26 अक्तूबर 2017

बस बीमार न हों सर्दी में (गीतिका)



छंद- ताटंक (सम मात्रिक) (16/14 और पदांत तीन गुरुओं से)
पदांत- में
समांत- आई


सर्दी में स्‍वेटर, मफलर में, कम्‍बल सौर, रजाई में.
शाल, गुलूबंद, बंदर टोपा, जर्सी, कोट, दुलाई में.

जितना पहनो उतनी सर्दी, लगती है तन को ज्‍यादा,
जितना बैठो उतनी अच्‍छी, लगती धूप सिकाई में.

जल भी गरम नहाने को हो, गरम-गरम हो खाने को,
घिरा रहे आलस्‍य चाह हो, पड़ें रहें गरमाई में.

खेल-कूद, व्‍यायाम तैरना, आग, अलाव सभी भायें,
चोट लगे, बिस्‍तर पकड़ें पड़, जायें शौक खटाई में. 

बस बीमार न हों सर्दी में, ध्‍यान रखें बस यह ‘आकुल’,
वर्ना सर्दी बीतेगी फिर, लंघन और दवाई में.

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