23 दिसंबर 2012

समय का पहिया चलता जाये


जीवन का संगीत सुनाये
समय का पहिया चलता जाये।

उल्‍लासों से भरे हुए मन
कुछ करने को उत्‍साहित मन
उच्‍छवासों को कोने कर
कुछ पाने को हैं विचलित मन
प्रतिस्‍पर्द्धा के मैराथन
जो दौड़े वह मंज़िल पाये।।

सभी मौसमी दिन पतझड़ से
निष्‍ठायें अब हिलती जड़ से
महँगाई महामारी फैली
आती आवाज़ें बीहड़ से
उसी धुरी पर चलते चलते,
वही वक्‍़त ना फि‍र आ जाये।।

रिश्‍तों को अब लज्जित करती
परम्‍परायें गिरती पड़ती
धर्माचरण लगा बढ़ने तो
क्‍यूँ नारी का मान न करती
देख देख छल कपट कहीं अब
मौन धरा का धैर्य न जाये।।

पारदर्शिता, सुनवाई
रीकॉल, सूचना का अधिकार
जन-जाग्रति कितनी आई है
समय बतायेगा इस बार
सबको होना होगा इकजुट
अधजल गगरी छलकत जाये।।

(18 दिसम्‍बर को 'नवगीत की पाठशाला' में प्रकाशित)

10 दिसंबर 2012

अब तो अब-हवा पतझड़ सी

अब तो आब हवा पतझड़ सी
मौसम भी दो चार बहें।

सड़कों के चेहरे पर लिखते
कदमों के आहत मनसूबे
फुटपाथों की उखड़ी साँसें
कहते थकतीं रोज़ अजूबे
अतिथि‍ बनकर आते हैं सुख
दुख बेदम दिन-रात सहें।

मेरी आँखें पथराई
उसकी आँखों से खून रिसे
चक्की के पाटों में फँस कर
मूढ़ उमरिया रोज़ पिसे
इंसाँ बदतर हालातों में
कैसे मन-मन मार रहें।

जुगनू सी खुशियाँ रातों में
बुनती मधुबन के सपने
दिन में उल्लासों की नियति
चुनती अनमन से अपने
चिथड़े चिथड़े हुई चुनरिया
किस्से कितनी बार कहें

दावानल सी हुई ज़िन्दगी
बड़वानल सी आशायें
जठरानल की द्वन्द्व पिपासा
कहीं कहर ना बरपायें
रीति रिवाज, परम्पराओं की
बिखरी बिखरी आज तहें

24 नवंबर 2012

देव जगे हैं

देव जगे हैं, देव दीपावली मनायें।
प्रेम, स्‍नेह, सौहार्द भाव से दीप जलायें।
घर-घर हो प्रकाश का अमित उजाला,
दें आशीष देव आयें घर, वंदनवार सजायें।।

फुलझड़ियाँ, अनार, पटाखों से जगमग हो।
दूर प्रदूषण हो, परिवार कभी ना, अलग थलग हो।
आज जरूरत है महती, ह‍म सब जागरूक हों,
महँगाई का दौर है, आवश्‍यकता लगभग हो।
सर्वोपरि है, प्रगति देश की, सब जुट जायें।।

प्रेम, स्‍नेह, सौहार्द भाव से दीप जलायें।
देव जगे हैं, देव दीपावली मनायें।।

जनसंख्‍या विस्‍फोट रुके, खुलें विकास की राहें।
ना मतभेद, न ही मनभेद हों, खुली हों सबकी बाहें।
नित्‍य मने उत्‍सव, त्‍योहार, दिवाली घर-घर,
वसुधैवकुटुम्‍बकम् के दर्शन हों, सभी सराहें।
नफ़रत की चौखट पर, सबको गले लगायें।।

प्रेम, स्‍नेह, सौहार्द भाव से दीप जलायें।
देव जगे हैं, देव दीपावली मनायें।।

18 नवंबर 2012

पुत्र की सफलता पर कुण्‍डलिया

            कुण्‍डलिया 
Peeyush Bhatt


तुमने बेटा कर दिया, सपना इक साकार।

बन कर डॉक्‍टर रूस से, लौटे ले उपहार।।

लौटे ले उपहार, पास की एमसिआई।

दीवाली इस बार, सुखद इस घर में आई।।

कह ‘आकुल’ कविराय, कृपा ऐसी की प्रभु ने।

मात-पिता की साख, बढ़ाई दुगनी तुमने।।


बेटे द्वारा रूस से डॉक्‍टर बन कर लौटने और प्रथम प्रयास में ही एम0सी0आई0 की FMGE की परीक्षा उत्‍तीर्ण कर अनमोल उपहार दिया है। इस अवसर भावोद्गार। 

13 नवंबर 2012

दीप जले हैं जब जब छँट गये अँधेरे



दीप जले हैं जब जब
छँट गये अँधेरे।

अवसर की चौखट पर
खुशियाँ सदा मनायें
बुझी हुई आशाओं के
नवदीप जलायें
हाथ धरे बैठे
ढहते हैं स्‍वर्ण घरोंदे
सौरभ के पदचिह्नों पर
जीवन महकायें

कदम बढे हैं जब जब
छँट गये अँधेरे।

कलघोषों के बीच
आहुति देते जायें
यज्ञ रहे प्रज्‍ज्‍वलित
सिद्ध हों सभी ॠचायें
पथभ्रष्‍टों की प्रगति के
प्रतिमान छलावे
कर्मक्षेत्र में जगती रहतीं
सभी दिशायें

अडिग रहे हैं जब जब
छँट गये अँधेरे

आतिशबाजी से मन के
मनुहार जताते जायें
घर घर देहरी आँगन
दीपाधार सजाते जायें
जहाँ अँधेरे भाग्‍य बुझाते
सूने रहते सपने
फुलझड़ियों से गलियों में
गुलज़ार बनाते जायें

हाथ मिले हैं जब जब
छँट गये अँधेरे।

मन मंजूषा में गोखरु के
मनके नहीं पिरोयें
गढ़ के कंगूरों में अब
संगीनें नहीं पिरोयें
विश्‍वासों के पतझड़ में
शिकवा क्‍या फूलों से
तुलसी माला में गुंजा के
मनके कभी पिरोयें

संकल्‍प लिये हैं जब जब
छँट गये अँधेरे।

12 नवंबर 2012

घर घर दीप जलाइये

-दोहे-

लाये घर दीपावली, सुख समृद्धि उजास।
कृपा करे लक्ष्‍मी सदा, भरा रहे आवास।।1।।

लक्ष्‍मी पूजन कीजिए, सुख वैभव घर आय।
घर आँगन दीपक धरें, अंधकार हर जाय।।2।।

रोशन हो घर आँगना, छत दहलीज मुँडेर।
घर घर दीप जलाइये, क्‍या अपने क्‍या गैर।।3।।

मुँह मीठा करवाइये, गले मिलो दिल खोल।
नये वसन धारण करो, यह उत्‍सव अनमोल।।4।।

फि‍र लौटे दीपावली, लेकर यह संदेश।
रहे प्रदूषण मुक्‍त तब, अपना भारत देश।।5।।

11 नवंबर 2012

धनतेरस


कुण्‍डलिया
योग बना इस बार है, धनतेरस का पर्व।
मना रहे सब संग हैं, शिक्षा दिवस सगर्व।।
शिक्षा दिवस सगर्व, अनोखा उत्‍सव आया।
श्रीगणेश के संग, शारदा लक्ष्‍मी लाया।।
कह ‘आकुल’ कविराय, यह मणिकांचन संयोग।
शिक्षा संग सुयोग, है धनतेरस का योग।।  

10 नवंबर 2012

भक्ति‍ में शक्ति‍

मन भज राम राम राम, सीता राम राम राम। छूटेगा मैली काया से, पहुँचेगा सुख धाम।।
राधे श्‍याम श्‍याम श्‍याम, सीता राम राम राम। मन भज राम राम राम, सीता राम राम राम।।
तन की चिन्‍ता, धन की चिन्‍ता, अब तक छोड़ सका ना। 
घर की चिन्‍ता, माया से तू, मन को मोड़ सका ना।
क्‍या पाया, क्‍या खोया, जाना, फि‍र भी ना पहचाना।
उलझा रहा परायों में, ना, अपनों का मन जाना।
अब तो मन उलझाले, ले ले, दो क्षण प्रभु का नाम।।
राधे श्‍याम श्‍याम श्‍याम, सीता राम राम राम। मन भज राम राम राम, सीता राम राम राम।।
काम, क्रोध, मद, लोभ, वासना, विषय, भोग सब पाये।
कुछ भी जाये साथ न तेरे, फि‍र क्‍यूँ मोह बढ़ाये।
मति बिगड़ी, तू बिगड़ा, बिगड़े अपने, हुए पराये।
जैसी करनी, वैसी भरनी, अब तू क्‍यों पछताये।
सुमिरन कर ले, अब तक भूला, ले ले हरि का नाम।।
राधे श्‍याम श्‍याम श्‍याम, सीता राम राम राम। मन भज राम राम राम, सीता राम राम राम।।
कल पर ही छोड़ा था सब कुछ, आज भी कल की पड़ी है।
कल कल करते गई उमरिया, मति भी अब बिगड़ी है।
कल की छाया आज दिखी है, साँस भी अब उखड़ी है।
जीवन का विश्‍वास डिगा है, कैसी विकट घड़ी है।
ऐसी राह दिखा मन प्रभु के, चरणों में हो शाम।।
राधे श्‍याम श्‍याम श्‍याम, सीता राम राम राम। मन भज राम राम राम, सीता राम राम राम।।



8 नवंबर 2012

मेले


मेले खुशियों का जहान होते हैं
ज़मीं पे जन्‍नत का गुमान होते हैं
मिलते हैं अजनबी भी मुहब्‍बत से यिहाँ
इसमें कोई भी नहीं बदज़बान होते हैं
नाज़नीनों की शोख अदाओं के जल्‍वे
गुलबाज़ों के क़सीदों के मीज़ान होते हैं
छू छू के निकलते हैं सभी एक दूजे से जैसे
पर्व पर तीरथ में गंगा स्‍नान होते है
तहज़ीब, नेक इरादे, अम्‍नोवफ़ा के देते हैं पैग़ाम
जो जिएँ दूसरों के लिए वही इनसान होते हैं
'आकुल' मनते रहें उर्स, पर्व, त्‍योहार, मेले सदा
ऐसे जश्‍ने अज़ीमों से देश महान् होते हैं


जन्‍नत- स्‍वर्ग, तहज़ीब- सभ्‍यता, संस्‍कृति,  नाज़नीन- सुंदरी,
गुलबाज़ों- सुंदरियों पर फूल फैंकने वाले (आशिक़),  मीज़ान- मस्जिद में अजान की जगह,  
क़सीदों- प्रशंसा में कहे गये शब्‍द, एक प्रकार की नज्‍़म, जश्‍ने अज़ीमों- बड़े पर्व या त्‍योहार

26 अक्तूबर 2012

कुण्‍डलिया


सुनीति 

1- 
कम खा ग़म खा देख सब, तोल मोल के बोल।
मन की कर सुन सभी की, सबकी खोल न पोल।
सबकी खोल न पोल, हृदय में भेद छिपाय।
सब से रख पहचान, कौन कब काम आ जाय।
कह ’आकुल’ कविराय, वही इनसान सफलतम।
करे समय पर काम, करे व्‍यय भी कम से कम।।
2-
दानी दुश्‍मन हो भले, मूरख मित्र न होय।
संकट में पड़ गाँठ की, धन दौलत भी खोय।।
धन दौलत भी खोय, जाय सब मान प्रतिष्‍ठा।
सावधान शत्रु से, बस रखना न निष्‍ठा।।
कह ‘आकुल’ कविराय, मित्र हो तो हो जानी।
भूल शत्रुता बने, मित्र दुश्‍मन भी दानी।

भ्रष्‍टाचार 
1-

भ्रष्‍टाचारी की सदा होती आँखें तेज।
दीर्घदृष्टि वाचाल पटु, श्रीमत रखें सहेज।।
श्रीमत रखें सहेज, काम मन सा करवायें।
श्री के लिए सजग, शेष पर धता बतायें।।
कह ‘आकुल’ कविराय, असच है सच पर भारी।
जब तक जनता मौन, पलेंगे भ्रष्‍टाचारी।।
2-
गठबंधन सरकार में, मोल भाव का खेल।
इनके बिना चले नहीं, राजकाज की रेल।।
राजकाज की रेल, चले पटरी पर ऐसे।
मोल भाव का ईंधन, लेकर जैसे तैसे।।
कह ‘आकुल’ कविराय, समर्थन का अनुबंधन।
चले नहीं सरकार, रहे जो ना गठबंधन।।

24 अक्तूबर 2012

दशहरा


हुआ राम रावण रण मध्‍य भिड़े राक्षस मर्कट बल सारे।
कट कट शीश दशानन के जब उग आए दशकंधर सारे।।1।

पहर व्‍यतीत भई युक्ति सब व्‍यर्थ हुई तब राम दुलारे।
जा ढिंग रावण अनुज भेद कहि लंकापति तब राम सँहारे।।2।।

घर भेदी जब लंका ढाये कौन करे तब राज कुशलतम।
जाओ राम वचन कर पूरे तुमसे हुई गति मम उत्‍तम।।3।।

अंत समय करि सैन लखन कहि राजनीति सीखो रावण से।
आज न कल होगा इन जैसा पंडित इस जग में कारण से।।4।।

अति सर्वत्र वर्जते अनुज लखन तुम शिक्षा लो जीवन में।
अति शिक्षा से अहंकार स्‍वाभाविक सीखा आजीवन मैं।।5।।

अति ज्ञानी विज्ञानी श्री की गति भी अति से ही होती है।
प्रेम, समर, संग-संगति से ही कुशल राजनीति होती है।।6।।

राम पधारे संग जानकी हुई अयोध्‍या धन्‍य धन्‍य जन।
भरत, शत्रुघन, मातायें, मंत्रीगण, दृग में उमराये घन।।7।।

रही स्‍मृति शेष पिता दशरथ की कमी खली रघुवीरा।
राम राज्‍य आया धरती पर वैर द्वेष भूले सब पीरा।।8।।

आज वही युग आये तो फि‍र बजे चैन की बंसी प्‍यारे।
घोर समस्‍याओं से निद्रा आती नहीं है नैनन द्वारे।।9।।

'राम राज्‍य’ से शोभित हो फि‍र भारतवर्ष महान् हमारा।
पीछे मुड़ कर ना देखें ‘आकुल’ कर लें संकल्‍प दुबारा।।10।। 

22 अक्तूबर 2012

नवगीत की पाठशाला: २. फि‍र हम एक हुए

नवगीत की पाठशाला: २. फि‍र हम एक हुए: घर घर दीप जले, लगता है, फि‍र हम एक हुए वैर द्वेष बह निकला मन से भेंट अनुग्रह अधुनातन से समय समर्थन अनुशासन से दर दर प्रीत पले, लगता ...

20 अक्तूबर 2012

16 अक्तूबर 2012

नवरात्रि पर्व पर शुभकामनायें


Navratri orkut scraps, images
 
हे महागौरी, कुष्‍माण्‍डा, हे कात्‍यायनी, हे सिद्धिदात्रि। महालक्ष्‍मी, वैष्‍णौदेवी माँ, ब्रह्मचारिणी, कालरात्रि।
शैलपुत्रि, माँ चंद्रघंटा, स्‍कंदमाता, माँ तुलजा भवानी, हे माँ दुर्गे, गृहे पधारो, सफल करो, मेरी  नवरात्रि।
 

11 अक्तूबर 2012

पानी

कुण्‍डलिया

1-

पानी की महिमा घनी, मान घटाय बढ़ाय।
जा सँग बैठे जाय मिल, ता रँग में रँग जाय।
ता रँग में रँग जाय, मलाई बने दूध जल।
कोई भी ना तरल, बने पानी सौ निर्मल।।
कह 'आकुल' कविराय, आँख कौ उतरै पानी।
आँखें पायें दण्‍डउम्र भर काला-पानी।।
 2-
पानी-पानी आज हम, सुन के भ्रष्‍टाचार।
जन जन में आक्रोश है, मौन खड़ी सरकार।।
मौन खड़ी सरकार, दुहाई देती जनता।
महँगाई का दौर, मार सब सहती जनता।।
कह 'आकुल' कविराय, कौन देगा कुरबानी।
कल था रग में लहू, आज है पानी-पानी।।
 3-
तन में जल की बावड़ी, मन जलजात समान।
जल से हरी-भरी प्रकृति, धन से मान अमान।
धन से मान अमान, धान्य से जीवन पलता।
जल करता शम जठर, उदर का पो‍षण करता।
कह आकुलकविराय, बचा ना जीवन में जल।
जल जाएगी प्रकृति, बचेगा ना तन में जल।
 4-
जल प्रकृति में प्रमुख है, प्राणी में इनसान।
जल जीवन आधार है, सूरज से दिनमान।
सूरज से दिनमान, प्रकृति से बने सघन वन।
सेतु बंध सर कूप, करे संचय जल जन-जन।
कह आकुलकविराय, व्यर्थ ना बहे कहीं जल।
गाँव शहर हर एक, इसे समझे गंगा-जल।

2 अक्तूबर 2012

बापू

बापू के आदर्श पर मौन खड़ी सरकार
खाल पहन गीदड़ रहें, हैं रँगदार सियार
हैं रँगदार सियार, पड़ी किसको जनता की
बंद किताबों में सड़ें, नज़ीरें मानवता की
कह ‘आकुल’ कविराय, आज होते गर बापू
आदर्शों पर बात, कभी ना करते बापू    

25 सितंबर 2012

नवगीत की पाठशाला: १३. जब से मन की नाव चली

नवगीत की पाठशाला: १३. जब से मन की नाव चली: जब से मन की नाव चली, अँगना छूटा घर गलियाँ भी पनघट कहाँ, कहाँ अठखेली, जमघट से बाजार पटे बटवृक्षों की थाती इतनी, रिश्तों के भ्रमजाल हटे ...

19 सितंबर 2012

जय गणेश देवा

कुण्‍डलियाँ

(1)
श्रीगणेश, हे अष्टविनायक, शैलसुता के नंदन।
प्रथम पूज्य, गणपति, गणनायक करूँ आरती वंदन।
करूँ आरती वंदन बुद्धि‍-बल, दो सामर्थ्य गजानन।
भव बाधाऍं हरो, समस्याओं का करो निवारण।
कह ‘आकुल’ कविराय सदैव हो मुझ पर कृपा विशेष।
ले गणेश का नाम किया हर काम का श्रीगणेश।।
(2)
जनम दिवस है आज भावना भक्ति करूँ अतिरेक।
सिंदूर लगाऊँ, चोला बदलूँ और करूँ अभिषेक।
और करूँ अभिषेक धरूँ, गुड़धानी मोदक भोग।
ॠद्घि-सिद्धि संग करो पवित्र घर आरोगो महाभोग।
कह ‘आकुल’ कविराय लिखूँ मैं महिमा उठा कलम।
हे गणपति आश्रय में लेना मुझको जनम जनम।।
(3)
इनका गजमुख, एकदन्त, लम्बोदर, मूषक वाहन।
चार भुजाधारी गणपति का रूप बड़ा मनभावन।
रूप बड़ा मनभावन गण गणाधिपति देव लुभाएँ।
मातृभक्ति के कारण जग में पहले देव पुजाएँ।
कह ‘आकुल’ कविराय मनायें पर्व चतुर्थी इनका।
जपो सदैव ‘गणपतये नम:’ सिद्ध मंत्र है इनका।।


14 सितंबर 2012

हिन्‍दी ज़ि‍न्‍दाबाद

हिन्द की है शान हिन्दी
हिन्द की है आन हिन्दी
हिन्द का अरमान हिन्दी
हिन्द की पहचान हिन्दी
इसपे न उँगली उठे रहे सदा आबाद।
हिन्दी ज़ि‍न्दाबाद।।

वक्त जन आधार का है
हिन्दी पर विचार का है
काम ये सरकार का है
जीत का न हार का है
हिन्दी से ही आएगा नया समाजवाद।
हिन्दी ज़ि‍न्दाबाद।।


हिन्दी को महत्व दें
हिन्दी को ममत्व दें
हिन्दी को निजत्‍‍व दें
हिन्दी को अपनत्‍व दें।
हिन्दी में हो बातचीत और हर संवाद।
हिन्दी ज़ि‍न्दाबाद।।