21 जनवरी 2018

स्‍वच्‍छ भारत की हवा को क्‍या कहोगे (गीतिका)

छंद- पियूष निर्झर
मापनी- 2122 2122 2122
पदांत- क्‍या कहोगे
समांत- ओ 

वक्‍त पे सँभले नहीं जो क्‍या कहोगे
आँख बदले हर दफा वो क्‍यो कहोगे.

मन हमारा क्‍यों न वश में आज तक भी,
देख मचले चीज हर तो क्‍या कहोगे

खर्च ज्‍यादा आय कम हैं खर्च फिर भी,
कर रहा है आदमी लो क्‍या कहोगे?

आदमी इंसान में है फर्क कितना
सभ्‍य इक, दूजा बताओ क्‍या कहोगे?

मौन है धरती प्रकृति सहती प्रदूषण, 
मौन ही मानव रहा सो क्‍या कहोगे?

भूल बैठा है पसीना, श्रम सभी जो, 
बीच चौराहे खड़ा हो क्‍या कहोगे?

कोशिशें जब तक न होंगी आँधियों सी,
स्‍वच्‍छ भारत की हवा को क्‍या कहोगे?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें