22 अक्तूबर 2017

प्रीत से प्रीत पली हुए ग़म दूर घने (गीतिका)

छन्द -- मंगलवत्थु [ मापनी मुक्त]
22 मात्रायें ,11, 11 यति के पूर्व व बाद में त्रिकल, अंत 22 (वाचिक)

पदांत- दूर घने 
समांत- अम 

ज्‍योत से ज्‍योत जली, हुए तम दूर घने.
प्रीत से प्रीत पली, हुए ग़म दूर घने.

जब वैमनस्‍य बढ़े, हो मन:स्थिति बोझिल,
न प्रीत न रीत फली, हुए हम दूर  घने.

जीवन रिश्‍ते बिना, चलें दिन कितने डग,
सोच सोच अंतत:, हुए भ्रम दूर घने.

हारा अहं सदैव,  सब्र हर दम जीता,
जो भी रहा विनम्र, हुए खम दूर घने.

जीवन का है मर्म, कर्म तप धर्म करे
कष्‍ट दुखों के सदा, हुए क्रम दूर घने

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