20 जनवरी 2019

मैं इसलिए लिखता हूँ क्‍योंकि.... (गीतिका)

व्‍हाट्सएप समूह 'राष्‍ट्रीय कवि चौपाल' की रविवारीय प्रतियोगिता में प्रदत्‍त विषय पर रचना के लिए प्रथम स्‍थान प्राप्‍त करने वाली रचना-
प्रदत्‍त विषय- मैं क्‍यों लिखता/लिखती हूँ.
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विधा- गीतिका

छंद- सार
विधान- विधान- चौपाई+12. अंत 22
पदांत- जायें,
समांत- अते

मैं इसलिए लिखता हूँ क्‍योंकि....
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पढ़ते गुनते जो जीवन में, लेखक लिखते जायें.
लेखक अनुभव को लिखते हैं, समय बदलते जायें.

भौतिक जगत शोरगुल ओढ़े, विचलित करता मन को,
विजन ढूँढ कर लेखक अप्रतिम, सत्य विरचते जायें.

सृष्टि सिंधु में जितने भी हैं, शब्द‍ दिये लेखक ने,
कलम कलाधर शब्द सुनिधि को, क्षण-क्षण भरते जायें.

भाग्यवान होते समृद्ध भी, कलम बढ़ाती ताकत,
करते हैं पथदर्शन उनका, अगर भटकते जायें.

शब्दकोश के शब्द अमर हैं, जीर्ण शीर्ण ना होते,
कहीं मिले निर्वस्त्र शब्द तो, उसको ढकते जायें.

जीवन कम है अगली पीढ़ी, याद रखे मुझको भी,
ऐसी दूँ सौगात जगत् को, प्रोन्नत करते जायें.

इसलिए
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सबको मिलती नहीं योग्यता, रस लिखने की ‘आकुल’
बाँझ नहीं हो सृजन निरंतर, लिखें निखरते जायें.
-'आकुल'

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