15 जून 2014

पिता दिवस (फादर्स डे)

पिता दिवस (फादर्स डे)- अनेक देशों में पिता दिवस (फादर्स डे) मनाने की तिथियाँ नियत हैं। माता के समान पिता को भी सम्‍मान देने के लिए पिता को समर्पित यह दिन मनाया जाता है। जिनके पिता जीवित हैं उन्‍हें हर देश में अलग अलग तिथियों पर मनाये जाने की तिथि तय हैंं। भारत में यह जून के तीसरे रविवार को मनाया जाता है। इस बार यह 15 जून 2014 है। जबकि 2013 में यह 16 जून को मनाया गया था तथा 2015 में यह 21 जून को मनाया जायेगा। जिनके पिता मौज़ूद नहीं, 19 नवम्‍बर को पिता दिवस मनाया जाता है, जिसे अंतर्राष्‍ट्रीय मनुष्‍य दिवस (International Men's day)  भी कहा जाता है।
इस मुक़द्दस मौके पर एक गीत पिता की स्‍मृति में जो मेरी बेटी को बहुत पसंद है- आप भी सुनें- आईना मुझसे मेरी पहली सी सूरत माँगे---- (फि‍ल्‍म- डैडी, संगीत- राजेश रोशन, गायक- तलत अज़ीज़, गीतकार- सूरज सनीम )
19 जून 2011 को पिता के सम्‍मान पर लिखी मेरी दोहावली  मेरे पिता का समर्पित है-



माता कौ वह पूत है, पत्‍नी कौ भरतार।
बच्‍चन कौ वो बाप है, घर में वो सरदार।।1।।

पालन पोषण वो करै, घर रक्‍खे खुशहाल।
देवे हाथ बढ़ाय कै, सुख-दु:ख में हर हाल।।2।।

मैया कौ अभि‍मान है, माँग भरे सि‍न्‍दूर।
दादा दादी हम सभी, उनसे रहें न दूर।।3।।

अपनौ अपनौ काम कर, देवें जो सहयोग।
पि‍ता न पीछे कूँ हटे, कोई हो संजोग।।4।।

कंधे सौं कंधा मि‍ला, जा घर में हो काज।
पि‍ता कमाये न्‍यून भी, रुके न कोई काज।।5।।

प्रति‍नि‍धि‍त्‍व घर कौ करै, जग या होय समाज।
बंधु बांधवों में रहै, बन के वो सरताज।।6।।

वंश चले वा से बढ़ै, कुल कुटुम्‍ब कौ नाम।
मात पि‍ता कौ यश बढ़ै, करें सपूत प्रनाम।।7।।

परमपि‍ता परमात्‍मा, जग कौ पालनहार।
घर में पि‍ता प्रमान है, घर कौ तारनहार।।8।।

बेटी खींचे जनक हि‍य, बेटा माँ की जान।
बनै सखा जब पूत कै, भि‍ड़ें कान सौं कान।।9।।

मात-पि‍ता-गुरु-राष्‍ट्र ऋण, कोई न सक्‍यो उतार।
जीवन में इन चार की, चरणधूलि‍ सि‍र धार।।10।। 

‘आकुल’ महि‍मा जनक की, जि‍ससे जग अंजान । 
मनुस्‍मृति‍ में लेख है, सौ आचार्य समान।।11।।

8 जून 2014

नंदन कानन सा बने -- (कुंडलिया छंद)


गर्मी ने खोले सभी, खिड़की द्वार गवाख।
घर तप कर जलने लगे, जैसे गरम सलाख।
जैसे गरम सलाख, चोट से रूप बदलती।
आग बनी है लाय, राह में धूप मचलती।
कह ‘आकुल’ कविराय, सूर्य की ये हठधर्मी।
बनी प्रकृति विद्रोह, कह रही जाती गर्मी।
2
नंदन कानन सा बने, उपनिवेश हर हाल।
हरियाली संकुल बने, बीहड़ रण संथाल।
बीहड़ रण संथाल, वृक्ष से आच्‍छादित हो। 
करिए सार सँभाल, प्रकृति भी आह्लादित हो।
कह 'आकुल' कविराय, मनाओ प्रथम गजानन।
और करो प्रारंभ, बनाओ नंदन कानन।
3
अब बयार शीतल बहे, बहुत सही है लाय।
बस ना बाढ़ प्रकोप हो, रिमझिम बारिश आय। 
रिमझिम बारिश आय, प्रजा कुछ राहत पाए। 
जलधर पावस संग, पवन के रथ पर आए। 
कह 'आकुल' कविराय, गली कूचे दयार सब। 
ताक रहे नभ द्वार, बहे शीतल बयार अब।