8 जून 2014

नंदन कानन सा बने -- (कुंडलिया छंद)


गर्मी ने खोले सभी, खिड़की द्वार गवाख।
घर तप कर जलने लगे, जैसे गरम सलाख।
जैसे गरम सलाख, चोट से रूप बदलती।
आग बनी है लाय, राह में धूप मचलती।
कह ‘आकुल’ कविराय, सूर्य की ये हठधर्मी।
बनी प्रकृति विद्रोह, कह रही जाती गर्मी।
2
नंदन कानन सा बने, उपनिवेश हर हाल।
हरियाली संकुल बने, बीहड़ रण संथाल।
बीहड़ रण संथाल, वृक्ष से आच्‍छादित हो। 
करिए सार सँभाल, प्रकृति भी आह्लादित हो।
कह 'आकुल' कविराय, मनाओ प्रथम गजानन।
और करो प्रारंभ, बनाओ नंदन कानन।
3
अब बयार शीतल बहे, बहुत सही है लाय।
बस ना बाढ़ प्रकोप हो, रिमझिम बारिश आय। 
रिमझिम बारिश आय, प्रजा कुछ राहत पाए। 
जलधर पावस संग, पवन के रथ पर आए। 
कह 'आकुल' कविराय, गली कूचे दयार सब। 
ताक रहे नभ द्वार, बहे शीतल बयार अब।

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