25 मार्च 2013

नहीं सद्भाव बढ़े

आए गए त्‍योहार
नहीं सद्भाव बढ़े
सच तो यह है
हरसू अत्‍याचार बढ़े।

लोक लाज
कुल मर्यादाएँ
बहिन बहू
बेटी माताएँ
सीता  होली की 
अग्नि परीक्षा
जौहर सती हुई बालाएँ

फुरसत कहाँ किसे
कौन इतिहास पढ़े।

किसे राष्‍ट्र की पड़ी
बने सब अवसरवादी
इक दूजे पर थोप
भोगते सब आजादी
क्रांतिकारी, शहीद, हुतात्‍मा
कल के शब्‍द
आज शब्‍द हैं आतंककारी
और जेहादी

रंगे हुए अखबार
भ्रष्‍टाचार बढ़े।

कितने हैं जो
पर्व त्‍योहारों पर मिलते हैं
गुलदाउदी
कितने चेहरों पर खिलते हैं
पर्व दिवाली का हो
या हो होली का
कितने हैं अपनेपन का
दम भरते हैं

बिना दाम ना अब

केवट की नाव बढ़े।

24 मार्च 2013

होली के रंगों में

होली के रंगों में
भरना होगा यह संज्ञान
बदरंग ना होगा जीवन का
कोई भी सोपान

जा पुरवाई उस घर
जिसमें खामोशी पसरी है
सूनी आँखों में जिनके
जख्‍मों की पीर भरी है
रंग लगा साथ लेकर आ
गुज़र गया तूफान

नई सुबह सूरज की किरणें
नई ऊर्जा भर जाये
डगमग पग-पग सँभले शावक
फि‍र चलने लग जाये
जीवन तो चलने का नाम
रुकना हार समान
  
उत्‍सव त्‍योहारों पर्वों पर
सौहार्द बढ़ाना होगा
मलिन कलुष विद्वेष सभी की
होली चढ़ाना होगा
किंचित् भी यदि सोच सके हम
नारी का उत्‍थान

बहलाया सबने दिन रात
भरते रहे खरीते
जो करते थे बातें बढ़-चढ़
बदलेंगे दिन रीते
हमें बदलना होगा ताकि
सनद रहे यह ध्‍यान
  
घिरे समस्‍याओं से ढेरों
खुद ही सम्‍हलना होगा
कौन करेगा हाली किसकी
खुद ही जुतना होगा।
दे कर आहुति होली में
संकल्‍प करें इंसान 

22 मार्च 2013

आओ होली मनाएँ


आओ होली मनाएँ 

रंगों से
उमंगों से
उपजे प्रेम
प्रसंगों से
मिल हमजोली मनायें

कर बरजोरी
चोरी चोरी
गौरी कान्‍हा
कान्‍हा गौरी
रंग गालों पे लगायें

संग ढप चंग
पी कर भंग
झूमे टोली
मस्‍त मलंग
नाचें सबको नचायें

भूल दुश्‍मनी
कथनी करनी
आज सभी पे
चले कतरनी
गले लगें और लगायें

कोई न रूठें
खुशियाँ लूटें
रंगों की ही
मटकी फूटें
ऱंग बिरेंगे रंग जायें

किस‍लय दिनों की होली


याद आती है
किस‍लय दिनों की होली।

काठ कबाड़ लकड़े झाड़ी
ऊपलों की माला ढेर करना
होरी डाँड़े को गाड़ कर
मोहल्‍ले में चंदा इकट्ठा करना
होरी की रात में बनती
चारों तरफ रंगोली
हमारे कोतूहल के बीच
फि‍र जलती होली

वो जिद पिचकारी की
भरी बाल्‍टी रंग से
नहीं तो पानी से ही
किसी पर फैंकना उमंग से
निशाना लगे न लगे
उछल उछल कर कहना
होली है होली

घर पर कोई आता
लाड़ से गालों पे लगाता
सिर पर रंग भर जाता
नन्‍हें हाथों से
चुभती दाढ़ी पर
रंग लगवाता
भर जाता रंगों से
हमारी झोली

हुड़दंग, ढोल, नगाड़े
टोली, फटे कपड़े
जबरदस्‍ती,
देवर भाभी की चुहल
भंग का रंग और
होली की हँसी ठिठौली
सब वैसी ही है
सपनों सी आँख मिचौली
जैसी कल थी होली

कभी रू, कभी गुलाल
कभी स्‍याही, पर अब
रंगे दिखते हैं एक समान
मेरी उम्र की होली पर
पैरों पर डाल के रंग गुलाल
सभी करते हैं सम्‍मान
पर आज भी बच्‍चों की
निश्‍छल, निस्‍स्‍वार्थ
उत्‍साह और उमंग की
अनुपम है होली

याद आती है
किसलय दिनों की होली।