4 जुलाई 2018

रूप बदलता चाँद नित

कुण्‍डलिया छंद
1
रूप बदलता चाँद नित, युगों-युगों  से रोज । 
नहीं चाँदनी ने कभी, ढूँढ़ा करी न खोज ।
ढूँढ़ा करी न खोज, कलंकित क्‍यों है चंदा ?
कौन है वह सौतन, जिसने डाला है फंदा ? 
देख कलंकित मौन, शर्म से वह नित गलता । 
दो दिन छिपता शेष, दिनों है रूप बदलता ।। 
 2
रूप बदलते देख भी, दो दिन रह परदेश ।
बदली प्रकृति न चाँद ने, बदला ना  परिवेश ।
बदला ना परिवेश, तभी जग प्रेम विरोधी ।
राधा मीरा हीर, चलीं हर पथ अवरोधी.
भक्ति, शक्ति और प्रेम, अग्निपथ पर ही चलते ।
लिखता हर इतिहास, प्रेम के रूप बदलते ।।

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