24 अक्तूबर 2012

दशहरा


हुआ राम रावण रण मध्‍य भिड़े राक्षस मर्कट बल सारे।
कट कट शीश दशानन के जब उग आए दशकंधर सारे।।1।

पहर व्‍यतीत भई युक्ति सब व्‍यर्थ हुई तब राम दुलारे।
जा ढिंग रावण अनुज भेद कहि लंकापति तब राम सँहारे।।2।।

घर भेदी जब लंका ढाये कौन करे तब राज कुशलतम।
जाओ राम वचन कर पूरे तुमसे हुई गति मम उत्‍तम।।3।।

अंत समय करि सैन लखन कहि राजनीति सीखो रावण से।
आज न कल होगा इन जैसा पंडित इस जग में कारण से।।4।।

अति सर्वत्र वर्जते अनुज लखन तुम शिक्षा लो जीवन में।
अति शिक्षा से अहंकार स्‍वाभाविक सीखा आजीवन मैं।।5।।

अति ज्ञानी विज्ञानी श्री की गति भी अति से ही होती है।
प्रेम, समर, संग-संगति से ही कुशल राजनीति होती है।।6।।

राम पधारे संग जानकी हुई अयोध्‍या धन्‍य धन्‍य जन।
भरत, शत्रुघन, मातायें, मंत्रीगण, दृग में उमराये घन।।7।।

रही स्‍मृति शेष पिता दशरथ की कमी खली रघुवीरा।
राम राज्‍य आया धरती पर वैर द्वेष भूले सब पीरा।।8।।

आज वही युग आये तो फि‍र बजे चैन की बंसी प्‍यारे।
घोर समस्‍याओं से निद्रा आती नहीं है नैनन द्वारे।।9।।

'राम राज्‍य’ से शोभित हो फि‍र भारतवर्ष महान् हमारा।
पीछे मुड़ कर ना देखें ‘आकुल’ कर लें संकल्‍प दुबारा।।10।। 

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