30 अक्तूबर 2016

माटी का दीया

छोटे-छोटे दीप जले,
कितने उत्साह से.
टिम-टिम तारे जैसे,
उतरे हैं आकाश से.

गली-मोहल्ले-चौबारे
घर-ड्योढी-द्वारे.
दूर तलक दीपावली
अपने पैर पसारे.

घर-घर दीप जलाएँ,
मिलजुल कर उल्लास से।

लौ जीवन का साक्ष्‍य
तेल मर्यादा जीवन की.
बाती रीढ़, दीप साधना
माटी के तन की.

माटी का दीया फैलाता
प्रेम प्रकाश से.

एक शहीद के घर पर
या फिर यादगार में.
दीप जलायें जा कर
या भेजें उपहार में.

तर्पण होगा दीपदान के,
सूक्ष्म प्रयास से।

29 अक्तूबर 2016

दीप पर्व (मुक्‍तक)

1
दीपपर्व आया है सौ-सौ हाथ बढ़ाओं।
गले मिलो, उठ-बैठ करो, सम्‍वाद बढ़ाओ।
भेद-भाव, वि़द्वेष, मलिनता, कटुता सारी,
भूलो, जा कर घर-घर, बस सौहार्द बढ़ाओ।
2
दीप ज्‍योत है, दीप आस है, दीप है प्रीत उजास।
दीप सवेरा, दीप साँँझ है, दीप प्रेम' अरदास।
दीप करे निर्वाण तमस का, दीप करे उजियार,
दीप सभ्‍यता, दीप संस्‍कृति, दीप धर्म विन्‍यास।
3
तम को मिटाने फिर से आ रही है दिवाली।
घर-घर खुशी से झूमे, मने ऐसी दिवाली।
कुछ ऐसा करो अब, अँधेरा छाने ना पाए,
इस साल एक उदाहरण बन जाए दिवाली।
4
हर दिन बसंत शाम हर दिवाली मनाएॅं।
सुख-चैन की हवा बहे, तुफाँँ न सताएँँ।
आलोक चारों ओर फैलाए, सरस्‍वती,
देव सब संस्‍कार का प्रकाश फैलाएँँ।

28 अक्तूबर 2016

पढ़ लेना



गीतिका
*******


छंद- विजात 

पहला और आठवाँँ वर्ण लघु-
समान्‍त- आर  

पदांत पढ़ लेना |
***

धमाकेदार पढ़ लेना।
मसालेदार पढ़ लेना।
अगर मजलिस हँसानी है,
ठहाकेदार पढ़ लेना।
नहीं महफिल हसीनों की,
सलीकेदार पढ़ लेना।
अलग हट कर सुनानी है,
कलंगीदार पढ़ लेना।
अगर बैठक है’ यारों की,
लतीफे चार पढ़ लेना।

27 अक्तूबर 2016

अमन की लौ जलाई है

गीतिका (विजात छंद)
1222 1222 1222 1222
(पहला और आठवाँँ अक्षर लघु आवश्‍यक)


हमारे देश की रक्षा की, जब-जब बात आई है।
जवानों ने वतन के वास्ते जाँ तक लुटाई है।1

कई तूफान आए और आँधी ने सताया है,
हुआ है एक जुट भारत, अमन की लौ जलाई है।2

रखा है मान वीरों ने, तिरंगे का हिमाचल का।
रखा सम्‍मान वीरों ने, धरा का, माँ के आँचल का।  

कभी दुश्मन डराता है, करे यदि वार धोखे से,
न की जाँ की कभी परवा, धू’ल उसको चटाई है।3

कभी बापू जवाहर लाल, की आजाद की बातें।
सदा करते हैं माँ के लाल सरहद पर यही बातें।  

कई किस्से कहानी हैं, कई हैं शौर्य गाथाएँ,
भगत सिंह की शहादत भी, अभी तक ना भुलाई है।4

यहाँ मनती दिवाली है, बड़े चैनो अमन से ही
यहाँ मिलते गले हैं ईद, होली पर अमन से ही

यहाँ गंगो जमन की सभ्यता, शिखर को छूती है,
बिरज भूमि है कान्हा ने, यहाँ बंसी बजाई है।5

26 अक्तूबर 2016

दीपपर्व

(घनाक्षरी- 8,8 - 8,7)
रँग रोगन रोशन घर, आँगन, ड्योढी, द्वार
कोना कोना रंगोली से, दीयों से सजवाया।

नई-नई तसवीरों, पुष्‍पगुच्‍छ के झुमकों, 
टिम-टिम तारों वाली, लड़ि‍यों से उजवाया।

ढेर पटाखों के डिब्‍बे, फल फूलों वाले थैले, 
भरे मिठाई के सारे, थालों को रखवाया। 

पूजन की सामग्री, सिक्‍के, रुपये, गिन्‍नी, 
पूजा की थाली ला के, सारों को धरवाया। 

तब जा के जब हुई, पूर्ण तैयारी सबने, 
नौ वस्‍त्र धारण कर, पूजन करवाया।

चले पटाखे उल्‍लासों से, भूले बैर भाव सब, 
गले मिले बढ़ चढ़, सम्‍मान बढ़ाया।

त्‍योहारों का देश पर्व, संस्‍कृति मेले त्‍योहार, 
एक अनोखा जिसमें, है संसार समाया। 

दीप पर्व बतलाता, हमको संस्‍कार देता, 
उजास जीवन होता, यह मर्म बताया।

22 अक्तूबर 2016

दोस्‍त फ़़रिश्‍ते होते हैं बाक़ी़ सब रिश्‍ते होते हैं

मुक्‍तक 

1
दोस्‍त फ़रिश्‍ते होते हैं, बाक़ी सब रिश्‍ते होते हैं।
गरिमा खो देते हैं, तब हम रिश्‍तों को ढोते हैं।
रखें नहीं महत्‍वाकांक्षा दें साथ घड़ी कैसी भी हो,
दोस्‍त वही निस्‍स्‍वार्थ रहें, ना बीज बैर का बोते हैं।

2
जैसे किस्‍से देखा करते, पढ़ते सुनते दिन-प्रतिदिन।
इंसाँँ तो अब रिश्‍तों को, शर्मिन्‍दा करते दिन-प्रतिदिन।
मित्रों काेे ना दृष्टि लगे हम, गर्व करें उन पर 'आकुल',
नासूरों के जैसे हैं अब, रिश्‍ते रिसते दिन-प्रतिदिन।

3
वो दोस्‍त क्‍या जिसे दोस्‍ती पर फ़़ख़्र नहीं होता।
दोस्‍तों के बीच गर दोस्‍ती का ज़ि‍क्र नहीं होता।
तुम ज़़िन्‍दा हो मुग़ालते में मत रहना 'आकुल',
मुरदों को करवट बदलने का फ़ि‍क्र नहीं होता।

4
दाेस्‍त वही जानो जिसमें दोष तक न हो।
दोष मन में दुश्‍मन है इसमें शक न हो।
दिखती नहीं रिश्‍तों में कशिश अब 'आकुल',
दोस्‍त के मीजान पर कभी भी शक न हो।

21 अक्तूबर 2016

मुक्‍तक- देस-परदेस

देस-
****
मेरा भारत तीज और त्योहारों का है देस।
अक्षुण्ण बनी सभ्यता और संस्कारों का है देस।
दिन दूना और रात चौगुना बढ़ता जाता प्रेम,
ढाई अाखर सिद्ध यह दशावतारों का है देस।





परदेस -
******
क्यों जाते परदेस छोड़ कर अपनी माटी।
अपना घर, कुल, मर्यादा, अपनी परिपाटी।
अपने घर का नमक बोलता है सुख-दुख में,
फूल बनी घड़ि‍याँ जब-जब संकट की काटी।

20 अक्तूबर 2016

कर्मनिष्‍ठ बनना होगा

गीतिका
(लावणी छंद) सम मात्रिक छंद (16-14)

2222 2222, 2222 222

कर्म पथिक जो होना है तो, कर्मनिष्ठ बनना होगा।
सत्यजीत जो होना है तो, सत्यनिष्ठ बनना होगा।

कंटकीर्ण होती हैं राहें, दिखे दूर गंतव्य बहुत,
कुछ विशिष्‍ठ जो होना है तो, उभयनिष्ठ बनना होगा।

ऋतुओं के अभिनव शृंगार, नैसर्गिक पहने धरती,
मर्यादित जो होना है तो, भव्यनिष्ठ बनना होगा।

त्रयम्‍बकेश्‍वर हालाहल पी, बन बैठे संकटमोचक,
इंद्रियजित जो होना है तो, वेद पृष्ठ बनना होगा।

आकुलप्रतिरोधों की ज्वाला, में तप कर निखरे सोना,
कुल किरीट जो होना है तो, गुरु वशिष्ठ बनना होगा।


19 अक्तूबर 2016

दर्द के उन लम्हों में

लघु कथा
**********
उम्र 35 साल। करवा चौथ पर दिन भर पानी नहीं पीने का कठोर व्रत। शाम को चाँद देखने पर ही पानी का घूँट पीने का दृढ़ निश्चय। दोपहर होते-होते पत्नी को माइनर हार्ट अटैक हुआ और उसे बेहोशी की हालत में अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। पूरा शरीर पसीने से तरबतर। पानी की कमी। ड्रिप चढ़ानी पड़ी। वेंटिलेटर पर रखा गया। रात के साढ़े आठ बजे होंगे। मैं हॉस्पिटल की आईसीयू की खिड़की से बार-बार आकाश की ओर देख रहा था, चाँद इसी ओर निकलना था। दूर-दूर तक चाँद दिखाई नहीं दे रहा था। तभी मेरे हाथ पर स्पर्श हुआ। मेरी पत्नी ने मुझे छुआ था। मैंने उसकी ओर देखा। वह मुसकुरा रही थी। मुझे फड़फड़ाती आँखों से एकटक देख रही थी। आँखों की कोरों पर आँसू छलछला आए थे। थोड़ी देर में वह फिर बेहोश हो गई। रात यूँ ही आँखों में कट गई। सुबह नर्स के उठाने पर मैं उठा, देखा पत्नी ठीक थी। वह बैड पर बैठी हुई थी। डॉक्टर के कहने पर मैंने उन्हें पानी पिलाया। वे मुझे रात की तरह एकटक देखे जा रही थीं। मैं झेंपते हुए बोला- सॉरी, मैं तुम्हें चाँद नहीं दिखा पाया, तुम्हारा करवा चौथ का व्रत अधूरा रह गया। उसने धीरे-धीरे कहा- ‘नहीं, उन दर्द के लम्हों में मैंने पल भर तुम्हें देख लिया था, मेरा चाँद तो तुम थे, मेरे पास थे, मैं क्यों कोई दूसरा चाँद देखूँ और अभी तुमने मुझे पानी का पहला घूँट पिला दिया। मेरा करवा चौथ पूरा हो गया।

सान्‍नि‍ध्‍य सेतु: 'आकुल' को 'विद्योत्‍तमा साहित्‍य सम्‍मान'



सान्‍नि‍ध्‍य सेतु: 'आकुल' को 'विद्योत्‍तमा साहित्‍य सम्‍मान': साहित्‍य साधना सम्‍मान फिरोजाबाद के डा0 यायावर को, साहित्‍य आराधना पुरस्‍कार हैदराबाद के श्री विजय सप्‍पति को , साहित्‍य सृजन सम्‍मान मुंब...

14 अक्तूबर 2016

सान्‍नि‍ध्‍य सेतु: विद्योत्‍तमा साहित्‍य सम्‍मान

सान्‍नि‍ध्‍य सेतु: विद्योत्‍तमा साहित्‍य सम्‍मान: नवभारत का स्‍वप्‍न सजायें  अखिल हिन्‍दी साहित्‍य सभा (अहिसास), नासिक द्वारा मेरी पुस्‍तक 'नवभारत का स्‍वप्‍न सजाएँ'' क...

11 अक्तूबर 2016

आज के मुक्‍तक

धर्म

धर्म मूल है राष्‍ट्रीयता' पहचान है।
भाईचारा मानवीयता परिधान है।
सर्वधर्म समभाव कसौटी सहिष्‍णुता की,
कर्म मूल है भगवद्रगीता का आख्‍यान है। ।1।।

अधर्म

कन्‍या भ्रूण हत्‍या, दुष्‍कर्म, नारी अत्‍याचार।
बाल विवाह, उत्‍कोच, दहेज, हिंसा, भ्रष्‍टाचार।
शोषण, जन आंदोलन, आहत धार्मिक भावनाएँँ,
यह अधर्म है, यदि राष्‍ट्र नहीं करता है परिहार।।2।। 




10 अक्तूबर 2016

नवम नवरात्रि माता सिद्धिदात्रि


अणिमा महिमा गरिमा लघिमा, प्राप्ति प्राक्राम्‍य, ईशित्‍व। 
और दशित्‍व ये आठों सिद्धियाँँ तू ही दे सिद्धत्‍व।
पूजूँ, करूँं साष्‍टांग दण्‍डवत, दो सद्बुद्धि हे मात,
बने अर्द्धनारीश्‍वर शिव पा अष्‍टसिद्धि ये तत्‍व।। 

9 अक्तूबर 2016

आज के मुक्‍तक


1
पढ़ लिख कर सेवा को सब प्रस्थान करें।
प्रथम प्रगति संकल्‍प राष्‍ट्र उत्‍थान करें।
शिक्षा, संस्‍कृति, धर्म राष्‍ट्र का मूल हैं,
सर्वांगीण प्रगति हो अनुष्‍ठान करें।

2
दाँव-पेच से जीती जाती है कुश्‍ती की होड़।
राजनीति भी की जाती है कर के जोड़-तोड़।
साँठ-गाँठ से ही जीता जाता है गढ़ दुश्‍मन का,
दोड़-धूप से जीती जाती है जीवन की दौड़।।

8 अक्तूबर 2016

7 अक्तूबर 2016

वंदे मातरं (हायकु गीतिका)

(चूँकि हायकु एक वार्णिक छन्‍द (5/7/5) है, इसलिए इस गीतिका में मात्रा भार पर ध्‍यान नहीं दिया गया है। )

हो गया शुरु / क़ातिलों को काटना / वंदे मातरं।
हो गया शुरु / फ़ासिलों को काटना / वंदे मातरं।1

गिद्ध दृष्टिसे / देखेंगे तो देखना/ कैसे भागेंगे
हो गया शुरु / नाजियों को काटना / वंदे मातरं। 2

कायरो सुनो / अब जो हाथों पड़े / हाथ जायेंगे
हो गया शुरु / बाजुओं को काटना / वंदे मातरं।3

रक्‍त की होली / जान पर खेली है / कैसे छोड़ेंगे
हो गया शुरु /  नादिरों को काटना / वंदे मातरं।4

जिन पातों से / चाल चली सालों से / मात खायेंगे
हो गया शुरु / काफ़ि‍रों को काटना/ वंदे मातरं।5

क़ातिलों- हत्‍यारे; फासिलों- अलग करने वाले; 
नाजियों- नाज़ी जैसे अत्‍याचार करने वाले; 
नादिरों- नादिरशाही की तरह क्रूर कृत्‍य करने वाले; 
क़ाफिरों- धर्म को न मानने वाले। 

6 अक्तूबर 2016

माँँ के दरबार में अरदास

2122   2122    2122   212 

आज माता के सजे, दरबार मे आ जाइए।
आइए नवरात्रि के, दरबार में आ जाइए।

रोज आएँ नौ दिनों तक, भावना भक्ति करें,
मात रानी के चरण में, हाजिरी लगवाइए।

शेर की करती सवारी, माँ सजी चोला पहन,
नौ दिनों तक माँ समीप, अखंड जोत जलाइए।

हाथ में खँग मुंडमाला, है त्रिशूल विराट भी,
ढोल, घंटे, झालरों के, बीच दर्शन पाइए।

आज ‘आकुल’ की तिरे, दरबार में अरदास है
जागरण करता रहूँ, इतनी कृपा कर जाइए।

5 अक्तूबर 2016

हिन्‍दी पर मुक्‍तक

क्‍यों अभी तक किसी ने हिन्‍दी पर ध्‍यान नहीं दिया ?
क्‍यों अभी तक किसी ने इस पर प्रसंज्ञान नहीं लिया ?
क्‍यों सत्‍तर वर्षों से रही ये शिखर से वंचित,
क्‍यों शासकों ने राष्‍ट्रभाषा का संविधान नहीं किया ?



क्‍यो नहीं चाहते हिन्‍दी स्‍थापित हो सर्वोच्‍च स्‍थान?
क्‍यों नहीं चाहते हिन्‍दी गर्वित भारत संविधान?
क्‍यों अंग्रेजी देवभाषा बनी बैठी हुई शिखर,
क्‍यों नहीं चाहते एक क्रांति हो आए प्रावधान?



आओ इस बात का अब वादा करें ।
हिन्‍दी बने सिरमौर इरादा करें।
सबकी दृष्टि है हिन्‍दुस्‍तान पर अब,
इसलिए प्रयत्‍न सबसे ज्‍यादा करें।।


काक महिमा ( संवर्द्धित)

1.
(नर दोहा- 15 गुरु वर्ण, 18 लघु वर्ण)
कोयल कौ घर फोरि कै, घर-घर कागा रोय।
घडि़यल आँँसूम देखि कै, कोउ न वाकौ होय।।
2. 
(मर्कट दोहा- 17 गुरु वर्ण, 14 लघु वर्ण
बड़-बड़ बानी बोलि कै, कागा मान घटाय।
कोई वाकौ यार है, कोउ नाय बतलाय।।
3. 
(हंस दोहा- 14 गुरु वर्ण, 14 लघु वर्ण)
चिरजीवी की चेष्‍टा, जग ने करी बखान।
पिक बैरी सिय देइ दुख, खोयो सब सम्‍मान।।
4.
(मर्कट दोहा- 17 गुरु वर्ण, 14 लघु वर्ण
पिक के घर में सेव कै, कागा पिक ना होय। 
लाख मलाई चाट कै, कारा सित ना होय।।
5.
(नर दोहा- 15 गुरु वर्ण, 18 लघु वर्ण)
महनत करकै  घर बनै, पिक से यारी होय।
कागा सौं नहिं जीव है, ऐयारी में कोय।।
6.
(कच्‍छप दोहा- 8 गुरु वर्ण, 32 लघु वर्ण)
गउ, बामन बिन कनागत, दसा घाट बिन काक।
सद्गति बिन उत्‍तर करम, जीवन ना बिन नाक।।
7.
(त्रिकल  दोहा- 9 गुरु वर्ण, 30 लघु वर्ण)
काक म‍हत्‍तम जान लो, पंडित काकभुशंड।
इंदर पूत जयंत कौं, एक आँँख कौ दंड।।
8.
(करभ दोहा- 16 गुरु वर्ण, 16 लघु वर्ण)
आमिष भोजी कागला, कोउ न प्रीत बढ़ाय।
औघड़ सौं घूमे बनन, जीवन यूँ ही जाय।।
9.
(मर्कट दोहा- 17 गुरु वर्ण, 14 लघु वर्ण)
कोयल बुलबुल ना लड़ैं, दोनों मीठौ गायँ।
प्रीत बढ़ावै दोस्‍ती, कागा समझे नायँ।।
10.
(शरभ दोहा- 20 गुरु वर्ण, 8 लघु वर्ण)
'आकुल' या संसार में, तू कागा से सीख।
ना काहू से दोस्‍ती, ना काहू से भीख।।