26 जुलाई 2013

डाली चम्‍पा की

बीज बिना लग जाती है
डाली चम्‍पा की।

बिन जाने पहचाने
भा जाता है कोई
अपना सा लगने
लगता है कोई बटोही
खुशबू ने कब दिया
किसी को कोई बुलावा
किसे पता कब कर
जायेगा कोई छलावा

शिखर चढ़ा जाती है
पाती अनुकम्‍पा की।

बौछारों से हरियाली
दिन दूनी बढ़ती
थोड़ी सी खुशहाली
अमरबेल सी चढ़ती
आशाओं के नीड़
बसाते पंखी रोज
काक बया की करते हैं
बदहाली रोज

काल कभी भी बन जाती है
व़ृष्टि शंपा की।

1-7-2013
को अनुभूति में प्रकाशित
25-07-2013 
को नवगीत की पाठशाला में प्रकाशित

22 जुलाई 2013

गुरुवे नम:

1
अक्षर ज्ञान दिवाय कै, उँगली पकड़ चलाय।
पार लगाये गुरू या, केवट पार लगाय।।1।।
2
बिन गुरुत्‍व धरती नहीं, धुर बिन चले न चाक।
गुरुजल बिन बिजली नहीं, गुरु के बिना न धाक।।
3
सर्वोपरि है गुरू श्री, यह कहवै इतिहास।
सुर मुनि प्राणी जगत में, सभी करें अरदास।।
4
‘आकुल’ जग में गुरू से, धर्म विज्ञान प्रताप।
आश्रय जो गुरु कौ रहै, दूर रहें सन्‍ताप।।
5
गुरु को सर पै हाथ जो, भवसागर तर जाय।
श्रद्धा निष्‍ठा प्रेम यश, धन वैभव सब पाय।।
6
गुरु को तौल कराय जो, वो मूरख कहवाय।
तोल मोल के फेर में, यूँ ही जीवन जाय।।
7
ज्ञान गुरू दीक्षा गुरू, धर्म गुरू बेजोड़।
चलै संस्‍कृति इन्‍हीं सूँ, इनकी ना है होड़।।
8
मात पिता गुरु राष्‍ट्र ॠण, कोई न सकै उतार।
जब भी जैसे भी मिलें, इनकूँ कभी न तार।।
गुरु बिन समरथ जगत में, जी लै दो दिन खास।
फि‍र पड़ जाये अकेलौ, और खोय विश्‍वास।।
10
’आकुल’ वो बड़भाग है, ऐसौ कहें बतायँ।
मात-पिता गुरु सिधारें, जा के काँधे जायँ।।

गुरु पूर्णिमा पर दोहावली

21 जुलाई 2013

मौन के कारण

आज समाज क्‍यों टूटते जा रहे हैं
मौन के कारण
Feng shui chart of balanced home environment
परिवार क्‍यों बिखर रहे हैं
मौन के कारण
आज संस्‍कार क्‍यों खत्‍म हो रहे हैं
मौन के कारण
आज आदमी क्‍यों बदल रहा है
मौन के कारण
आज युवा क्‍यों आवेग में है
मौन के कारण
संवदेनाशून्‍य क्‍यों हो गया है इंसां
मौन के कारण
कोई नहीं बोलता कि क्‍यों कर कर रहे हो
ऐसा आज तक नहीं हुआ
बदलो मगर ऐसे भी नहीं कि
इतिहास बदल जाये
और तुम इतिहास में
उन पन्‍नों को ढूँढ़ भी न पाओ
जिसमें लिखी है हमारी
सभ्‍यता संस्‍कृति की अक्षुण्‍ण विरासतें
राष्‍ट्र गौरव गाथायें, परम्‍परायें
इसलिए सहेजकर चलें इन्‍हें
बहुत देर हो चुकी है
मौन के कारण
इतनी भी जीर्ण नहीं
हमारी शिक्षा कि
हम मिलें तो
आँखें न छलछलायें
कोई सामने आ जाये और
हम पहचान न पायें
बस अहं की दहलीज को
पार कर लौटने की आवश्‍यकता है
फि‍र वही बहारें होंगी
वही होली दिवाली के मंज़र होंगे
वही चहकती सुबह
महकती शामें होंगी
उँगली थामें बचपन होगा
कंधों को थामे यौवन होगा
और पलेगा फि‍र
अक्षुण्‍ण संस्‍कृति के वटवृक्ष के तले
हमारा जीवन
और बहेगी फि‍र सुरभित शान्‍त
पूरब की हवा।।  

15 जुलाई 2013

नीति के 3 कुंडलिया छंद

1
धीरज ना इंसान में, उग्र दिनों दिन होय।
वाणी मीठी ना रखे, चैन सभी का खोय।।
चैन सभी का खोय, पड़ै उलझन में खुद भी।
लेता झगड़े मोल, और खोता सुधबुध भी।।
कह ‘आकुल’ कविराय, पंक में पलता नीरज।
सबका मिले निदान, रखे जो इंसा धीरज।।
2
धन का लोभी जो मनुज, ना समझे समझाय
मैल हाथ का समझ कर, खर्चा करता जाय।।
खर्चा करता जाय, कर्ज ले ले कर प्राणी।
जैसे आँखें मूँद, बैल से चलती घाणी।।
कह आकुल कविराय, न संशय पाले मन का।
बिना परिश्रम कर्ज, चुकेगा कैसे धन का।।
3
वाणी ऐसी मधुर हो, सबका मन हर्षाय। 
वैर द्वेष सब भूल के, शत्रु मित्र बन जाय।
शत्रु मित्र बन जाय, मित्रता हो निस्‍स्‍वार्थ।
सर्व धर्म समभाव, जगायें कर परमार्थ।।
कह आकुल कविराय, प्रेम का भूखा प्राणी।
फल जायें जो बोल, अमर हो जाये वाणी।।

13 जुलाई 2013

फि‍र लौटेगी आस्‍था (कुण्‍डलिया छंद)



लौटेंगे फि‍र भक्‍तगण, नीलकण्‍ठ के धाम।
घंटे झालर बजेंगे, फि‍र से सुबहो शाम।।
फि‍र से सुबहो शाम, देव सलिला पूजेंगे।
भव्‍य आरती मंत्र, शंख के स्‍वर गूँजेंगे।।
ठंडाई के संग, भंग हर दिन घोटेंगे।
शिव को रखने भोग, भक्‍तगण फिर लौटेंगे।।

1 जुलाई 2013

तीन कुण्‍डलिया छन्‍द

वर्षा
राहत वर्षा से हुई, गरमी अब निस्‍तेज।
हरियाली की हर तरफ, बिछ जाएगी सेज।।
बिछ जाएगी सेज, कीट कृमि नित पनपेंगे।
कहीं कहीं अतिवृष्टि, कई भू भाग तपेंगे। ।
वर्षा ऐसी आय, न कोई होय हताहत।
खुशहाली भर जाय, मिले सबको तब राहत।।
नीति
मुर्गे से सीखें सखे, चुनता मल से बीज।
व्‍यापारी वह ही सफल, रखे संग खेरीज।।
रखे संग खेरीज, न ग्राहक वापिस जाये।
ग्राहक राजा जान, लौट कर कब आ जाये।।
कह 'आकुल' कविराय, कला सीखें गुर्गे से
रहे सदैव सचेत, व्‍यस्‍त दीखें मुर्गे से।।
लेखनी
writing pen photo: Writing writing_pen.gifचले अनवरत लेखनी, कुछ भी लिखें सुजान।
अर्थ अनर्थ न होय बस, इतना रक्‍खें ध्‍यान।
इतना रक्‍खें ध्‍यान, बनाये रख अनुशासन।
लिखें खरी बेबाक, लोकहित और सुशासन।  
कह आकुल कविराय, लेखनी ने युग बदले।
वीर, भगत, आजाद, देश की खातिर मचले।।