28 मार्च 2018

तीन मुक्‍तक

प्रत्‍यक्ष
जिसका संज्ञान मात्र इंद्रियों से ही स्‍पष्‍ट हो.
साक्षात् हो और विद्यमान् हो न अस्‍पष्‍ट हो. 
स्‍पर्श, आकर्षण जिसे इक भावना दे, रूप दे,
प्रत्‍यक्ष है वह सत्‍य क्‍यों मानने में कष्‍ट हो.    
परोक्ष
परोक्ष में किसी की निंदा करना कायरता है.
वीरों पर पीछे से वार करना बर्बरता है.
धरा प्रदूषण से व्‍याकुल परोक्ष है अत्‍याचार,
भ्रष्‍टाचार सदा परोक्ष में ही मनुष्‍य करता है   
 मुक्‍तक
प्रकृति-वनस्पति-मनुष्‍य, नियति नटी का है वर्णन.
शैशव से वृद्धावस्‍था तक आजीवन नर्तन.
काल, दिशा व दशा ले कर ही जीवन है बढ़ता,
और प्रकृति भी पंचतत्‍व से करती उत्‍सर्जन.  

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