9 जनवरी 2014

भोजन और भ्रमण पर एक कुण्‍डलिया छंद



भोजन भ्रमण बनाइये, दिनचर्या अविराम।
योग मनन चिन्‍तन करे, बदन नयन अभिराम।
बदन नयन अभिराम, संतुलित भोजन करिए।
घूमो सुबहो शाम, मनन और चिन्‍तन करिए।
कह 'आकुल' कविराय, भ्रमण से भागे जो जन।
रुग्‍ण वृद्ध हो शीघ्र, करे कैसा भी भोजन।।

7 जनवरी 2014

सर्दी का मौसम


कविताओं का कांत कलेवर अनुभूति  ई पत्रिका के 6 जनवरी 2014 के अंक में 'सर्दी का मौसम' के अंतर्गत 3 कुंडलिया छंद प्रकाशित हुए हैं। 

2 जनवरी 2014

तीन कुण्‍डलिया छन्‍द

1-
श्रम से मजदूरी मिले, भाड़ा भवन दिलाय।
पूँजी दे बस ब्‍याज ही, साहस भाग्‍य जगाय।
साहस भाग्‍य जगाय, कर्म फि‍र भी प्रधान है।
साहस बिना न खेल, नियति का यह विधान है।
कह 'आकुल' कविराय, भाग्‍य खिलता परिश्रम से।
साहस से मिल जाय, नहीं जो मिलता श्रम से।
2-
झगड़े टंटे भूल के, रहें प्रेम के साथ।
दो दिन अपनों के निकट, दो दिन सबके साथ।।
दो दिन सबके साथ, रहें और हाथ बँटाएँ।
करें समस्‍या दूर, परस्‍पर दर्द घटाएँ।।
ऐसे भी क्‍या जिएँ, न बीतें पल छिन घंटे।
रहें सदा बेचैन, लाद कर झगड़े टंटे।।
3-
धन का लोभी मनुज जो, ना समझे समझाय।
मैल हाथ का समझ के, खर्चा करता जाय।।
खर्चा करता जाय, कर्ज ले ले कर प्राणी।
जैसे आँखें मूँद, बैल से चलती घाणी।।
कह आकुल कविराय, न संशय पाले मन का।
बिना परिश्रम कर्ज, चुकेगा कैसे धन का।।