19 सितंबर 2017

दिल्‍ली एक लहर पहुँचाएँ (गीतिका)


छंद- पदपादाकुलक चौपाई
मात्रा भार- 16 
विधान- द्विकल से आरंभ, अंत गुरु (वाचिक)
पदांत- पहुँचाएँ 
समांत- अर

हिंदी को घर-घर पहुँचाएँ.
ढाणी गाँव नगर पहुँचाएँ

रुकना नहीं डगर कैसी हो, 
हिन्‍दी उच्‍च शिखर पहुँचाएँ.

जैसे एक चाँद लख तारे,
इसको भी नभ पर पहुँचाएँ.

गूँजे अब आवाज हिंद से,
विश्‍व सुने वो’ असर पहुँचाएँ.

खुसरो, तुलसी, सूर, कबीरा,
की बानी दर-दर पहुँचायें.

बन जायें जिद्दी, सत्‍ता को,
अपना हक जिद कर पहुँचाएँ.

जनता का फिर ज्‍वार उठे अब,
चारों ओर खबर पहुँचाएँ.

'आकुल' बने राष्‍ट्रभाषा यह,
दिल्‍ली एक लहर पहुँचाएँ.

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