26 नवंबर 2016

जीवन नैया



(गीतिका)


मेरी जीवन नैया भी अब डग-मग बहती रहती है.
श्‍वास लहर लहरों सेे भी अब लगभग डरती रहती है.

जब जब आए ज्‍वार किनारे पर सहमी सी डरी हुई,
तंग थपेड़ों को हरदम अब डग-डग सहती रहती है.

जब भी रहते मेरे सँग मेरे संगी साथी दिन भर,
यादों के सँग आँँखें भी अब डब-डब बहती रहती है

कभी नहीं था ऐतराज मुझको जाने अनजानों से,
केवट आँँखें दुनिया के अब रँग-ढँग पढ़ती रहती है

मोह माया महत्‍वाकांक्षाएँ  नहीं छूटतीं जीवनभर,
रोज बहाने नाम धाम अब पल-पल धरती रहती है 

बचपन और जवानी तो यूँ निकल गए गिरते पड़ते,
गिरूँ-पड़ूँ नहीं शेष उमर अब जब-तब कहती रहती है.   

अब भी बीच सफर में जब तूफानों के तेवर देखूँ, 
आशंकाएँ ‘आकुल’ की अब धक-धक बढ़ती रहती है.

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