28 सितंबर 2015

मैं कौनसा गीत सुनाऊँ----लताजी 86वर्ष की हुईं।

लता मंगेशकर
लता मंगेशकर 
आज स्‍वर साम्राज्ञी भारत रत्‍न लताजी का 87वाँ (28 सितम्‍बर 1929) जन्‍मदिन है। उनके बारे में सबने अपने अपने तरीके से लिखा है।
उनकी महिमा का बखान सूरज को रोशनी दिखाने के समान है। बस यूँ ही उनके बारे में कभी कुछ सोच लें, उनसे प्रेरणा लें और उनका अनुकरण, अनुसरण करें, पथ कोई सा भी हो संगीत हो, साहित्‍य हो, व्‍यवसाय हो, बस कुछ कर गुजरने की इ्च्‍छाशक्ति हो।आज लता जी को मिले पुरस्‍कार सम्‍मान शायद छोटे पड़ जाते हैं, इन सम्‍मानों का सम्‍मान होता है लताजी से जुड़ कर। उनके गाये अमर गीतों से हम हमेशा उन्‍हें याद करते हैं और करते रहेंगे। लताजी वो शख्सियत हैं जिनके 50 हजार से अधिक गाये गीत गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज हैं।इसके अलावा लता मंगेशकर को वर्ष में पद्मभूषण, वर्ष 1989 में दादा साहब फाल्‍के सम्‍मान, वर्ष 1999 में पद्म विभूषण और वर्ष 2001 में भारत रत्‍न जैसे कई सम्‍मान प्राप्‍त हो चुके हैं। 
राजनीति हर जगह हावी रहती है। कुछ घटनायें हैं जिन्‍हें याद कर वे आज भी रोमांति हो जाती हैं। जैसे उन्‍हें धीमा ज़हर दे कर मारने की कोशिश की गई, लेकिन वे बच गयीं। उन्‍होंने संगीतकार नौशाद को कभी ऑडिशन नहीं दिया, वो बात अलग है कि उन्‍होनं चतुराई से उर्दू शब्‍दों के तलफ़्फु़ज को बयाँ करने के अंदाज़ को देखना चाहते थे और वे मना नहीं कर सकीं, ओ- पी- नैयर के निर्देशन में उन्‍होंने नहीं गाया। कई बातें उनकी बहुत सम्‍मान की जाती हैं, वे स्‍टूडियों में कभी चप्‍पल पहन कर नहीं गयीं। दूसरी गायिकाओं का मौका नहीं देने के भी उन पर आरोप लगे, पर वे सबसे बे‍फि‍क्र हो कर अपनी यात्रा करती रहीं। अपनी सरस्‍वती की साधना में लगी रहीं। पूरी तरह से स्‍थापित हो जाने के बाद कभी वे काम माँगने नहीं गईं। लंबे समय तक  समय तक स्‍टेज शो आदि नहीं दिया करती थीं, किन्‍तु बाद में सभी के आग्रहों पर कई यादगार कंसर्ट उन्‍होंने किये और विदेशों में भी अपना परचम फहराया। उनके गाये दूसरे कलाकारों गायकों के गाये ये गीत 'ओ मेरे दिल के चैन' और 'कहीं दूर जब दिन ढल जाये' सदाबहार हैं। मस्‍तोमौला और खिलंदड़ स्‍वभाव के किशोर कुमार तो लताजी के सामने या लता जी के साथ स्‍टूडियो में अनुशासन से गाते थे। मुकेशजी को तो वे भाई मान कर राखी बाँधती थीं।आज उनके सम्‍मान में मैं एक गीत, जो बहुत कम एफएम, रेडियो अथवा टीवी पर दिखाई सुनाई पड़ता है, आशा है आप भी पसन्‍द करेंगे। वह गीत है 'मैं कौनसा गीत सुनाऊँ, क्‍या गाऊँ जो पिया बस जाये, मेरे तन मन में' बासु चटर्जी की फि‍ल्‍म 'दिल्‍लगी' का, जिसमें संगीतकार राजेश रोशन ने बहुत ही बेहद उम्‍दा संगीत दिया है, गीत योगेश ने लिखा है, और फि‍ल्‍म में यह धर्मेन्‍द्र, हेमा, असरानी आदि कुछ कलाकारों के बी नदी के किनारे फि‍ल्‍माया गया हे। सुना है उनके लिए प्रख्‍यात शास्‍त्रीय गायक बड़े गुलाम अली खाँ साहब ने उनके बारे में किसी महफि‍ल में किसी से बडृे प्‍यार से कहा था 'कमबख्‍़त बेसुरी नहीं होती।' उनकी सुरीली आवाज तो ठीक उनकी आवाज का जादू था कि बात करते समय भी इतनी मीठी सुनाई देती है, जैसे मिश्री घोल दी हो। श्रीमती इन्दिरागाँधी तो उनसे बात करते करते उनको देखती ही रहतीं और उनकी आवाज़ में खो जाती थीं। लीजिए उनके साथ का एक अविस्‍मरणीय फोटो लताजी का एवं स्‍व0 राजकपूर एवं बॉलिवुड की टीम का यहाँ संलग्‍न है। 
बायें से कुछ चर्चित कलाकार- (खड़े हुए ) अनिल धवन, धर्मेन्‍द्र, विनोदखन्‍ना, फि‍रोजख़ान, शर्मिला टैगोर, सायराबानो, राजेंद्र कुमार, लता मंगेशकर, संगीतकार कल्‍याणजी, बी0आर0चौपड़ा, रामानन्‍द सागर।  (कुर्सी पर) श्रीमती इन्दिरागाँधी । (जमीन पर बैठे हुए)- नौशाद, दिलीप कुमार, राजकपूर, मनोज कुमार, संगीतकार आनन्‍दजी आदि

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