29 दिसंबर 2011

नववर्ष तुम्‍हारा अभि‍नन्‍दन

वि‍गत वर्ष अब साँसें थामे
करने को आगत का स्वागत
अति‍ उत्सहि‍त है,’अभ्यागत’
आओ हे नववर्ष तुम्हारा अभि‍नन्दन।


रश्मिरथी के दि‍व्यासन पर सप्तशृंगार कि‍ये आए हो
उदधि‍ वि‍लोडन से नि‍कला क्या हालाहल अमृत लाए हो
आशाएँ बहुतों ने तुमसे हैं बाँधी
भरे फफोलों हाथों झेली हैं आँधी
बरकत दो इस वर्ष तुम्हारा अभि‍नन्दन।

परि‍णति‍ हो ऐसी सुख समृद्धि‍ घर आए
घर का भेदी कभी कहीं ना लंका ढाये
लाओ खुशि‍याँ घर में रोली कुमकुम बरसे
कोई कहीं ना लुटापि‍टा सा गुमसुम तरसे
उत्कर्ष बने यह वर्ष तुम्हारा अभि‍नन्दन।

चहुँ दि‍श प्रगति‍ राष्ट्र की प्रशस्‍त बने
हर तबके को न्याय मि‍ले आश्वस्त‍ बने
हर माँ अब अपनी कोखों से वीर जने
लि‍खें वीर रस कवि‍ कवि‍ता नवगीत बने
स्वागत है इस वर्ष तुम्हारा अभि‍नन्दन।


25 दिसंबर 2011

22 दिसंबर 2011

फि‍र आएगा नया साल

नव ऊर्जा सुप्रभात लि‍ए
फि‍र आएगा नया साल।


इक इति‍हास लि‍खा कल ने
पूरब की धरा हुई रक्तिम
प्रकृति‍ की चढ़ी रही भृकुटी

इक दि‍न भी शांत रही ना जो
कैसे कटे रैन दि‍न बोझि‍ल
कुटि‍ल दुपहरी साँझ कटी

अब कौन नया उत्पात लि‍ए

वेद पुराण गीता कुरान सब
धरे रि‍हल पर धूल चढ़ी
क्षुण्ण क्षुब्ध मानव मन कामि‍ल

नहीं दृष्टि में नीलकण्ठ कहिं
क्षणभंगुर श्वासों के कलरव
भृंग मोह भंग कहाँ अजामि‍ल


और कौन सी घात लि‍ए

ऋतु संहार न कर पाया मनु
चंद्र कला,उदधि‍ प्रचण्ड को
देख रहा जग कर दि‍नकर नि‍त

धरा मौन चातक संयम धर
स्वाति‍ विंदु के लि‍ए प्रतीक्षि‍त
तन-मन-धन करने को अर्पि‍त


मानव कल अज्ञात लि‍ए

4 दिसंबर 2011

शि‍क्षा ऐसी हो

शि‍क्षा ऐसी हो हमको संस्कार सि‍खाए।
’वि‍द्या ददाति‍ वि‍नयम्’ हमें वि‍नम्र बनाए।
’नीर-क्षीर-वि‍वेक’, न्‍याय की महि‍मा गाए।
’वसुधैवकुटुम्ब्कम्’ का हमको सन्मार्ग दि‍खाए।।
शि‍क्षा ऐसी हो-------------'
मात-पि‍ता-गुरु-बंधु-बांधवों से पोषि‍त हो।
नारी-वृद्ध-असहाय कहीं भी ना शोषि‍त हो।
मनु की दुनि‍या में मानव फि‍र परि‍भाषि‍त हो।
'सर्वधर्म समभाव’, प्रेम का पाठ पढ़ाए।।
शि‍क्षा ऐसी हो---------------'
ब्रह्मा-वि‍ष्णु-महेश सी हों राज व्यवस्थायें।
कर्मक्षेत्र में कभी न पनपें महत्वाकांक्षाएँ।
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, अध्यात्म परम्पराएँ।
’सर्वेभवन्तु सुखि‍न:’का जो मर्म बताए।।
शि‍क्षा ऐसी हो----------------'
वृक्षारोपण,स्वच्छ धरा और हरि‍त आभूषण।
जनजाग्रति‍,जनसंख्या घटे और छटे प्रदूषण।
सर्वशि‍क्षा अभि‍यान, प्रकृति‍ से प्रेम आकर्षण।
राष्ट्रवि‍कास के लि‍ए जो तन-मन-धन बि‍सराये।।
शि‍क्षा ऐसी हो-------------------'
वेद-पुराण-गीता-कुरान प्रकाश फैलाएँ।
'अति‍थि‍ देवोभव’ संस्कृति‍ की हवा बहाएँ।
'भारत मेरा है महान्’ जन-गण-मन गाएँ।
वीरों की भूमि‍ है जो बलि‍दान सि‍खाए।।
शि‍क्षा ऐसी हो------------'
यह प्रताप भामाशाहों की गर्व भूमि‍ है।
बापू लाल जवाहर की यह कर्म भूमि‍ है।
वीर शि‍वाजी रणबाँकुरों की धर्म भूमि‍ है।
रग-रग वीरों की गाथा रोमांच जगाए।।
शि‍क्षा ऐसी हो-----------------'

26 अक्तूबर 2011

अनगि‍न दीप जले

आया है फि‍र जीत दि‍लों को
वि‍जयी जश्न मनाने
अनगि‍न दीप जले।।

भूल द्रोह फि‍र गले मि‍लें अब
कब तक शि‍कवे गि‍ले पलें अब
रहना एक छत्र छाया में
अपना घर फि‍र अपना घर है
एक हवा है एक फज़ा हैं
एक दवा है एक सज़ा है
रहना है जब साथ साथ
अपना वतन फि‍र अपना वतन है
आया है फि‍र तंग दि‍लों को
नि‍स्पृह गले लगाने
अनगि‍न दीप जले।।

फि‍र बस जायेंगे रीते दि‍न
फि‍र बस जायेंगे उनके बि‍न
कौन अमर है यही नि‍यति‍ थी
अपनापन फि‍र अपनापन है
ति‍मि‍र हटा के प्रकृति‍ सजी है
महाकाल की अवंति‍ सजी है
मानव मन फि‍र मानव मन है
आया है फि‍र श्रांत दि‍लों को
जीवन गीत सुनाने
अनगि‍न दीप जले।।

कल जो हुआ न अब होना है
जो खोया न अब खोना है
पीछे तो है भूत भयावह
अपना पतन फि‍र अपना पतन है
उत्सव तो मन भेद भुलायें
दूर हुओं को पास बुलायें
परि‍वर्तन फि‍र परि‍वर्तन है
आया है फि‍र सुप्त दि‍लों को
इक नवगीत सुनाने
अनगि‍न दीप जले।।

24 अक्तूबर 2011

शुभ दि‍वाली

दीपाली की शुकानाएँ

प्रकाश पर्व

धरती पर उतर आया जैसे
सि‍तारों का कारवाँ
आकाश में जाते पटाखों से
टूटते तारों का उल्कापात सा आभास
फूटता अमि‍त प्रकाश
टि‍मटि‍माते दीपों से लगती
झि‍लमि‍ल सि‍तारों की दीप्ति
दूर तक दीपावलि‍यों से नहाई हुई
उज्‍ज्वल वीथि‍याँ
लगती आकाशगंगा सी पगडंडि‍याँ
एक अनोखा पर्व
जि‍सने पैदा कर दि‍या
पृथ्वी पर एक नया ब्रह्माण्ड
सूर्य, चन्द्र और आकाश दि‍ग्भ्रिमि‍त
सैंकड़ों प्रकाशवर्ष दूर
यह कैसा अनोखा प्रकाश !!!!
धरती पर उतर आया आकाश
सि‍तारों को कैसे चुरा लि‍या
पृथ्वी ने मेरे आँगन से !!!
चाँद ने भी सुना कि‍
चुरा लि‍या है चाँदनी को !!!
और अप्रति‍म सौंदर्य का प्रति‍मान
बनी है धरा उसकी चाँदनी को ओढ़े !!!!
पीछे पीछे दौड़ा आया सूर्य
कि‍सने कि‍या दर्प उसका चूर !!!!
रात में फैला यह अभूतपूर्व उजास
नहीं हो सकता यह चाँद का प्रयास !!!
अहा ! चाँद का प्रति‍रूप
धरती का यह अनोखा रूप
ओह ! पर्वों का लोक पृथ्वी है यह !!!
जहाँ हर ऋतु में नृत्य करती धरा
कभी वासंती, कभी हरीति‍मा
कभी श्वेत वसना वसुंधरा
अथक यात्रा में संलग्न धरा,
तुम धन्य हो !!
अमर रहे !!
मेरे प्रकाश से भी कहीं ऊर्जस्वी
तुम्हा्रा यह पर्व,
मैं अनंत काल तक
प्रकाश दूँगा तुम्हें.....
चाँद बोला- मैं भी अनंत काल तक
शीतलता बि‍खेरूँगा......
धरा है, तो है हमारा महत्व
हलाहल से भरे रत्ननि‍धि‍ की गोद में
नीलवर्ण स्वरूप और
प्रकृति‍ से इतना अपनत्व !!!
आतप से तप कर
स्वर्णि‍म बना तुम्हा‍रा अस्ति‍त्व
शीतलता से बनी तुम धैर्य की प्रति‍मूर्ति‍!!
दोनों ने एक स्वर में कहा-
हे ! धरा
प्रकृति‍ के अप्रति‍म स्वरूप को
अक्षुण्ण रखने के लि‍ए
करता है यह आकाश गर्व
स्वात्वाधि‍कार है तुम्हें मनाने का
यह प्रकाश पर्व !!!!

22 अक्तूबर 2011

नवगीत की पाठशाला: २५. उत्सव गीत

नवगीत की पाठशाला: २५. उत्सव गीत: कल था मौसम बौछारों का आज तीज और त्योहारों का रंग रोगन वंदनवारों का घर घर जा कर बंजारा नि‍त इक नवगीत सुनाए। कल बि‍जुरी ने पावस गीत दीप...

13 अक्तूबर 2011

सान्‍नि‍ध्‍य सेतु: शब्‍द दो तुम मैं लि‍खूँगा

सान्‍नि‍ध्‍य सेतु: शब्‍द दो तुम मैं लि‍खूँगा: आज आक्रोश दि‍न पर दि‍न बढ़ रहा है। बात काश्‍मीर की हो या भ्रष्‍टाचार की,जन समस्‍याओं की हो या महँगाई की,राजनीति‍ की हो या साहि‍त्‍य की,आम आद...

वि‍श्‍व दृष्‍टि‍ दि‍वस

बचें दृष्टि से दृष्टि‍‍दोष संकट फैला है चहुँ दि‍श।
नि‍कट, दूर या सूक्ष्म दृष्टि‍ सिंहावलोकन हो चहुँ दिश।।

दृष्टि‍ लगे या दृष्टि पड़े जब डि‍ढ्या बने वि‍षैली।
तड़ि‍त सदृश झकझोरे तन मन दृष्टि बने पहेली।।

गि‍द्ध दृष्‍टि‍ से आहत जन-जन वक्र दृष्टि से जनपथ।
जनप्रति‍नि‍धि‍ सत्ताधीशों के कर्म अनीति‍ से लथपथ।।

रखें दृष्टि‍गत, जनजाग्रति, जननि‍नाद,जनक्रांति‍।
है वि‍कल्प बस दृष्टि रखें ना फैलायें दि‍ग्भ्रांति‍।।

सर्वप्रथम संक्रामक जन जीवन के हटें प्रदूषण।
हरि‍त क्रांति‍,हर प्राणी रक्षि‍त करें ना और परीक्षण।।

सर्वहि‍ताय जन सुखाय सर्वतोभद्र दृष्टि‍ हो एक।
बि‍न दृष्टि बन जायेंगे धृतराष्ट्र अनेकानेक।।

वि‍श्व दृष्टि‍ दि‍न है संकल्प करें लि‍ख दें इक लेख।
पहुँचे दृष्टि क्षि‍ति‍ज तक खींचें सुख समृद्धि‍ की रेख।।

7 अक्तूबर 2011

कितने रावण मारे अब तक

कितने रावण मारे अब तक
कितने कल संहारे
मन के भीतर बैठे रावण को
क्या मार सका रे
तेरी काया षड् रिपु में
उलझी पड़ी हुई है
इसीलिए यह वसुंधरा
रावणों से भरी हुई है
नगर शहर और गली मोहल्ले
रावण भरे पड़े हैं
है आतंक इन्हीं का चहुँ दिस
कारण धरे पड़े हैं
कद बढ़ता ही जाता है
हर वर्ष रावणों का बस
राम और वानर सेना की
लम्बाई अंगुल दस
बढ़ते शीष रावणों के
जनतंत्र त्रस्‍त वि‍चलि‍त है
भावि‍ अनि‍ष्‍ट, वि‍नाश देख
बल, बुद्धि‍, युक्‍ति‍ कुंठि‍त है
वो रावण था एक दशानन
हरसू यहाँ दशानन
नहीं दृष्टि में आते
राम विभीषण ना नारायण
क्या अवतार चमत्कारों की
करते रहें प्रतीक्षा
देती हैं रोजाना अब
हर नारी अग्नि परीक्षा
कन्या भ्रूण हत्या प्रताडना
नारी अत्याचार
रणचंडी हुंकारेगी
अब लगते हैं आसार
धरे हाथ पर हाथ बैठ
नर पुंगव भीष्म बने हैं
कहाँ युधिष्ठिर धर्मराज अब
पत्थर भीम बने हैं
होते शक्तिहीन नर
भूला बैठा है वानर बल
कब गूँजेगा जन निनाद
कब उमड़ेगा जनता दल
होंगे नर संहार प्रकृति‍
सर्जेगी प्रलय प्रभंजन
या नारी की कोख जनेगी
नरसिंह अलख निरंजन
ऐसा ना हो षड् रिपु से नर
निर्बल हो डर जाये
फिर कल का इतिहास
कहीं नारी के नाम न जाये

1 अक्तूबर 2011

दशहरा

सुनहुँ राम वानर सेना संग सीमा में घुस आये।
घोर नि‍नाद देख चहुँदि‍स सेना नायक घबराये।।
कुंभकरण संग मेघनाद समरांगण स्‍वर्ग सि‍धारे।
बलशाली सेनानायक बलहीन हुए तब सारे।
रावण तक पहुँचा संदेसा मंदोदरी सकुचाई।
बोली हे लंकेश संधि‍ में ही है बुद्धि‍मताई।।
लंका तो अब धूधू जल कर राख बनी है दशानन।
घर भेदी जब साथ राम के कौन बचै घर आँगन।।
इकलखपूत सवालख नाती खो रावण मुरझाया।
अब ना रण में और हानि प्रि‍य मैं या राम लुभाया।।
घर भेदी लंका ढायी खोये सुत भ्रात सुजान।
नारी फि‍र इति‍हास बनी रामायण एक प्रमान।।

28 सितंबर 2011

सान्‍नि‍ध्‍य सेतु: शक्ति की अधि‍ष्‍ठात्री देवी माँ दुर्गा

सान्‍नि‍ध्‍य सेतु: शक्ति की अधि‍ष्‍ठात्री देवी माँ दुर्गा: अश्‍वि‍न मास के शुक्ल पक्ष के शुरुआती नौ दि‍न भारतीय संस्कृति‍ में नवरात्र के नाम से शक्ति‍ की पूजा के लि‍ए नि‍र्धारि‍त है इन दि‍नों शक्ति ‍...

18 सितंबर 2011

कडुवा सच: हिंद की शान है हिन्दी ...

कडुवा सच: हिंद की शान है हिन्दी ...: हिंद की शान है हिन्दी, मेरा अभिमान है हिन्दी देश हो, विदेश हो, हमारा स्वाभिमान है हिन्दी ! ... अभी अंजान है दुनिया, मेरी आँखों की फितरत से ...

16 सितंबर 2011

सान्‍नि‍ध्‍य सेतु: धड़कते समाचार

सान्‍नि‍ध्‍य सेतु: धड़कते समाचार: मैं तो हि‍न्‍दी दि‍वस पर कुछ लि‍खने वाला था पर,धड़कते दि‍ल से सवेरे का अखबार पढ़ा और हि‍न्‍दी की हि‍न्‍दी हो गयी। पेट्रोल की कीमत फि‍र बढ़ ...

12 सितंबर 2011

गत एक वर्ष में राष्ट्रूभाषा हिंदी ने क्या खोया क्या पाया

14 सि‍तम्‍बर हि‍न्‍दी दि‍वस है। आइये उस दि‍न को कुछ खास अंदाज़ में मनायें। संकल्‍प लें। हि‍न्‍दी की एक कवि‍ता लि‍खें,एक वाक्‍य लि‍खें,बच्‍चों को हि‍न्‍दी के बारे में कुछ बतायें,कहीं हि‍न्‍दी पर कार्यशालायें हो रही हैं,वहाँ थोड़ा समय दें,वहाँ जायें और सम्‍मि‍लि‍त हों,हि‍न्‍दी की कोई पुस्‍तक पढ़ें,हि‍न्‍दी पर अपना चि‍न्‍तन करें कि‍ हम कि‍तनी हिन्‍दी जानते हैं,कम्‍प्‍यूटर पर यदि‍ भ्रमण करना अच्‍छा लगता है,तो जाइये और हि‍न्‍दी के उद्भट वि‍द्वानों को ढूँढ़ि‍ये और उनके बारे में पढ़ि‍ये। पर जो भी करि‍ये यह दि‍न हि‍न्‍दी के नाम कर दीजि‍ये,क्‍योंकि‍ हमें हि‍न्‍दी को वि‍श्‍व की पहली भाषा बनने का गौरव हासि‍ल करना है,इसके लि‍ए आप क्‍या कर सकते हैं करि‍ये।
मैं 13 और 14 सि‍तम्‍बर को हि‍न्‍दी सम्‍मेलन प्रयाग का अधि‍वेशन जो कि‍ नाथद्वारा में आयोजि‍त हो रहा है,सम्‍मि‍लि‍त होने जा रहा हूँ। वहाँ मेरा यह लेख कहने पढ़ने या इस पर चर्चा करने को मि‍ले या न मि‍ले,पर उस दि‍न मैं ब्‍लॉग पर नहीं मि‍लूँगा इसलि‍ए आइये आप मेरे वक्‍तव्‍य मेरी चर्चा को आप आज ही यहाँ अवश्‍य पढ़ें।
इस अधि‍वेशन में हि‍न्‍दी पर चर्चा का वि‍षय है 'गत एक वर्ष में राष्ट्रभाषा हि‍न्दी ने क्या खोया और क्या पाया' इस वि‍षय पर मेरा मानना है कि‍ हि‍न्दी भाषा अपनी आस्‍था,अपनी नि‍ष्ठा खोती जा रही है,इसी पर मैं अपनी बात कहना चाहूँगा।
आंग्ल भाषा का एक शब्द है डी एन ए (डीऑक्सीरि‍बोनुक्यूलि‍क एसि‍ड)‍यानि‍ प्राणि‍यों के शरीर में पाया जाने वाला रासायनि‍क गुणसूत्र,जो प्राणी के व्यक्तित्व,अस्तित्व और उत्पत्ति‍ के सूत्र को स्थापि‍त करने में वैज्ञानि‍कों की मदद करता है। जि‍स प्रकार कार्बन डेटा पद्धति‍से वनस्पति‍ की उम्र और अस्ति‍‍त्व के बारे में जानकारी मि‍लती है,उसी प्रकार डीएनए से प्राणी की। प्राणी का सूक्ष्म बाल हो या नाखून का एक टुकड़ा हो,दाँत हो या अस्थि‍ का छोटा टुकड़ा,प्राणी के सम्पूर्ण व्याक्ति‍त्व के बारे में जाना जा सकता है। वि‍ज्ञान इस बात को मानता है कि‍ प्रकृति‍ में प्रत्येक प्राणी का गुणसूत्र वि‍द्यमान रहता है,कभी नष्ट‍ नहीं होता और यही वज़ह है,आज मानव जाति‍ ही नहीं सम्पूर्ण प्राणी जगत् और वनस्पाति‍ जगत् संक्रमि‍त है। जीवन चक्र में यही संक्रमण धीरे धीरे अपना वि‍कराल रूप धारण करता हुआ प्रलय की ओर अग्रसर होता है और
फि‍र प्रकृति‍ युग परि‍वर्तन का रास्ता प्रशस्त करती है।
संसार में प्रचलि‍त सभी धर्मों में मनुष्य की मृत देह के अंत्यसंस्कार की अनेको वि‍धि‍याँ प्रचलि‍त हैं,उनका एक ही उद्देश्य है,मृत देह से फैलने वाले संक्रमण से शीघ्रताति‍शीघ्र छुटकारा,लेकि‍न प्रश्न‍ वि‍चारणीय है कि‍ हम कि‍तना संक्रमण समाप्त कर पाते हैं। पंचतत्व में वि‍लीन करने के लि‍ए हमारे हि‍न्दू धर्म में उत्तर कर्म के प्रथम सोपान में अग्निदाह की परम्प‍रा है,कहीं यह क्रि‍या तीसरे दि‍न सम्पन्न होती हैं,कहीं उसी दि‍न,कहीं दस दि‍न में,कि‍न्तु सौ प्रति‍शत भस्मीभूत नहीं हो पाती,यह सत्य है,वि‍वाद या तर्क का वि‍षय नहीं है। उसी से संक्रमण आज तक वि‍द्यमान है और इसका प्रभाव मनुष्य की प्रकृति‍,मानव समाज,चराचर जगत् पर कि‍सी न कि‍सी रूप में दि‍खाई दे रहा है और हम उसे सुख दु:ख,वैर,वैमनस्य,वि‍भि‍न्न प्रकार के रोग आदि‍ के रूप में भोग रहे हैं और भोगते जायेंगे,इससे छुटकारा नि‍तान्त दुरूह है,क्योंकि‍ हमने चि‍न्तन,मनन,ध्यान,योग,धर्म के प्रति‍ नि‍ष्ठा खोई है। स्वच्छन्दता के आनंद में हम इतने खो गये हैं कि‍ जब हम ति‍ल ति‍ल स्वयं को खो रहे हैं,हम अंतर्मुखी हो गये हैं,हम अपने समाज अपने परि‍वार के प्रति‍ धीरे धीरे नि‍ष्ठा‍ खो रहे हैं,तो भाषा के प्रति‍ नि‍ष्ठा यदि‍ खो रही है तो कैसा आश्चर्य ।
यह आधार,इस वि‍षय को अथवा इसकी चर्चा को आज के मूल वि‍षय से मैंने इसलि‍ए जोड़ा है कि‍ आज हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी भी संक्रमण काल से गुजर रही है। हमें स्वत हुए 64 वर्ष हो गये किंतु 64 बार भी अपनी राष्ट्रभाषा के प्रति समर्पि‍त आंदोलन या अभि‍यान हमने नहीं छेड़े हैं।
धड़कते समाचार:मैं प्रान्तीय भाषा का वि‍रोधी नहीं,पर हि‍न्दी के वि‍कास के लि‍ए कि‍सी को तो नीलकंठ बनना ही होगा। क्या आज हमें दूसरा भारतेन्दु मि‍ल सकता है या दूसरा अन्ना‍ जो हमें गांधीवादी तरीके से हमारे देश की एक मात्र भाषा हि‍न्दी के लि‍ए आन्दोलन छेड़ सके? आज देश का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला और बड़ा अखबार कहलाने का दंभ भरने वाला भास्कर समूह यदि‍ अहि‍न्दी भाषी क्षेत्रों में भी हि‍न्दी का ही समाचार पत्र प्रकाशि‍त करता तो आज वह गर्व से कहता कि‍ हमारी राष्ट्रभाषा हि‍न्दी का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला समाचार पत्र है भास्कर। अखबार अब व्या्वसायि‍क हो गये हैं, उन्हें साहि‍त्य नहीं वि‍ज्ञापन चाहि‍ए। जब समर्थ ही ऐसी कोशि‍शें नहीं करेंगे तो हमारी राष्ट्रभाषा का भवि‍ष्य कैसा होगा, अनुमान लगाया जा सकता है। आज समाचार पत्र जन जन के हाथों में जाता है, कि‍न्तु साहि‍त्य कि‍तना होता है इसमें, सि‍वा वि‍ज्ञापनों की भरमार और हिंसक और व्‍यभि‍चार के समाचारों के? समाचार पत्र की चर्चा मैं इसलि‍ए कर रहा हूँ कि‍ उत्तर प्रदेश के प्रमुख समाचार पत्र अमर उजाला से 1993 से जुड़ा रहा था, हि‍न्दी वर्ग पहेली के माध्यम से, किंतु आज उस पत्र में वर्ग पहेली नहीं आती।
मैं हि‍न्दी की शब्द यात्रा का बटोही रहा हूँ । शब्द ब्रह्म के सुंदर स्वरूप अक्षर से आरंभ हुई मेरी हि‍न्दी के चहुँमुखी वि‍कास की यात्रा में मेरी भावांजलि‍ और 1993 से आरंभ कि‍ये यज्ञ की पहली आहुति‍ मैंने दी और वह यज्ञ अभी भी अनवरत चल रहा है, और चलता रहेगा, क्योंकि‍ मेरी इच्छा है कि‍ मेरे रहते मेरी प्रि‍य भाषा हि‍न्दी वि‍श्व में सर्वाधि‍क बोली जाने वाली पहली भाषा बन जाय और मैं गर्व कर सकूँ कि‍ इसमें मेरा भी अवदान है, इस यज्ञ में मेरी भी समि‍धा की एक आहुति‍ है।
हिंद की शान है हिन्दी ...:हिंदी की सुरभि‍ को सार्वभौम फैलाने वाले पुरोधा भारतेंदु हरि‍श्‍चन्‍द्र की पि‍छले दि‍नों 161वीं जयंति‍ हमने मनाई है। नि‍ज भाषा के लि‍ए सम्पूर्ण जीवन समर्पि‍त कर देने वाले इस महामहोपाध्याय का नारा था ‘हि‍न्दी हि‍न्दू हि‍न्दुस्तान’ वि‍द्वत्‍समाज इसकी अपनी अपनी तरह से वि‍वेचना,चर्चा करता है।
आज केवल इसी वाक्य,इस सूक्ति‍‍,इस नारे पर ही थोड़ी चर्चा कर मैं वि‍राम चाहूँगा,क्योंकि‍ हम हर वर्ष इस पुरोधा की जयंति‍ मनाते हैं,हि‍न्दी के वि‍कास के लि‍ए संकल्प लेते हैं,कि‍न्तु श्मसान में पैदा हुए क्षणि‍क वैराग्य की तरह श्म‍सान से बाहर आते ही हम फि‍र उसी माया-मोह,दुनि‍यादारी में खो जाते हैं,यही हश्र हमारी हि‍न्दी‍ का हुआ है।DIL ka RAJ: Hindi positions and plight:हम हि‍न्दुस्ता्न में हि‍न्दू,हि‍न्दी और हि‍न्दुस्तान तीनों को अलग अलग नज़रि‍ये से देखते हैं,इसलि‍ए आस्था खो रहे हैं। भारतेन्दु ने इन तीनो की जो वि‍वेचना की थी वह कि‍,जो हि‍न्दी‍ बोले वह हि‍न्दुस्तानी,जो हि‍न्दी बोले वो ही हि‍न्दू है,देश की पहचान हि‍न्दी हो,हि‍न्दू नहीं। हि‍न्दी है तो हि‍न्दू हैं और हि‍न्दी है तो हि‍न्दुस्तान है। अन्य देशों के लोग हि‍न्दू को नहीं,हि‍न्दी को जानते हैं,क्योंकि‍ हि‍न्‍दुस्तान की पहचान वहाँ हि‍न्दू‍ से नहीं,हि‍न्दी‍ से है। हि‍न्दी-चीनी भाई-भाई। चीनी कौन? जो चीन के वासी हैं,हि‍न्दी‍ कौन?हि‍न्दी वो,जो हि‍न्दुस्तान में रहते हैं। हि‍न्दी हैं---हि‍न्दी हैं हम,वतन है,हि‍न्दो‍स्ताँ हमारा---सारे जहाँ से अच्छा हि‍न्दो‍स्ताँ हमारा। यहाँ पर भी हि‍न्दवासि‍यों को हि‍न्दी कहा गया है।
हाड़ौती की एक कहावत है- ‘घर का जोगी जोगणा,आण गाँव का सि‍द्ध’वि‍देश में रह कर अपने देश की महत्ता का अहसास होता है और यही कारण है कि‍ वि‍देशों मे वह न मुसलमान है,न सि‍ख,न ईसाई,न गुजराती,न बंगाली,वहाँ वह सि‍र्फ हि‍न्दुस्तानी है,इसीलि‍ए वहाँ हि‍न्दी को एक अहम स्थान प्राप्त है। पर हम अपने देश में हि‍न्दी‍ के प्रति‍ आस्था खो रहे हैं। हमारे यहाँ जब तक प्रान्तीय भाषाओं के वर्चस्व की बातें होंगी,हमारी हि‍न्दी‍ अपनी वास्तवि‍क जगह नहीं बना पायेगी। राजस्थान में राजस्थानी भाषा के लि‍ए आंदोलन हो रहे हैं,लेकि‍न मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की तुलना में राजस्थान हि‍न्दी में पि‍छड़ा हुआ है। राजस्था‍न में हिंदी जन जन में अपनी आस्था नहीं बना पाई है। यहाँ बाजारों में अशुद्ध हिंदी पढ़ने देखने को मि‍लती है, सरकारी गैर सरकारी महकमों में आंग्ल भाषा का वर्चस्व यथावत बना हुआ है। पहले दक्षि‍ण में हि‍न्दी का अपमान हुआ, पि‍छले वर्ष महाराष्ट्र,वि‍शेषकर देश की सांस्कृति‍क और आर्थि‍क राजधानी मुंबई में इसकी अवहेलना,दंगे फसाद हुए। भाषावाद,प्रान्तीयतावाद,आरक्षण और सर्वोपरि‍ आतंकवाद से हमको देश के प्रमुख मुद्दों के कारण हम हि‍न्‍दी के बारे में सोच ही नहीं पाते। इसी कारण अनेकों समस्यायें वि‍कराल रूप ले रही हैं। पि‍छले साल से आज तक हम इन्हीं समस्याओं से जूझते रहे हैं। ।
पूरा देश हि‍न्दी के लि‍ए एकजुट नहीं होगा तब तक हम अपनी राष्ट्र भाषा हि‍न्दी के लि‍ए देख रहे सपनों को बस देखते रहेंगे,उसे मूर्तरूप नहीं दे पायेंगे और ऐसा संभव हो नहीं सकता। इसलि‍ए मैं कहना चाहता हूँ कि‍ हमें स्वयं ही अपना कर्तव्य। नि‍भाते रहना होगा,हमें हि‍न्दी के लि‍ए कार्य करते रहना होगा,क्या खोया क्या पाया पर चर्चा करेंगे तो चर्चा ही करते रहेंगे।
मैं तो अपने ब्लॉग्‍स के माध्यम से हि‍न्दीं और हि‍न्दी साहि‍त्य से हि‍न्दी का संदेश वि‍श्व के पाठकों तक पहुँचाता रहता हूँ,हि‍न्दी‍ वर्ग पहेली पर वि‍शेष कार्य कर रहा हूँ,पि‍छले वर्ष नवम्ब‍र से मैं अरब देश शारजाह से नि‍यंत्रि‍त और सम्पादि‍त की जा रही प्रख्यात लेखि‍का कवयि‍त्री श्रीमती पूर्णिमा वर्मन की ई पत्रि‍का‘अभि‍व्यक्ति’‍ और‘अनुभूति‍’ से जुड़ा हुआ हूँ। अभि‍व्यक्ति पर मेरी हि‍न्दी वर्गपहेली नि‍रंतर प्रकाशि‍त हो रही हैं,जि‍से लाखों देश और वि‍देशी प्रवासि‍यों,हि‍न्दी पाठकों द्वारा पसंद कि‍या जा रहा है। इसे ओन लाइन भरा जा सकता है,खेला जा सकता है। पूर्णि‍मा वर्मन द्वारा गद्य और पद्य पर कि‍ये जा रहे कार्य प्रशंसनीय हैं। इसी प्रकार आस्ट्रेलि‍या से ‘हि‍न्दी गौरव’,दि‍ल्‍ली से 'हि‍न्‍द युग्‍म' अच्छा कार्य कर रहा है,इसका इंटरनेट संस्करण आप डाउनलोड कर सकते हैं,अनेकों छोटे छोटे हि‍दी अखबार भी अब अपना इंटरनेट संस्करण इंटरनेट पर जोड़ने लग गये हैं। ‘कवि‍ताकोश’वि‍श्व और भारत के सर्वाधि‍क कवि‍यों का एक इनसाइक्लोंपीडि‍या बनने जा रहा है। आप यदि‍ कम्यूटर भाषा जानते हैं,तो इसमें अपना छोटे से छोटा योगदान दे कर हि‍न्दी साहि‍त्य की अथक यात्रा में सम्मि‍लि‍त हो सकते हैं।
अंत में मैं बस इतना कहूँगा कि‍ हि‍न्दी का भवि‍ष्य सुंदर है,इसके संरक्षण के लि‍ए साझा और एकल प्रयास नि‍रंतर होते रहने चाहि‍ए। हमें इसके लि‍ए मानव शृंखला बनानी होगी ताकि‍ इसका संरक्षण हो सके।
हि‍न्‍दी हि‍न्‍दू हि‍न्‍दुस्‍तान।
हि‍न्‍दी को हम दें सम्‍मान।
हि‍न्‍दी हो जन की भाषा,
हि‍न्‍दी ही हो अपनी पहचान।।

शेष नाथद्वारा से लौटने पर-----

10 सितंबर 2011

पत्‍थरों का शहर






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यह पत्‍थरों का शहर है
बेजान बुत सा खड़ा इसके सीने में
भरा गुबारों का ज़हर है।
यह पत्‍थरों का शहर है।।

यहाँ पलती है ज़ि‍न्‍दगी नासूर सी।
यहाँ जलती है ज़ि‍न्‍दगी काफ़ूर सी।
यहाँ बहकती है ज़ि‍न्‍दगी सुरूर सी।
यहाँ तपती है ज़ि‍न्‍दगी तंदूर सी।
अहसान फ़रामोश इस शहर का अजीबो ग़रीब जुनून है।
पत्‍थरों के सीने में यहाँ हरदम उबलता ख़ून है।
सूरज के ख़ौफ़ से झुलसता, तपता
यह अंगारों का शहर है।
यह पत्‍थरों का शहर है।।
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आगे पढ़ि‍ये इस पुस्‍तक को डाउनलोड कर के या डेमो बुक पर डबल क्‍लि‍क करके-----

6 सितंबर 2011

नवगीत की पाठशाला: २५. यह शहर

नवगीत की पाठशाला: २५. यह शहर: ति‍नका ति‍नका जोड़ रहा इंसाँ यहाँ शाम-सहर आतंकी साये में पीता हालाहल यह शहर अनजानी सुख की चाहत संवेदनहीन ज़मीर इन्द्रहधनुषी अभि‍लाषाय...

4 सितंबर 2011

गणेशाष्‍टक

धरा सदृश माता है, माँ की परि‍क्रमा कर आये।
एकदन्त, गणपति,‍ गणनायक, प्रथम पूज्य कहलाये।।1।।

लाभ-क्षेम दो पुत्र, ऋद्धि-सि‍द्धि‍ के स्वामि‍ गजानन।
अभय और वर मुद्रा से, करते कल्याण गजानन।।2।।

मानव-देव-असुर सब पूजें, त्रि‍देवों ने गुण गाये।
धर त्रि‍पुण्ड मस्तक पर शशि‍धर, भालचंद्र कहलाये।।3।।

असुर-नाग-नर-देव स्था‍पक, चतुर्वेद के ज्ञाता।
जन्म चतुर्थी, धर्म, अर्थ और काम, मोक्ष के दाता।।4।।

पंचदेव और पंचमहाभूतों में प्रमुख कहाये।
बि‍ना रुके लि‍ख महाभारत, महा आशुलि‍पि‍क कहलाये।।5।।

अंकुश-पाश-गदा-खड्.ग-लड्डू-चक्र षड्भुजा धारे।
मोदक प्रि‍य, मूषक वाहन प्रि‍य, शैलसुता के प्यारे।।6।

सप्ताक्षर ‘गणपतये नम: सप्तचक्र मूलाधारी।
वि‍द्या वारि‍धि‍, वाचस्पति‍ महामहोपाध्याय अनुसारी।।7।।

छंदशास्त्र के अष्टगणाधि‍ष्ठा‍ता अष्ट वि‍नायक।
’आकुल’ जय गणेश, गणपति‍ हैं सबके कष्ट नि‍वारक।।8।।

3 सितंबर 2011

'आकुल' को 'साहि‍त्‍य श्री' सम्मानोपाधि‍। परि‍यावाँ में भी वे कोटा के वरि‍ष्‍ठ साहि‍त्‍यकार श्री रघुनाथ मि‍श्र के साथ्‍ा सम्‍‍मानि‍त होंगे।

कोटा के जनवादी कवि‍, संगीतकार, साहि‍त्‍यकार, लेखक, सम्‍पादक क्रॉसवर्ड वि‍जर्ड गोपाल कृष्‍ण भट्ट 'आकुल' को राष्‍ट्रवीर महाराजा सुहेलदेव ट्रस्‍ट, सि‍होरा, जबलपुर म0प्र0 द्वारा उनकी हि‍न्‍दी साहि‍त्‍य सेवा व सम्‍पादन कार्य के लि‍ए 2011 की 'साहि‍त्‍य श्री' सम्‍मानोपाधि‍ प्रदान की है।
श्री 'आकुल' के साथ कोटा के ही वरि‍ष्‍ठ साहि‍त्‍यकार श्री रघुनाथ मि‍श्र को साहि‍त्‍यि‍क, सांस्‍कृति‍क कला संगम अकादमी परि‍यावाँ, प्रतापगढ़ उ0प्र0 द्वारा वर्ष 2011 के लि‍ए सम्‍मान के लि‍ए भी चयन कि‍या गया है। 30 अक्‍टूबर 2011 को आयोजि‍त होने जा रहे इस भव्‍य समारोह में श्री 'आकुल' को 'वि‍वेकानन्‍द सम्‍मान' से वि‍भूषि‍त कि‍या जायेगा और श्री मि‍श्रा को 'वि‍द्या वाचस्‍पि‍त (मानद)' से सम्मानि‍त कि‍या जायेगा। अकादमी के सचि‍व श्री वृन्‍दावन त्रि‍पाठी रत्‍नेश ने पत्र एवं दूरभाष से सम्‍पर्क कर दोनों को चयन की सूचना दी और बधाई दी। उन्‍होंने बताया कि‍ इस भव्‍य समारोह अखि‍ल भारतीय स्‍तर के लगभग 40 से 50 साहि‍त्‍यकारों को प्रति‍वर्ष सम्‍मानि‍त कि‍या जाता है। इस वर्ष भी 100 से अधि‍क साहि‍त्‍यकारों को सम्‍मानि‍त कि‍या जायेगा। सभी जगह आमंत्रण पत्र भि‍जवा दि‍ये गये हैं ओर स्‍वीकृति‍याँ आने लग गयी हैं। समारोह में हि‍न्‍दी गरि‍मा सम्‍मान, कला मार्तण्‍ड, हि‍न्‍दी सेवी सम्‍मान, साहि‍त्‍य मार्तण्‍ड, पत्रकार मार्तण्‍ड, वि‍द्या वाचस्‍पति‍, वि‍द्या वारि‍धि‍, साहि‍त्‍य महामहापाध्‍याय, रोहि‍त कुमार माथुर स्‍मृति‍ सम्‍मान, पं0 जगदीश नारायण त्रि‍पाठी स्‍मृति‍ सम्‍मान, पं0 जगदीश नारायण त्रि‍पाठी स्‍मृति‍ सम्‍मान, प0 दुर्गाप्रसाद शुक्‍ल स्‍मृति‍ सम्‍मान, सुश्री सरस्‍वती सिंह सुमन स्‍मृति‍ सम्‍मान और कबीर सम्‍मान भी दि‍ये जायेंगे। श्री भट्ट और श्री मि‍श्रा 29 अक्‍टूबर को कोटा से परि‍यावाँ के लि‍ए रवाना होंगे। श्री त्रि‍पाठी ने बताया कि‍ सम्‍मारोह की भागीदारी सहयोगी संस्‍था तारि‍का वि‍चार मंच करछना इलाहाबाद और विंध्‍यवासि‍नी हि‍न्‍दी वि‍कास संस्‍थ्‍ज्ञान नई दि‍ल्‍ली भी साहि‍त्‍यकारों का सारस्‍वत सम्‍मान करेंगी।
श्री भट्ट और मि‍श्रा को इस सम्‍मान के लि‍ए बधाइयों का ताँता लगा हुआ है। भट्ट को उनकी पुस्‍तक 'जीवन की गूँज' और श्री मि‍श्रा को उनकी पुस्‍तक 'सोच ले तू कि‍धर जा रहा है' के लि‍ए उनकी साहि‍त्‍य सेवा के लि‍ए सम्‍मानि‍त कि‍या जा रहा है।

2 सितंबर 2011

ज्ञान सामर्थ्‍य 1 - हि‍न्‍दी वर्गपहेली

इंटरनेट पर हि‍न्‍दी वर्ग पहेलि‍याँ देखी हैं !!!!
मेरी पुस्‍तक का अवलोकन करें। 114 पृष्‍ठीय इस पुस्‍तक में 50 वर्ग पहेलि‍याँ है। पूरा वर्जन देखने के लि‍ए चि‍त्र पर डबल क्‍लि‍क करें या click to launch the full edition पर क्‍लि‍क करें। मेरी वर्ग पहेली आप http://abhivyakti-hindi.org पर भी देख सकते है और वहाँ ऑन लाइन खेल भी सकते हैं। मेरी पुस्‍तक डाउनलोड करें और घर में जी भर कर आनंद लें। यह पुस्‍तक आपको कैसी लगी अपने वि‍चार अवश्‍य प्रेषि‍त करें। इसका दूसरा संस्‍करण अगले माह आपके सामने होगा।











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2 ग़ज़लें

1
करम कर तू ख़ुदा को रहमान लगता है।
कोई नहीं ति‍रा मि‍रा जो मि‍हरबान लगता है।
यही पैग़ाम गीता में हदीस में है पाया,
ग़ुमराह कि‍या हुआ वो इंसान लगता है।
आदमी-आदमी की फ़ि‍तरत मे क्‍यूँ है फ़र्क,
सबब इसका सोहबत-ओ-खानपान लगता है।
ति‍री नज़र में क्‍यूँ है अपने पराये का शक़,
इक भी नहीं शख्‍़स जो अनजान लगता है।
उसने सबको एक ही तो दि‍या था चेहरा,
चेहरे पे चेहरा डाले क्‍यों शैतान लगता है।
कौनसी ग़लती हुई, इसे क्‍या नहीं दि‍या,
ख़ुदा इसीलि‍ए हैराँ औ परीशान लगता है।
उसकी दी नैमत है अहले ज़ि‍न्‍दगी 'आकुल',
जाने क्‍यूँ कुछ लोगों को इहसान लगता है।
2
दरख्‍़‍त धूप को साये में ढाल देता है।
मुसाफ़ि‍र को रुकने का ख़याल देता है।
पत्‍तों की ताल हवा के सुरों झूमती,
शाखों पे परि‍न्‍दा आशि‍याँ डाल देता है।
पुरबार में देखो उसकी आशि‍क़ी का जल्‍वा
सब कुछ लुटा के यक मि‍साल देता है।
मौसि‍मे ख़ि‍ज़ाँ में उसका बेख़ौफ़ वज़ूद,
फ़स्‍ले बहार आने की सूरते हाल देता है।
इंसान बस इतना करे तो है काफ़ी,
इक क़लम जमीं पे गर पाल देता है।
ऐ दरख्‍़त तेरी उम्रदराज़ हो 'आकुल',
तेरे दम पे मौसि‍म सदि‍याँ नि‍काल देता है।

पुरबार-फलों से लदा पेड़, मौसि‍मे ख़ि‍ज़ाँ- पतझड़ की ऋतु
फ़स्‍ले बहार- बसंत ऋतु, सूरते हाल- ख़बर
क़लम- पेड़ की डाल,पौधा उम्रदराज- चि‍रायु

1 सितंबर 2011

सान्‍नि‍ध्‍य सेतु: यह कोई नई चाल तो नहीं !!!!!

सान्‍नि‍ध्‍य सेतु: यह कोई नई चाल तो नहीं !!!!!: भ्रष्‍ट लोग अपने बचाव के लि‍ए कि‍सी भी हद तक गुज़र सकते हैं। अन्‍ना ने अनशन तोड़ दि‍या, ठीक है, अग्‍नि‍वेश की असलि‍यत सामने आई, चलो यह भी ठी...

28 अगस्त 2011

सान्‍नि‍ध्‍य सेतु: कौन बनेगा करोड़पति‍ कार्यक्रम में 'बि‍ग बी' ने सुन...

सान्‍नि‍ध्‍य सेतु: कौन बनेगा करोड़पति‍ कार्यक्रम में 'बि‍ग बी' ने सुन...: कोटा : 15 अगस्त से सोनी टीवी पर प्रारम्भ हुए चर्चित कार्यक्रम “कौन बनेगा करोडपति” मेँ कार्यक्रम के स्टार संचालक अमिताभ बच्चन ने कोटा के कवि...

सान्‍नि‍ध्‍य सेतु: 'दृष्टि‍कोण' ने दूसरे वर्ष में प्रवेश कि‍या। पाँचव...

सान्‍नि‍ध्‍य सेतु: 'दृष्टि‍कोण' ने दूसरे वर्ष में प्रवेश कि‍या। पाँचव...: कहानी दर्द की मैं ज़ि‍न्दगी से क्या कहता।
यह दर्द उसने दि‍या है उसी से क्या कहता।
तमाम शहर में झूठों का राज़ था ‘अख्तर’,
मैं अपने ग़म क...

27 अगस्त 2011

काव्‍यजगत् के महासागर ब्‍लॉग कवि‍ताकोश की मुख्‍य टीम में भारी फेरबदल

24 अगस्त 2011 के कवि‍ताकोश समाचार व अन्‍य साहि‍त्‍यि‍क समाचारों से काव्‍यजगत् स्‍तब्‍ध है। हाल ही में कवि‍ता कोश के समाचार हूबहू प्रस्‍तुत हैं-
* श्री अनिल जनविजय का कविता कोश टीम से त्यागपत्र स्वीकार कर लिया गया है।
* नवनियुक्त संपादक श्री प्रेमचंद गांधी ने भी अपने पद से त्यागपत्र दे दिया है।
* इस समय कविता कोश संपादक का पद खाली है और संपादकीय कार्य कविता कोश टीम के अन्य सदस्य देखेंगे।
* संपादक पद के लिए उचित उम्मीदवार मिलने तक यह पद खाली रहेगा।
* नोहार, राजस्थान के रहने वाले आशीष पुरोहित को राजस्थानी विभाग में रचनाएँ जोड़ने के लिए कार्यकारिणी में शामिल किया गया है।
इस समाचार से ब्‍लॉग्‍स की दुनि‍या में एक हलचल अवश्‍य मचेगी। क्‍यों हुआ ? अनि‍ल जनवि‍जय की हाल ही में कवि‍ता कोश प्रथम पुरस्‍कारों में चर्चा हुई थी। राजस्‍थान के प्रति‍नि‍धि‍ साहि‍त्‍यकार श्री प्रेमचंद गाँधी ने भी त्‍यागपत्र दे दि‍या। पि‍छले दि‍नों साहि‍त्‍यि‍क पत्रि‍का 'ग़ज़ल क बहाने' के बंद होने की भी खबरें सुनाई दीं। 'गोलकोण्‍डा दर्पण' के भी अंक नहीं छपने से उसका पोस्‍टल रजि‍स्‍ट्रेशन खत्‍म होने से वह आर्थि‍क संकट से गुज़र रही है। इसके सम्‍पादक गोवि‍न्‍द अक्षय का मौन भी कष्‍टदायक है। खैर यदि‍ सकारात्‍मक सोचें तो आगे यदि‍ कवि‍ताकोश जैसे ब्‍लॉग्‍स पर संकट और अन्‍य साहि‍त्‍यि‍क पत्र पत्रि‍काओं की दयनीय स्‍थि‍ति‍ पर साहि‍त्‍यि‍कारों की दृष्‍टि‍ पड़ेगी तो अवश्‍य एक साहि‍त्‍यि‍क सोच पैदा होगी और इसके संवर्धन परि‍वर्धन के लि‍ए सापेक्ष प्रयास होंगे। ऐसी स्‍थि‍ति‍ में आवश्‍यक है कि‍ हम इनसे संवाद कायम करें और इसके वि‍कास में योगदान दें।- आकुल, सम्‍पादक साहि‍त्‍यसेतु

26 अगस्त 2011

भ्रष्‍टाचार खत्‍म करने को, जड़ तक पहुँचें हम

आओं हाथ हृदय पर रखकर, कुछ क्षण सोचें हम
थोड़े हम भी इसमें‍, जि‍म्मेदार हैं सोचें हम
फि‍र नि‍र्णय लें, पश्चात्ताप करें या प्रायश्चित या
भ्रष्टाचार खत्म करने को, जड़ तक पहुँचें हम

कहाँ नहीं है भ्रष्टाचार, मगर चुप रहते आये
आवश्यकता की खाति‍र हम, सब कुछ सहते आये
बढ़ा हौसला जि‍सका, उसने हर शै लाभ उठाया
क्या छोटे,क्या,बड़े सभी, इक रौ में बहते आये

भ्रष्टाचारी गि‍द्धों ने जब, अपनी आँख जमाई
अत्याचारों के खि‍लाफ, संतों ने अलख जगाई
पहुँची है हुंकार आज इक, जनक्रांति‍ की घर-घर
क्या बच्चे, क्या, बूढ़े, तरुणों ने फि‍र ली अँगड़ाई

लगता है अब आएगा, इस मुहि‍म नतीजा कोई
देंगे यदि‍ देनी ही पड़े अब‍, अग्नि‍ परीक्षा कोई
रक्तहीन क्रांति‍ की पहल, करी है हमने यारो,
हम कायर हैं, इस भ्रम में ना, रहे ख़लीफ़ा कोई

पहन मुखौटा करते जो, अपमान राष्ट्र पर्वों का
शर्मि‍न्दा करते हैं, संस्कृति‍, उत्सव औ धर्मों का
नहीं हुए हम जागरूक, सि‍र कफ़न बाँधना होगा
और हि‍साब देना होगा, सबको अपने कर्मों का

आओ इस अनमोल समय का, मि‍ल कर लाभ उठायें
कर गुज़रें कुछ संकट में अब, मि‍ल कर हाथ उठायें
राष्ट्र छवि‍ बि‍गड़ी है, भ्रष्टाचार खत्म हो जड़ से
एक बनें मि‍ल कर, इक जुट हों, इक आवाज़ उठायें

वंदेमातरम् गायें, सत्यमेव जयते दोहरायें
सारे जहाँ से अच्छा हि‍न्दोस्ताँ हमारा गायें
राष्ट्रगान गूँजे घर आँगन, वैष्णव जनतो गूँजे
संवि‍धान पर उठे न उँगली, ध्‍वज की शान बढ़ायें

आओ अंतर्मन के, तूफाँ रोकें, सोचें हम
थोड़े हम भी इसमें‍, जि‍म्मेदार हैं, सोचें हम
पीछे मुड़ कर ना देखें, संकल्प उठायें सब मि‍ल
भ्रष्टाचार खत्म करने को जड़ तक पहुँचें हम

15 अगस्त 2011

मंगलमय हो स्‍वतंत्रता



1
मंगलमय हो स्वतंत्रता का स्वर्णि‍म पावन पर्व
जन-जन को पुलकि‍त कर दे ऐसा मनभावन पर्व
नये जोश और नई उमंगों का प्रति‍पादन पर्व
अमर शहीदों की स्मृति‍ का यह अभि‍वादन पर्व
मंगलमय हो-------------
वीर सपूत, हुतात्माओं का गुणगान करें हम
योगदान करने वालों का दि‍नभर घ्यान करें हम
जि‍नसे है स्वाधीन धरा उनका जयगान करें हम
नेहरू, गाँधी, पाल, ति‍लक का यह पारायण पर्व
मंगलमय हो-------------
अनुशीलन, मंथन, चिंतन कर दृढ़ संकल्पित हों
मार्ग बहुत है कण्ट-कीर्ण ना पथ परि‍वर्तित हों
परि‍वीक्षण कर कुछ करने आगे अग्रेषि‍त हों
नि‍:स्वार्थ, दि‍लेर युवाओं का यह अन्न प्राशन पर्व
मंगलमय हो------------
आज पुन: इक प्राणप्रति‍ष्ठा, का हम करें आचमन
अवगुंठन अवचेतन मन से हट कर करें आचरण
घोर समस्याओं का ही अब करना है नि‍स्तारण
अक्षुण्‍ण रहे सम्यता-संस्कृति‍ का यह मणि‍कांचन पर्व
मंगलमय हो------------
आओ हम ध्वज का वंदन कर राष्ट्रगान गायें।
आगम का हम करें सु‍स्वा‍गत कीर्ति‍गान गायें।
सब मि‍ल कर समवेत स्वरों में देशगान गायें।
गंगा जल से अब वसुधा का हो प्रक्षालन पर्व।
मंगलमय हो------------



2
परि‍वर्तन की एक नई आधारशि‍ला रखना है।
न्‍याय मि‍ले बस इसीलि‍ए आकाश हि‍ला रखना है।
द्रवि‍त हृदय में मधुमय इक गु़लजार खि‍ला रखना है।
हर दम संकट संघर्षों में हाथ मि‍ला रखना है।

अमर शहीदों की शहादत का इंडि‍या गेट गवाह है।
ग़दर वीर जब बि‍फरे अंग्रेजों का हश्र गवाह है।
स्‍वाह हुए कुल के कुल अक्षोहि‍णी कुरुक्षेत्र गवाह है।
तब से जो भी हुआ आज तक सब इति‍हास गवाह है।

दो लफ्जों में उत्‍तर ढूँढ़े हो स्वतंत्र क्या पाया?
हर कूचे और गली गली में क्यूँ सन्नाटा छाया?
जात पाँत का भेद मि‍टा क्या राम राज्य है आया?
रख कर मुँह को बंद जी रहे क्यों आतंकी साया?

ग्लोबल वार्मिंग, भ्रष्टाचार, महँगाई, प्रदूषण, आबादी।
याद रखेगा हर प्राणी अब जल थल नभ की बरबादी।
रहे न हम गर जागरूक पछतायेंगे जी आजादी।
हर हाल न मानव मूल्य सहेज सके तो कैसी आज़ादी।

भाग्य वि‍धाता, सत्यमेव जयते, जन गण मन गाते।
रस्म रि‍वाज़ नि‍भाते और हर उत्सव पर्व मनाते।
तब से भारत माता की जय कह कर जोश बढ़ाते।

मेरा भारत है महान् नहीं कहते कभी अघाते।
राम रहीम कबीर सूर की वाणी को दोहराते।

महका दो अपनी धरती को हरा भरा रखना है।
हार नहीं हर हाल प्रकृति‍ को अब सहेज रखना है।
न्याय मि‍ले बस इसीलि‍ए आकाश हि‍ला रखना है।

परि‍वर्तन की एक नई आधारशि‍ला रखना है।



13 अगस्त 2011

आज है राखी का त्‍योहार


Raksha Bandhan Cards

Free Greetings

आज है राखी का त्योहार
भाई को बहि‍ना का उपहार
कच्चे धागे में लि‍पटा है
एक अनोखा प्यार।
आज है राखी का त्योहार--------

साथ खेल पढ़ बड़े हुए तब
अपने पग पर खड़े हुए जब
रि‍श्तों की तासीर बताई
घर की इज्जत है समझाई
मात-पि‍ता की प्रति‍मूरत है
बहि‍न भाई की जो सूरत है
ममता का सागर लहराये
बाहों में संसार समाये
एक पेट जाये हैं दोनो
एक खून एक नार।
आज है राखी का त्योहार------------

संस्कार देने होंगे अब
रि‍श्ते दृढ़ करने होंगे अब
बचपन से अपनापन जोड़ें
घर से कभी न दामन तोड़ें
घर घर में रि‍श्ते हों पोषि‍त
नारी कही नहीं हो शोषि‍त
माँ बहु बेटी बहि‍न बहार
घर में सुख की बहे बयार
नैहर और ससुराल बनेंगे
स्वर्ग सेतु और द्वार।
आज है राखी का त्योहार---------

बहि‍न भाई के इस बंधन में
पड़े न कभी दरार।
कच्चे धागे में लि‍पटा है
एक अनोखा प्यार।
आज है राखी का त्योहार।

-रक्षाबन्धन पर

11 अगस्त 2011

याद बहुत ही आती है तू

याद बहुत ही आती है तू,जब से हुई पराई।
कोयल सी कुहका करती थी, घर में सोन चि‍राई।
अनुभव हुआ एक दि‍न तेरी, जब हो गई वि‍दाई।
अमरबेल सी पाली थी, इक दि‍न में हुई पराई।
परि‍यों सी प्यारी गुड़ि‍या को जा वि‍देश परणाई।।
याद बहुत ही आती है तू---------

लाख प्रयास कि‍ये समझाया, मन को कि‍सी तरह।
बरस न जायें बहलाया, दृग घन को कि‍सी तरह।
वि‍दा समय बेटी को हमने, कुल की रीत सि‍खाई।
दोनों घर की लाज रहे बस, तेरी सुनें बड़ाई।
बि‍दा कि‍या मन मन घन बरसे, फूटी कंठ रुलाई।।
याद बहुत ही आती है तू---------

कृष्ण काल का मोक्ष हुआ, ऐसा अनुतोष दि‍या।
वंश बेल की नींव डाल, अप्रति‍म परि‍तोष दि‍या।
कुल रोशन कर घर-घर, भूरि‍-भूरि‍ प्रशंसा पाई।
घर की डोर सम्हाली, कुल मर्यादा प्रीत बढ़ाई।
मेरे घर का मान बढ़ा, तू रहे सदैव सुखदाई।।
याद बहुत ही आती है तू--------------

इक-इक युग सा बीता है, हर साल परायों जैसा।
मरु में मृगमरीचि‍का सा, सहरा में सायों जैसा।
ज्यूँ-ज्यूँ दि‍न बीते हैं, बूढ़ी आँखें हैं पथराई।
कौन करेगा भाई की, शादी में बाट रुकाई।
अब घर आयें बच्चोंय के संग बेटी और जमाई।।
याद बहुत ही आती है तू--------------

सूद सहि‍त खुशि‍याँ बाँटूँगा, तू आना बन ठन कर।
भाई की शादी में संग नचना, गाना मन भर कर।
तुम लोगों से ही तो लेगा वो आशीष बधाई।
जीजाजी से ही तो बँधवायेगा पगड़ी टाई।
मेरे मन की अभि‍लाषा की तब होगी भरपाई।।
याद बहुत ही आती है तू--------------

परि‍यों सी प्यारी गुड़ि‍या को जा वि‍देश परणाई।।
याद बहुत ही आती है तू--------------

-पुत्री दि‍वस पर (11-08-2011)

7 अगस्त 2011

सखा बत्तीसी


(चुटकुला साहि‍त्यिक उछलकूद की एक मोहक शैली है और छंद प्रदेश की धरा से जुड़ा लोक साहि‍त्य है। कहावतें जहाँ सामाजि‍क परि‍वेश में संस्कारों का प्रति‍नि‍धि‍त्व करती हैं, वहीं छंदों के माध्यम से कवि‍ द्वारा कही गई कोई भी रचना उसकी रस प्रधानता को एक सामाजि‍क स्तर प्रदान करती है। उसी क्रम में ब्रज भाषा और रौला छंद में नि‍बद्ध ‘सखा बत्तीसी’संस्कारों के प्रदूषण को छाँटती हुई एक सांस्कृति‍क चुटकी है,जि‍सकी आज महती आवश्‍यकता है। आज मि‍त्र दि‍वस है। मेरी पुस्‍तक 'जीवन की गूँज'से सखा बत्‍तीसी का आनंद उठायें। सभी पाठक मित्रों को 'मि‍त्र दि‍वस' की बहुत बहुत शुभकामनायें।-आकुल)

गूलर भुनगा साथ ज्यौं, भौंरा कमल समाय।
मृत्युपर्यंत साथ दै, वो ही सखा कहाय।
वो ही सखा कहाय, साथ हो सच्च सरीखौ।
स्वाद कह्यो ना जाय, गरल मीठौ कै फीकौ।।1।।

हरौ पान चूना चढ़ै, जीभ करै नहीं लाल।
चढ़ै कपि‍त्थ सखा संग ऐसौ, करै करेजा लाल।
करै करेजा लाल, सखा की महि‍मा ऐसी।
दधि‍ माखन हि‍य रखै, दूध की गरि‍मा जैसी।।2।।

दूध फटै छैना बनै, दही जमै जब दूध।
अकसमात जब बनै, सखाई माँगे नहीं सबूत।
माँगे नहीं सबूत, हाल हर देवै हत्था।
मोम बनै बि‍न शहद, मुहर को जैसे छत्ता।।।3।।

‘आकुल’गुन औगुन ना परखै,काल सखा और सर्प।
आँख खुली रक्खै, ना रक्खै संग कोई भी दर्प।
संग कोई भी दर्प, काल की घड़ी वि‍दारक।
सखा रहै बस संग, सर्प को दंश सँहारक।।4।।

परि‍चै तो राखौ घनौ, सखा रखौ कछु एक।
कौन घड़ी आ पड़ै काज तुम, मि‍लौ सबन सूँ नेक।
मि‍लौ सबन सूँ नेक, सखा सूँ प्रीत बढ़ाय।
कस्तूरी मृग ज्‍यौं रि‍सै, जहाँ पहुँचै महकाय।।5।।

घी लि‍पटै ऊपर चढ़ै, तेल चढ़ै तह ताहिं।
जग माया ऊपर दि‍खे, मातु सखा मन माहिं।
मातु सखा मन माहिं, प्रेम कछु ऐसौ राखैं।
तन कठोर मन नि‍र्मल, श्रीफल जैसौ राखैं।।6।।

हंस चुगे मोती, चातक अंगार ही खावै।
सखा छोड़ मनसखा कभी, गंगा नहीं न्हावै।
नहीं न्हानवै वनराज, भलै जंगल कौ राजा।
सखा बि‍ना बारात सजै ना, घोड़ी बाजा।।7।।

सखा संग ऐसौ जैसे द्रुम नीम तमाल।
कड़वौ कै औषध हो, वाकौ मन वि‍शाल।
मन वि‍शाल हो सखा मि‍लै, बस ऐसौ ‘आकुल’।
संग छोड़ कै जाय तौ, घर-बर सब व्याकुल।।8।।

नीर-क्षीर-वि‍वेक और मणि‍कांचन कौ योग।
संग सखा की बात कहा, जो ऐसौ हो संयोग।
ऐसौ हो संयोग कि,‍घी से खि‍चरी नि‍खरै।
नाम सखा कौ होय, मनसखा भी ना बि‍खरै।।9।।

चून चढै़ गावै मृदंग, चून बि‍ना गुन जान।
सखा साथ है तौ बसंत, सखा बि‍ना सुनसान।
सखा बि‍ना सुनसान, रात ज्यौं बि‍ना सि‍तारे।
बि‍ना चाँदनी चाँद, बि‍ना बदरी के धारे।।10।।

उलट तवा नाचै यदि,‍चि‍ठि‍या आवै द्वार।
पलट वार ना करै सखाई, ति‍रि‍या जावै हार।
ति‍रि‍या जावै हार, सखा ना फूट करावै।
ना तंतर-मंतर-मारक, ना मूठ धरावै।।11।।

दाँत भलै बत्तीस, जीभ इतरावै ऐसी।
बि‍ना अस्त्र के लड़ै, करै ऐसी की तैसी।
करे ऐसी की तैसी, सखा की थाती ऐसी।
दाँत बि‍ना भी जीभ चलै, वैसी की वैसी।।12।।

जलै दीप कौ तेल, जलै बाती की लौ भी।
मोती बि‍ना बनै कठोर, हि‍य सीपी कौ भी।
सीपी कौ भी मोल, कछू ना बि‍ना रसोपल।
सखा बि‍ना जग ऐसौ, जैसे नार बुझौवल।।13।।

रसना बि‍न ना रस, ना बि‍ना सखा रसखान।
छप्पन भोग करै का रसना, बि‍ना सखा का मान।
बि‍ना सखा का मान, भले हौं भाग हमारे।
करम बुलावैं नेक सखा कूँ, अपने द्वारे।।14।।

हाथ करै ले मोल लड़ाई, बंदर और गमार।
शरम करै भूखौ मरै, रंगी और कुम्हार।
रंगी और कुम्हार चलै ना, हाथ करे रंग गार।
हाथ करे ना भि‍ड़े सखा बि‍न, कैसौ भी रंगदार।।15।।

केकी रोये देख पग, वंध्या बि‍ना जनाय।
पलक बि‍ना फुफकारे भुजग, कि‍तने ही बल खाय।
कि‍तने ही बल खाय, व्यथा ‘आकुल’ की जैसे।
सखा बि‍ना जग नीरस, अरन जलेबी जैसे।।16।।

‘आकुल’ दुखि‍या जब जगत, मूरख जो भी रोय।
हलुआ मि‍ले भाग अभागा, दलि‍या को भी खोय।
दलि‍या को भी खोय, रहै भूखौ कौ भूखौ।
सखा बि‍ना जीवन ऊसर, सूखौ कौ सूखौ।।17।।

गुरु बि‍न ज्ञान अधूरौ, जैसे बैयर बि‍ना कुटुंब।
खाली मन डोले इत उत ज्यौं, अधजल छलकै कुंभ।
अधजल छलकै कुंभ, भि‍गोवै कपड़ा लत्ता।
बि‍ना सखा दुनि‍यादारी ना, नि‍भै कभी अलबत्ता ।।18।।

मसजि‍द में अजान दै मुल्ला, मुर्गा पौ फटते ही।
सबकौ राम है रखवारौ, 'आकुल’ कौ सखा सनेही।
’आकुल’ कौ सखा सनेही, जो सुखदुख में साथ नि‍भावै।
ना रहीम, ना राम, सखा ही, बखत पै पार लगावै।।19।।

घृना-ईरसा-बैर जुगों से, रचते रहे इति‍हास।
का रामायण, महाभारत, का राजपाट कौ ह्रास।
राजपाट कौ ह्रास, सखाई से जीवि‍त इति‍हास।
जब तक सखा रहैगौ, बैरी कौ ही होगो नास।।20।।

धैर्य सि‍खावै सखा, क्रोध कूँ रोके हरदम।
कोई भी हो घाव, लगावै हरदम मरहम।
हरदम मरहम, ना उलाहना, छदम छलावा।
सखा साथ सूँ कभी नहीं, होवै पछतावा।।21।।

कनक सुलभ,धन सुलभ,सुलभ हैं समरथ कूँ बहुतेरे।
जर-जोरू-जमीन ने कीन्है, अनरथ भी बहुतेरे।
अनरथ भी बहुतेरे, अपने गुड़ चींटे से खावैं।
वि‍पदा में बस सखा साथ दै, बाकी पीठ बतावैं।।22।।

बात कहा जो सखा मि‍लै, ज्‍यों कृष्‍ण सुदामा।
पहुँचे शि‍खर भलै नि‍र्धन हो, सखा सुदामा।
सखा सुदामा पहुँचै, मि‍ल बंशीधर अश्रु बहाये।
बैर भाव सब मि‍टें, सखा जो गले लगाये।।23।।

बजै फूँक से शंख, फूँक से शंठ जगै।
घर फूँक तमाशा देखै सीधौ, चंट ठगै।
चंट ठगै, देखै खड़ौ, देवै लाख दुहाई।
बि‍ना सखा सब लूटें, जैसे बाट रुकाई।।24।।

नि‍र्मल हि‍य या लोक में, सरै सखा बि‍न नाहिं।
गूँछ रखै श्रीफल, पानीफल, शूल रखै तन माहिं।
शूल रखै तन माहिं, बैरि‍ कौ हाथ न जाय जरा सौ।
सखा संग संकट में, बाल न बाँकौ होय जरा सौ।।25।।

घर मुँडेर पै कागा बोलै, हर कोई दि‍य उड़ाय।
गावै कोयल डारन पीछै, सब कौ हि‍य हरसाय।
सब कौ हि‍य हरसाय, चतुर बड़बोला मान घटाय।
सखा होय मनसखा कभी ना, घर-घर जा बतराय।।26।।

बि‍ल्ली काटै रस्ता समझौ,रुक कर करौ वि‍चार।
जो उद्योग करौ सम्मति‍ सौं, ये ही है परि‍हार।
ये ही है परि‍हार, सखा सौं सम्मति‍ लैवै।
और करै वि‍सवास सीख,‘आकुल’ भी दैवै।।27।।

छि‍पौ हुऔ रसखान में, सखा सनेही खोज।
सबरस मि‍लैं कबहूँ ना जग में, सखा मि‍लै बस रोज।
सखा मि‍लै बस रोज, बि‍ना ना दुनि‍यादारी भावै।
पड़ै कुसंग, लड़ै घर में, व्‍यति‍‍पात, बि‍मारी लावै।।28।।

ये दुखि‍या बि‍न अरथ के, वो दुखि‍या बि‍न भूम।
मैं दुखि‍या बि‍न सखा सनेही, सबैं उड़ाऊँ धूम।
सबै उड़ाऊँ धूम, सभी हैं काँकर पाथर।
सखा मि‍लै बस धन्न ज्यूँ , भूखौ खाखर पाकर।।29।।

चींटी के जब पर आवैं और गीदड़ जब पुर जाय।
समझौ अंत नि‍कट है उनकौ, जीवन कब उड़ जाय।
जीवन कब उड़ जाय, सखा सूँ नेह ना राखै।
पड़ै अकेलौ घर बि‍खरै, ना कोऊ वाकै।।30।।

बि‍ल्ली‍ सोवै सोलह घंटे, औचक घात लगाय।
मूरख सोवै दि‍न में वाके, हाथ कछू न आय।
हाथ कछू न आय, सखा संग बीती न बतराय।
समय, सखा और श्री खोवै, हाथ मलै पछताय।।31।।

दूध, मलाई, दही, छाछ, माखन सौ सोना।
गो रस सौ ना नौ रस में रस, मानौ च्यों ना।
मानौ च्‍यौं ना स्‍वस्‍थ रहौ, हँसौ बता बत्तीसी।
सखा मि‍लैगौ हीरा पढ़ ल्यौ, सखा बत्तीसी।।32।।

3 अगस्त 2011

दो नवगीत

1-आती है दि‍न रात हवा
दीवाने की, मीठी यादें,
लाती है, दि‍न-रात हवा।
मेरे शहर से, चुपके-चुपके,
जाती है, दि‍न-रात हवा।
ति‍तली बन कर,
जुगनू बन कर,
आती है, दि‍न रात हवा।

सूना पड़ा है, शहर का कोना,
अब भी यादें करता है।
पत्ता-पत्ता, बूँटा-बूँटा,
अपनी बातें करता है।
पाती बन कर,
खुशबू बन कर,
आती है, दि‍न-रात हवा।

फि‍र महकेगा, कोना-कोना,
सपनों को संसार मि‍ला।
शहर की उस वीरान गली को
फि‍र से इक गुलज़ार मि‍ला।
रुन-झुन बन कर,
गुन-गुन बन कर,
आती है दि‍न रात हवा।।

मेहँदी लगी है, हलदी लगी है,
तुम आओगे ले बारात।
संगी साथी, सखी सहेली,
बन जाओगे ले कर हाथ।
मातुल बन कर,
बाबुल बन कर,
आती है दि‍न रात हवा।

2-यह शहर
ति‍नका ति‍नका जोड़ रहा
मानव यहाँ शाम-सहर।
आतंकी साये में पीता
हालाहल यह शहर।

ढूँढ़ रहा है वो कोना जहाँ
कुछ तो हो एकांत
है उधेड़बुन में हर कोई
पग-पग पर भयाक्रांत
सड़क और फुटपाथ सदा
सहते अति‍क्रम का बोझ
बि‍जली के तारों के झूले
करते तांडव रोज
संजाल बना जंजाल नगर का
कोलाहल यह शहर।

दि‍नकर ने चेहरे की रौनक
दौड़धूप ने अपनापन
लूटा है सबने मि‍लकर
मि‍ट्टी के माधो का धन
पर्णकुटी से गगनचुंबी का
अथक यात्रा सम्मोहन
पाँच सि‍तारा चकाचौंध ने
झौंक दि‍या सब मय धड़कन
हृदयहीन एकाकी का है
राजमहल यह शहर।