3 नवंबर 2017

हाथ थामे हुए ही मिली ज़िंदगी (गीतिका)


छंद- अरुण
मापनी 212 212 212 212
पदांत- ज़ि‍ंदगी
समांत- इली


हाथ थामे हुए ही मिली ज़िंदगी.
हार जाना नहीं री दिली जिंदगी.


हो महल में बसर या कि फ़ुटपाथ पर,
ज़लज़लों से सदा ही हिली ज़िंदगी.


आदमी-आदमी जब भीमिल कर चला,
तब फटेहाल की भी सिली ज़िंदगी.


जो रहा है भरोसे हीतक़दीर के,
हर क़दम पर सदा ही पिली ज़िंदगी.


दो क़दम तुम बढ़ो दो क़दम मैं बढ़ूँ,
साथ से ही ख़ुशी सी खिली ज़िंदगी
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