28 फ़रवरी 2017

यार का ग़म

गीतिका 
पदांत- है
समांत- अलता है 

यार का ग़म, कम करने में, वक्‍त भी छलता है.
यार से मिलने, को यह’ मन, कमबख्‍त मचलता है.

आज लगा उसके बिन, उससे दिल का रिश्‍ता था,
दिन रातों की तनहाई में, इक डर पलता है.

यार बिछड़ जाये तो, जब-तब, ढलते हैं आँसू,
लाख करें कोशिश, मुश्किल से, हर दिन ढलता है.

अब तो तनहाई भी रास नहीं आती हमको,
तनहाई में यह दिल बेर्इमान पिघलता है.

कैसे कह दूँ, उसने वफा में, दग़ा दिया ‘आकुल’,
यह वो शय है, जहाँ किसी का, बस नहीं’, चलता है.  

26 फ़रवरी 2017

मनुष्‍य

गीतिका

पदांत- है
समांत- आन

ज्ञान में सम्‍मान्‍य है, वागीश्‍वरी वरदान है. 
ज्ञान में सब प्राणियों में मनुष्‍य ही प्रधान है. 

विद्वान् है, गुणवान् है, महान् है कला में वह, 
प्राणिजगत् में मनुष्‍य ही इस धरा की शान है. 

भविष्‍य की उड़ान है, है वर्तमान बहु उर्जित,
पंचतत्‍व निर्मित नियति निर्दिष्‍ट वह विज्ञान है.

वाक्-पटुता में दिया है धैर्य प्रकृति ने प्रबल,
जिह्वा में तो जैसे सरस्‍वती राजमान है­.

खेल देखिए जगती में नियति का यहाँ ‘आकुल’
मनुष्‍य ही मनुष्‍य के उत्‍कर्ष में व्‍यवधान है.

24 फ़रवरी 2017

महाशिवरात्रि पर एक गीतिका

शिव ही है कल्याण अनवरत उसे भजिए सदा
शिव ही है विश्वास हृदयस्थ उसे रखिए सदा

सुन्दरम्, सत्यम्-शिवम् का रूप है यह महादेव
सिद्ध मंत्र ओम् नम: शिवायजपते रहिए सदा

गौरी-गणेश-कार्तिकेयके हैं शिव आराध्य देव,
त्रिदेवों में इक देव हैं उपासना करिए सदा

कालकूट विष पी कर कहलाये महा नीलकंठ,
विश्वात्मा त्रिनेत्रधारी के अनुचर बनिए सदा.

होते प्रसन्न शीघ्र ये दयालु हैं ऐसे आकुल

अघोरी साधु-संत समागम से बस बचिए सदा.

1 फ़रवरी 2017

बसंत

गीतिका 

जाने को है शरद,  माघ का सावन हुआ बसंती.
रुत बसंत की भोर, आज मनभावन हुआ बसंती.   

बौर खिले पेड़ों पर, लहराई गेहूँ की बाली,     
मनुहारों, पींगों की रुत मनमादन हुआ बसंती.

आहट होने लगी फाग की, पवन चली मधुमासी,
चढ़ने लगा रंग तन-मन पर दामन हुआ बसंती.

डाल डाल पर फूल खिले, ली अँगड़ाई कलियों ने,
नंदन कानन, अभ्‍यारण्‍य‘, वृन्‍दावन हुआ बसंती.

‘आकुल’ आया बसंत दूत ले कर संदेशा घर-घर,
 करने अंत विद्वैष-वैर,  घर आँगन हुआ बसंती.

-0- 

माघ का सावन - मावठ, मनमादन- कामदेव रूपी मन
बसन्‍त दूत- कोयल