14 अगस्त 2017

जय श्री' कृष्‍णा

गीतिका
छंद- पियूष निर्झर (छंद लहरी)
पदांत- जय श्री' कृष्‍णा
समांत- आया
मापनी- 2122  2122  2122


नंद घर आ, नंद आया, जय श्री’ कृष्णा.
नंदनंदन चंद भाया, जय श्री’ कृष्णा.

जन्म अष्टम, गर्भ माया, सोई’ मथुरा,
कंस ने सुन, खार खाया, जय श्री’ कृष्णा.

शेष ने की, छत्र छाया, उतरी’ यमुना,
नंद ने गो, पाल पाया, जय श्री’ कृष्णा.

मन चुरा, माखन चुराया, गऊ’ चराई,
रास राधा, सँग रचाया, जय श्री’ कृष्णा.

गिरि उठा गो, धन बचाया, इंद्र ढाया,
कंस के डर, को मिटाया, जय श्री’ कृष्णा.

देवकी वसु-देव दोनों, भी सिहाये
ब्रज में' मथुरा, को मिलाया, जय श्री’ कृष्णा.

पार्थ ने तब, ज्ञान पाया, धर्म जाना ,
ज्ञान गीता, का सुनाया, जय श्री’ कृष्णा

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