21 सितंबर 2018

जी जीवन तू जैसे जीते थे अवतार (आकुल)


छंद- निश्‍चल
विधान- मात्रा भार- 23. 16, 7 पर यति, अंत 21 से.
समांत/तुकांत- आर.


कुछ भी करने से पहले कर, सोच विचार.
इच्‍छा शक्ति प्रबल कर फिर दे, उसको धार.

यश-अपयश के भी आसार हैं’, बनते क्‍योंकि,  
संस्‍कारों से ही तो निभते, हैं व्‍यवहार.

लाभ-हानि के, ऊँच-नीच के, होते दौर,
श्रेष्‍ठ आदमी वह जो सबसे, पाता पार.

धर्म तुला पर तोल अटल है, जीवन-मृत्‍यु,
जो है धर्म वही कर बाकी, सब बेकार.

स्‍वाभिमान भी बना रहे हो, न्‍याय सदैव,
जी जीवन तू जैसे जीते, थे अवतार.    

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें