5 दिसंबर 2013

नवभारत का स्‍वप्‍न सजाएँ

आओ हम फि‍र, नवभारत का, स्‍वप्‍न सजाएँ।
नई उमंगों से, हम सब, जन-गण-मन गाएँ।
मूलभूत आवश्‍यकताओं पर, समझौते न हों,
स्‍वच्‍छ सुशासन हो, हम ऐसा, वतन बनाएँ। 

जन-प्रतिनिधि ऐसे हों, जो महसूस करादें।
कफ़न बाँध सिर निकलें, करके ठोस कवायदें।
अब न चलेगा भ्रष्‍टाचारी, ढुलमुल शासन,
गिद्ध-दृष्टि जिसकी है, उसको सबक़ सिखादें।

ऐसी युवाशक्ति‍ से सज्जित, सदन बनायें।
आओ हम फि‍र, नवभारत का, स्‍वप्‍न सजाएँ।

संकल्पित हो, जन जाग्रति का, श्रीगणेश हो।
नई योजनाओं से उत्‍साहित, हर प्रदेश हो।
धरती सोना उगले, नदियाँ बहें दूध की,
वृक्षों से आच्‍छादित, हर इक उपनिवेश हो।

नंदन कानन हों अरण्‍य, वन सघन बनाएँ।
आओ हम फि‍र, नवभारत का, स्‍वप्‍न सजाएँ।

गुरुकुल हों विकसित, शिक्षा का नवीकरण हो।
न्‍याय व्‍यवस्‍था सुधरे, श्रम का ध्रुवीकरण हो।
पशुधन, ग्राम्‍य विकास, हो चहुँ-दिश, हरित क्रांति,
प्रगति करे हर क्षेत्र, ऐसा समीकरण हो।

रामराज्‍य आए, हम ऐसा, हवन करायें।
आओ हम फि‍र, नवभारत का, स्‍वप्‍न सजायें।

बने राष्‍ट्र अब, सूर्य अस्‍त हो, जहाँ कभी ना।
क्षितिज धरा से मिले, गर्व से ताने सीना।
हिमगिरि जिसका मुकुट, समंदर जिसकी बाहें,
विरुदावली गायें युग, यह इतिहास कहीं ना।

पुन: बने इतिहास, अनोखा कुछ कर जायें।
आओ हम फि‍र, नवभारत का, स्‍वप्‍न सजाएँ।

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