31 अगस्त 2017

सूर तुम सागर हो (गीतिका)



पदांत- हो
समांत-आर

सूर तुम सागर हो, छंद का, सृजित संसार हो.
भक्ति के हर छंद, रत्नों से, भरा आगार हो.

अंध हो पर अंधता को, हर दिया, तुमने हरा,
भक्ति चाक्षुस यज्ञ की तुम, सिद्ध समिधा डार हो.

रूप और लावण्य रचा, राधिका का छंद में,
रचा कृष्ण का आनंद हो, रास या विहार हो.

कृष्ण की लीला रचीं, हैं आज भी, मोहित सभी,
जान पाया जग, कि तुम तो, छंद पारावार हो.

दृष्‍टांत हो तुम तो, हे! सूर, है नमन तुमको सदा,
छंद से 'आकुल' डरे क्यों, तुम जो कर्णधार हो.

28 अगस्त 2017

बीच धार मत छोड़ना (गीतिका)

छंद- सोरठा
मात्रा भार- 11, 13 (दोहा का उल्‍टा)
पदांत- मत छोड़ना
समांत- आर

जीवन में तू हाथ, कभी यार मत छोड़ना.
अपनों का बस हाथ, बीच धार मत छोड़ना.

मिला तुझे संसार, मिली प्रीत है यार की,
मिलता कब हरबार. कभी प्यार मत छोड़ना.

रिश्ते ही गुलजार, करते हैं घर को सदा,
नहिं अतिथि सत्कार, मनूहार मत छोड़ना,

जर जोरू व जमीन, रचते हैं इतिहास ये,
लगे न इनसे दाग, बिन आ’भार मत छोड़ना.

रखना तू पहचान, रिश्तों के चलते मगर,
रखना तू यह ध्यान, ऐतबार मत छोड़ना.

मात पिता का मान, लज्जित हो ‘आकुल’ नहीं,
रहे सर्वोच्च स्थांन, निराधार मत छोड़ना

जीवन में तू हाथ कभी मत यार छोड़ना (गीतिका)


छंद- रोला (11,13, विषम चरणांत 21, सम चरणांत 12/111)
पदांत- छोड़ना
समांत- आर

जीवन में तू हाथ, कभी मत यार छोड़ना.
अपनों का मत साथ, बीच मझधार छोड़ना.

तुझे मिला संसार, मिली है प्रीत यार की,
मिलता यह हरबार, नहीं मत प्‍यार छोड़ना.

रिश्‍ते ही गुलजार, किया करते हैं घर को,
कभी नहीं मनुहार, अतिथि सत्‍कार छोड़ना.

गुड़ से चींटे, नाग, सदा चंदन से लिपटें,
लगे न इनसे दाग, इन्‍हें साभार छोड़ना.

जर, जोरू व जमीन, सदा इतिहास विरचते,
इनके लिए कभी न, कहीं संस्कार छोड़ना.

रखना तू पहचान, मगर रिश्‍तों के चलते,
रखना तू यह ध्‍यान, नहीं घर-बार छोड़ना.

मात-पिता का मान, नहीं लज्जित ‘आकुल’ हो,
रहे सर्वोच्‍च स्‍थान , नहिं निराधार छोड़ना.  

27 अगस्त 2017

समंदर अभी तक भी हारा नहीं है (गीतिका)

छंद- वाचिक भुजंगप्रयात
मापनी- 122 122 122 122
पदांत- नहीं है
समांत- आरा
समंदर अभी तक भी’ हारा नहीं है.
उसे चाँद से कम गवारा नहीं है.

रही उसकी' चाहत, सदा चाँद ही की,
कभी चाँदनी को, पुकारा नहीं है.

किया जिसने' रोशन, है' जीवन किसी का,
मिला उसको' टूटा, सितारा नहीं है.

जो' गहरे में' जाकर ले' आते हैं मोती,
उन्‍हें जल समंदर का' खारा नहीं है.

चला है जो' हरदम ही' नेकी के पथ पर,
कभी भी वो’ इंसान हारा नहीं है.

नहीं जो चला है समय के मुताबिक,
जमाने ने' उसको सँवारा नहीं है.

अकर्मण्य बन के जो' जीता रहा है,
वो’ बोझिल है’ जग पर, बे’चारा नहीं है.

25 अगस्त 2017

गणेशाष्‍टक

जय गणेश जय गणेश गणपति जय गणेश।।
1
धरा सदृश माता है माँ की परिकम्‍मा कर आए।
एकदन्‍त गणनायक गणपति प्रथम पूज्‍य कहलाए।।
प्रथम पूज्‍य कहलाए गणपति जय गणेश।
जय गणेश जय गणेश...........।।
2
लाभ-क्षेम दो पुत्र, ऋद्धि-सिद्ध के स्‍वामि गजानन।
अभय और वर मुद्रा में करते कल्‍याण गजानन।।
करते कल्‍याण गजानन गणपति जय गणेश।
जय गणेश जय गणेश..........।।
3
मानव-देव-असुर पूजें व त्रिदेवों ने गुण गाये।
धर त्रिपुण्‍ड मस्‍तक पर, शशिधर भालचन्‍द्र कहलाए।।
भालचन्‍द्र कहलाए गणपति जय गणेश।
जय गणेश जय गणेश ..........।।
4

असुर-नाग-नर-देव स्‍थापक,चतुर्वेद के ज्ञाता।
जन्‍म चतुर्थी, धर्म-अर्थ और काम-मोक्ष के दाता।।
काम-मोक्ष के दाता गणपति जय गणेश।
जय गणेश जय गणेश..........।।
5
पंचदेव और पंच महाभूतों में प्रमुख कहाए।
बिना रुके लिख महाभारत महा-आशुलिपिक कहलाए।।
आशुलिपिक कहलाए गणपति जय गणेश।
जय गणेश जय गणेश ...........।।
6


अंकुश-पाश-गदा-खड्.ग -लड्डू-चक्र-षट्भुजा धारे।
मोदक प्रिय, मूषक वाहन प्रिय, शैलसुता के प्‍यारे।।
शैलसुता के प्‍यार गणपति जय गणेश।
जय गणेश जय गणेश..........।।
7
सप्‍ताक्षर 'गणपतये नम:' सप्‍त चक्र मूलाधारी।
विद्यावारिधि, वाचस्‍पति, महामहोपाध्‍याय* अनुसारी।।
जपो सदा ''गणपतये नमन:'' जय गणेश।
जय गणेश जय गणेश..........।।
8
छन्‍दशास्‍त्र के अष्‍टगणाधिष्‍ठाता अष्‍टविनायक।
'आकुल' जय गणेश, जय गणपति सबके कष्‍ट निवारक।।
सबके कष्‍ट निवारक गणपति, जय गणेश।
जय गणेश जय गणेश..........।।

23 अगस्त 2017

तीन तलाक (गीतिका)



पदांत- चाहिए 
समांत- अनी

तलाक के निर्णय को अब सर्वत्र प्रशंसाएँ मिलनी चाहिए.  
जो हैं असहमत फैसले के उनके अब नकेल डलनी चाहिए.  

अब भी हैं शेष बहुविवाह, हलाला अशिक्षा आदि कई मुद्दे  
जनसंख्‍या नियंत्रण के लिए शीघ्र ही अब हवा चलनी चाहिए. 

नारी नई ऊर्जा से अब लिक्‍खे नया इतिहास श्रीगणेश हो
सोच हो नया नव पीढ़ी को, सड़ी-गली प्रथा बदलनी चाहिए.

लोकतंत्र में विश्‍वास, हो सम्‍मान न्‍याय का, उत्‍थान के लिए,
उत्‍सर्ग हो हित राष्‍ट्र में, येभावना जन जन में पलनी चाहिए.

समृद्ध संस्‍कृति का ध्‍वज अक्षुण्‍ण फहरे राष्‍ट्रधर्म भावना फले,
जात-पाँत, भेदभाव, राजनीति वोट की अब न फलनी चाहिए.

22 अगस्त 2017

चार दिनों का जीवन सारा है (गीतिका)



मापनी-22 22 22 22,22 22  22 
पदांत- है 
समांत- आरा 


श्री राम, कृष्‍ण या कहो, सदा शिव ने आकंठ उतारा है.
कर पान गरल अवतारों ने अरि दुष्‍टों को संहारा है.

मीरा ने पी कर गरल प्रेम को अमर किया है दुनिया में,
है गरल पिया जिसने जग में उसने भवितव्‍य सँवारा है.

धैर्य किये धारण सागर ने सहे विप्‍लव तट के ही सदा,    
पी पी कर गरल समंदर का जल युगों युगों से खारा है.

बह रही प्रदूषित हवा, धरा, है साँस प्रदूषित मानव की,
किस अहंकार में मानव ने फिर जगती को ललकारा है,

‘आकुल’ जीवन में मानव और प्रकृति में रहें सम्‍बंध मधुर.
आकंठ रहे प्रेमामृत चार दिनों का जीवन सारा है.