15 मार्च 2018

जिंदगी मेरी बदल जाती अगर (गीतिका)

छंद- आनंदवर्धक
मापनी- 2122 2122 212 (वाचिक)
समांत- अल
पदांत- जाती अगर


जिंदगी मेरी बदल जाती अगर.
उस घड़ी जो बात टल जाती अगर.

मैं तनिक थोड़ा झुका होता वहीं,
तू जरा सा भी मचल जाती अगर.

तू अहम् मैं दम्भ में जीते नहीं,
शाम ही जल्दी निकल जाती अगर

कब रहा कोई समय इक सार जो
बात बढ़ते रात ढल जाती अगर.

काँच सा देखा दिलों को टूटता,
इक कनी भी उस पे’ चल जाती अगर.

जिंदगी क्यों ढूँढ़ती खुशियाँ कई,
टूटते तारों से’ मिल जाती अगर

टूटने रिश्तों को’ मत देना कभी,
जुड़ न पाती गाँठ डल जाती अगर

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