14 नवंबर 2025

यह जीवन है

अपदांत
समांत- आएँँ

#जीवन में अनहोनियाँ, अनचाहे ही आएँ ।
कभी कभी बीमारियाँ, भारी संकट लाएँ।

किया धरा इनसान का, दोष भाग्य को देता,
सत्य जान कर भी कभी, मन को हम भटकाएँ

गेहूँ के सँग घुन पिसे, दीमक घर को चाटे,
कहीं न हो बारिश कहीं, बादल भी फट जाएँ।

क्या ले कर आए सभी, क्या ले कर है जाना,
अंत समय में वस्त्र तक, तन से सब हटवाएँ।

समझो सारी सीख हैं, जीवन में हितकारी,
जैसे बच्चे को सभी, बारहखड़ी रटाएँ।

तप कर हो सोना खरा, तप करते संन्यासी,
तप जीवन का ध्येय हो, मन का मैल हटाएँ।

‘आकुल’ का यह मानना, जीवन वह है भारी,
सज्जनता जिसमें नहीं, अपनों से कट जाएँ ।।

#आकुल, मुक्तक-लोक

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