्री मिश्र को दिल्ली की साहित्यिक पत्रिका ‘हम सब साथ साथ’ प्रायोजित चित्रांश ज्योति के तत्वावधान में एक भव्य समारोह में 28 नवम्बर, रविवार को झाँसी (उ0प्र0) में सम्मानित किया जायेगा। यह सम्मान केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री श्री प्रदीप जैन ‘आदित्य’ द्वारा प्रदान किया जायेगा। समारोह में अखिल भारतीय कायस्थ समाज के मेधावी छात्र-छात्राओं का भी अभिनंदन किया जायेगा।
श्री रघुनाथ मिश्र की 1967 से अब तक सांस्कृतिक, साहित्यिक और राजनीतिक क्षेत्र में की गयी उल्लेखनीय सेवाओं के लिए ये सम्मान दिया जा रहा है। ऊनकी 2008 में प्रकाशित पुस्तक ‘सोच ले तू किधर जा रहा है’ को भी चयन समिति द्वारा विशेष रूप से सराहा गया। उनकी रंगकर्म की अथक सांस्कृतिक यात्रा और जन-जन के किये जाने वाले संघर्ष में योगदान को भी ध्यान में रखा गया।
जलेस के पदाधिकारी जनकवि श्री गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’ ने बताया कि श्री मिश्र प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) से बने जनवादी लेखक संघ (जलेस) के संस्थापक सदस्य रहे हैं। वर्तमान में जलेस की केंद्रीय परिषद् के सदस्य हैं। राजस्थान की जलेस राज्य इकाई में पदाधिकारी और कोटा जिला के जलेस जिलाध्य्क्ष के रूप में कार्य कर रहे हैं।
कोटा जन नाट्य मंच के तत्वावधान में श्री मिश्र ने आरंभ से ही अनेकों नाटकों जैसे रूसी लेखक जेखोब के हिंदी रूपांतरित नाटक ‘गिरगिट’, कोटा के स्व0 शिवराम के नाटक ‘जनता पागल हो गयी’ एवं अन्य कई नाटकों ‘हल्‍लाबोल’, ‘हवलदार लोहासिंह’, ‘औरत’, ‘हिंसा परमोधर्म’ आदि में सैंकड़ोंबार अभिनय किया है और आज भी जनवाद की अथक यात्रा में वे सक्रिय हैं। वे साहित्यकार के साथ साथ कोटा में कर्मठ अधिवक्ता के रूप में भी जाने जाते हैं।
श्री मिश्र हाल ही में अपनी 10 दिवसीय सांस्कृतिक और साहित्यिक यात्रा से मेरठ और दिल्ली हो कर लौटे हैं। सम्मान के लिए ‘हम सब साथ साथ’ द्वारा दूरभाष से जानकारी प्राप्त‍ होते ही कोटा के जलेस सदस्यों में हर्ष की लहर दौड़ गयी। उन्होंने दूरभाष पर ही श्री मिश्र को बधाइयाँ दीं।
सम्मान प्राप्त कर लौटने पर श्री मिश्र को जलेस की बैठक में उनकी साहित्यिक यात्रा और सम्मान पर चर्चा की जायेगी। उनकी साहित्यिक यात्रा और सम्मान पर एक विशेष रिपोर्ट भी प्रकाशित की जायेगी।

7 नवंबर 2010

'आकुल' का क्रॉसवर्ड वेब पत्रिका "अभिव्‍यक्ति" से आरंभ

कोटा। वेब की दुनिया में हिंदी की ई पत्रिकाओं की संख्‍या बढ़ती जा रही है। हिदी गौरव, हिंद युग्‍म, काव्‍य पल्‍लवन, नवगीत की पाठशाला, अनुभूति, अभिव्‍यक्ति आदि अनेकों प्रख्‍यात हिंदी ई पत्रिका अपने विशेष भाषा संयोजन, विधा विशेष और प्रतियोगिताओं के माध्‍यम से हिंदी के साहित्‍यकारों, रचनाकारों, कवियों को उभरने का मौका देती है और रचनाकार का नाम वेब की दुनिया के माध्‍यम से करोड़ों लोगों तक पहुँचता हैं। इन ई पत्रिकाओं से हिंदी को विश्‍व पटल पर एक नई प‍हचान भी मिल रही है और हिंदी का प्रचार प्रसार भी द्रुतगति से हो रहा है। आज कल ब्‍लॉग बनाने की कला भी बहुत आसान होती जा रही है। आज जावा भाषा सीखने की आवश्‍यकता नहीं। अनेकों मुफ्त सेवायें इंटरनेट पर उपलब्‍ध हैं, जिनके माध्‍यम से आप अपनी सुरुचि का ब्‍लॉग बना सकते हैं या बनवा सकते है और उस पर काम कर सकते हैं।

ई पत्रिका अभिव्‍यक्ति ने 1 नवम्‍बर 2010 से गोपाल कृष्‍ण भट्ट 'आकुल' के साहित्‍य सहयोग और श्रीमती रश्मि आशीष के विशेष तकनीकी सहयोग से गद्य विधा के लिये आरंभ की गयी ई पत्रिका अभिव्‍यक्ति पर क्रॉसवर्ड आरंभ किया है। साप्‍ताहिक आरंभ हुए क्रॉसवर्ड को प्रत्‍येक सोमवार को परिवर्धित किया जायेगा। पत्रिका हर सोमवार को परिवर्धित होती है।

'आकुल' जाने माने क्रॉसवर्ड मेकर हैं। देश के प्रमुख समाचार पत्रों अमर उजाला, नवभारत, सांध्‍य क्रोनिकल, अकिंचन भारत, गुजरात वैभ्‍ाव आदि पत्र पत्रिकाओं के लिए उनके लगभग 6000 क्रॉसवर्ड हिंदी में और 500 क्रॉसवर्ड अंग्रेजी में प्रकाशित हो चुके हैं। क्रॉसवर्ड पर उनकी शृंखलाबद्ध पुस्‍तकें शीघ्र बाजार में आने वाली हैं। क्रॉसवर्ड पर पुस्‍तक प्रकाशन का कार्य अपने अंतिम चरणों में है।

हिंदी त्रैमासिक पत्रिका दृष्टिकोण के सम्‍पादक श्री रघुनाथ मिश्र ने बताया कि वेब की दुनिया में यूँ तो अंग्रेजी की क्रॉसवर्ड विधा पर अनेकों गेजेट उपलब्‍ध हैं जिन्‍हें आप इंटरनेट पर खेल कर आनंद और ज्ञान दोनों बढ़ा सकते हैं,किंतु हिंदी में संभवतया यह पहला प्रयोग है। अभिव्‍यक्ति पर यह क्रॉसवर्ड गेजेट की भाँति लिखा जा सकता है। इस पर अभी और तकनीकी कार्य चल रहा है। यदि वेब पर यह पहला हिंदी क्रॉसवर्ड गेजेट है तो अभिव्‍यक्ति पत्रिका का वेब पर हिंदी क्रॉसवर्ड आरंभ करने में पहल करने का एक इतिहास बन जायेगा और गोपाल कृष्‍ण भट्ट क्रॉसवर्ड साहित्‍य के लिए पहले हिंद वेब क्रॉसवर्ड मेकर बन जायेंगे।

क्रॉसवर्ड को Abhivyakti-hindi.org पर देखा जा सकता है। एक ही प्रबंधन में आरंभ ये ई पत्रिका अपनी विशिष्‍ट विधा के लिए चर्चित व प्रख्‍यात है। काव्‍य जगत् के लिए यह अनुभूति के नाम से छपती है और गद्य विधा में यह अभिव्‍यक्ति के नाम से प्रकाशित होती है।

क्रॉसवर्ड आरंभ होने पर कोटा के अनेकों साहित्‍यकारों रचनाकारों व इष्‍ट मित्रों ने भट्ट को प्रत्‍यक्ष व दूरभाष पर बधाइयाँ दीं।

छोटे महाप्रभुजी ने अन्‍नकूट अरोगा

कोटा 6 नवम्‍बर। छोटे महाप्रभुजी मंदिर, रेतवाली, स्‍वरूप हाल बिराजमान 817 महावीर नगर द्वितीय में अन्‍नकूट सोल्‍लास सम्‍पन्‍न हुआ। अन्नकूट उत्सव के दर्शन प्रात: दस बजे से साढ़े ग्यारह बजे तक खोले गये। शहर में सभी पुष्टिमार्गीय सम्प्रदाय के मंदिरों में अन्नकूट के दर्शन दोपहर 2 बजे से खुलने के कारण वैष्णवों व कृष्ण भक्तों को अन्नकूट का लाभ लेने के परिप्रेक्ष्य में छोटे महाप्रभुजी के अन्नकूट के दर्शन जल्दी खोलने का निर्णय लिया गया। प्रात: साढ़े नौ बजे श्रीगिरिराजजी का अभिषेक कर गोवर्धन पूजा की गयी और अन्नकूट भोग लगाया गया। भोग के दौरान परिवार ने अंतर्गृही परिक्रमा की। बाद में दस बजे दर्शन खोले गये। वैष्णवों ने इस अन्नकूट को मिनी छप्पन भोग के रूप में अन्‍नकूट के अवसर पर अन्नकूट की महिमा और बनायी गयी सामग्रियों के बारे में भी वैष्णवों को विस्तार से बताया गया। अन्नकूट की दो अवधारणायें प्रचलित हैं। श्रीकृष्णावतार में इंद्रदमन लीला के पश्चात् इंद्र के कोप से वर्षा से नष्ट हुए पूरे गोकुल से गोकुलवासियों को श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत की तलहटी में आश्रय देने के बाद वृन्दावन ले जाकर अस्थायी रूप से स्थापित किया। बाद में गोकुल का पुनर्निर्माण कर उन्होंने गोकुलवासियों का गोकुल ला कर बसाया, जिसकी प्रसन्न्ता में पूरे ग्रामवासियों द्वारा सहभोज आयोजित किया गया, जिसे आज भी वैष्णव भक्‍त प्रकृति प्रेम और गोधन की रक्षा के प्रतीक के रूप में अन्नकूट त्सव को मनाते हैं। दूसरी अवधारणा के रूप में गो0 बेटीजी ने बताया कि दीपावली उत्सव धन की देवी लक्ष्मी को आह्वान करते हुए लक्ष्मी पूजन के रूप में मनाया जाता है और दीवाली के दूसरे दिन धान्य के देव कुबेर के आह्वान के रूप में अन्नकोट सजा कर धान्य की पूजा के रूप में उन्हें प्रसन्न करने के लिए अन्नकूट के रूप में मनाते हैं, ताकि नववर्ष में घर धन-धान्य से भरा रहे ।
(चित्र, वीडियो व समाचार विस्‍तार से saannidhyasrot.blogspot.com पर देखें)





27 अक्तूबर 2010

मेरे देश में हर दिन त्‍योहार

मेरे देश में, हर दिन त्‍योहार।
दिन दूना और रात चौगुना बढ़ता जाये प्यार।
मेरे देश में, हर दिन त्यौहार।।
महक उठा मन सौंधी खु़शबू जो लाई पुरवाई।
धानी चूनर पहन खेत की, हर बाली मुसकाई।
डाली-डाली फूल खिले मौसम ने ली अँगड़ाई।
गली मोहल्‍ले घर-घर में खुशियों की बँटी मिठाई।
झूम-झूम कर नाचो आओ, गाओ मेघ मल्‍हार।
मेरे देश में, हर दिन त्‍योहार।।
आता है हर साल दशहरा, टिक्‍का, ईद, दिवाली।
क्‍वार करे कातिक का स्‍वागत, सरदी देव-दिवाली।
पौष बड़ा, मावठ फुहार, होली में मीठी गाली।
ढोल, नगाड़े, चंग, मजीरा, ढफ, अलगोजा, ताली।
घूम-घूम कर रँगो-रँगाओ, गाओ ध्रुपद धमार।
मेरे देश में, हर दिन त्‍योहार।।
आगे पीछे दौड़े आते पर्व, मनोरथ सारे।
दु:ख हल्‍के करते संस्‍कृति के ये हैं अजब सहारे।
सर्वधर्म समभाव, अतिथि देवो भव से हर नारे।
सत्‍यमेव जयते, वसुधैव कुटुम्‍बकम् के गुण न्यारे।
भूम-भूम गोपाल सजाओ, गाओ बसंत बहार।
मेरे देश में, हर दिन त्‍योहार।।
दिन दूना और रात चौगुना बढ़ता जाये प्‍यार।
मेरे देश में, हर दिन त्‍योहार।।

18 अक्तूबर 2010

पानी पानी पानी

पानी पानी पानी। अमृतधारा सा पानी।
बिन पानी सब सूना सूना, हर सुख का रस पानी।
पानी पानी पानी।
पावस देख पपीहा बोले, दादुर भी टर्राये।
मेह आओ ये मोर बुलाये, बादर घिर घिर आये।
मेघ बजे, नाचे बिजुरी और गाये कोयल रानी।
पानी पानी पानी।
रुत बरखा की प्रीत सुहानी, भेजा पवन झकोरा।
द्रुमदल झूमे, फैली सुरभि, मेघ बजे घनघोरा।
गगन समंदर ले आया, धरती को देने पानी।
पानी पानी पानी।
बाँध भरे, नदिया भी छलकीं, खेत उगाये सोना।
बाग बगीचे हरे भरे, धरती पर हरा बिछौना।
मन हुलसे, पुलकित तन झंकृत, खुशी मिली अनजानी।
पानी पानी पानी।
आकुल 18-10-2010

28 सितंबर 2010

जलेस मासिक काव्‍यगोष्‍ठी हिंदी दिवस को समर्पित

कोटा। 26 सितम्बर। जनवादी लेखक संघ की मासिक काव्य गोष्ठी माह के अंतिम रविवार को हिंदी दिवस को समर्पित रही। जलेस कार्यकारिणी ने सर्वप्रथम तलवंडी स्थित अपने कार्यालय में प्रख्यात साहित्यकार कन्हैया लाल नंदन के निधन पर उन्हें श्रद्धांजलि दी। जलेस की प्रगतिशील परम्परा की उदारता के चलते सर्वप्रथम जलेस और शहर के प्रिय क्रांतिकारी रचनाकार ब्रजेश सिंह झाला ‘पुखराज’ के महावीर नगर प्रथम स्थित निवास पर दोपहर ढाई बजे गोष्ठी का शुभारंभ सरस्वरती वंदना से हुआ। आरंभ में लाखेरी से पधारे शायर सुनील एस- उर्मिल मुख्य अतिथि और शहर के जाने माने साहित्यकार सूरजमल जैन ने अध्यक्ष के रूप में आसन ग्रहण किया। जलेस अध्यक्ष श्री रघुनाथ मिश्र ने पधारे अतिथियों का स्वागत करते हुए गोष्ठी को हिंदी दिवस(14 सितम्बर) को समर्पित कर सभी पधारे साहित्यकारों, रचनाकारों को हिंदी पर अपनी रचनाओं की प्रस्तुति के लिए आह्वान किया। उन्होंने राष्ट्रभाषा के संवर्द्धन, प्रोत्साहन, और संरक्षण पर जोर देते हुए हिंदी की अथक यात्रा के बारे में अपना सारगर्भित वक्तव्य दिया। कार्यक्रम का संचालन अखिल भारतीय साहित्यिक पत्रिका ‘दृष्टिकोण’ के प्रबंध सम्पादक और कवि नरेंद्र कुमार चक्रवर्ती ‘मोती’ को सौंपा गया। काव्यपाठ का आरंभ कवि महेंद्र शर्मा की कविता ‘गलत चुना तो पछताएगी, बोल जिंदगी किधर जाएगी’ से हुआ। इसी बीच जयपुर के जाने माने ग़ज़लकार अखिलेश तिवारी के आने से माहौल में ताजगी आ गयी। कविता के बाद श्री तिवारी को विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया। ‘पानी को तो पानी लिख’ काव्य संग्रह के रचनाकार श्री आर सी शर्मा आरसी ने अपनी प्रख्यात रचना ‘एक अरसे की अनबुझी प्यास हूँ, पार्थ का दिग्भ्रमित आत्माविश्वास हूँ, जो महल मेरे सपनों का हो न सका, मैं उसीका अधूरा शिलान्यास हूँ’ सुना कर धीरे-धीरे गोष्ठी को ऊँचाइयाँ प्रदान कीं। सतीश मीणा ने ‘हरियाली के बीच रंग गया', नंदकिशोर अनमोल ने ‘हम हिंदी हैं गर्व हमें कि हिंदुस्तान हमारा’ गीत से हिंदी और हिंदुस्तानी होने पर गर्व जताया, बीच-बीच में नवरचनाकारों को जोश दिलाते हुए संचालक नरेंद्र चक्रवती ‘मोती’ ने अपनी ग़ज़ल सुनाई ‘गाहे बगाहे क़लम चलाया करो', ‘गीतांकुर’ से फि‍र चर्चा में आये छोटी बहर के रचनाकार शायर डॉ0 नलिन ने ग़ज़ल सुनाई ‘यह सदा है चाक सीने की, तमन्ना है और जीने की’, शहर की उभरती कवयित्री प्रमिला आर्य ने अपना गीत ‘गर तू पाना चाहे मंजिल, आशाओं के दीप जला’ गाकर दाद बटोरी, शरद तैलंग की ग़ज़ल ‘बात दलदल की करे जो कंवल क्या समझे, दर्द जिसने न सहा हो वो ग़ज़ल क्‍या समझे’ सुन कर तालियों से गोष्ठी गूँज उठी, महेंद्र नेह ने जनवादी कविता ‘उन्होंने हमारे हाथों से छीने औजार खाली हाथ रह गये, उन्होंने हमें जलालत दी हम उसे भी सह गये' सुना कर सफ़दर हाशमी की याद ताजा करा दी। डॉ0 गयास फ़ाईज़ ने शृंगार रस की ग़जल से माहौल को नई ऊँचाई प्रदान की ‘तेरी यादों तेरे खयालों में, खो गया हूँ मैं उजालों में, बन सँवरने की क्या ज़रूरत है, अच्छे लगते हो बिखरे बालों में’, राष्ट्रभाषा के प्रति सम्मान में क्रांतिकारी कवि 'पुखराज' ने जहाँ सरस्वती वंदना हिंदी की सशक्त कविता के रूप में की थी, वहीं अपने काव्य पाठ में राष्ट्र के प्रति अपने प्रेम को ‘रक्त के कतरों से सींचा है जहॉं सारा चमन, अश्रुपूरित नयन करते उन शहीदों को नमन’ सुना कर जलेस की गरिमा को बढ़ाया। शायर इमरोज ने हिंदी दिवस को समर्पित ग़ज़ल सुनाई ‘तुम्हारे सामने हिंदी ग़ज़ल एलान कर देगी, तेरी भाषा विवादों का सफ़ा मैदान कर देगी’ सुनाई। वयोवृद्ध और वरिष्ठ कवि निर्मल पाण्डेय ने अपनी कविता से संकल्पों की बात की ‘हो कठिन पर्वत मगर संकल्प हो, दृढ़ चरण धर कर किसी अंजाम को देंगे। पार्थ ने फि‍र रख दिया गांडीव धरती पर, यह खबर हम खासकर घनश्याम को देंगे’, प्रख्यात शायर पुरुषोत्तम यक़ीन ने आज की ग़रीबी और महंगाई पर व्यंग्‍य सुनाया ‘जिंदगी की व्यथायें क्यों लिख दीं, मर्ज ला इलाज है कह तो, इतनी महंगी दवायें क्यों लिख दीं’। अन्य ऱचनाकारों में शकूर अनवर, अखिलेश तिवारी, सुनील उर्मिल, अखिलेश अंजुम, गोरस प्रचंड, आर सी गुप्ता, सुरेंद्र गौड़, हलीम आईना, चाँद शेरी, ओम नागर, वेद प्रकाश परकाश, इमरोज, शून्याकांक्षी, वैभव सौमानी, आनंद हजारी ने भी अपनी अपनी रचनायें पढ़ीं। कार्यक्रम के अंत में श्री मिश्र ने जयपुर से पधारे साहित्‍यकार श्री अखिलेश तिवारी को ‘आकुल’ की पुस्तक ‘जीवन की गूँज’ और स्वयं की पुस्तक ‘सोच ले तू किधर जा रहा है’ भेंट कर उन्हें सम्मानित किया। तीन घंटे चली गोष्ठी में शामिल शहर के साहित्य संस्थानों विकल्प, आर्यावर्त आदि के प्रतिनिधियों और लगभग 35 रचनाकारों, साहित्याकारों ने उपस्थित हो कर जलेस गोष्ठी को समारोह का रूप दे दिया और समारोह को साहित्‍य रस से सराबोर कर अविस्मरणीय बना दिया।

24 अगस्त 2010

“जीवन की गूँज” जीवन से आप्‍लावित कृति-डॉ0 कंचना सक्‍सैना लोकार्पण सम्‍पन्‍न


जनकवि गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’ का काव्य संग्रह ‘जीवन की गूँज’ का लोकार्पण सादे समारोह में सम्पन्‍न हुआ। समारोह जनवादी लेखक संघ, कोटा द्वारा नयापुरा कोटा स्थित राजस्थान मेडिकल एंड सेल्स‍ रिप्रिजेन्टेटिव यूनियन कार्यालय, मारुति कॉलोनी के सभागार में दोपहर 2-45 पर आरंभ हुआ। जलेस के जिलाध्य‍क्ष श्री रघुनाथ मिश्र ने मुख्य अतिथि झलावाड़ से पधारे राजस्थानी के प्रख्यात कवि और वरिष्‍ठ साहित्यकार, पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी और जलेस द्वारा ठाड़ा राही पुरस्‍कार से सम्मानित श्री रघुराज सिंह हाड़ा, अध्यक्ष हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार और राजकीय महाविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष हिंदी प्रोफेसर औंकारनाथ चतुर्वेदी, प्रमुख वक्ता आचार्य ब्रज मोहन मधुर, डॉ0 अशोक मेहता, कृति परिचय के लिए पधारीं राजकीय महाविद्यालय कोटा की प्रवक्ता डॉ0 कंचना सक्सैना, कृतिकार गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’ को आमंत्रित कर मंच की स्थापना की और आमंत्रित सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए संचालन के लिए राष्ट्रीय प्रशिक्षक(कैरियर गाइड) और सम्प्रेरक श्री सौरभ मिश्रा को आमंत्रित किया। सौरभ मिश्रा ने आरंभ से ही अपनी अनोखी शैली में कार्यक्रम का शुभारम्भ एलसीडी प्रोजेक्टर पर केप्शंस दिखाते हुए अतिथियों और उपस्थित जन समूह को मंत्रमुग्ध करते हुए अपनी सरल भाषा में हिन्दी और अंग्रेजी मिश्रित मोहक अंदाज में संचालन आरंभ किया और सर्वप्रथम श्री रघुनाथ मिश्र को कृतिकार ‘आकुल’ का परिचय देने के लिए आग्रह किया।
श्री मिश्र ने कृतिकार परिचय देने से पूर्व ‘आकुल’ के बारे में कहा-‘नहीं जाना था तो कुछ भी नहीं जाना था। जाना तो कुछ जाना। अब जाना तो यह जाना कि अभी तक तो कुछ भी नहीं जाना।‘ उन्होंने कहा कि आज आप जो कुछ जानेंगे, उसके बाद भी बहुत कुछ जानने को रह जाता है। आज कई पर्दे खुलेंगे। ऐसे और भी मनीषी साहित्यकार हैं जिन्हें यह शहर बहुत समय तक नहीं जान पाया, उनमें से आकुल भी एक हैं। 1996 में उनकी पहली नाट्य कृति ‘प्रतिज्ञा’ कोटा के भारतेंदु समिति में विमोचित हुई थी। उसके बाद से कोटा के साहित्य समाज से कोटा में रहते हुए भी श्री भट्ट गुमनामी की तरह अपनी साहित्य जीवन यात्रा करते रहे। श्री मिश्र ने भट्ट की दूसरी पुस्तक ‘पत्थरों का शहर’ के उनका प्रख्यात संवाद ‘दोस्त फ़रिश्ते होते हैं, बाक़ी सब रिश्ते होते हैं’ से आरंभ की और कहा कि यह एक ऐसा जुमला है, जिससे सारा देश जो ‘आकुल’ को जानता है या नहीं जानता चर्चाएँ करता है। इस पर 6-8 घंटे की संगोष्ठी की जा सकती है। हमारे मुख्य अतिथि महोदय ने स्वयं ने इसे सूक्ति कहा है। ‘आकुल’ का जीवन संगीत और साहित्य से ओतप्रोत रहा है। यह उनकी विशेषता रही है कि अपने साहित्य प्रकाशनों उन्होंने कभी संगीत यात्रा का परिचय नहीं दिया। अनेकों वाद्य बजाने में सिद्धहस्त आकुल ने प्रमुख की बोर्ड प्लेयर (सिन्थेसाइज़र) के रू‍प में देश के प्रमुख आर्केस्ट्राओं में अपनी विशेष पहचान बनाई। जब स्टेज कार्यक्रमों में केवल पिआनो अकार्डियन का चलन था तब राजस्थान में उन्होंने सर्वप्रथम सिन्थेसाइज़र की पहचान करायी और कोटा में सर्वप्रथम सिन्थेसाइज़र का प्रदर्शन करने का श्रेय भी श्री भट्ट को जाता है। आर्केस्ट्राज़ के साथ देश विदेश के लगभग 300 बड़े बड़े स्टेज कार्यक्रम दिये, जिन्हें वे अपने जीवन के यादगार प्रोग्राम्स मानते हैं। वैसे उन्होंने अपने 80 से 90 के दशक में सैंकड़ों प्रोग्राम्स दे कर एक स्थान बनाया। उन्होंने मथुरा वृन्दावन की कई रासलीला व रामलीला मंडली के साथ पार्श्वसंगीत दिया।
कृतिकार परिचय के बाद मंचासीन सभी अतिथियों ने किसलय कलाये से बँधी रेशमी उत्तरीय में लिपटी पुस्तेकों को अनावृत कर लोकार्पित किया। सभी पधारे अतिथियों के समक्ष करते हुए संवाददाताओं और दूरदर्शन चैनल्स के प्रतिनिधियों ने मंचासीन अध्यक्षीय मंडल को कैमरे में कैद किया।
पुस्तक के लोकार्पण के पश्चात् सर्वप्रथम डॉ0 फ़रीद अहमद ‘फ़रीदी,’ जो “आकुल” की पुस्तक ‘पत्थरों का शहर’ के सम्पादक रहे हैं, ने उनके सम्मान में पाँच छंदों वाली एक कविता “साहित्य का फ़रिश्ता” गा कर सुनाई और श्री भट्ट को आशीर्वाद और बधाई स्वरूप लेखनी भेंट दी।
कृति परिचय के लिए अपने उद्बोधन के लिए संचालक ने डॉ0 कंचना सक्सैना को आमंत्रित किया। डॉ0 कंचना सक्सैना ने अपने आलेख को नाम दिया ‘जीवन की गूँज’ जीवन से आप्लावित कृति। वे कृति के लिए हाशिया बाँधते हुए लिखती हैं कि लगता है आज सारे विशेषण नुच गये हैं, छिन गये हैं और रह गये हैं मात्र सर्वनाम, जो संज्ञा के क़रीबी दोस्‍त हैं। जब सर्वनाम ही रह गये हैं, तो ज़िन्दगी की दौड़ तेज हो जाती है। उस ज़िन्दगी की तरह, जो नामहीन हो गयी है। ऐसी ही ऊबड़-खाबड़, मधुर एवं तिक्त सम्बंधों की पहचान की है श्री भट्ट ने। इनको समझने के लिए एक ओर भीषण तपती आग की आवश्यकता है, तो दूसरी ओर शीतल मन्द फुहार की। आज कवि अपनी ज़िन्दगी और उससे जुड़ी स्थितियों के ग्राफ आदमी की भाषा में उतार रहा है, नक्श कर रहा है, उन समूचे पलों को, जिसमें आदमी मर-खप रहा है, जी कर मिट रहा है और मिटते हुए भी एक स्थान, एक जिजीविषा के लिए हाँफ रहा है। युगबोध की अभिव्यंजना के साथ विरोधी भावों को उद्वेलित करना कवि के लिए इसलिये भी सम्भव रहा है कि ज़िन्दगी की हर धड़कन अथवा नब्ज़ को उन्होंने पूरी तरह टटोला है। समकालीनता हमेशा जीवन सन्दर्भों से जुड़ने में होती है। जो कवि देशकाल निरपेक्ष सार्वभौम और शाश्वत सत्यों पर बल देते हैं, वे सदैव समकालीनता से परे होते हैं, चाहे वे आज के कवि हों या पहले के। पहले के कवि भी आज के सच से जुड़े हुए हैं। भूमंडलीकरण के इस दौर में बहुत सारी हाशिये पर पड़ी चीजें प्रमुख हो गयी हैं। इसमें हाशिये पर धकेले गये साधारण जन भी उभरकर आए हैं। श्री भट्ट ने अपनी सूक्ष्मदर्शी दृष्टि से सभी विषयों को भावोर्मियों की लड़ियों में शब्दों के माध्यम से ऐसे पिरोया है कि पाठक मात्र आंदोलित हुए बिना नहीं रहता। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना से आड़ोलित एवं आप्लावित आपकी चिन्तना निश्चय ही काल और समय की माँग के अनुकूल है। बाजारवाद एवं वैश्वीकरण के प्रभावस्वरूप उत्पन्न स्थिति में आम आदमी का संघर्ष, पीड़ा, घुटन, संत्रास के साथ रिसते हुए रिश्तों के प्रति कवि का सम्वेदनशील मन करुणाश्रु प्रवाहित करता है। 9 कालखंडों में रचित कविताओं को 240 पृष्ठीय पुस्तक में प्रश्रय मिला है। भावोद्गारों को ब्रज एवं राजस्थानी के रंग कलशों में न केवल उँडेला है, अपितु दर्शन और अध्यात्म को भी संस्पर्श किया है। कहीं शृंगार से प्रेरित, तो कहीं भक्ति से, कहीं बालहठ, तो कहीं प्राकृतिक सौंदर्य से आप्लावित। ब्रजभूमि का मोह संवरण लेखक नहीं कर पाये और स्थान स्थान पर उसे अपने काव्य में आश्रय प्रदान किया है। गृहस्वामिनी तथा जीवन के मोह ने शृंगारिक कविताओं को जन्म दिया है और मित्रों के सम्बल ने ‘सखा बत्तीसी’ का सृजन करवाया है। नयी कविता के पक्षधर होने पर उनकी कविता में वह ऊर्जा है, जो तुकान्त कविताओं में नहीं होती। यही कारण है कि जहाँ भाषा की दृष्टि से ‘आकुल’ प्रोढ़, परिष्कृत, परिमार्जित एवं परिनिष्ठित भाषा के धनी हैं, वहीं भाव की दृष्टि से भी कविता प्राणवान् और ऊर्जावान् बन पड़ी हैं। ब्रजभाषा पर तो आपका अपूर्व अधिकार है। कहीं-कहीं मुहावरों एवं लोकोक्तियों के प्रयोग में भाषा की अभिवृद्धि में चार चाँद लगाते हैं। उपमान जीवन से ग्रहीत हैं। कविता के साथ गद्य में कवि के विचार उसे समझने में सहायक तो हैं ही, साथ ही कवि का ये नवीन प्रयोग प्रशंसनीय है। लेखक की विद्वत्ता का भी कहीं अंत नहीं है। जापानी विधा हाइकू में निबद्ध त्रिपदीय रचनाओं की परत दर परत सींवन उधेड़ी है। स्वध्येय में वे अनवरत सृजन की ओर संकेत भी करते हैं।
प्रमुख वक्ता आचार्य ब्रजमोहन मधुर ने ‘सहितस्य भाव: साहित्य’ की अवधारणा को पूरा करने वाले साहित्यकार के रूप में आकुल को साधुवाद दिया। लोक साहित्‍य, लोक संस्कृति को बचाये जाने के उनके आग्रह को भी उन्होंने साधुवाद दिया और कृति को अध्यात्म और दर्शन की एक उत्कृष्ट कृति के रूप में बताया। डॉ0 अशोक मेहता ने पुस्तक को आस्था के कवि की अनुगूँज के रूप में सार्थक प्रयत्न बताया। उनकी दृष्टि में शृंगार और होली विषयक रचनाओं को वे सुंदरतम बताते हैं। मुख्य अतथि श्री रघुराज सिंह हाड़ा ने अपने वक्तव्य में ‘आकुल’ को आशीर्वाद देते हुए कहा कि सर्वप्रथम मैं पत्थरों के शहर के उनके एक शेर को सूक्ति के रूप में देखता हूँ ‘दोस्त फ़रिश्ते होते हैं, बाक़ी सब रिश्ते होते हैं’ जिसे मैं पचासों मित्रों को सुना चुका हूँ। उन्होंने बताया कि जीवन की गूँज को मैंने आद्योपान्त पढ़ा है। जिस पुस्तक का आरंभ श्रीकृष्‍णार्पणम् से हुआ हो और समाप्ति श्रीकृष्णार्पणमस्तु करके बात पूरी हुई हो, तो भई श्रीकृष्णार्पणम् के बाद तो लोकार्पण, प्रसाद वितरण का ही होता है और वो भी हो गया। मेरे लिए यह सुखद बात मानता हूँ, जिस समय प्रिय आकुल का जन्म हुआ 18 जून 1955, उसके कुछ दिन बाद ही मैं शिक्षक बन गया था। दो तीन महीने पहले जन्मा बालक आज इतनी प्रोढ़ता के साथ एक कृति प्रस्तु्त करे और वह भी ऐसी, जो सारे जीवन को गूँजता हुए क्रमश:-क्रमश: चरेवेति-चरेवेति भाषा में कह जाता है। मुझे सबसे अच्छी बात इस कृति की यह लगी, वो यह कि सामान्यतया होता यह है कि मन किया और लिख दिया, पर प्रिय आकुल का संजीदगी भरा, धैर्य और उनकी प्रज्ञा का आग्रह रहा होगा कि उन्होंने कृति लिखने से पूर्व ‘क्या लिखूँ, क्यों लिखूँ’ के उत्तर तलाश किये, इसलिए हर रचना के पूर्व उन्होंने अपने उद्रगार प्रकट किये हैं। सामान्यतया ऐसा होता नहीं है, पर आकुल ने यह कर दिखाया, जो प्रशंसनीय है। यह सभी रचनाकारों के लिए सोचने की बात है। उन्होंने 'यदा यदा हि धर्मस्य' पर विवेचना की और आकुल को सुंदर कृति के लिए आशीर्वाद दिया।
अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉ0 औंकारनाथ चतुर्वेदी ने कहा कि 19 वीं शताब्दी में झालावाड़ ने शीर्ष स्थान प्राप्त किया था, हिन्दी सेवा में। हरिवंश राय बच्चन जहाँ गिरधर शर्मा कविरत्‍न से मधुशाला के छंद सीखने आये थे, जिस कविरत्‍न गिरधर शर्मा, शकुंतला रेणु, भट्ट गिरधारी शर्मा तैलंग कवि किंकर की कर्मभूमि झालवाड़ रही हो, पं0 गदाधर भट्ट का परिवार हो, ऐसे परिवार से संस्कारित हैं रत्‍नशिरोमणि “आकुल”। जीवन की जो गूँज है, एक सार्थक कवि की सार्थक प्रतिध्वनि है, जो दशकों तक लोगों द्वारा याद की जायेगी। मैंने पूरी पुस्तक को पढ़ा है। आज जन्माष्टमी है, चौंकिये मत, भले जन्माष्टमी आठ दिन बाद है। पर आज जन्माष्टमी है। हर रचनाकार की कृति का लोकार्पण जन्माष्टमी का त्योहार ही तो होता है। जो रचनाकार हैं, साहित्यकार हैं, जिसने अपने जीवन में पुस्तक लिखी हो, तन मन की सुध बिसरा जाता है। भाई आकुल ने कितने सपने सँजोये होंगे। अपनी आजीविका से पेट काट कर पैसे इकट्ठे कर के पुस्तक छपवाई होगी। एक संगीतकार का जीवन जीते जीते कवि बन जाना, अपने जीवन का इतना बड़ा मोड़ ले आना, फिर अपनी अंतर्भावानाओं से गुँथ जाना, फि‍र अपने आराध्य को ढूँढ़ना, फि‍र आराध्य के साथ अनुरंजित हो जाना, बहुत बड़ी साधना है। उन्होंने श्री भट्ट को सफल कृति के लिए शुभकामनायें दीं। उन्होंने आज वृद्धावस्था में बड़ी सक्रियता के लिए रघुनाथ मिश्र को भी बधाई दी।
कवि आकुल ने भी अपने स्व-भाव में पुस्तक लिखने की प्रेरणा के लिए थोड़े शब्दों में अतिथियों को सम्बोधित किया। उन्होंने सम्पूर्ण जीवन जन कल्‍याण के लिए समर्पित करने वाले जननायक के रूप में कृष्ण के जीवन चरित से प्रेरित हो कर लेखन का अपना कर्तव्य निभाया है। उन्होंने कहा कि लोकोपयोगी साहित्य में वर्णन नहीं मिलने के कारण द्वारिका के जलमग्न होने और कृष्ण के निर्वाण की घटनाओं का छंदात्मक वर्णन उन्होंने ‘एक और महाभारत’ में किया है। मित्रता के प्रति समर्पित और उसके लिए प्रबल समर्थन ने ‘सखा बत्तीसी’ का निर्माण करवाया। संस्कार और पत्‍नी ‘श्री’ के महत्व ने जीवन को शृंगारित करने हेतु 'गीत गोविंद' को लोग भूले नहीं उसी तर्ज पर ‘शृंगार सजनी’ का सृजन किया है। उन्होंने इस पुस्तक को अपना स्वाध्याय बताया ओर कहा कि लोक संस्कृति और लोक साहित्य जीवंत रहे, यह कृति पाठकों को पसंद आयेगी। उन्होंने महाकाव्य महाभारत को प्रत्येक रचनाकार को पढ़कर आत्मसात् करने के लिए प्रेरित किया।
भारी संख्या में वरिष्ठ साहित्यकारों सहित अनेक रचनाकारों ने समारोह में भाग लिया। वल्ल्भ महाजन, सुरेश चंद्र सर्वहारा, डॉ0योगेन्द्र मणि कौशिक, महेंद्र नेह, डॉ0 इंद्र बिहारी सक्सैना, सावित्री व्यास, हरिश्चंद्र व्यास, डॉ0 नलिन, डॉ0 फ़रीदी, डॉ0 राधेश्याम मेहर, शरद तैलंग, समाचार सफ़र के सम्पादक जीनगर दुर्गाशंकर गहलोत, अखिलेश अंजुम, आलोचक प्रोफेसर हितेश व्यास, भगवती प्रसाद गौतम, बृजेंद्र सिंह झाला पुखराज, रामदयाल मेहरा, हलीम आईना, बाल कृष्ण निर्मोही, बद्री लाल दिव्य, क्ष्मा मिश्रा, उपासना मिश्रा, बालकवियत्री पूर्वी मिश्रा, गोविन्द शर्मा, वेद प्रकाश परकाश, पीयूष भट्ट, आदि अनेकों साहित्य प्रेमियों ने समारोह में उपस्थिति दी। कार्यक्रम के अंत में अल्पाहार और लेखक की कृति का वितरण किया गया। जलेस सचिव, चर्चित होती त्रैमासिक पत्रिका दृष्टिकोण के प्रकाशक और फ्रेंड्स हेल्पलाइन के संरक्षक श्री नरेंद्र चक्रवर्ती ने पधारे सभी महानुभावों का आभार प्रकट किया।

14 अगस्त 2010

जीवन की गूँज का लोकार्पण 22 अगस्त को


कोटा। जनवादी लेखक संघ के शहर अध्यक्ष एवं प्रख्यात जनकवि गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’ की पुस्तक ‘जीवन की गूँज’ का लोकार्पण 22 अगस्त रविवार को दोपहर 2 बजे सम्पन्न होने जा रहा है। आयोजन आरएमएसआरयू कार्यालय, मारूति कॉलोनी, मयूर टॉकीज के पीछे नयापुरा कोटा में किया जायेगा। जनवादी लेखक संघ कोटा द्वारा जारी विज्ञप्ति में बताया गया कि कार्यक्रम की सारी औपचारिकतायें पूरी कर ली गयी हैं। अध्यक्ष मंडल के सभी पदाधिकारियों, मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि व शहर के जाने माने लगभग 100 से अधिक लेखक साहित्याकारों को आमंत्रण पत्र प्रेषित कर दिये गये हैं। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि झालावाड़ के राजस्‍थानी और हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार और जलेस के ‘ठाड़ा राही’ पुरस्कार से सम्मानित श्री रघुराज सिंह हाड़ा होंगे, विशिष्ट अतिथि झालवाड़ के ही राजस्थान संस्कृत अकादमी के पूर्व निदेशक और राजस्थान के वरिष्ठ संस्कृत-हिंदी के साहित्यकार पं0 गदाधर भट्ट होंगे। समारोह की अध्यक्षता शहर के प्रख्यात वरिष्ठ साहित्यकार प्रोफेसर औंकार नाथ चतुर्वेदी करेंगे। कृति परिचय राजकीय महाविद्यालय,कोटा की प्रवक्ता डॉ0कंचना सक्‍सैना देंगी तथा प्रमुख वक्ता होंगे आचार्य ब्रजमोहन मधुर और डॉ0 अशोक मेहता। कार्यक्रम का संचालन प्रख्यात सम्प्रेरक और राष्ट्रीय प्रशिक्षक(केरियर गाइड) सौरभ मिश्र करेंगे। कृतिकार ‘आकुल’ की यह तीसरी पुस्तक है। आकुल की यह पुस्तक उनके विगत पचास साल में समय समय पर देश की दशा दिशा और साहित्यि के बदलते परिवेश पर उनके खट्ठे मीठे अनुभवों का संग्रह है। जीवन के विविध रंगों में रंगी उनकी पुस्तक उनके जीवन दर्शन को भी झंकृत करती है। जलेस शहर सचिव और कृतिकार आकुल ने बताया कि कार्यक्रम में पधारे सभी अतिथियों व साहित्यकारों को कार्यक्रम के समापन के पश्चात् पुस्तक भेंट स्वरूप दी जायेगी।

5 अगस्त 2010

जलेस की बैठक में निर्णय। 'आकुल' के काव्‍य संग्रह 'जीवन की गूँज' का लोकार्पण इसी माह

कोटा। हाल ही में प्रकाशित गोपाल कृष्‍ण भट्ट 'आकुल' की नई पुस्‍तक 'जीवन की गूँज' का लोकार्पण इसी माह होने जा रहा है। जनवादी लेखक संघ के जिलाध्‍यक्ष श्री रघुनाथ मिश्र ने बताया कि दिनांक 4-8-2010 को हुई बैठक में लोकार्पण के लिए की जाने वाली तैयारियों, अतिथियों, कृति परिचय, विमोचन के लिए समारोह की अध्‍यक्षता आदि के लिए शहर के प्रतिष्ठिति साहित्‍यकारों के नामों पर चर्चा हुई। लोकार्पण समारोह नयापुरा स्थित मेडिकल एसोसिएशन के मुख्‍यालय (आरएमएसआरयू)पर होना तय हुआ हैं। यूनियन सचिव श्री गालव से दूरभाष पर स्‍वीकृति प्राप्‍त हो चुकी है। समारोह 22 अगस्‍त 2010, रविवार को किया जाना लगभग तय है।
जनवादी लेखक संघ के सभी बड़े कार्यक्रम यहीं सम्‍पन्‍न होते आये हैं। वर्ष 2008 में जलेस द्वारा मनाये गये 'सृजन वर्ष' के दौरान प्रकाशित सभी 9 पुस्‍तकों का विमोचन मुख्‍यालय के सभागार में हुआ था। जलेस शहर इकाई के सचिव श्री नरेंद्र चक्रवर्ती ने बताया कि आमंत्रण पत्र शीघ्र ही डाक द्वारा सम्‍प्रेषित कर दिये जायेंगे तथा अधिक से अधिक संख्‍या में शहर व प्रदेश के सम्‍माननीय साहित्‍यकारों से एसएमएस के माध्‍यम से भी ज्‍यादा से ज्‍यादा संख्‍या में उपस्थित होने के लिए आग्रह किया जायेगा। उन्‍होंने बताया कि 'आकुल' की यह तीसरी पुस्‍तक है। 240 पृष्‍ठीय यह पुस्‍तक 'आकुल' की 50 वर्षीय साहित्यिक जीवन यात्रा के दौरान हुए अनुभवों के लेखनी से उकेरे गये विभिन्‍न काव्‍य विधाओं का अनूठा संग्रह है। अपने आप में यह पुस्‍तक कोटा के साहित्‍य जगत् में बिल्‍कुल अनोखी है। इस समारोह के मीडिया कवरेज के लिए भी एसटीएन, ईटीवी राजस्‍थान, न्‍यूज24, 99, स्‍थानीय दैनिक समाचार पत्रों आदि से सम्‍पर्क किया जा रहा है। बैठक लेखक 'आकुल' के निवास 817 महावीर नगर-2 में सम्‍पन्‍न हुई। बैठक में श्री रघुनाथ मिश्र, श्री नरेंद्र चक्रवर्ती, लेखक गोपाल कृष्‍ण भट्ट 'आकुल' और उनके अभिन्‍न मित्र अधिवक्‍ता श्री बी सी मालवीय उपस्थित हुए।

10 जुलाई 2010

‘दृष्टिकोण’ का प्रवेशांक देवार्पित

कोटा। फ्रेण्ड्स हेल्प लाइन, कोटा के साहित्य प्रकाशन शृंखला का द्वितीय साहित्य प्रकाशन “दृष्टिकोण” का प्रवेशांक देवार्पण कर पाठकों, साहित्यकारों को उपलब्ध कराने हेतु तैयार है। हेल्प लाइन के प्रबंध सम्पादक एवं मानद सचिव श्री नरेंद्र चक्रवर्ती ने बताया कि पत्रिका त्रैमासिक है और वर्ष 2010-2011 का यह प्रथम अंक है। पत्रिका में लेख, ग़ज़ल, गीत, कविता, लघुकथा, दोहा, चतुष्पदी, मुक्तछंद, लघु कविता को स्थान दिया गया है। 52 पृष्ठीय पत्रिका में लगभग 60 रचनाकारों को स्थान मिला है। प्रदेश और देश के जाने माने साहित्यकारों से सुसज्जित यह पत्रिका सुंदर रंगीन कलेवर से सजी बहुत ही आकर्षक बन पड़ी है।
पत्रिका में प्रख्यात ग़ज़लकार रमेश ‘नाचीज़’, पुरुषोत्तम ‘यक़ीन’, मुखराम माकड़ ‘माहिर’, मो- इल्यास ‘नाज़’, ए- जमील ‘कु़रेशी’, अमीन ‘असर’, अहमद सिराज ‘फ़ारुक़ी’, डॉ- नलिन, चाँद ‘शेरी’ आदि, कविताओं में राम गोपाल राही, सुरेशचंद्र निगम, लघुकथा में गिरीश कान्त सक्सेना, संतोष सुपेकर, दिनेश कुमार छाजेड़ आदि, मुक्त छंद में ओम नागर, अम्बिका दत्त, ग्यारसी लाल आदि, लघु कविताओं में इला मुखोपाध्याय, शफ़ी उद्दीन ‘पलसावी’ आदि कवियों, साहित्‍यकारों ने अपनी लेखनी का कमाल दिखाया है। पत्रिका में राजस्थान साहित्य अकादमी की जानी मानी हस्ती राजस्थान के ख्यातनाम वरिष्ठ साहित्यकार श्री गदाधर भट्ट, डॉ- दया कृष्ण ‘विजय’ जैसे मूर्धन्य साहित्यकारों ने भी अपने अमर विचार दिये हैं।
मानद सचिव श्री चक्रवर्ती ने पत्रिका का प्रवेशांक देवार्पित करते हुए बताया कि पत्रिका का मूल उद्देश्य जहाँ हिन्दी एवं उसकी सहोदर भाषाओं को प्रोत्साहन देना है, वहीं स्थानीय रचनाकारों के साथ अन्य राज्यों के रचनाकारों का परिचय पाठक मित्र जगत् को कराना है। उन्होंने रचनाकारों से अपील की है कि वे स्वैच्छिक रूप से आर्थिक सहयोग दें, परन्तु पुस्तक की प्रति के लिए पाठक मित्र बन कर उनके इस संकल्प की सार्थकता में सहयोग बन अपना अद्वितीय योगदान अवश्य प्रदान करें।
मित्रों के लिए समर्पित फ्रेंड्स हेल्पलाइन की प्रथम साहित्यिक-सामाजिक पत्रिका ‘कृतज्ञ यज्ञ संकल्प’ के सफल सात वर्ष पूर्ण करने के बाद उनका यह सम्पूर्ण साहित्यिक पत्रिका का लंबे समय से मन में सँजोये रखा सपना साकार हो गया। उन्होंने इसे साहित्यकार पाठक मित्रों की एक लंबी शृंखला बनाने का भी प्रयास बताया। फ्रेण्ड्स हेल्पालाइन के प्रकाशनों में सर्वप्रथम ‘कलमकार निर्देशिका’ ने साहित्यकारों के बीच श्री चक्रवर्ती को एक नई पहचान दी थी। श्री चक्रवर्ती एक कवि भी है। उनके कोमल मन ने अपनी पहली कृति ‘मोती’ भी साहित्य जगत् में प्रस्तुत की है। पुस्तक ‘मोती’ जनवादी लेखक संघ की कोटा इकाई की वर्ष 2008 को ‘सृजन वर्ष’ के रूप में मनाये जाने के अंतर्गत प्रकाशित 9 पुस्तकों में एक थी। श्री चक्रवर्ती जनवादी लेखक संघ के कोटा शहर इकाई के सचिव भी हैं।
श्री चक्रवर्ती ने बताया कि प्रकाशित साहित्‍यकारों को उनकी प्रतियाँ प्रेषित की जा रही हैं। पत्रिका की प्रतिक्रियाओं और पाठकों के विचार पत्रिका के तृतीय अंक में प्रकाशित किये जायेंगे।

3 जुलाई 2010

पर्यावरण की सुरक्षा के लिए वृक्षारोपण के प्रति कितने सजग हैं हम ?

पर्यावरण प्रकृति का एक सुदर्शन कवच है, जो पृथ्वी से आकाश तक सुंदर वातावरण सृजित कर प्रकृति को अनुपम सौंदर्य प्रदान करता है और पृथ्वी पर जीवन को हर सम्भव जीने का अवसर प्रदान करता है। इस कवच पर समय-समय पर ॠतुओं व प्रदूषण के अनगिनत आक्रमण से निस्तेज होते हुए भी वह सूर्य के प्रभामंडल से असीम ऊर्जा पा कर पुन: पर्यावरण को संरक्षित करने में समर्थ होता है।

पर्यावरण को आज मनुष्य से सबसे ज्यादा खतरा है। भौतिक सुख सुविधाओं की अंधी दौड़ में मनुष्य ने इस सुदर्शन कवच को इतना कृश कर दिया है कि पृथ्वी का जीवन खतरे में पड़ गया है। पौराणिक परिदृश्य पर भी दृष्टि डालें, तो हम पायेंगे कि हर युग में मनुष्य ने अपनी त्रुटियों से प्रकृति को बहुत कष्ट पहुँचाया है। भगवान् परशुराम-शिव युद्ध के भीषणतम चरम पर परशुराम द्वारा ब्रह्मास्त्र उठाने के असंयम ने राजस्थान के मरुस्थल को जन्म दिया और अंत:सलिला सरस्वती को लुप्त किया। इस भीषण घटना ने उस युग के प्रलय को सृजित किया था। प्रकृति के अनुपम सौंदर्य को संरक्षित करने के अतुलनीय सुदर्शन प्रयासों ने पुन: जीवन का संचार किया। त्रेता युग के रामायण काल में वरुणदेव द्वारा सागर से लंका का मार्ग प्रशस्त न करने के कारण उन्हें श्रीराम के कोप का भाजक बनना पड़ा और श्रीराम द्वारा ब्रह्मास्त्र धारण करने के कारण कच्छ के मरुस्थल का आविर्भाव हुआ। यह सब पर्यावरण के साथ मनुष्य के कृत्यों का एक पौराणिक पक्ष था।

आज विज्ञान और प्रोद्योगिकी की प्रोन्‍नति के साथ मनुष्य द्वारा पर्यावरण की अनदेखी पुन: एक भावी आशंका को जन्म दे रही है। इसके दिनों दिन दिखाई देते कुप्रभावों एवं दुष्परिणामों से भी यदि मनुष्य नहीं चेते, तो कुछ भी प्राकृतिक घटित हो जाने पर, हमें चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। विज्ञान के संज्ञान से भी यदि प्राणी, उसके समस्त घटकों का अध्ययन किये बिना, अपने प्राप्त होते जाने वाले सापेक्ष परिणामों को सफलता मानता चला जाये और प्रकृति के संतुलन को कायम नहीं रख पाने के परिणामों को जाने बिना, यदि कोई निर्णय लेता चला जाये, तो दुष्परिणामों का मनुष्य को ही सामना करना है।
पर्यावरण में व्याप्त अनेकों प्रकार के प्रदूषण प्रकृति को प्रभावित करते हैं। प्रदूषण का अर्थ है वातावरण में संदुश्को‍ (contiminents) का घुलना, जिससे जीव-जंतुओं में बेचैनी उत्पन्‍न होती है और उनके विस्तृत फैलाव से विकृतियाँ उत्पन्न होती हैं। उनके स्वास्‍थ्‍य पर विपरीत प्रभाव पड़ते हैं और चराचर जगत् को अपूरणीय क्षति का सामना करना पड़ता है। चेर्नोबिल की रासायनिक रिसाव की दुर्घटना, द्वितीय विश्‍वयुद्ध की विभीषिका, हिरोशिमा-नागासाकी का विकराल और विकृत अंत, भोपाल गैस त्रासदी, इराक युद्ध से सैंकड़ों बैरल तेल के समुद्र में बहने से जलजीवों की दुर्गति, सुनामी से हुई तबाही, जयपुर का इंडियन ऑयल डिपो अगिनकांड, भीषण गर्मी आदि का फैलता साया, यह सब जीवन के दायें बायें फैलते जा रहे अपर्यावरणीय दानव के भयावह रूप हैं, जो मानव जीवन को अपने संजाल में जकड़ते हुए भविष्य के अंधकूप में धकेलते जा रहे, विवशता के वे सोपान हैं, जो प्राय: दिखाई देते रहेंगे और हम विवश मानव जीवन के मूल्यों को सहेजने में अपने आपको विवश पाते जायेंगे। कुछ सफलताओं के लिए हम अनगिनत जीवन अर्पित करते आये हैं और भविष्य में भी करते रहेंगे।

वायु प्रदूषण, मृदा संदूषण, जल प्रदूषण आदि अनेकों प्रदूषणों से त्रसित हमारा जन जीवन प्रकृति से एक ऐसे छद्म युद्ध की आधारशिला रच रहा है, जिसके परिणाम जन जीवन के समक्ष लाने के लिए प्रबुद्ध वर्ग और वैज्ञानिक घबरा रहे हैं, क्योंकि सफलता के स्वार्थ में अंधे हो कर उनके हाथ प्रकृति से छेड़-छाड़ करने की बार-बार कोशिश करते रहे हैं और कर रहे हैं, जो ब्रह्मास्त्र को छेड़ने के सदृश है। हम अपने वर्तमान जीवन के आस-पास के वातावरण के लिए सामान्य मानव संभव कार्यों के लिए ही अभियन छेड़ें, वही उचित है, क्योंकि इतना सहयोग प्रकृति को प्रसन्न करने में काफी है। आइये, केवल ग्रीन हाउस गैसों के बारे में ही संक्षेप में जानें और सोचें कि पर्यावरण की सुरक्षा के लिए वृक्षारोपण कितना महत्वूर्ण है?

ग्रीन हाउस गैसें ग्रह के वातावरण और जलवायु में परिवर्तन व अंतत: भूमंडलीय ऊष्मीकरण के लिए उत्तरदायी होती है। इनमें सबसे ज्यादा उत्सर्जन कार्बन डाई ऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, मीथेन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, वाष्प, ओजोन आदि करती हैं। कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन लगभग 50 प्रतिशत बढ़ने को अग्रसर है। इन गैसों का उत्सर्जन आम प्रयोग के उपकरणों वातानुकूलक, फ्रि‍ज, कम्यूटर, स्कू‍टर, कार आदि से है। कार्बन डाई ऑक्साइड का सबसे बड़ा स्रोत पेट्रोलियम ईंधन और परम्परागत चूल्‍हे हैं। पशुपालन से मीथेन गैस का उर्त्सजन होता है। कार्बन डाई ऑक्साइड गैस तापमान बढ़ाती है। कोयला बिजलीघर भी ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन का प्रमुख स्रोत हैं। हालाँकि क्‍लोरो-फ्लोरो कार्बन का प्रयोग भारत में बंद हो चुका है, फि‍र भी उसके स्थान पर प्रयोग में ली जा रही सबसे हानिकारक ग्रीन हाउस गैस हाइड्रो क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, कार्बन डाई ऑक्साइड गैस से एक हजार गुना ज्यादा हानिकारक है। पूरे विश्व‍ के औसत तापमान में लगातार वृद्धि दर्ज की गयी है। ऐसा माना जा रहा है कि मानव द्वारा उत्पादित गैसों के कारण ऐसा हो रहा है। हाल ही में नीदरलेण्ड की पर्यावरण सम्बंधी रिपोर्ट में चीन और भारत की ऊँची विकास दर को कार्बन उत्सर्जन में बढ़ोतरी के लिए दोषी ठहराया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसी वजह से अमीर देशों ने उत्सर्जन में जो कटौती की है, वो निष्प्रभावी हो गयी है। कार्बन डाई ऑक्साइड, जो प्रकाश संश्लेषण के लिए महत्वपूर्ण है, कई बार प्रदूषण का कारण मानी जाती है, क्योंकि वातावरण में इन गैसों का बढ़ा हुआ स्तर पृथ्वी की जलवायु को प्रभावित करता है। हाल ही के अध्ययनों से वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड के स्तर के बढ़ने के बारे में पता चला है, जिसके कारण समुद्री जल की अम्लता में मामूली सी बढ़ोतरी हुई है। यह एक जटिल स्थिति है और इसका संभावित प्रभाव समुद्री परितंत्र पर पड़ेगा। पृथ्वी पर उत्सर्जित 40 प्रतिशत कार्बन डाई ऑक्साइड गैस पेड़ पौधों द्वारा सोख ली जाती है।

इसलिए स्पष्ट है कि हमें पेड़ पौधों के विकास एवं वृक्षारोपण अभियान की गति को तेज करना होगा। हमारे आस-पास, जीवन- यापन के क्षेत्रों में पेट्रोलियम पदार्थों से चालित साधन संसाधनों की बहुतायत की तुलना में वृक्षारोपण बहुत कम है, जिसे बढ़ाना होगा। इसके लिए मानव शृंखलाएँ बनायी जानी चाहिए और आने वाले एक दशक में इसके चमत्कारिक परिवर्तन देखे जा सकें, ऐसी योजनायें क्रियान्वित की जानी चाहिए। यानि, मूल रूप से हमें पर्यावरण की संरक्षा करनी होगी और पर्यावरण प्रदूषण रोकना होगा। इसके लिए जन सामान्य से सर्वाधिक वृक्षारोपण सहयोग और ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन आधारित साधन संसाधनों के कम से कम प्रयोग करने के बारे में समझा कर किया जा सकता है, जिसके लिए नुक्कड़ नाटक, समाचार पत्रों, रोचक दूरदर्शन कार्यक्रमों के बीच-बीच में विज्ञापनों आदि के माध्यम से प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए।

पर्यावरणीय अचेतनता का एक उदाहरण है राजस्थान के पिछले 30 सालों से विशाल परिसर में चल रहा इंजीनियरिंग कॉलेज, कोटा, जो आज राजस्थान सरकार की स्टेट यूनिवर्सिटी “राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय, कोटा” के रूप में 2006 से संचालित है, किंतु आज तक प्रशासन और सरकार की उदासीनता से यह परिसर पर्यावरण प्रदूषण की त्रासदी झेल रहा है। यह परिसर 1982-83 से तत्कालीन इंजीनियरिंग कॉलेज प्रशासन के अधीन आया। तब से आज तक परिसर को हरा भरा करने के प्रयासों की यदि समीक्षा की जाये, तो परिणाम शून्य ही रहा है। विश्वविद्यालय के गठन के बाद विगत 4 वर्षों में भी इस दिशा में अभी तक कुछ नहीं किया गया। तकनीकी विश्वविद्यालय के नये भवन निर्माण के साथ-साथ यदि वृक्षारोपण को भी योजना में शामिल किया जाता, तो आज यह भवन वृक्षों से आच्छादित होने के भविष्य के सुनहरे स्वप्‍न देख रहा होता। परिसर चट्टानों से भरा हुआ है, सत्य‍ है, किंतु यह मान कर तो अनदेखी नहीं की जा सकती है। ऐसा संस्थान जहाँ सबसे ज्यादा शोधकर्ता (पीएच-डी-धारक) शैक्षणिक स्टॉफ हो, वहाँ परिसर को हरा-भरा करने की ओर गम्भीरतापूर्वक प्रयास न हों, क्या यह प्रशासनिक और तकनीकी संस्थान के संदर्भ में एक प्रश्न चिह्न नहीं लगाता? चैलेंज और साहस से क्या नहीं किया जा सकता? इसके लिए आवश्यक है, एक बिन्दु कार्यक्रम। 30 वर्ष की लम्बी अवधि में इस परिसर के लिए पर्यावरणीय संरक्षण के प्रयासों के लिए सरकार को कितने प्रस्‍ताव भेजे गये, यह यदि प्रशासनिक अधिकारियों से पूछा जाये, तो कदाचित् हम उन्हें मौन ही पायेंगे। सरकार सैंकड़ों योजनायें बनाती है, सहायता देती है, अनुदान देती है। हर असफल प्रयासों के लिए सरकार को दोष देना निरर्थक है। हमें स्वयं से प्रश्न करना होगा- क्या हम अब भी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे?

विश्वविद्यालय को सबसे बड़ा खतरा है ग्रीन हाउस उत्सर्जक एक प्रमुख संयंत्र थर्मल पॉवर स्टेशन से, जो संस्थान के पृष्ठ भाग में चम्बल नदी के सामने वाले किनारे पर स्थित है, जहाँ टनों कोयला पड़ा हुआ है। इस संयंत्र के कारण चम्बल का पानी हमेशा गर्म रहने लगा है और उसमें जल जीव या तो कम हो रहे है अथवा उनका पलायन निरंतर जारी है। चम्बल के किनारे-किनारे विश्वविद्यालय परिसर पट्टी पर गहन वृक्षारोपण करने की अत्यन्त आवश्यता है। वहाँ धीरे-धीरे कम होते जा रहे हरे-भरे वृक्ष भी चिन्ता का विषय है। उन्हें विकसित करना, अधिक वृक्ष लगाना व उन्हें संरक्षित करने की बहुत आवश्यकता है।

विश्वविद्यालय परिसर में जहाँ घना वृक्षाच्छादित क्षेत्र विकसित किया जा सकता है वे स्थल हैं- प्रशासनिक भवन व गेस्ट हाउस के सम्मुख अल्प वृक्षाच्छादित क्षेत्र, ट्रीटमेंट प्लांट, स्टॉफ कॉलोनी परिक्षेत्र, छात्रावास, प्रवेश द्वार से अंतिम एकेडमिक ब्लॉक तक के मार्ग के दोनों ओर, विश्वविद्यालय के नये भवन के चारों ओर का सड़क मार्ग। जिम के सामने खेल मैदान के चारों ओर एवं लाइब्रेरी के सामने सिल्वर जुबली मंच एवं अगोरा के चारों ओर विशाल यूक्लिप्टिस वृक्षों से उसे आच्छादित कर, इसे भविष्य के लिए एक विरासत के रूप में विकसित किया जा सकता है।

वर्षों से निष्क्रिय पड़े ट्रीटमेंट प्लांट को वृक्षारोपण के लिए उपयोगी बनाया जा सकता है। इस प्लांट से नियमित वृक्षों को जलापूर्ति पहले भी दी जाती थी। पूरे परिसर में यथा संभव जल संचय के लिए 2-3 एनीकट्स और विकसित किये जा सकते हैं। कम चट्टानों वाले क्षेत्रों की तलाश कर दो तीन बोर वेल खोदे जा कर नियमित जलापूर्ति से पूरे परिसर को हरा भरा रखने के लिए जल प्रबंधन किया जा सकता है। परिसर में भावी भवन निर्माण के समय रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए ध्यान रखा जाना चाहिए। नवनिर्मित विश्वविद्यालय भवन के सामने, उसके वेबसाइट पर प्रदर्शित चित्र के अनुरूप इसे विकसित करने के पिछले चार वर्षों के शिथिलनीय प्रयासों में भी गति लाया जाना अत्यावश्यक है। राजस्थान में सर्वाधिक भूक्षेत्र वाले शैक्षणिक सांस्थानिक परिसर का संभ्रम पाले हम यदि गर्व ही करते रहें और हाथ पर हाथ धरे बैठें रहें, तो यह प्रकृति के साथ खिलवाड़ और पर्यावरण का परिहास होगा।

यहाँ अनेकों अधिशासी अभियंता स्तर के सम्पदा अधिकारी, प्रशासनिक अधिकारी, प्राचार्य, कुलपति आये किन्तु पर्यावरण चेतना का बिगुल किसी ने नहीं बजाया। हमारे यहाँ समृद्ध तकनीकी शिक्षक वर्ग, जुझारू कर्मचारियों, तकनीशियनों, कार्मिकों और पर्यावरण प्रेमी छात्रों का समूह है, बस कमी है तो योजना की और योजना की क्रियान्विति की।

जब रेगिस्तान में हरित क्रांति लाई जा सकती है, पहाड़ों पर झूम खेती हो सकती है, तो चट्टानों पर हरियाली क्यों नहीं छा सकती है? काश ऐसा हो कि विश्वविद्यालय पर्यावरण क्रांति का संदेश दुनिया को दे, चट्टनों पर झूमते लहलहाते वृक्षों के वृन्दावन के लिए पहचाना जाये। यहाँ पर्यावरण के लिए शोध केन्द्र खुले और शोधार्थी पर्यावरणीय मानक स्थापित करने के लिए शोध करने आयें।

यह पर्यावरणीय चेतना का अभाव ही है कि शहर में सफाई व्यवस्था चरमराई हुई है। सड़कें और नालियाँ कचरे से अटी पड़ी रहती हैं, जिसमें प्लास्टिक की थैलियों का कचरा सबसे ज्यादा होता है। चम्बल के वरदान से फलीभूत कोटा शिक्षा की दृष्टि से समृद्ध होते हुए भी उच्च तापमान में जीने को विवश है। चट्टानी परतों के बाहुल्य, पाषाणीय उत्खनन (कोटा स्टोन) के लिए प्रख्यात इस क्षेत्र को वृक्षारोपण की अत्यंत आवश्यकता हैं। उद्योग नगरी, शिक्षा नगरी के साथ-साथ अब बहुमंजिली इमारतों के लिए पहचाना जाने लगा चुम्बकीय शहर कोटा पर्यावरण के लिए कितना संवेदनशील है, कितना सजग है, यह बताने के लिए यहाँ के प्रशासकों, महापौर, विधायकों, सांसदों, मंत्रियों, उद्योगपतियों, समाज सेवियों, प्रबुद्ध नागरिकों और हमें कुछ तो कर गुजरना होगा ही।

वर्ष 2010 में 50 डिग्री सेल्सियस तापमान को छूने वाला कोटा शहर पर्यावरणीय अचेतन पग लिए कितना और झुलसेगा यह भावी पीढ़ी निर्धारित करेगी। हमें पीछे मुड़ कर नहीं देखना है। हमें असंख्य पेड़ो के लिए प्रकृति का आह्वान करना है। आइये, जगह-जगह मानव शृंखला बनायें, इलाकों को हरा-भरा करने के लिए इलाकों को, उद्यानों को दत्तक लें, शहर को स्वच्छ बनाने का बीड़ा उठायें, वृक्षारोपण के लिए दृढ़ संकल्प, लें और “वसुधैव कुटुम्बकम्” की अवधारणा को सच करने के लिए एक यज्ञ आरंभ करें-

वृक्ष ही वृक्ष लगायें। पर्यावरण अलख जगायें।।
प्रदूषण मुक्त करायें। पृथ्वी को स्वर्ग बनायें।।

16 जून 2010

मुझे पता चला है

मेरे सिद्धांत, परम्परा, प्रतिष्ठा,
अनुशासन, डिस्टेंकस मेंटेन से
मेरे बच्चे आज स्थापित हो गये।
कब वे बड़े हुए
कब वे समझदार हो गये
कब मेरी बेटी की शादी हो गयी
वह विदेश चली गयी
कब बेटा मेडिकल की पढ़ाई करने
विदेश चला गया
बेटी को गये आज सात साल हो गये
बेटे का मेडिकल शिक्षा का पाँचवा साल है
कब बचपन किशोर वय को लाँघ कर
यौवन की दहलीज चढ़ गया
बच्ची दो बच्चों की माँ बन गई
बच्चे की मुलायम दाढ़ी-मूँछे उग आईं
मैंने उन्हें बढ़ते ही नहीं देखा
मैंने उन्हें स्थापित होते देखा है।
'श्री' कहती है आज आपके
डिस्टेंस मेंटेन से दोनों इतने दूरस्थ हैं
सिद्धांतों के कारण अनुशासन से बँधे रहे
परम्पराओं में उनकी अटूट आस्था है
वे मेरे माध्यम से आपसे आज भी जुड़े हुए हैं
आपके लिए उनके मन में जो प्रतिष्ठा है
यह उसी का परिणाम है
आज आपके सिद्धांत, परम्परा और अनुशासन सिद्ध हो गये।
ये मैं नहीं कहती, वे कहते हैं जो
आपका स्वाभिमान हैं
आपको फादर्स-डे पर उनकी यह भावना
उन्होंने बताई है मुझे।
वे उड़ कर आ रहे हैं
मुझसे मिलने।
मैं कहाँ था कठोर
वो तो सब कहते रहते हैं
मैं तो उम्र दर उम्र पिघलता ही रहा हूँ
और पिघल जाऊँगा
उस सिद्ध कुम्‍भ का अमृत पीने के लिए।

फादर्स डे पर -आकुल

30 मई 2010

"आकुल" की नई पुस्‍तक "जीवन की गूँज" प्रकाशित। लोकार्पण की घोषणा शीघ्र

लंबे समय से प्रतीक्षित गोपाल कृष्‍ण भट्ट "आकुल" की पुस्‍तक "जीवन की गूँज" काव्‍य संग्रह आखिरकार प्रकाशित हो ही गया। 240 पृष्‍ठीय इस पुस्‍तक में जीवन के उनके विगत 50 वर्षों की साहित्यिक रचना संसार की रचनायें प्रकाशित हैं। 9 खंडों में बनी इस पुस्‍तक में श्रीकृष्‍णर्पणम्, जीवन की गूँज, शृंगार सजनी, होली, सखा बत्‍तीसी प्रमुख खंड हैं। राजस्‍थान में और विशेषकर कोटा में विशेष लू और तीव्र गर्मी के क़हर के कारण अभी पुस्‍तक का लोकार्पण स्‍थगति रखा गया है। शीघ्र ही पुस्‍तक के लोकार्पण की तिथि घोषित की जायेगी।

13 मई 2010

डॉ0 नलिन की पुस्‍तक "गीतांकुर" का विमोचन

कोटा। 2 मई 2010 को सायं 5 बजे कोटा के विज्ञाननगर में मयूखेश्वर महादेव मंदिर प्रांगण की हरियाली और मनोरम वातावरण में छोटी बहर के ग़ज़लकार के रुप मे पहचाने जाने वाले शायर, गीतकार, कवि और पेशे से चिकित्सक डॉ0 नलिन की तीसरी पुस्तक “गीतांकुर” का विमोचन कोटा के जाने माने कवियों, साहित्यकारों और कोटा की अनेकों साहित्यिक संस्थाओं के सदस्यों के मध्‍य सम्पन्न हुआ।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद् राजस्थान, कोटा द्वारा आयोजित जनावतरण समारोह की अध्यक्षता प्रख्यात वरिष्ठ साहित्यकार डॉ0 ओंकारनाथ चतुर्वेदी ने की। मुख्य अतिथि मयूखेश्व‍र महादेव मंदिर के संस्थापक प्रख्यात साहित्यकार शायर बशीर अहमद मयूख और श्री भगवती प्रसादजी गौतम थे। कार्यक्रम मंचासीन साहित्यकारों को पुष्पहार पहना कर स्वागत के साथ हुआ। पुस्तक के विमोचन के बाद पुस्तक परिचय श्रीमती (डॉ0) विमलेश श्रीवास्तव ने दिया। कार्यक्रम के मध्य में श्रीमती संगीता सक्सैना ने पुस्तक “गीतांकुर” के दो गीतों “पवन दुधारी उर पर मत धर” और “चंग बाजे संग साजे” को अपने स्वर दिये और कार्यक्रम को चार चांद लगा दिये। डॉ0 चतुर्वेदी के अध्यक्षीय भाषण और साहित्यकार अरविंद सोरल, अध्यक्ष साहित्य परिषद् के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। कार्यक्रम के अंत में मचासीन साहित्यकारों, श्रीमती संगीता सक्सैना, रम्‍मू भैया आदि को प्रशस्ति पत्र और उत्तरीय देकर डॉ0 नलिन ने सम्मानित किया। कार्यक्रम का समापन पधारे सभी साहित्यकारों और अतिथियों को “गीतांकुर” पुस्तक भेंट और अल्पाहार से हुआ। कार्यक्रम का संचालन रामेश्वर शर्मा “रम्मू भैया” ने किया। कार्यक्रम में पधारे साहित्‍यकारों में कोटा के जाने माने साहित्यकार श्री सर्वहारा, अखिलेश अंजुम, चांद शेरी, रघुनाथ मिश्र, ब्रजेंद्र कौशिक, सुश्री कृष्णा कुमारी कमसिन, गोपाल कृष्ण भट्ट “आकुल”, नरेंद्र चक्रवर्ती ”मोती”, आर सी शर्मा आरसी, वीरेंद्र विद्यार्थी, रामकरण सनेही आदि अनेकों कवि और कवियत्रियों ने डॉ0 नलिन को बधाई दी।

9 मई 2010

माँ


मैं संतुष्‍ट हूं
चलने उठने बैठने
खाने पीने नहाने धोने
यहाँ तक कि सोते समय भी
उसे ध्‍यान रहता है
मेरे होने का।
मुझे पूरा विश्‍वास है
बाहर की दुनिया में भी
वह मेरा ध्‍यान रखेगी।
मुझे दुलरायेगी, प्‍यार देगी
ध्‍यान रखेगी मेरा
वैसे ही जैसे इन दिनों रख रही है।
अब तो मैं भी समझने लगा हूं
मुझे बाहर की दुनिया दिखाने को
लालायित हैं सभी।
माँ भी बहुत रोमांचित है
मुझे भी ललक है
माँ को देखने की
माँ के आँचल में छिपने की
माँ की उँगली पकड़ कर
दुनिया देखने की।
जाने क्‍यूँ लगता है
माँ के बिना मैं भी
अधूरा रहूँगा
क्‍यों कि माँ को कहते सुना है
मेरे बिना वह भी अधूरी है।
ऐसा क्‍यूँ कहा उसने ?
उसके अधूरेपन को
पूरा करना है।
उसे सम्‍पूर्ण करना है।

मदर्स डे पर -आकुल

6 मई 2010

सन् 9 का लेखा जोखा, 10 का न हो ऐसा झरोखा

बीती जो बिसराओ, बीते, साल न ऐसा दस।
चमत्‍कार भले ना हों, बस, हो न तहस नहस।।

आयल डिपो, हादसा पुल का, आतंकी घटनायें।
कमरतोड़ महंगाई, कितना भ्रष्‍टाचार गिनायें।।

क्षति हुई सर्वोपरि दस जिसकी होगी ना भरपाई।
चमत्‍कार कुछ कम ही हुए, देने को सिर्फ़ बधाई।।

जयपुर, मुंबई ताज होटल की आतंकी घटनायें।
ऑयल डिपो जला, सैंसेक्‍स धराशायी मुंह बायें।।

स्‍वाइन फ्लू का क़हर, हुई चीनी भी महंगी ऐसी।
फ़ीके रहे त्‍योहार, दाल सब्‍जी़ भी हुई विदेशी।।

गिरी भाजपा उल्‍टे मुंह, कांग्रेस केंद्र में आई।
हुए धराशायी गढ़ जिनने दी थी राम दुहाई।।

नौ में दुर्घटनायें रेल की हुई बहुत जन हानि।
सुविधायें तो बढ़ीं, सुरक्षा घटी प्रभु ही जानी।।

अनिवासी भारतीयों ने नेताओं को भ्रष्‍ट बताया।
आस्‍ट्रेलिया में नस्‍लवाद का दुष्कृत्‍य सामने आया।।

बल्‍ला चला सचिन का वे महारथी बने क्रिकेट में।
बाकी खेल हुए चौपट सब राजनीति की ऐंठ में।।

वर्ष अनूठा होगा क्‍योंकि अंक है ‘दस’ का इसमें।
हो सकते हैं कई हादसे चमत्‍कार भी इसमें।।

पौ बारह ना हो दस नम्‍बरियों की ‘आकुल’ दस में।
चमत्‍कार जल थल नभ हानि ना मानव के बस में।।
-आकुल





2 मई 2010

सान्‍निध्‍य स्रोत ई पत्रिका आरंभ

कोटा (राजस्‍थान) से 1995 में आरम्‍भ हुई दाक्षिणात्‍य वैल्‍लनाडु ब्राह्मण समाज के नव निर्माण की रचनात्‍मक त्रैमासिक पत्रिका की सहयोगी ई- पत्रिका के रूप में इसे अस्‍थाई रूप में विकसित किया जा रहा है। पत्रिका के सम्‍पादक गोपाल कृष्‍ण भट्ट 'आकुल' ने इसे समाज के युवा वर्ग को आह्वान के रूप में लिया है, और उनकी समाज के लिए उपलब्‍धता के संदर्भ में आरंभ किया है। अब देखना यह है कि कौन कितना सहयोगी बनता है और कितने इसे अपनाते हैं।

6 जनवरी 2010

जलेस काव्य गोष्ठी 27.12.2009 को.


कोटा.27/12/2009. विगत को विदा और आगत का स्वागत करने के लिए जनवादी लेखक संघ की वर्ष 2009 की अंतिम मासिक गोष्ठी रविवार 27.12.2009 को जलेस जिलाध्यक्ष शहर इकाई के संयुक्त तत्वावधान में जिलाध्यदक्ष श्री रघुनाथ मिश्र के निवास 3-के-30 पर शहर के लगभग 25 जाने माने साहित्यकारों, शायर और कवियों के बीच हर्ष और उल्लास के साथ सम्परन्न हुई. आरम्भ में बैठक में कोटा के झूलते पुल हादसे में बड़ी संख्या में असामयिक काल का ग्रास बने कार्मिकों को दो मिनिट का मौन रख कर श्रद्धांजलि दी गयी. जलेस के शहर इकाई अध्याक्ष कविआकुलने इसे कोटा के इतिहास का एक काला दिन बताया और कहा कि अनेकों त्रासदियों को झेलता हुआ यह वर्ष राजस्थान ही नहीं कोटा के इतिहास में भी एक दुखांतिका सृजित कर गया. सृजन, साहित्य और शिक्षा को समर्पित कोटा के प्रबुद्ध वर्ग और अमन चैन से रह रही आम जनता को यह साल ऐसा दर्द दे गया जो लंबे समय तक सालता रहेगा. गोष्ठी में शोक प्रस्तारव पारित करते हुए जिलाध्यक्ष श्री रघुनाथ मिश्र ने जयपुर की आतंकवादी घटना, इंडियन ऑयल डिपों की घटना और कोटा के पुल हादसे से जान माल और अथाह धनहानि को वर्ष 2009 के इतिहास का काला अध्याय बताते हुए एकजुट रह कर प्राकृतिक आपदा और जन जन में फैलजे आक्रोश को अमन और शांति से सामना करने के लिए कहा.
श्री मिश्रा ने पधारे सभी कवियों और साहित्य कारों का स्वागत किया और काव्यगोष्ठी का शुभारंभ शहर के वरिष्ठ साहित्यकार श्री दुर्गाशंकर विजयवर्गीय ने अपनी रचना इस स्वार्थ की दुनिया में मुझे कुछ निष्काम कर्म करना हैमां सरस्वती को समर्पित करते हुए किया. इसे आगे बढ़ाते हुए ब्रजेंद्र सिंह झालापुखराजने शीत वसन पहने नया साल हो मंगलमयसे नये वर्ष की स्वागत तैयारी की और देशभक्ति गीतरक्त के क़तरों से सींचा है सारा चमनरचना से गोष्ठी में जोश भरा. लाखेरी से पधारे नवोदित कवि उर्मिल ने अपनी क्षणिकाओं से आज के प्रदूषित वातावरण पर व्यंग्य बिखेरा. गोपाल कृष्ण भट्टआकुलने देश में जलकुंभी की तरह बढ़ती झोंपड़ पट्टियों की समस्या पर अपनी रचना पढ़ी. उन्होंने कहा कि इस समस्या से अब कोटा भी पीछे नहीं है. कोटा में बढ़ती इस समस्या के चलते आज शिक्षानगरी में अभी तक हवाई सेवा बहाल नहीं हो सकी है. उन्होंने देश में इस समस्या के समाधान के लिए विफल रही देश की सरकार को अपनी कविताझोंपड़ पट्टीके माध्य से एक प्रस्ताव दिया. उन्हों ने अपनी कविता में सुनाया- असली राम राज यहां पनपेगा/यहां किसी घर में ताले नहीं लगेंगे/कबाड़ा यहां का उद्योग होगा/ खिचड़ी यहां का राजभोग होगा। फटे पुराने कपड़े जूते यहां की राजपोषाक होगी/कुपोषित खिचड़ी दाढ़ी यहां की पहचान होगी. उन्होंने पहलेउत्तहराखंडऔरझारखंडकी तर्ज पर नया राज्यझोंपड़ खंडबनाने के लिए गुहार की और फिर नये राष्ट्रझोंपड़ पट्टीबनाने का प्रस्ताव दे डाला. उन्हों ने हास्य और व्यंग्य के बीच अपनी लंबी कविता में इस प्राकृतिक त्रासदी से ग्रसित मुंबई की एशिया में सबसे बड़ी झोंपड़ पट्टीधारावीको केंद्रित करते हुए कहा कि यदि इसका उन्मूलन नहीं हुआ तो हर शहर एक धारावी को जन्मेगा. गोष्ठी को उंचाई प्रदान करते हुए इसी तर्ज पर रचनाकार आनंद हजारी ने देश की एक अन्य समस्या भिखारियों पर अपनी कविता में भिखारियों द्वारा अपनी साढ़े पांच मांगों को रखते हुए भिखारियों पर अपनी कविता पढ़ीभिखारियों की हड़ताल’. कवि किशन वर्मा ने हवाला कांड पर अपनी रचना सुना कर चुटकी काटी.
नववर्ष का स्वा गत तो करें पर कहीं ऐसा हो दिन दूनी रात चौगुने बदतर होते जा रहे देश के हालात से नया साल भी कहीं चपेट में जाये, अपनी कविता में वरिष्ठ कवि इंद्र बिहारी सक्सैना ने कहा- घात लगाये खड़े भेडि़ये, मुंह बायें घडि़याल कैसे फिर मंगलमय होगा आने वाला साल.’ कथाकार विजय जोशी ने भी पद्य में कोटा के पुल हादसे पर अपनी व्यथा गा कर सुनाई –‘रे सखी कैसे कहें बसंत.’ कवि गोरस प्रचंड ने चतुर चंट चिकने घड़े, ठाठ बड़े उनके/ सारे हरिश्चंद्र सबकी दाढि़यों में तिनके/ हमने दिये उनको पुष्पहार चुन चुन के सुना कर सरकार को आड़े हाथों लिया. जलेस शहर इकाई सचिव नरेंद्र कुमार चक्रवर्तीमोतीने नये वर्ष के लिए सभी कवियों का आह्वान करते हुए अपनी रचना अपनत्व की आधारशिला रखना हैसुनाई. जनवादी कवि श्री रघुनाथ मिश्र ने भी ज़िन्दीगी महज एक प्रवास नहीं है यारो/मुक्ति के स्ग्राम में जनवाद जीतेगा यक़ीनन/विज्ञान है सदियों का यह भड़ास नहीं है यारोसुना कर जनवाद को मुखर किया.
अल्पानहार के पश्चात् शायरी का दौर शुरू हुआ. शहर के जाने माने शायरों ने देश में बढ़ते भ्रष्टाचार, आतंकवाद और सरकार पर अपने अशआर नज़र किये. छोटे बहर की ग़ज़लों के जाने माने ग़ज़लकार डॉ; नलिन वर्मा ने दोस्ती अच्छी निभाते हो/बैठ हां में हां मिलाते होसुनाई. प्रख्यात शायर पुरूषोत्तमयक़ीनने ब्रज भाषा में देश के हालातों पर करारा व्यंग् करते हुए अपनी रचनाका पड़ी हमकूसुनाईतुम्हारो ही देश है, चाहे लूट के खाओ/ नित भूखे सो जाओ/ का पड़ी हमकू. हमें तो दिल्ली के बंगले में रहनो है/ तुम गांव पे इतराओ/ का पड़ी हमकूने गोष्ठी को एक नई उंचाई प्रदान की. शायर शकूर अनवर ने जापानी काव्य हाइकु की तर्ज पर पंजाबी माहिया प्रस्तुत कर छोटी रचनाओं में सारा संसार समेट लिया- दुनिया के झमेले में/क्यूं हाथ छुड़ाते हो/खो जाओगे मेले में.‘चाहो /हथियार खरीद लो/जेब में पैसे हों/तो सरकार खरीद लो.' से प्रशंसा लूटी.शायर चांद शेरी ने अपनी चिर परिचित कविताशहर में अपने ही भारी हो गयेसे प्रशंसा लूटी. जलेस के संस्थायपक सदस्यों में वरिष्ठ श्री महेंद्रनेहने गोष्ठी में शिरक़त कर गोष्ठी को चार चांद लगा दिये. उन्होंने नये वर्ष पर पर समर्पित अपनी नई कवितानया इतिहास लिखो रेगा कर सुनाई और दाद बटोरी. कवि शायर अखिलेशअंजुमने शायरी के दौर को परवान चढ़ाते हुए भ्रष्टाचार पर व्यंग्य करते हुए सुनाया ‘‍ज़िन्दगी का सफ़र और मुख्तलिफ हवा/वक्तअंजुमकड़े इम्तिहान का है.’
गोष्ठी का समापन अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठसाहित्यकार और पेशे से डॉक्टंर श्री अशोक मेहता द्वारा अध्यक्षीय भाषण से हुई. उन्होंने कहा कि जलेस में पधारे सभी कवियों ने जलेस की गरिमा को बढ़ा कर एकता का दृष्टांत प्रस्तुत किया है. जलेस ने हमेशा जन जाग्रति और लेखनधर्मिता के लिए अपनी प्रतिबद्धता को कभी शर्मसार नहीं होने दिया हैः
काव्य गोष्ठी में कवि डॉ; योगेन्द्र मणि कौशिक, नंद किशोर शर्मासरल’, देवकी नंदन स्वामी, विजेंद्र जैन, गयास फ़ैज़, उपासना मिश्र, बाल कवियत्री पूर्वी मिश्र आदि अनेकों कवियों, शायरों ने भी काव्य पाठ किया. गोष्ठी के अंत में गोपाल कृष्ण भट्टआकुलने शीघ्र छपने वाली अपनी आगामी पुस्तकजीवन की गूंजके पेम्फलेट आने वाले सभी साहित्यिकारों को वितरित किया. गोष्ठी का संचालन कर रहे सचिव श्री चक्रवर्ती ने पधारे सभी कवियों और साहित्यकारों का आभार प्रदर्शन किया.
रिपोर्ट- गोपाल कृष्ण भट्टआकुल’, अध्यक्ष शहर इकाई जलेस, कोटा एवं उपाध्यक्ष जिला जलेस इकाई, कोटा.