25 अप्रैल 2013

है हक़ीक़त और कुछ

समय नहीं है कहना यह, नज़ीर बस बतौर है।
एकजुट होना ही होगा, आँधियों का दौर है।

कितनी गिनाएँ खामियाँ, कब तलक़ चर्चे करें,
हर सियासी दौर में, इनका ठिकाना ठौर है।

बिजलियाँ गिरती रहें, हो ख़ूँ-ख़राबा रात-दिन,
बँटे ध्‍यान, ज़ालिमों का ये तरीक़ा तौर है।

आम आदमी को है, फुरसत कहाँ बलवा करे,
होता किसी की शै पे ये, अंजाम क़ाबिले ग़ौर है।

ज़हर रग-रग में है, बैठता ही जा रहा ‘आकुल’,
है हक़ीक़त और कुछ, अंदाज़े बयाँ और है।

24 अप्रैल 2013

कुछ ऐसा हो जाए

कुछ ऐसा हो जाए।।
गरीबों की झोली भर जाएँ।
यतीमों को अपने मिल जाएँ।
ना जिनके हों घर मिल जाएँ।
हर इंसाँ संतुष्टि पाए।
कुछ ऐसा हो जाए।।
गुलशन में नहीं पतझड़ आएँ।
हरसू खेत सदा लहराएँ।
हर पथ वृक्षों से छा जाएँ।
इंद्रधनुष हर रंग दिखाये।
कुछ ऐसा हो जाए।।
सुलभ हों सबके जीवन यापन।
जीवन जिएँ सभी अधुनातन।
परस्‍पर बढ़े-चढ़े अपनापन।
विद्वेष के नहीं हों साए।
कुछ ऐसा हो जाए।।
ताल तलाई नदियाँ छलकें।
व्‍यवस्थित हों पगडडीं सड़कें।
राही मार्ग कभी ना भटकें।
मंजिल ही खुद चल कर आए।
कुछ ऐसा हो जाए।।
रोग निदान चिकित्‍सा साधन।
जुटें सब यंत्र तंत्र संसाधन।
जीवन रक्षक जड़ी प्रसाधन।
मृत्‍यु आने से घबराए।
कुछ ऐसा हो जाए।।
             शिक्षा संस्‍कृति धर्म सनातन।
अवतारों की भूमि पावन।
देव करें वंदन अभिवादन।
भारत विश्‍व‍गुरु कहलाए।
कुछ ऐसा हो जाए।।

23 अप्रैल 2013

ऐसा क्‍यों नहीं हो सकता


ऐसा क्‍यों नहीं हो सकता हम सोचें और अपनायें।
अभिलाषाओं के खंडहर पर अभिनव महल बनायें।।

जन जाग्रति के लिए करें हम एक यज्ञ संकल्‍प।
समस्‍याओं के लिए बनायें एक अभिज्ञान प्रकल्‍प।
अनगिन लंबित कार्य योजनाओं का ढूँढ़ विकल्‍प।
करें निदान प्रशासन से मिल श्रेष्‍ठ प्रबंधन कल्‍प।

ऐसा क्‍यों नहीं हो सकता हम दसों दिशा महकायें।
वन, उपवन, अरण्‍य, हर पथ, नंदन कानन बन जायें।

प्रतिस्‍पर्द्धा का युग है हम कुछ तो समय निकालें।
आने वाली पीढ़ी के संग कदम ताल मिलालें।
करने को विकसित उनकी हर सोच बतायें मिसालें।
मार्ग प्रशस्‍त करें ले ध्‍येय दृढ़ इच्‍छा शक्ति बनालें।

ऐसा क्‍यों नहीं हो सकता हम कभी नहीं बँट पायें।
नफ़रत की आँधी पर मौसम प्रेम सुधा बरसायें।

श्रम शक्ति से हर संसाधन का उपयोग सरल है।
बस मन में इच्‍छा हो करने को सहयोग प्रबल है।
कोई भी क्‍यों न हो संकट मार्ग विकट दलदल है।
सौ हाथों के बल काँपेगा ध्‍येय यदि अविचल है।

ऐसा क्‍यों नहीं हो सकता हम एक साथ डट जायें।
प्रलय प्रभंजन के आगे हम महाकाल बन जायें।। 

20 अप्रैल 2013

कैसा ज़ुनून है यह

Bangluru Blast 
कभी आतंकियों से और कभी दुष्‍कर्मियों से।
हैराँ है, पशेमाँ है वतन, इनकी बेशर्मियों से।।

कैसा ज़ुनून है यह, कैसी हवा चली है।
ख़ौफ़ में घर-घर है, गुस्‍सा गली-गली है।
तूफाँ कहीं न बन जाये यह, हवा गर्मियों से।।

क्‍यूँ बनने लगा है इंसाँ, जानवरों से बदतर।
क्‍यूँ बढ़ने लगी है वहशत, दायरों से हटकर।
कानून सख्‍़त निपटे इन, दरिंदों कुकर्मियों से।।

नासूर, कर्कटाबुर्द हैं, कंटक हैं ये वतन के।
नाग हैं आस्‍तीनों के, दुश्‍मन हैं ये अमन के।
ख़तरे में है वतन ऐसे, पल रहे अधर्मियों से।।

इन हादसों से कैसा, माहौल बन रहा है।
इंसानियत का कैसा, मख्रौल उड़ रहा है।
क़हर होगा नाज़िर जो, पेश आए नर्मियों से।।

संस्‍कारों के माने खत्‍म, होते जा रहे हैं।
सियासी पैमाने दम, खोते जा रहे हैं।
विश्‍वास उठने लगा है अब, पुलिसकर्मियों से।।

शांति छिन रही है बस, आस भर रही है।
कैसी योग-साधना जब, साँस भर रही है।
तिलांजलि को आतुर, अस्तित्‍व षडूर्मियों से।।

षडूर्मि- अस्तित्‍व (प्राण और मन)  की छ: तरंगें- भूख, प्‍यास, शोक, मोह, जरा और मृत्‍यु।

बुभुक्षा च पिपासा च प्राणस्‍य मनस: स्‍मृतौ:।
शोक मोहौ शरीरस्‍य जरामृत्‍यु षडूर्मय:।।

11 अप्रैल 2013

नव संवत्‍सर


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चैत्र प्रतिपदा से हुआ, संवत्‍सर आगाज।

पहली है नवरात्र भी, चेटीचंड है आज।

चेटीचंड है आज, द्वार घर बार सजाओ।

बढ़े प्रेम सौहार्द, तीन त्‍योहार मनाओ।

कह आकुल कविराय, दिनों दिन बढ़े सम्‍पदा।

स्‍वास्‍थ्‍य के प्रति सचेत, कराए चैत्र प्रतिपदा।

सरस्‍वती वन्‍दना

कुण्‍डलिया
(1)

वीणापाणि नमन करूँ, धरूँ ध्‍यान निस्‍स्‍वार्थ।
यथाशक्ति सेवा करूँ, करूँ खूब परमार्थ। 
करूँ खूब परमार्थ, बने जड़बुद्धि चेतन।
सबको दे सद्बुद्धि, न कोई हो निश्चेतन।
ऐसा वर दो मातु, रहें सब सुख से प्राणि।
शब्‍द ज्ञान विस्‍तार, हो सबका वीणापाणि।।

(2)
वर दो ऐसा शारदे, नमन करूँ ले आस।
हटे तिमिर अज्ञान का, और बढ़े विश्‍वास।
और बढ़े विश्‍वास, ज्ञान की गंगा जमुना।
बहे हवा साहित्‍य, सुधारस की किं बहुना।
कह 'आकुल' कविराय, मधुमयी रसना कर दो।
वैर द्वेश हों खत्‍म, शारदे ऐसा वर दो।। 


7 अप्रैल 2013

मातृभूमि वंदना

जननी जन्‍मभूमि भारत माँ, तू है कृपानिधान।
शत-शत बार प्रणाम करूँ, रखूँ सदा यह ध्‍यान।।
प्रातस्‍स्‍मरणीय मात-पिता-गुरु-जन्‍मभूमि पर मान।
सदा अक्षुण्‍ण रहे माँ तेरी, आन, बान और शान।।

शिखर सु‍शोभित चंद्रचूड़ सा, हिमगिरि भाल सुहाए।
नदियों के पावन जल से, हर खेत यहाँ लहराए।
पवन बसंती घर-घर जा कर, सुख संदेश सुनाए।
इतिहास तिरंगे का हरदम, तेरी विरुदावली गाए।

रामायण, महाभारत जैसे, ग्रंथ जहाँ विद्यमान्।

हर युग में अवतारों ने, आततायी संहारे।
सत्‍य, अहिंसा और धर्म के, पाठ पढ़ाए न्‍यारे।
यह वह देश जहाँ नारी ने, शक्तिरूप हैं धारे।
गंगा जहाँ अभ्‍यंग कराए, जलनिधि पाँव पखारे।

तेरे लिए असुर, सुर, ॠषि मुनि, सब हैं एक समान।

गीता का संदेश गूँजता, ‘कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते’।
’वसुधैवकुटुम्‍बकम्’ के दर्शन, केवल भारत में दिखते।
आज भी गोमाता पुजती है, धर्म सभी हैं पुजते।
कण कण में ईश्‍वर है, पलते भावभक्ति के रिश्‍ते।

भूमि जहाँ है सिद्ध, ढाई अक्षर का प्रेम विधान।