23 जून 2013

केदारनाथ धाम त्रासदी

1-
प्रलय प्रभंजन दामिनी, तुमुल पवन संघात।
रुद्र क्रुद्ध विकराल सा, प्रबल घनन संपात।।
प्रबल घनन संपात, हुई विचलित तब गंगा।
छोड़ दया अनुराग, बिखर कर बनी त्रिभंगा।।
कह ‘आकुल’ कविराय, मौन था अलख निरंजन।
देख रहा था शांत, प्रकृति का प्रलय प्रभंजन।।
2-
वर्षा ने ढाया कहर, अब तो सँभलें लोग।
कर निसर्ग की दुर्दशा, कष्‍ट रहे हैं भोग।।
कष्‍ट रहे हैं भोग, बने दिग्‍मूढ़ अचल सब।
कैसा यह दुर्भाग्‍य, अचानक गया बदल सब।।
कह ‘आकुल’ कविराय, मदद से जनजन हर्षा।
दे गई यक्ष प्रश्‍न, कहर बरपाती वर्षा।।

केदारनाथ धाम पर हुई विभीषिका पर समर्पित कुंडलिया छंद

9 जून 2013

वृक्षारोपण

1
वृक्षारोपण हों लगें, जगह जगह पर पेड़।
पेड़ों से छायें भवन, पथ पगडंडी मेड़।
पथ पगडंडी मेड़, प्रदूषण मुक्‍त करायें।
ग्राम ग्राम चौपाल, बाग में पेड़ लगायें।
कह ‘आकुल’ कविराय, न हो वृक्षों का शोषण।
वन उपवन की शान, करें हम वृक्षारोपण।
2
जगह जगह पर पेड़ हों, गाँव लगें वनग्राम।
वृक्षों की छाया तले, करें सभी विश्राम।
करें सभी विश्राम, प्रकृति से नेह बढ़ायें।
पूजें दशकुल वृक्ष, पुष्‍प नैवेद्य चढ़ायें।
कह ‘आकुल’ कविराय, परिश्रम दुख सुख सह कर।
बाग बगीचे पेड़, लगायें जगह जगह पर।।
3-
जल, प्रकृति, वृक्षारोपण, पर हो गूढ़ विचार।
इनकी रक्षा के लिए, दें सुविज्ञ सुविचार।
दें सुविज्ञ सुविचार, कोष स्‍वीकार करायें।
जनता को लें साथ, प्रचार प्रसार करायें।
कह ‘आकुल’ कविराय, प्रभावित है भूमंडल।
वायु प्रदूषण रोक, बचायें प्रकृति, भूमि, जल

विश्‍व पर्यावरण दिवस पर कुण्‍डलिया छंद 

5 जून 2013

लगता है तुम आ रहे हो

आँचल में छिपा लूँगी
अभिव्‍यक्ति उन्‍वान (चित्र)- 59
ये चाँद तुम्‍हें देखकर
नज़र तुम्‍हें लगा दे न
पीठ किये बैठी हूँ
बाहों में छिपा लूँगी
आ जाओ के अब चँदनियाँ
छिटकी है, इस उजास में
डरती हूँ, कोई देख ले न
धोरों में छिपा लूँगी
शीतल शरदप्रभा है
पर बदन है स्‍वेद से भरा
धड़क रहा है दिल तुम्‍हें
सीने में छिपा लूँगी
लगता है--- तुम--- आ --रहे --हो

(कवि मन ‘एकल काव्‍य पाठ’ में अभिव्‍यक्ति 59 (चित्र) पर नवसृजित रचना पोस्‍ट की- 4-6-2013)