29 नवंबर 2017

स्‍वच्‍छ रहें वन उपवन सारे (गीतिका)

छद- सार, चौपाई+12, अंत वाचिक 22.
पदांत- हों
समांत- इत

स्‍वच्‍छ रहें वन, उपवन सारे, फूलों से सुरभित हों. 
वृक्षावलियों से आच्‍छादित, हर पथ अब शोभित हों.

धरा पहन कर विविध चुनरिया, नित लहराये झूमें,
नगर-नगर अब मलयानिल से, जन जन आनंदित हों.

सत्‍ता के गलियारों में फिर, विकसित हो यह धारा,
नंदनकानन जैसे ही अब,  उपनिवेश निर्मित हों,

अभयारण्‍य जहाँ पशु पक्षी, विचरें निर्भय हो कर,
ऐसी ही जीवन शैली के मानक स्‍थापित हों.

‘आकुल’ जब फूलों से उपवन, हो सकते हैं हर्षित,
जीवन जीने के कुछ ऐसे विनियम प्रतिपादित हों.

28 नवंबर 2017

चुप रह कर सहते है देखी (गीतिका)



छंद- सरसी
शिल्‍प विधान- चौपाई + दोहे का सम चरण (16,11)] अंत 21 से अनिवार्य
पदांत- की पीर
समांत- अंधों

चुप रह कर सहते है देखी, तटबंधों की पीर.
सहमी आँखों में है देखी, सम्‍बंधों की पीर.

झूठा-सच्चा जब-जब देखा, मौन रहे मन मार,
घर की दीवारों में देखी, प्रतिबंधों की पीर.

बसते उनको कभी न देखा, जिनके घर फुटपाथ,
आजीवन ढोते ही देखी, उन कंधों की पीर.

अब संवेदनशील न देखे, आक्रोषित हैं लोग,
जीवन में पलती है देखी, अनुबंधों की पीर.

तोता चश्‍म बने हैं देखे, सत्‍ता लोलुप लोग, 
’आकुल’ ने जनता में देखी, सौगंधों की पीर.

27 नवंबर 2017

जीवन की अब शाम हो चली (गीतिका)

छंद- सरसी
शिल्‍प विधान- चौपाई + दोहे का सम चरण (16,11)] अंत 21 से
                    अनिवार्य
प्रार्थना 

जीवन की अब शाम हो चली, जाना है भव पार.
हे प्रभु विमुख न हो तुझसे अब, नश्वर यह तन गार.

जप तप ध्यान भजन में दिन भर, काया रहती मग्न,
हे प्रभु माया मोह नहीं बस, रोके अब मझधार.

जो भी पाया सुख सरमाया, भाग्य कहो या कर्म,
तुझसे क्या शिकवा तेरा तो, हर क्षण था सहकार.

घर परिवार, प्रतिष्ठा देखी, देखी लूट खसोट,
सब कर्मों का खेल है पाया, भाग्य सभी का सार.

चंचल मन की थाह नहीं प्रभु, तन में दिया समुद्र,
मन मंथन कर कर्मों से प्रभु, पाए रत्न हजार.

देना हो तो बस देना प्रभु, मानव जन्‍म सदैव,
दिखलाना पथ जीवन बीते, परहित है स्‍वीकार.

धन्‍य धन्‍य हे प्रभु समक्ष हो, तेरी छवि की चाह,
हो जिह्वा पर नाम तुम्‍हारा, छोड़ूँ जब संसार.

26 नवंबर 2017

भर दो खुशियाँ (गीतिका)


छंद- रास
शिल्‍प विधान- मात्रा भार 22., 8,8,6 पर यति
अंत 22 (वाचिक)

भर दो खुशियाँ, इक गरीब की, झोली में.
खेलो तुम भी, सँग बच्‍चों की, टोली में.

खुशी मिलेगी, तुमको छोटी, छोटी ज्‍यों
ढूँढ़ें बच्‍चे, खुशियाँ टॉफी, गोली में.

किसको मिलती, खुशियाँ झगड़ों, टंटों से,
मिल जाती है, खुशियाँ मीठी, बोली में.

कुछ खुशियों का, मोल नहीं यदि, मानो तो,
गले मिलें जब, ईद, दिवाली, होली में.

मानवता का, यही तकाजा, है ‘आकुल’,
खुशियाँ उतरें, सरहद पर अब, डोली में.

25 नवंबर 2017

हवा चली अब ऐसी (गीतिका)




मापनी:- 12 12 1122 1212 22
पदांत- झूमें
समांत- अली

हवा चली अब ऐसी गली-गली झूमें.
बहा रही खुशबू से मली-मली झूमें.

उठें चलें निकलें भोर लालिमा छाती,
उड़ी चलें नग टोली भली-भली झूमें.

कभी-कभी भँवरों की हँसी पड़े सुनाई,
बनी-ठनी बगियों की कली-कली झूमें.

फिरें लिये करने सैर प्रेम का वादा,
करें कई मनुहारें अली-अली झूमें.

कहीं नहीं अब कृष्णा कहीं नहीं राधा,
नहीं कहीं जब ड्योढ़ी वहाँ छली झूमें
.