31 दिसंबर 2017

छोटी-छोटी खुशियाँ ले कर आएगी कविता (गीतिका)

छंद- विष्‍णुपद सम मात्रिक
शिल्‍प विधान- 16,10 अंत गुरु से.
पदांत- कविता
समांत- आएगी

छोटी-छोटी खुशियाँ ले कर, आएगी कविता
खट्टी-मीठी बतियाँ जी भर, गाएगी कविता.

गीत, गीतिका, मुक्‍तक सारे, बंधन छंदों के,
छोड़ आज बस मुक्‍त गगन में, छाएगी कविता.

कुछ दिन ही आते जीवन में, जी भर कर जीते,
उन अनमोल क्षणों को भी जी, पाएगी कविता.

हाथ जोड़ कर हाथ मिला कर, लग कर खूब गले,
नये साल में  सौगातें दे, जाएगी कविता.

कविता ने नवगीत तलक का, सफर किया पूरा,
प्रेम टूट कर करो एक से, छाएगी कविता.

चलो प्रेम का दूर क्षितिज तक, पहुँचायें’ संदेश
आसमान छू लोगे वो रँग, लाएगी कविता.

आकुल रचना धर्म निभाना, कविता खूब लिखें,
वक्‍़त पड़े दुश्‍मन का भी गढ़, ढाएगी कविता.

30 दिसंबर 2017

प्यार में अच्छी लगे तकरार भी (गीतिका)

छंद- आनंदवर्धक
मापनी- 2122 2122 212
पदांत- भी
समांत- आर

प्यार में अच्छी लगे तकरार भी.
जीत में मिलती रही है हार भी.

बाग़ सब मिलते नहीं फूलों भरे,
संग फूलों के मिलेंगे ख़ार भी.

राह कैसी भी मिले चलते रहो,
ढूँढ़ लोगे एक दिन तुम यार भी.

बात तब दोनों तरफ ही आग हो,
टूट के करते हों' दोनों प्यार भी.

युद्ध में अरु प्रेम में जायज है' सब,
है जुनूँ तो है झुका संसार भी.

29 दिसंबर 2017

जाते जाते साल कह रहा (गीतिका)

छंद- लावणी
शिल्‍प विधान- मात्रा भार- 30. 16, 14 पर यति अंत 3 गुरु वाचिक.
पदांत- मुझसे
समांत- आया

जाते-जाते साल कह रहा, सोचो क्या पाया मुझसे.
किसने पाई खुशी, परेशाँ, कौन है' भरपाया मुझसे.
 
पाना-खोना मेरे वश में, नहीं समय कब रुका यहाँ,
मैंने वो बाँटा मौसम ने, जो भी बँटवाया मुझसे.

मैं आया जब थे सारे खुश, सबने स्वागत खूब किया,
धन्य यहाँ हैं सब खुश-नाखुश, उनको मिलवाया मुझसे.

मेरा यह कहना है सबसे, मैंने जो तुम में देखा,
जितना चले सफल तुम सारे, से'हरा बँधवाया मुझसे.

इंसानों की दुनिया में क्या, है बिसात मेरी आकुल
मैंने वही किया है जो भी, उसने* करवाया मुझसे.

(*उसने- यहाँ इसे समय, इंसान, र्इश्वर के संदर्भ में पढ़ा जा सकता है.)

27 दिसंबर 2017

नारी और प्रकृति की प्रतिदिन (गीतिका)


छंद- ताटंक
शिल्‍प विधान- मात्रा भार 30. 16,14 पर यति अंत 3 गुरु अनिवार्य.
पदांत- है
समांत- आनी

नारी और प्रकृति की प्रतिदिन, यह अनुभूत कहानी है.
आँखिन देखी विडम्‍बना यह कहती मूक जबानी है.

प्रकृति विदोहन से धरती के, सीने छलनी हैं होते,
नारी के आँचल रक्ति‍म हैं, सहती भूख जवानी है.

हर युग का इतिहास पढ़ा यह, गुना आदमी जो होता,
वीरा नारी के मुखड़ों पर, रहती क्यूँ वीरानी है.

मातृशक्ति स्‍वरूप नारियाँ, देवी सी पूजी जातीं,
दशकुलवृक्षों से अनभिज्ञ जो’, निपट मूढ़ अज्ञानी है.

प्रकृति बनाती स्‍वर्ग धरा को, नारी है कुल की देवी,
नई नींव डालें नव पीढ़ी, अब मजबूत बनानी है.   

26 दिसंबर 2017

अभिलाषाएँ (गीतिका)

छंद- लावणी
शिल्प विधान- मात्रा भार 30. 16,14 पर यति, अंत 3 गुरु (वाचिक)
पदांत- करें,
समांत- आर

जैसे ऋतुएँ, हवा, प्रकृति सब, इस धरती से प्यार करें.
जैसे सूर्य, हवा, पानी सब, ऊर्जा का संचार करें.

वैसे सुख-दुख का बनती हैं, अभिलाषायें मूल सदा,
जैसे जन्म-मृत्यु है शाश्वत, सब जीवन से प्यार करें.

इसीलिए आवश्यक है हम, एक ध्येय दें जीवन को,
धैर्य, सजग, हो शांत चित्त से हित चिंतन हर बार करें.

अभिलाषाएँ खत्म न होतीं, पलती हैं जीवन रहते,
सफल तभी अभिलाषाओं को, जीवन में साकार करें.

बन पाते वे ही जितेंद्रिय, दूर रह मोह माया से,
अभिलाषाओं से रह मुक्त योग से मन विस्तार करें.

उसने ईश्वर पाया जिसने, अभिलाषाएँ हैं त्यागी,
जीवन को समझें तप सारे, यज्ञ,पुण्‍य, परिहार करें.

ऋतु की भाँति है जीवनकाल, टिका चार आयामों पर,
संघर्षों से तप तन-मन से, पूरे हर संस्कार करें.

25 दिसंबर 2017

नाय नैकूँ होनो जानो कछू भी (गीतिका)

छंद- घनाक्षरी (वार्णिक)
शिल्‍प विधान- 31 वर्ण, 8,8,8,7 पर यति, अंत गुरु.
पदांत- सौं नाय नै कूँ, होनो जानो कछू भी.
समांत- अवे

सिद्ध करौ धरम कूँ, वित्‍त भरौ करम सूँ,
बैठवे सौं नाय नैकूँ, होनो जानो कछू भी.  
ढेरों बिपदायें खड़ी, जीवन में छोटी बड़ी,
ढेलवे सौं नाय नैकूँ, होनो जानो कछू भी

कागज पानन सूँ न, हुक्‍म चलावन सूँ न,
देव कूँ मनावन सूँ न, राह मिल जात है.
करौगे न कहीं पैठ, सुमिरनी नित्त बैठ,
फेरवे सौं नाय नैकूँ, होनो जानो कछू भी.   

जात-पाँत, रीत-भाँत, मन नैकूँ हो न शांत,  
सूखे हों जो पेट आँत, सपन न आत है.
भीख ले के हो प्रसन्‍न, पशु के समक्ष अन्‍न
फैंकवे सौं नाय नैकूँ, होनो जानो कछू भी.   

‘आई है विपत्ति जब, नियति ने तब तब,
खोले हैं गवाख लख, सभी जुट जात हैं.
सैंकड़ों हैं आपदायें, सैंकड़ों हैं समस्‍याएँ,
देखवें सौं नाय नैकूँ होनो जानो कछू भी.

हो धरा को स्‍वच्‍छ तन, बढ़ेगौ तभी वतन,
भ्रष्‍टता कौ होय अंत, मिलैगी नजात है.
रुकै न समय घड़ी,  कोरी बातें बड़ी-बड़ी,
केहवै सौं नाय नैकूँ, होनो जानो कछू भी.

24 दिसंबर 2017

मत आलस कर (गीतिका)


छंद- रास.
शिल्‍प विधान- मात्रा भार 22. 8,8,6 पर यति,
                    अंत 112 (वाचिक) 
पदांत- कर
समांत- अस

समय रुकेगा, कभी नही मत, आलस कर.
माना प्रिय बिस्‍तर, कंबल उठ, साहस कर.

सूरज का धुँधला रहता पथ, सर्दी में,
करता प्रतिदिन सूर्य भ्रमण बस, मानस कर.

अनुकूल रहें, पशु मौसम के, सब जानें
हर मौसम की, प्रकृति अलग चल, अब बस कर.

प्रकृति ने किये, छोटे हर दिन, रात बड़ी,
बढ़ता जाये क्‍यों, आलस तन, आयस कर.

‘आकुल’ कोशिश, कौन करेगा, खग से बढ़,
कौए जैसी, कर चेष्‍टा मन, वायस कर.  

ओला केब

लघुकथा

लंदन से बेटी इस बार घर नहीं आ रही थी. वह अपने दो बच्‍चों साथ मुंबई आ गई थी. भारत में बैंक खातों को आधार लिंक, पैन कार्ड से जोड़ना, आधार कार्ड बनवाना, पुरानी प्रोपर्टी को बेचना आदि कई कामों के कारण उनका थोड़े समय के लिए क्रिसमस के पूर्व भारत आने पर बहुत व्‍यस्‍त कार्यक्रम के कारण बेटी-दामाद ने हमें मुंबई बुला लिया था. मैं और पत्‍नी दिन भर उनके साथ रहे. दूसरे दिन हमें घर लौटना था. बोरिवली से मुंबई सेंट्रल. 32 किलोमीटर, 9005-मुंबई सेंट्रल-निजामुद्दीन विशेष राजधानी रेल, रवाना होने का समय 4.00 शाम. हमने ओला केब बुक की. 2 बजकर 4 मिनिट पर हम बोरिवली से रवाना हुए. सफर लगभग डेढ़ घंटे का बताया, तो पहले तो
मुंबई में ओला केब से लिया चित्र
हम निश्चिंत हो गये कि समय से कुछ समय पूर्व पहुँच ही जायेंगे. सभी ने यही कहा था कि दोपहर को ट्रेफिक ज्‍यादा नहीं होता. पर जब केब का सफर शुरु हुआ तो धीरे-धीरे उतार-चढ़ाव आने लगे; कहीं बहुत ट्रेफिक, कहीं जाम, कहीं आगे निकलने की दौड़ ने सफर बहुत धीमा कर दिया. बांद्रा के पास हैंगिग ब्रिज से पहले टोल नाके पर लंबी कतार. वहाँ से रवाना होते ही दिल की धड़कनें धीरे धीरे बढ़ने लगी थीं. केब के मोबाइल स्‍क्रीन पर रुट मेप पर दूरी तय करने में लगने वाले समय को देख कर धड़कने बढ़ रही थी, उससे ऐसा लग रहा था कि आज गाड़ी चूक सकते हैं. हैंगिंग ब्रिज क्रॉस करने के बाद मुंबई सेंट्रल तक भीड़, सिग्‍नल पर रुकने, हैवी ट्रेफिक से चिंता बढ़ती जा रही थी. डेस्टिनेशन 10....9....8....7 मिनिटि. मेरा ध्‍यान बस केब के मोबाइल पर ही था. 3 बज कर 55 मिनिट पर मुंबई सेंट्रल रेल्‍वे स्‍टेशन के सामने कैब ने हमें उतारा. हमने उसे शीघ्र उसका किराया चुकाया और भागे सीधे प्‍लेटफार्म पर. बी-7 कोच में हम दोनों ने कदम रखा और रेल रवाना हो गई. एक क्षण के लिए मैंने दिल की धड़कनों की धक-धक सुनी. अपनी सीट पर बैठ कर हमने शांति की साँस ली. थोड़ी देर बाद मैंने मोबाइल पर कैब के पेमेंट के बारे में मैसेज देखा. उसमें लिखा था- Pls. pay bill aount of Rs. 702 in cash for your ola ride, served by Ramkeval. Tolls/parking included. तब मैंने सोचा कि टोल का भुगतान तो मैंने किया था, मेरे पास रसीद थी, ड्राइवर ने मुझसे पूछने पर कहा ही नहीं कि भुगतान उसे करना है या जिस समय किराया ले उसे कम करके देना है. वह पूरा पैसा ले चुका था. खैर संतोष भी हुआ कि कोई बात नहीं टोल के 60/- रुपये भले ही चले गये, किंतु उसने हमें समय पर मुंबई सैंट्रल पहुँचा दिया था. पर 'ओला केब' की प्रतिष्‍ठा को ध्‍यान में रखते हुए और भविष्‍य में कोई ड्राइवर किसी को इस तरह धोखे में नहीं रखे, रिव्‍यू में मैंने ‘ओला केब’ को टोल के बारे में बताया. अभी तक ओला का कोई जवाब नहीं आया है.