30 सितंबर 2015

कहते हैं (ग़ज़ल)

कहते हैं झूठ मीठा और सच कड़वा होता है।
कहते हैं बगावतों से अकसर बलवा होता है।
चुप रहना दिन ब दिन समस्‍यायें बढ़ाता है कई,
कहते हैं सच पर जारी अक़सर फ़तवा होता है।
झूठ से इंसाँ हमेशा रहता है डरा-डरा सा,
कहते हैं सच बेख़ौफ़ और बेपरवा होता है।
ऐसा भी नहीं है सच ने सदा ही खुशियाँ दी हों,
कहते हैं ज़ि‍न्‍दगी दे झूठ तब वह दवा होता है।
झूठ की तरह सच याद नहीं रखना पड़ता कभी,
कहते हैं यही सच्‍चाई का जलवा होता है।
झूठ जेठ की दुपहरी, सच सावन की फुहारें हैं,
कहते हैं सच बहार, झूठ ख़़ि‍ज़ाँ का बिरवा होता है।
झूठ के पाँव नहीं होते, हवा में उड़ता 'आकुल',
कहते हैं सच्‍चाई से सदा डर हवा होता है।

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