29 नवंबर 2018

सीख सके तो सीख (गीतिका)

छंद- रोला
विधान- 11, 13. रोला का विषम चरण दोहे का सम चरण होता है. विषम चरण का आरंभ त्रिकल या चौकल से हो तो उसके बाद भी त्रिकल या चौकल की पुनरावृत्ति आवश्‍यक है. यानि इसका चलन 443 या 3323 होना चाहिए एवं सम चरण 32332 या 3244 होना चाहिए.
पदांत- है 
समांत- अल

सीख सके तो सीख, कहा है समय अटल है.
अकर्मण्‍य भयभीत, कहा है जन्‍म विफल है.

नहीं कहीं भी तोड़, सका कोई पैमाना,
सदा करे जो कर्म, सुखी है और सफल है.

जो समझे सत्‍कर्म,  सदा  जाने सर्वोपरि,
करता हैं जो कर्म, उसी का भाग्‍य प्रबल है.

बिना प्रदूषण हटे, कल्‍पनातीत भोग-सुख ,
इसका नहीं विकल्‍प, न इसका कोई हल है.

रह प्रकृति से विमुख, झेलना नित विपदायें,
सँभल सके तो सँभल, न सँभले तो हलचल है.

26 नवंबर 2018

पर्व प्रकाश मनायें (गीतिका)


नानक शाह, गुरु नानक देव, सिखों के आदि गुरु के,
दस उपदेशों को अपनायें जीवन धन्य बनायें.

21 नवंबर 2018

गीत हुए सिंदूरी (गीत)


हरित पीत चुनरी लहराई, वसुंधरा की जबसे,
हवा चली पुरबा की मेरे, गीत हुए सिंदूरी ।।

अँगड़ाई लेते फैला कर, पंखी जब पंखों से 
जगता शहर आरती के स्‍वर, मंदिर के शंखों से
रवि आरूढ़ रश्मिरथ पहुँचे, अरुणाचल पर जबसे
फैली लाली नभ पर मेरे, गीत हुए सिंदूरी ।।

अँगड़ाई ले कर कलियाँ भी खिलती हैं मधुबन में
केसर फैले महके कण कण प्रकृति के आँगन में
प्रणयामृत पीते देखा है, कलिकाओं को जबसे,
पा कर अमिय स्‍वाति से मेरे, गीत हुए सिंदूरी ।।
 
शब्‍द शब्‍द से नि:सृत होता, मेरा आत्‍मनिवेदन
शब्‍द शक्ति से बहे निरंतर, माँ  मेरा आलेखन 
शब्‍दों को बंधों में रच कर, लिखी गीतिका जबसे,
छंदों में निबद्ध सब मेरे, गीत हुए सिंदूरी ।।

लौटे भर उल्‍लास सभी जब श्रम बिंदु ले घर को.
नव आशा ले पशुधन पंखी गोधूलि में घर को
देखी नभ पर वही अरुणिमा, अस्‍ताचल में जबसे,    
उसी लालिमा से नित मेरे, गीत हुए सिंदूरी.

वन-वन भटके क्‍यों मृग उसकी, नाभि बसी कस्‍तूरी.
राम-राम करती क्‍यों भटके, पेड़-पेड़ चिंखूरी.
मरु उद्यान बने हैं सींचे, अंत:सलिला जबसे,
अंतर्ध्‍यान किया है मेरे गीत हुए सिंदूरी.

12 नवंबर 2018

राष्‍ट्रीय शिक्षा दिवस पर राष्‍ट्रीय कवि चौपाल की काव्‍य गोष्‍ठी

मंच पर बिराजमान अतिथि बायें से कवि ब्रजेश सिंह झाला 'पुखराज', डॉ. 'आकुल, डॉ. सहज, डॉ. फरीद, शायर शकूर अनवर. खड़े हुए- तीसरे क्रम में कवि महेश पंचोली, पाँचवें पर वेदप्रकाश 'परकाश', कपिल 'कवि, मो. जावेद, पुस्‍तकालयाध्‍यक्ष डाॅ. दीपक श्रीवास्‍तव, के. बी. दीक्षित, श्रीमती शशि जैन एवं लाइब्रेररी के सेवाकर्मी, पाठक सदस्‍य
     जितना ऊपर को उठे दिनकर बढ़े प्रकाश ।
पढ़ा लिखा इंसान ही, छूता है आकाश ।।

            राष्ट्रीय कवि चौपाल, कोटा की मासिक काव्य गोष्ठी इस बार राजकीय पं. दीनदयाल उपाध्याय मण्डल पुस्तकालय, कोटा के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय शिक्षा दिवस एवं दीपावली मिलन समारोह के रूप में दिनांक 11.11.2018 को पुस्तकालय के सभागार में मनाया गया. सर्वप्रथम पधारे अतिथियों ने माँ सरस्वती को तिलक पुष्प से पूजित कर दीप प्रज्ज्वलन किया तथा गोष्ठी के लिए मंच स्थापित किया गया. मंच पर राष्ट्रीय कवि चौपाल के संरक्षक कोटा के वरिष्ठ कवि डॉ. रघुनाथ मिश्र ‘सहज’, अध्यक्ष के रूप में शहर के फिल्मकार एवं वरिष्ठ कवि श्री सलीम रोबिन्स, मुख्य अतिथि चिकित्सक एवं वरिष्ठ सूफी कवि डॉ. फरीद अहमद ‘फरीदी’ और विशिष्ट अतिथि के रूप में शहर के प्रख्यात वरिष्ठ जनकवि एवं छंद शास्त्री डॉ. गोपाल कृष्ण भट्ट ’आकुल’ को पुस्तकालयाध्यक्ष डॉ. दीपक कुमार श्रीवास्त‍व ने अभिनंदन कर मंचासीन किया. कवि चौपाल के महासचिव व संयोजक श्री कपिल कवि ने मंचासीन अतिथियों सहित पधारे कवि एवं शायर श्री वेदप्रकाश परकाश, शकूर अनवर, ब्रजेश सिंह झाला ‘पुखराज, महेश पंचोली आदि का स्वागत कर मंच के समक्ष बैठाकर अभिनंदन किया.         
माँ सरस्‍वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्‍ज्‍वलन करते अतिथि



दीप प्रज्ज्‍वलन के साथ ही संयोजक श्रीमती शशि जैन ने सरस्वती वंदना ‘सुर से मैं वंदन करती हूँ, शब्द तुझे अर्पण करती हूँ’’ सुना कर कार्यक्रम का गरिमामय शुभारंभ किया. सर्वप्रथम अपने स्वागत भाषण में पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ. दीपक श्रीवास्तव ने सभी मंचासीन साहित्यकारों का परिचय कराया. उन्होंने बताया कि 116 वर्ष पुरानी इस लाइब्रेरी ने राजस्थान में अपना एक स्थान बनाया है. आज का राष्‍ट्रीय शिक्षा दिवस भारतीय स्वतंत्रता सेनानी एवं भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री डॉ. अबुल कलाम आजाद के जन्म दिवस पर शिक्षा दिवस के रूप में मनाता है. उनका योगदान शिक्षा के क्षेत्र में कभी भुलाया नहीं जा सकता. वे कौमी एकता के जीवंत उदाहरण थे, वे अपनी मातृभूमि से बहुत प्रेम करते थे, उन्‍होंने मुस्लिम भाइयों से भारत छोड़ कर न जाने के लिए अंत तक आग्रह किया. वे आध्यात्मिक व्यक्ति थे. वे स्वतंत्रता आंदोलन में कई बार जेल भी गये. जेल में उन्होंने आध्यात्मिक पुस्तक लिखी ‘ग़ुबारे ख़ातिर’ जो उनके मित्रों को लिखे 24 पत्रों का संग्रह है. उन्होंने ‘इडिया विन्स फ्रीडम भी लिखी जो एक राजनैतिक दर्शन की पुस्तक थी. डॉ. श्रीवास्तव ने सबके परिचय के बाद आज का शिक्षा दिवस सबसे पहले 75 प्रतिशत देखने में अक्षम युवा लाइब्रेरी सदस्य मोहम्मद जावेद को समर्पित किया. मोहम्‍मद जावेद का परिचय कराते हुए कहा कि जावेद जन्म से ही ऐसी बीमारी से ग्रसित हैं, जिसका दुनिया में निदान नहीं. केवल डेढ़ फिट से ज्यादा दूर की वस्तुु को स्पष्ट नहीं देख पाते, शिक्षा के लिए पूर्ण समर्पित है. उनकी भावानाये व्यक्त़ करने के लिए मैंने विशेष रूप से यहाँ बुलाया है. मो. जावेद ने शिक्षा दिवस पर अपने वक्तव्य में शिक्षा के महत्व को बताते हुए कहा कि कितनी मुसीबतों में उसने अक्षम होते हुए भी स्नातक तक शिक्षा प्राप्त की. उन्हें शिक्षकों ने नि:शुल्क पढ़ाया. सभी ने यथा संभव मदद की और पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया. शिक्षा का बहुत महत्व है, जिसके कारण मैं आज यहाँ मैं राजकीय सेवा में हूँ और अपना जीवन यापन कर रहा हूँ.
                 इसके पश्चाात चौपाल की काव्य गोष्ठी का दौर शुरु हुआ और सबने अपना अपना काव्य पाठ किया. ब्रजेश सिंह झाला ‘पुखराज’ ने दीवाली पर रचना प्रस्तुरत की- 
पुस्‍तकालय सभागार में गोष्‍ठी में अतिथ,श्रोतागण एवं कवि
              ‘नित नये छेड़ें तराने ऐसी शुभ दीपावली हो’ महेश पंचोलीजी ने ‘भाई मैं हिंदी भाषी हूँ रहने दो, मुझे मेरी मातृभाषा हिंदी में कुछ कहने दो’’ कपिल ‘कवि’ ने भगवद्गीता पढ़ने से मिली प्रेरणा के फलस्वरूप आत्मा पर अपनी कविता पढ़ी- आत्मा, मैं अजर अमर, अविनाशी, अजन्मा, शाश्वत, पुरातन, चेतन, अचेतन, अलौकिक, सभी में विद्यमान आदि अनंत हूँ..’, शहर के ख्यात कवि वेदप्रकाश परकाश ने अपनी शृंगार रस की एक ग़ज़ल पढ़ी- ''बेकार किया करते हैं बेकार की बातें, फनकार किया करते हैं फनकार की बातें.'' कवि छंद शास्त्री डॉ. गोपाल कृष्ण भट्ट ने अपनी रचना की शुरुआत शिक्षा दिवस के उपलक्ष्य में एक दोहे से की- ''जितना ऊपर को उठे, दिनकर बढ़े प्रकाश. पढ़ा लिखा इंसान ही छूता है आकाश.'' फिर उन्होंने जीवन दर्शन पर एक गीतिका प्रस्तुत की –‘जीवन से जो मिला अमिय-विष, बाँट रहा है सारा मन. उम्र कैद का दण्ड जन्म से काट रहा है कारा मन.’’ दीपावली मिलन पर पर डॉ. फरीद अहमद फरीदी ने एक मुक्तक पढ़ा व बाद में एक सूफ़ी नज़्म पढ़ी-

‘दिये खुशी के जला के रखो, हो रोशनी भी निहाल यारो.
यूँ दिल से दिल के दीये जलाओ, रहे न रंजो मलाल यारो.
जलायें नफरत के फिर से रावण, बनायें धरती को फिर से पावन,
सुकूँ की बस्ती बसायें फिर से, न खूँ से धरती हो लाल यारो.


                इसी क्रम में अध्यक्ष सलीम रोबिंस, संरक्षक श्री रघुनाथ मिश्र 'सहज' ने अपनी रचनायें पढ़ीं और अपने विचार व्यक्त किये. उन्होंने सभी को शिक्षक दिवस व दीपावली की शुभकामनायें दीं. अंत में आभार प्रकट करते हुए समारोह की संयोजक श्रीमती शशि जैन ने आभार प्रकट करते हुए कहा कि आज रविवार होने के कारण देश हालाँकि कल राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनायेगा, लेकिन पुस्तकालय में आज राष्ट्रीय कवि चौपाल के संयुक्त तत्वावधान में सफल आयोजन को लंबे समय तक याद किया जाएगा. कार्यक्रम का सफल संचालन श्री के. बी. दीक्षितजी ने किया.
-आकुल, कोटा से