2 नवंबर 2016

अनमोल खुशी (लघुकथा)

मैं 2015 में सेवानिवृत्त हो गया था. बेटा रूस से मेडिकल की डिग्री ले कर 2012 में भारत लौट आया था. विदेश से मेडिकल की उच्च शिक्षा प्राप्त करके भारत आने वाले डॉक्टर्स को भारतीय चिकित्साि परिषद् (एम.सी.आई.) की परीक्षा उत्तीर्ण करना तत्पश्‍चात् एक वर्ष की इंटर्नशिप करना जरूरी होता है. आते ही उसने भारतीय चिकित्सा परिषद् (एम.सी.आई.) की परीक्षा पास कर ली और एक साल की इंटर्नशिप भी कर ली. उसका दिल्ली मेडिकल काउसिंल (डी.एम.सी.) में पंजीकरण हो गया. वह पंजीकृत चिकित्सक बन गया था. वह दिल्ली में ही रह कर निजी अस्प्तालों में छोटे-छोटे अनुबंध पर चिकित्सा सेवा दे रहा था और अपना खर्च निकाल लेता था. अंतत: जून 2016 में उसका भारतीय सशस्त्र सेना में मेडिकल ऑफिसर के पद पर चयन हो गया और वह दिल्लीे में ही पदस्थापित हो गया था. देश की सर्वोच्च सेवा में उसकी नियुक्त् से परिवार गौरवान्वित अनुभव कर रहा था. यह पहली खुशी थी. मालूम हुआ कि उसे सेना में ‘कैप्टन’ की रैंक मिली है. एक सादा समारोह में सितारा अलंकरण समारोह में उसे कैप, स्टार और बैज लगाये गये. उसे सितारा और कैप में सुसज्जित देखना अलौकिक था. यह दूसरी खुशी थी. सेना में सभी औपचारिकता पूर्ण करने के बाद लगभग 3 से 4 महीने के बाद ही पहला वेतन मिलता है, इसलिए बेटे को हर माह खर्च के लिए हम ही मदद करते थे. दिवाली के दूसरे दिन 1 नवम्बर को बेटे का फोन आया कि पापा मेरी सेलेरी आ गई है. हमारी खुशी दो गुनी हो गई. यह तीसरी खुशी थी. तभी उसने आगे कहा- ‘पापा आपके बैंक खाते में 2 लाख रुपये डाल दिये हैं.’ अब वह खुशी चार गुनी हो गई थी. इन अनमोल खुशियों को शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता था. हमारी तपस्या सिद्ध हो गई थी.

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