10 दिसंबर 2010

तुम सृजन करो

तुम सृजन करो मैं हरित प्रीत शृंगार सजाऊँगा
वसुंधरा को धानी चूनर भी पहनाऊँगा
देखे होंगे स्वप्न यथार्थ में जीने का है वक्त
ग्रामोत्थान और हरित क्रांति की अलख जगाऊँगा
त्तुम सृजन करो-----

बढ़ते क़दम शहर की ओर रोकूँगा जड़वत हो
ग्राम्य विकास का युवकों में संज्ञान अनवरत हो
नई-नई तकनीकी उन्नत कृषि कक्षाएँ हों
साधन संसाधन लाने की कार्यशालाएँ हों
कहाँ कसर है ग्राम्य चेतना शिविर लगाऊँगा
तुम सृजन करो-----

गोबर गैस,सौर ऊर्जा का हो समुचित उपयोग
साझा चूल्हा साझा खेती पर हों नये प्रयोग
पर्यावरण सुरक्षा, सघन वन,पशुधन संवर्धन हो
पंचायत के हों निर्णय मान्य,ना भूखा कोई जन हो
श्रम का हो सम्मान मैं ऐसी हवा चलाऊँगा
तुम सृजन करो-------

कृषि प्रधान है देश कृषि पर ध्यान रहे हर दम
वर्षा पर न हों आश्रित जल संग्रहण हो ना कम
उन्नत बीज,खाद मिले बाजार यहीं विकसित हों
चौपाल सजें आधुनिक कृषि पर चर्चाऍं भी नित हों।
अभिनव ग्राम बनें मैं ऐसी जुगत लगाऊँगा
तुम सृजन करो-------

कोटा। 10-12-2010

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