27 सितंबर 2013

तो खुशहाली आए

भरमजाल अब हटे
श्‍हर का तो खुशहाली आए
मिलेंगे अपने हुए पराए।

गाँवों की पगडण्‍डी छोड़ी
वृक्षावलि की छैंया छोड़ी
घर का आँगन देहरी छोड़ी
जहाँ पर लगी छदाम न कौड़ी

छाछ मखन दधि दूध बिसारे
गिल्‍ली डण्‍डे बेर कटारे
पथरीले पथ पर चलने को
कैसे मन ना रोक सका रे

मोहजाल अब हटे
शहर का तो खुशहाली आए
ॠण तू सूद सहित लौटाए।


पर्वों त्‍योहारों पर जोड़ी
बची हुई है ऊर्जा थोड़ी
ब्‍याह में दिखती अब ना घोड़ी
भूली बहुएँ नथ और तोड़ी

परिहारों से रिश्‍ते होते
रिश्‍तों की ऊर्जा को खोते
माया के सब ढोंग धतूरे
नकली चेहरों को सब ढोते

मकड़जाल अब हटे
शहर का तो खुशहाली आए।
गाँव तब स्‍वर्ग धरा बन जाए।