25 अप्रैल 2018

डिगा न झंझावात में, जड़ जिसकी मजबूत (गीतिका)

छंद- दोहा

डिगा न झंझावात में, जड़ जिसकी मजबूत.
हरी भरी इक डाल है, इसका यही सबूत.  

बृद्ध जहाँ आगे रहें, बनें ढाल हर हाल,
ऐसे घर परिवार में, होते नहीं कपूत.

मौसम तो आते रहे, जाते रहे सदैव.
दे जाते नि:स्‍वार्थ वे, धन सम्‍पदा अकूत.

धरा प्रकृति के साथ मिल, करती है आगाह,
जो प्राणी सँभले नहीं, कष्‍ट करे आहूत.

सरल सुगम जीवन जिए, हो न अधीर सुजान.
अंत समय वह शांति से. जाता बन अवधूत.       

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें