17 फ़रवरी 2019

नित सर्द सूर्य भिनसारे से (गीतिका)

छंद- पदपादाकुलक चौपाई
पदांत- से
समांत- आरे

नित सर्द सूर्य भिनसारे से
हर हाल उगे मन मारे से

है नहीं तभी अब तक जीता 
तम हारा है उजियारे से.

सूरज से जीवन क्रम चलता
ऋतु चलती एक इशारे से .

ठिठुरन से चाहे पाये तन,
राहत अलाव अंगारे से

हारा हो सूरज वर्षा या
सर्दी के बढ़ते पारे से

चाहे कोहरे में रहे छिपा
बर्फीली सर्दी से हारे से

तब प्रलय समझ लेना उस दिन,
भूले ना उगे बिसारे से.

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