28 अगस्त 2011

सान्‍नि‍ध्‍य सेतु: कौन बनेगा करोड़पति‍ कार्यक्रम में 'बि‍ग बी' ने सुन...

सान्‍नि‍ध्‍य सेतु: कौन बनेगा करोड़पति‍ कार्यक्रम में 'बि‍ग बी' ने सुन...: कोटा : 15 अगस्त से सोनी टीवी पर प्रारम्भ हुए चर्चित कार्यक्रम “कौन बनेगा करोडपति” मेँ कार्यक्रम के स्टार संचालक अमिताभ बच्चन ने कोटा के कवि...

सान्‍नि‍ध्‍य सेतु: 'दृष्टि‍कोण' ने दूसरे वर्ष में प्रवेश कि‍या। पाँचव...

सान्‍नि‍ध्‍य सेतु: 'दृष्टि‍कोण' ने दूसरे वर्ष में प्रवेश कि‍या। पाँचव...: कहानी दर्द की मैं ज़ि‍न्दगी से क्या कहता।
यह दर्द उसने दि‍या है उसी से क्या कहता।
तमाम शहर में झूठों का राज़ था ‘अख्तर’,
मैं अपने ग़म क...

27 अगस्त 2011

काव्‍यजगत् के महासागर ब्‍लॉग कवि‍ताकोश की मुख्‍य टीम में भारी फेरबदल

24 अगस्त 2011 के कवि‍ताकोश समाचार व अन्‍य साहि‍त्‍यि‍क समाचारों से काव्‍यजगत् स्‍तब्‍ध है। हाल ही में कवि‍ता कोश के समाचार हूबहू प्रस्‍तुत हैं-
* श्री अनिल जनविजय का कविता कोश टीम से त्यागपत्र स्वीकार कर लिया गया है।
* नवनियुक्त संपादक श्री प्रेमचंद गांधी ने भी अपने पद से त्यागपत्र दे दिया है।
* इस समय कविता कोश संपादक का पद खाली है और संपादकीय कार्य कविता कोश टीम के अन्य सदस्य देखेंगे।
* संपादक पद के लिए उचित उम्मीदवार मिलने तक यह पद खाली रहेगा।
* नोहार, राजस्थान के रहने वाले आशीष पुरोहित को राजस्थानी विभाग में रचनाएँ जोड़ने के लिए कार्यकारिणी में शामिल किया गया है।
इस समाचार से ब्‍लॉग्‍स की दुनि‍या में एक हलचल अवश्‍य मचेगी। क्‍यों हुआ ? अनि‍ल जनवि‍जय की हाल ही में कवि‍ता कोश प्रथम पुरस्‍कारों में चर्चा हुई थी। राजस्‍थान के प्रति‍नि‍धि‍ साहि‍त्‍यकार श्री प्रेमचंद गाँधी ने भी त्‍यागपत्र दे दि‍या। पि‍छले दि‍नों साहि‍त्‍यि‍क पत्रि‍का 'ग़ज़ल क बहाने' के बंद होने की भी खबरें सुनाई दीं। 'गोलकोण्‍डा दर्पण' के भी अंक नहीं छपने से उसका पोस्‍टल रजि‍स्‍ट्रेशन खत्‍म होने से वह आर्थि‍क संकट से गुज़र रही है। इसके सम्‍पादक गोवि‍न्‍द अक्षय का मौन भी कष्‍टदायक है। खैर यदि‍ सकारात्‍मक सोचें तो आगे यदि‍ कवि‍ताकोश जैसे ब्‍लॉग्‍स पर संकट और अन्‍य साहि‍त्‍यि‍क पत्र पत्रि‍काओं की दयनीय स्‍थि‍ति‍ पर साहि‍त्‍यि‍कारों की दृष्‍टि‍ पड़ेगी तो अवश्‍य एक साहि‍त्‍यि‍क सोच पैदा होगी और इसके संवर्धन परि‍वर्धन के लि‍ए सापेक्ष प्रयास होंगे। ऐसी स्‍थि‍ति‍ में आवश्‍यक है कि‍ हम इनसे संवाद कायम करें और इसके वि‍कास में योगदान दें।- आकुल, सम्‍पादक साहि‍त्‍यसेतु

26 अगस्त 2011

भ्रष्‍टाचार खत्‍म करने को, जड़ तक पहुँचें हम

आओं हाथ हृदय पर रखकर, कुछ क्षण सोचें हम
थोड़े हम भी इसमें‍, जि‍म्मेदार हैं सोचें हम
फि‍र नि‍र्णय लें, पश्चात्ताप करें या प्रायश्चित या
भ्रष्टाचार खत्म करने को, जड़ तक पहुँचें हम

कहाँ नहीं है भ्रष्टाचार, मगर चुप रहते आये
आवश्यकता की खाति‍र हम, सब कुछ सहते आये
बढ़ा हौसला जि‍सका, उसने हर शै लाभ उठाया
क्या छोटे,क्या,बड़े सभी, इक रौ में बहते आये

भ्रष्टाचारी गि‍द्धों ने जब, अपनी आँख जमाई
अत्याचारों के खि‍लाफ, संतों ने अलख जगाई
पहुँची है हुंकार आज इक, जनक्रांति‍ की घर-घर
क्या बच्चे, क्या, बूढ़े, तरुणों ने फि‍र ली अँगड़ाई

लगता है अब आएगा, इस मुहि‍म नतीजा कोई
देंगे यदि‍ देनी ही पड़े अब‍, अग्नि‍ परीक्षा कोई
रक्तहीन क्रांति‍ की पहल, करी है हमने यारो,
हम कायर हैं, इस भ्रम में ना, रहे ख़लीफ़ा कोई

पहन मुखौटा करते जो, अपमान राष्ट्र पर्वों का
शर्मि‍न्दा करते हैं, संस्कृति‍, उत्सव औ धर्मों का
नहीं हुए हम जागरूक, सि‍र कफ़न बाँधना होगा
और हि‍साब देना होगा, सबको अपने कर्मों का

आओ इस अनमोल समय का, मि‍ल कर लाभ उठायें
कर गुज़रें कुछ संकट में अब, मि‍ल कर हाथ उठायें
राष्ट्र छवि‍ बि‍गड़ी है, भ्रष्टाचार खत्म हो जड़ से
एक बनें मि‍ल कर, इक जुट हों, इक आवाज़ उठायें

वंदेमातरम् गायें, सत्यमेव जयते दोहरायें
सारे जहाँ से अच्छा हि‍न्दोस्ताँ हमारा गायें
राष्ट्रगान गूँजे घर आँगन, वैष्णव जनतो गूँजे
संवि‍धान पर उठे न उँगली, ध्‍वज की शान बढ़ायें

आओ अंतर्मन के, तूफाँ रोकें, सोचें हम
थोड़े हम भी इसमें‍, जि‍म्मेदार हैं, सोचें हम
पीछे मुड़ कर ना देखें, संकल्प उठायें सब मि‍ल
भ्रष्टाचार खत्म करने को जड़ तक पहुँचें हम

15 अगस्त 2011

मंगलमय हो स्‍वतंत्रता



1
मंगलमय हो स्वतंत्रता का स्वर्णि‍म पावन पर्व
जन-जन को पुलकि‍त कर दे ऐसा मनभावन पर्व
नये जोश और नई उमंगों का प्रति‍पादन पर्व
अमर शहीदों की स्मृति‍ का यह अभि‍वादन पर्व
मंगलमय हो-------------
वीर सपूत, हुतात्माओं का गुणगान करें हम
योगदान करने वालों का दि‍नभर घ्यान करें हम
जि‍नसे है स्वाधीन धरा उनका जयगान करें हम
नेहरू, गाँधी, पाल, ति‍लक का यह पारायण पर्व
मंगलमय हो-------------
अनुशीलन, मंथन, चिंतन कर दृढ़ संकल्पित हों
मार्ग बहुत है कण्ट-कीर्ण ना पथ परि‍वर्तित हों
परि‍वीक्षण कर कुछ करने आगे अग्रेषि‍त हों
नि‍:स्वार्थ, दि‍लेर युवाओं का यह अन्न प्राशन पर्व
मंगलमय हो------------
आज पुन: इक प्राणप्रति‍ष्ठा, का हम करें आचमन
अवगुंठन अवचेतन मन से हट कर करें आचरण
घोर समस्याओं का ही अब करना है नि‍स्तारण
अक्षुण्‍ण रहे सम्यता-संस्कृति‍ का यह मणि‍कांचन पर्व
मंगलमय हो------------
आओ हम ध्वज का वंदन कर राष्ट्रगान गायें।
आगम का हम करें सु‍स्वा‍गत कीर्ति‍गान गायें।
सब मि‍ल कर समवेत स्वरों में देशगान गायें।
गंगा जल से अब वसुधा का हो प्रक्षालन पर्व।
मंगलमय हो------------



2
परि‍वर्तन की एक नई आधारशि‍ला रखना है।
न्‍याय मि‍ले बस इसीलि‍ए आकाश हि‍ला रखना है।
द्रवि‍त हृदय में मधुमय इक गु़लजार खि‍ला रखना है।
हर दम संकट संघर्षों में हाथ मि‍ला रखना है।

अमर शहीदों की शहादत का इंडि‍या गेट गवाह है।
ग़दर वीर जब बि‍फरे अंग्रेजों का हश्र गवाह है।
स्‍वाह हुए कुल के कुल अक्षोहि‍णी कुरुक्षेत्र गवाह है।
तब से जो भी हुआ आज तक सब इति‍हास गवाह है।

दो लफ्जों में उत्‍तर ढूँढ़े हो स्वतंत्र क्या पाया?
हर कूचे और गली गली में क्यूँ सन्नाटा छाया?
जात पाँत का भेद मि‍टा क्या राम राज्य है आया?
रख कर मुँह को बंद जी रहे क्यों आतंकी साया?

ग्लोबल वार्मिंग, भ्रष्टाचार, महँगाई, प्रदूषण, आबादी।
याद रखेगा हर प्राणी अब जल थल नभ की बरबादी।
रहे न हम गर जागरूक पछतायेंगे जी आजादी।
हर हाल न मानव मूल्य सहेज सके तो कैसी आज़ादी।

भाग्य वि‍धाता, सत्यमेव जयते, जन गण मन गाते।
रस्म रि‍वाज़ नि‍भाते और हर उत्सव पर्व मनाते।
तब से भारत माता की जय कह कर जोश बढ़ाते।

मेरा भारत है महान् नहीं कहते कभी अघाते।
राम रहीम कबीर सूर की वाणी को दोहराते।

महका दो अपनी धरती को हरा भरा रखना है।
हार नहीं हर हाल प्रकृति‍ को अब सहेज रखना है।
न्याय मि‍ले बस इसीलि‍ए आकाश हि‍ला रखना है।

परि‍वर्तन की एक नई आधारशि‍ला रखना है।



13 अगस्त 2011

आज है राखी का त्‍योहार


Raksha Bandhan Cards

Free Greetings

आज है राखी का त्योहार
भाई को बहि‍ना का उपहार
कच्चे धागे में लि‍पटा है
एक अनोखा प्यार।
आज है राखी का त्योहार--------

साथ खेल पढ़ बड़े हुए तब
अपने पग पर खड़े हुए जब
रि‍श्तों की तासीर बताई
घर की इज्जत है समझाई
मात-पि‍ता की प्रति‍मूरत है
बहि‍न भाई की जो सूरत है
ममता का सागर लहराये
बाहों में संसार समाये
एक पेट जाये हैं दोनो
एक खून एक नार।
आज है राखी का त्योहार------------

संस्कार देने होंगे अब
रि‍श्ते दृढ़ करने होंगे अब
बचपन से अपनापन जोड़ें
घर से कभी न दामन तोड़ें
घर घर में रि‍श्ते हों पोषि‍त
नारी कही नहीं हो शोषि‍त
माँ बहु बेटी बहि‍न बहार
घर में सुख की बहे बयार
नैहर और ससुराल बनेंगे
स्वर्ग सेतु और द्वार।
आज है राखी का त्योहार---------

बहि‍न भाई के इस बंधन में
पड़े न कभी दरार।
कच्चे धागे में लि‍पटा है
एक अनोखा प्यार।
आज है राखी का त्योहार।

-रक्षाबन्धन पर

11 अगस्त 2011

याद बहुत ही आती है तू

याद बहुत ही आती है तू,जब से हुई पराई।
कोयल सी कुहका करती थी, घर में सोन चि‍राई।
अनुभव हुआ एक दि‍न तेरी, जब हो गई वि‍दाई।
अमरबेल सी पाली थी, इक दि‍न में हुई पराई।
परि‍यों सी प्यारी गुड़ि‍या को जा वि‍देश परणाई।।
याद बहुत ही आती है तू---------

लाख प्रयास कि‍ये समझाया, मन को कि‍सी तरह।
बरस न जायें बहलाया, दृग घन को कि‍सी तरह।
वि‍दा समय बेटी को हमने, कुल की रीत सि‍खाई।
दोनों घर की लाज रहे बस, तेरी सुनें बड़ाई।
बि‍दा कि‍या मन मन घन बरसे, फूटी कंठ रुलाई।।
याद बहुत ही आती है तू---------

कृष्ण काल का मोक्ष हुआ, ऐसा अनुतोष दि‍या।
वंश बेल की नींव डाल, अप्रति‍म परि‍तोष दि‍या।
कुल रोशन कर घर-घर, भूरि‍-भूरि‍ प्रशंसा पाई।
घर की डोर सम्हाली, कुल मर्यादा प्रीत बढ़ाई।
मेरे घर का मान बढ़ा, तू रहे सदैव सुखदाई।।
याद बहुत ही आती है तू--------------

इक-इक युग सा बीता है, हर साल परायों जैसा।
मरु में मृगमरीचि‍का सा, सहरा में सायों जैसा।
ज्यूँ-ज्यूँ दि‍न बीते हैं, बूढ़ी आँखें हैं पथराई।
कौन करेगा भाई की, शादी में बाट रुकाई।
अब घर आयें बच्चोंय के संग बेटी और जमाई।।
याद बहुत ही आती है तू--------------

सूद सहि‍त खुशि‍याँ बाँटूँगा, तू आना बन ठन कर।
भाई की शादी में संग नचना, गाना मन भर कर।
तुम लोगों से ही तो लेगा वो आशीष बधाई।
जीजाजी से ही तो बँधवायेगा पगड़ी टाई।
मेरे मन की अभि‍लाषा की तब होगी भरपाई।।
याद बहुत ही आती है तू--------------

परि‍यों सी प्यारी गुड़ि‍या को जा वि‍देश परणाई।।
याद बहुत ही आती है तू--------------

-पुत्री दि‍वस पर (11-08-2011)

7 अगस्त 2011

सखा बत्तीसी


(चुटकुला साहि‍त्यिक उछलकूद की एक मोहक शैली है और छंद प्रदेश की धरा से जुड़ा लोक साहि‍त्य है। कहावतें जहाँ सामाजि‍क परि‍वेश में संस्कारों का प्रति‍नि‍धि‍त्व करती हैं, वहीं छंदों के माध्यम से कवि‍ द्वारा कही गई कोई भी रचना उसकी रस प्रधानता को एक सामाजि‍क स्तर प्रदान करती है। उसी क्रम में ब्रज भाषा और रौला छंद में नि‍बद्ध ‘सखा बत्तीसी’संस्कारों के प्रदूषण को छाँटती हुई एक सांस्कृति‍क चुटकी है,जि‍सकी आज महती आवश्‍यकता है। आज मि‍त्र दि‍वस है। मेरी पुस्‍तक 'जीवन की गूँज'से सखा बत्‍तीसी का आनंद उठायें। सभी पाठक मित्रों को 'मि‍त्र दि‍वस' की बहुत बहुत शुभकामनायें।-आकुल)

गूलर भुनगा साथ ज्यौं, भौंरा कमल समाय।
मृत्युपर्यंत साथ दै, वो ही सखा कहाय।
वो ही सखा कहाय, साथ हो सच्च सरीखौ।
स्वाद कह्यो ना जाय, गरल मीठौ कै फीकौ।।1।।

हरौ पान चूना चढ़ै, जीभ करै नहीं लाल।
चढ़ै कपि‍त्थ सखा संग ऐसौ, करै करेजा लाल।
करै करेजा लाल, सखा की महि‍मा ऐसी।
दधि‍ माखन हि‍य रखै, दूध की गरि‍मा जैसी।।2।।

दूध फटै छैना बनै, दही जमै जब दूध।
अकसमात जब बनै, सखाई माँगे नहीं सबूत।
माँगे नहीं सबूत, हाल हर देवै हत्था।
मोम बनै बि‍न शहद, मुहर को जैसे छत्ता।।।3।।

‘आकुल’गुन औगुन ना परखै,काल सखा और सर्प।
आँख खुली रक्खै, ना रक्खै संग कोई भी दर्प।
संग कोई भी दर्प, काल की घड़ी वि‍दारक।
सखा रहै बस संग, सर्प को दंश सँहारक।।4।।

परि‍चै तो राखौ घनौ, सखा रखौ कछु एक।
कौन घड़ी आ पड़ै काज तुम, मि‍लौ सबन सूँ नेक।
मि‍लौ सबन सूँ नेक, सखा सूँ प्रीत बढ़ाय।
कस्तूरी मृग ज्‍यौं रि‍सै, जहाँ पहुँचै महकाय।।5।।

घी लि‍पटै ऊपर चढ़ै, तेल चढ़ै तह ताहिं।
जग माया ऊपर दि‍खे, मातु सखा मन माहिं।
मातु सखा मन माहिं, प्रेम कछु ऐसौ राखैं।
तन कठोर मन नि‍र्मल, श्रीफल जैसौ राखैं।।6।।

हंस चुगे मोती, चातक अंगार ही खावै।
सखा छोड़ मनसखा कभी, गंगा नहीं न्हावै।
नहीं न्हानवै वनराज, भलै जंगल कौ राजा।
सखा बि‍ना बारात सजै ना, घोड़ी बाजा।।7।।

सखा संग ऐसौ जैसे द्रुम नीम तमाल।
कड़वौ कै औषध हो, वाकौ मन वि‍शाल।
मन वि‍शाल हो सखा मि‍लै, बस ऐसौ ‘आकुल’।
संग छोड़ कै जाय तौ, घर-बर सब व्याकुल।।8।।

नीर-क्षीर-वि‍वेक और मणि‍कांचन कौ योग।
संग सखा की बात कहा, जो ऐसौ हो संयोग।
ऐसौ हो संयोग कि,‍घी से खि‍चरी नि‍खरै।
नाम सखा कौ होय, मनसखा भी ना बि‍खरै।।9।।

चून चढै़ गावै मृदंग, चून बि‍ना गुन जान।
सखा साथ है तौ बसंत, सखा बि‍ना सुनसान।
सखा बि‍ना सुनसान, रात ज्यौं बि‍ना सि‍तारे।
बि‍ना चाँदनी चाँद, बि‍ना बदरी के धारे।।10।।

उलट तवा नाचै यदि,‍चि‍ठि‍या आवै द्वार।
पलट वार ना करै सखाई, ति‍रि‍या जावै हार।
ति‍रि‍या जावै हार, सखा ना फूट करावै।
ना तंतर-मंतर-मारक, ना मूठ धरावै।।11।।

दाँत भलै बत्तीस, जीभ इतरावै ऐसी।
बि‍ना अस्त्र के लड़ै, करै ऐसी की तैसी।
करे ऐसी की तैसी, सखा की थाती ऐसी।
दाँत बि‍ना भी जीभ चलै, वैसी की वैसी।।12।।

जलै दीप कौ तेल, जलै बाती की लौ भी।
मोती बि‍ना बनै कठोर, हि‍य सीपी कौ भी।
सीपी कौ भी मोल, कछू ना बि‍ना रसोपल।
सखा बि‍ना जग ऐसौ, जैसे नार बुझौवल।।13।।

रसना बि‍न ना रस, ना बि‍ना सखा रसखान।
छप्पन भोग करै का रसना, बि‍ना सखा का मान।
बि‍ना सखा का मान, भले हौं भाग हमारे।
करम बुलावैं नेक सखा कूँ, अपने द्वारे।।14।।

हाथ करै ले मोल लड़ाई, बंदर और गमार।
शरम करै भूखौ मरै, रंगी और कुम्हार।
रंगी और कुम्हार चलै ना, हाथ करे रंग गार।
हाथ करे ना भि‍ड़े सखा बि‍न, कैसौ भी रंगदार।।15।।

केकी रोये देख पग, वंध्या बि‍ना जनाय।
पलक बि‍ना फुफकारे भुजग, कि‍तने ही बल खाय।
कि‍तने ही बल खाय, व्यथा ‘आकुल’ की जैसे।
सखा बि‍ना जग नीरस, अरन जलेबी जैसे।।16।।

‘आकुल’ दुखि‍या जब जगत, मूरख जो भी रोय।
हलुआ मि‍ले भाग अभागा, दलि‍या को भी खोय।
दलि‍या को भी खोय, रहै भूखौ कौ भूखौ।
सखा बि‍ना जीवन ऊसर, सूखौ कौ सूखौ।।17।।

गुरु बि‍न ज्ञान अधूरौ, जैसे बैयर बि‍ना कुटुंब।
खाली मन डोले इत उत ज्यौं, अधजल छलकै कुंभ।
अधजल छलकै कुंभ, भि‍गोवै कपड़ा लत्ता।
बि‍ना सखा दुनि‍यादारी ना, नि‍भै कभी अलबत्ता ।।18।।

मसजि‍द में अजान दै मुल्ला, मुर्गा पौ फटते ही।
सबकौ राम है रखवारौ, 'आकुल’ कौ सखा सनेही।
’आकुल’ कौ सखा सनेही, जो सुखदुख में साथ नि‍भावै।
ना रहीम, ना राम, सखा ही, बखत पै पार लगावै।।19।।

घृना-ईरसा-बैर जुगों से, रचते रहे इति‍हास।
का रामायण, महाभारत, का राजपाट कौ ह्रास।
राजपाट कौ ह्रास, सखाई से जीवि‍त इति‍हास।
जब तक सखा रहैगौ, बैरी कौ ही होगो नास।।20।।

धैर्य सि‍खावै सखा, क्रोध कूँ रोके हरदम।
कोई भी हो घाव, लगावै हरदम मरहम।
हरदम मरहम, ना उलाहना, छदम छलावा।
सखा साथ सूँ कभी नहीं, होवै पछतावा।।21।।

कनक सुलभ,धन सुलभ,सुलभ हैं समरथ कूँ बहुतेरे।
जर-जोरू-जमीन ने कीन्है, अनरथ भी बहुतेरे।
अनरथ भी बहुतेरे, अपने गुड़ चींटे से खावैं।
वि‍पदा में बस सखा साथ दै, बाकी पीठ बतावैं।।22।।

बात कहा जो सखा मि‍लै, ज्‍यों कृष्‍ण सुदामा।
पहुँचे शि‍खर भलै नि‍र्धन हो, सखा सुदामा।
सखा सुदामा पहुँचै, मि‍ल बंशीधर अश्रु बहाये।
बैर भाव सब मि‍टें, सखा जो गले लगाये।।23।।

बजै फूँक से शंख, फूँक से शंठ जगै।
घर फूँक तमाशा देखै सीधौ, चंट ठगै।
चंट ठगै, देखै खड़ौ, देवै लाख दुहाई।
बि‍ना सखा सब लूटें, जैसे बाट रुकाई।।24।।

नि‍र्मल हि‍य या लोक में, सरै सखा बि‍न नाहिं।
गूँछ रखै श्रीफल, पानीफल, शूल रखै तन माहिं।
शूल रखै तन माहिं, बैरि‍ कौ हाथ न जाय जरा सौ।
सखा संग संकट में, बाल न बाँकौ होय जरा सौ।।25।।

घर मुँडेर पै कागा बोलै, हर कोई दि‍य उड़ाय।
गावै कोयल डारन पीछै, सब कौ हि‍य हरसाय।
सब कौ हि‍य हरसाय, चतुर बड़बोला मान घटाय।
सखा होय मनसखा कभी ना, घर-घर जा बतराय।।26।।

बि‍ल्ली काटै रस्ता समझौ,रुक कर करौ वि‍चार।
जो उद्योग करौ सम्मति‍ सौं, ये ही है परि‍हार।
ये ही है परि‍हार, सखा सौं सम्मति‍ लैवै।
और करै वि‍सवास सीख,‘आकुल’ भी दैवै।।27।।

छि‍पौ हुऔ रसखान में, सखा सनेही खोज।
सबरस मि‍लैं कबहूँ ना जग में, सखा मि‍लै बस रोज।
सखा मि‍लै बस रोज, बि‍ना ना दुनि‍यादारी भावै।
पड़ै कुसंग, लड़ै घर में, व्‍यति‍‍पात, बि‍मारी लावै।।28।।

ये दुखि‍या बि‍न अरथ के, वो दुखि‍या बि‍न भूम।
मैं दुखि‍या बि‍न सखा सनेही, सबैं उड़ाऊँ धूम।
सबै उड़ाऊँ धूम, सभी हैं काँकर पाथर।
सखा मि‍लै बस धन्न ज्यूँ , भूखौ खाखर पाकर।।29।।

चींटी के जब पर आवैं और गीदड़ जब पुर जाय।
समझौ अंत नि‍कट है उनकौ, जीवन कब उड़ जाय।
जीवन कब उड़ जाय, सखा सूँ नेह ना राखै।
पड़ै अकेलौ घर बि‍खरै, ना कोऊ वाकै।।30।।

बि‍ल्ली‍ सोवै सोलह घंटे, औचक घात लगाय।
मूरख सोवै दि‍न में वाके, हाथ कछू न आय।
हाथ कछू न आय, सखा संग बीती न बतराय।
समय, सखा और श्री खोवै, हाथ मलै पछताय।।31।।

दूध, मलाई, दही, छाछ, माखन सौ सोना।
गो रस सौ ना नौ रस में रस, मानौ च्यों ना।
मानौ च्‍यौं ना स्‍वस्‍थ रहौ, हँसौ बता बत्तीसी।
सखा मि‍लैगौ हीरा पढ़ ल्यौ, सखा बत्तीसी।।32।।

3 अगस्त 2011

दो नवगीत

1-आती है दि‍न रात हवा
दीवाने की, मीठी यादें,
लाती है, दि‍न-रात हवा।
मेरे शहर से, चुपके-चुपके,
जाती है, दि‍न-रात हवा।
ति‍तली बन कर,
जुगनू बन कर,
आती है, दि‍न रात हवा।

सूना पड़ा है, शहर का कोना,
अब भी यादें करता है।
पत्ता-पत्ता, बूँटा-बूँटा,
अपनी बातें करता है।
पाती बन कर,
खुशबू बन कर,
आती है, दि‍न-रात हवा।

फि‍र महकेगा, कोना-कोना,
सपनों को संसार मि‍ला।
शहर की उस वीरान गली को
फि‍र से इक गुलज़ार मि‍ला।
रुन-झुन बन कर,
गुन-गुन बन कर,
आती है दि‍न रात हवा।।

मेहँदी लगी है, हलदी लगी है,
तुम आओगे ले बारात।
संगी साथी, सखी सहेली,
बन जाओगे ले कर हाथ।
मातुल बन कर,
बाबुल बन कर,
आती है दि‍न रात हवा।

2-यह शहर
ति‍नका ति‍नका जोड़ रहा
मानव यहाँ शाम-सहर।
आतंकी साये में पीता
हालाहल यह शहर।

ढूँढ़ रहा है वो कोना जहाँ
कुछ तो हो एकांत
है उधेड़बुन में हर कोई
पग-पग पर भयाक्रांत
सड़क और फुटपाथ सदा
सहते अति‍क्रम का बोझ
बि‍जली के तारों के झूले
करते तांडव रोज
संजाल बना जंजाल नगर का
कोलाहल यह शहर।

दि‍नकर ने चेहरे की रौनक
दौड़धूप ने अपनापन
लूटा है सबने मि‍लकर
मि‍ट्टी के माधो का धन
पर्णकुटी से गगनचुंबी का
अथक यात्रा सम्मोहन
पाँच सि‍तारा चकाचौंध ने
झौंक दि‍या सब मय धड़कन
हृदयहीन एकाकी का है
राजमहल यह शहर।