28 जून 2018

जरूरी है कि पेड़ों को बचाया जाये कटने से (गीतिका)

छंद- विधाता
मापनी 1222 1222 1222 1222
पदांत- से
समांत- अने  

जरूरी है कि पेड़ों को, बचाया जायेकटने से.
चले आँधी तोपौधों को, बचाया जायेमरने से.

न पनपे और इक मरुभूमि, धरती पर हमारे अब,
हवा, पानी व पेड़ों से, बचाया जायेबढ़ने से.

हमें होना सजग है अब, मुहिम इक छेड़नी होगी,
जरूरी है न हो अतिक्रम, बचाया जायेजमने से.

बढ़ायें सौर, गोबर अरु, पवन ऊर्जा केसंसाधन,
न हो गोवंश आवारा, बचाया जायेदलने से.

न हो मजदूर बँधुआ बाल, श्रम भी मुक्त है करना,
अशिक्षित को कभी भी ना, बचाया जायेपढ़ने से,

न ले हथियार हाथों में, न आतंकी बने कोई,
न कोई देशद्रोही हो, बचाया जायेबनने से.

करें सब स्वच्छ भारत का, प्रथम साकार अब सपना,
चलें क्यों अग्निपथ पर घर, बचाया जायेजलने से.

23 जून 2018

जब तक है इंसान जंगली (गीतिका)

छंद- ताटंक 
विधान- 16, 14 पर यति अंत 3 गुरु से.

जब तक है इंसान जंगली, ताक़त ही दिखलायेंगे. 
सेंध लगाते जो रिश्‍तों में, कभी न प्रीत निभायेंगे.  

देते घाव कई गहरे जो, हाथ रखें दुखती रग पर,
एक न एक घाव उनके भी, नासूरी बन जायेंगे.

दो जिह्वा, तन-मन काले हैं, सोते हैं जो जगते ही,
सर्प प्रकृति के हैं समझो वे, ज़हर सदा बरसायेंगे.

न खायें न खाने दें जिसको, प्रकृति विघ्‍नसंतोषी हो,
कह कर लें आनंद सदा जो, घरफोड़े कहलायेंगे.

तोताचश्‍म कहें उनको जो, आँख फेर लें मौके पर,
होते हैं जो अवसरवादी,  सदा हानि पहुँचायेंगे.

कब्रिस्‍तान बढ़ेंगे जग में, खार बनायेंगे धरती,
नहीं करेंगे प्रेम प्रकृति से,  मुर्दे जंगल खायेंगे.

पंचमहाभूतों का' संतुलन, जब तक न धरा पर होगा,
कोई भी युग प्रकृति, मृत्‍यु पर, विजय नहीं कर पायेंगे.


21 जून 2018

तन मन स्‍वस्‍थ रहें सबके, ऐसा जीवन हो. (गीतिका)

छंद- लीला (14,10 पर यति अंत सगण (112) से
पदांत- ऐसा जीवन हो
समांत- अके (अकारांत)

तन मन स्‍वस्‍थ रहें सबके, ऐसा जीवन हो.
योग करें सब नित तड़के, ऐसा जीवन हो.

दिनचर्या भी हो ऐसी,  जन सौहार्द बढ़े,
सहयोग करें बढ़-बढ़ के, ऐसा जीवन हो.

तन तंदुरुस्‍त हों सबके, हौसले पंख बनें,
विजयी बनें शिखर चढ़के, ऐसा जीवन हो.

तकनीकी युग में पल पल, का मोल समझ लें,
परिणाम मिलें प्रति क्षण के, ऐसा जीवन हो.

अग्नि परीक्षा देनी हो,  पीछे क्‍यों हटना,
बदले की आग न भड़के, ऐसा जीवन हो.


18 जून 2018

मिला यह तन, पिता माता का ही प्रतिदान होता है (गीतिका)

छंद- विधाता
मापनी- 1222 1222 1222 1222
पदांत- होता है
समांत- आन
(पिता दिवस पर)
मिला यह तन, पिता-माता का’ ही, प्रतिदान होता है.
सभी परिवार में, हर एक की, पहचान होता है.

मिला है  नाम, दुनिया में बदौलत, उनके ही यारो,
पिता माता के’, गुणसूत्रों का’ वह, संज्ञान होता है.

पिता, माता का है सौभाग्‍य, घर का है, वो’ कुलभूषण,
धुरी परिवार, की होता पिता, अधिमान होता है

बिना माता-पिता के घर, नहीं होता, कभी भी घर,
बिना संतान, के भी घर सदा, सुनसान होता है.

प्रतिष्‍ठा मान अरु सम्‍मान, हासिल करना’, जीवन में
पिता-माता के, हर इक त्‍याग का, गुणगान होता है.     

पिता को है, कहा ग्रंथों ने', सौ गुरुओं से' बढ़ कर ही
इसी कारण, पिता इक रूप में, भगवान होता है.
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उपाध्यान्दशाचार्य आचार्याणां शतं पिता।
सहस्त्रं तु पितृन माता गौरवेणातिरिच्यते।।

अर्थात, दस उपाध्यायों से बढ़कर आचार्य’, सौ आचार्यों से बढ़कर पिताऔर 
एक हजार पिताओं से बढ़कर मातागौरव में अधिक है, यानी बड़ी है।

पिताके बारे में मनुस्मृति में तो यहां तक कहा गया है:
 ‘‘पिता मूर्ति: प्रजापतेः’’
अर्थात, पिता पालन करने से प्रजापति यानी राजा व ईश्वर का मूर्तिरूप है।