18 जुलाई 2015

ग़ज़ल

रह जाते हैं ज़िंदगी में, अनसुलझे कुछ सवाल अकसर।
रह जाते हैं तिश्‍नगी1 में, अनबुझे कुछ सवाल अकसर।
मुसव्विर2 भी कभी-कभी मुत्‍मईन3 नहीं होते अपने फ़न से,
रह जाते हैं शर्मिंदगी में, अनकहे कुछ सवाल अकसर।
संगतराश4 की नज़र का सानी नहीं होता फि‍र भी,
रह जाते हैं तस्‍वीर में अनछुए कुछ कमाल अकसर।
दर्द की रौ में न बहे अश्आर5 वो ग़ज़ल ही क्‍या,
रह जाते हैं ग़ज़ल में न बयाँ किए कुछ मिसाल अकसर।
दस्‍ते शफ़क़त6 में चूक से नाशाइस्‍ता7 हुए हैं कई गुफ़्ल8,
रह जाते हैं गुलज़ार में गुल हुए कुछ हलाल अकसर।
किस्‍साकोताह9 कि मुहब्‍बत में फ़ना होते हैं परवाने ‘आकुल’,
रह जाते हैं तारीख़10 के सफ़्हों में उलझे कुछ सवाल अकसर।


1-तिश्‍नगी- प्‍यास 2- मुसव्विर- चित्रकार 3- मुत्‍मईन- संतुष्‍ट 4- संगतराश- शिल्‍पकार 5- अश्आर- शेर 6- दस्‍ते शफ़क़त- छत्रछाया 7- नाशाइस्‍ता- असफल  8- गुफ़्ल- अनुभवहीन व्‍यक्ति 9- किस्‍साकोताह- सारांश, किंबहुना 10- तारीख़- इतिहास।

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