tag:blogger.com,1999:blog-49049508784152431262024-03-19T09:15:17.720+05:30सान्निध्यदोस्त फ़रिश्ते होते हैं.
बाक़ी सब रिश्ते होते हैं.आकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.comBlogger816125tag:blogger.com,1999:blog-4904950878415243126.post-36851438153940486612024-03-19T09:12:00.009+05:302024-03-19T09:14:43.303+05:30 आँख खुली जो देखा उसको असल समझता बचपनगीतआँख खुली जो देखा
उसको, असल समझता बचपना। मात पिता भाई
बहिनों के,जैसा सीखा रहना,तन ढकने को उसके
हिस्सेका जो ही था पहना,काम सभी करना है
जो भीहो आदेश मिले तब, पहली सीढ़ी यही
समझनेकी सबका था कहना,घर चाहे हो घास-फूस का, महल समझता बचपन।रिश्ते
नाते अपने औरपरायों
को भी जाना, ऊँच-नीच, निर्धन सेठों की
कद-काठी को जाना, अच्छे-बुरे दोस्त–दुश्मन कीसंगत से दुनिया को,जब से देखा आकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4904950878415243126.post-50051078834406478762024-03-18T09:19:00.003+05:302024-03-18T09:19:23.216+05:30जीते जी जो कर गुजर जाते वे अमर हैं गीतिकाछंद- मदन ललिता (वर्णिक छन्द)विधान- प्रति चरण 16 वणी्य वर्णवृत्तमापनी- 222 211 111 222 111 2 गण विधान- मगण भगण नगण मगण नगण गुरुपदान्त- वे अमर हैंसमान्त- आतेजीतेजी जो कर गुजर जाते वे अमर हैंआतंकी पे जब कहर ढाते वे अमर हैं
वीरों की जो हर इक कहानी देख पढ़ ही,जाँबाजी में प्रखर बन पाते वे अमर हैं।जो जीये जीवन भर गरीबों के बन सखा,दीनों पे जो रहमत दिखाते वे अमर हैं।वे आकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4904950878415243126.post-78930135704718868682024-03-17T11:36:00.006+05:302024-03-17T16:45:15.260+05:30आ गए फिर दिन चुनावी देखिए गीतिकाछन्द पीयूष वर्षीमापनी- 2122 2122 212पदांत- देखिएसमांत- आवी आ गए फिर दिन चुनावी देखिए।ये तमाशा भी मा’यावी देखिए।1। दलबदलुओं से भले चुप हो प्रजा,हश्र देगी जो तनावी देखिए।2।ऊँट करवट, तो न लेगा देखना,कौन कितना हो प्रभावी देखिए।3।रुख हवा का मोड़ना मुमकिन नहीं, यह नदी अब भी बहावी देखिए।4।ढाक के बस तीन पत्तों की तरह,ख़्वाब उनके फिर पुलावी देखिए।5। आकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4904950878415243126.post-862265277828469852024-03-13T21:19:00.001+05:302024-03-13T21:23:03.278+05:30ध्येय बनाओ गीत बच्चों
का निश्छल निर्मल मन, होता है।पंछी
जानें क्या अपनापन, होता है।बच्चों
सा कोतूहल होता, पंछी में,मिलना
ही सबसे अभिनंदन, होता है।अनचाहा आकर्षण जब भी, होता है बच्चों
का निश्छल निर्मल मन, होता है ।चित्र मंथन 510 पूछा
बच्ची ने भी उस दिन, पंछी से,तुम
चलते भी हो उड़ते भी, हो कैसे,मैंने
यहाँ दौड़ते देखा, है तुमको,मुझको
क्यों ना पंख दिए हैं, तुम जैसे,उसके
भी हैं पंख, मेरे घरआकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4904950878415243126.post-90196679043729233152024-03-12T10:36:00.008+05:302024-03-12T10:36:51.244+05:30हिन्दी आभूषण है शोभित होना चाहिए गीतिकाछंद- गगनांगनाविधान-
मात्रा भार 25. 16,
9 पर यति, चरणांत 212.पदांत- होना चाहिएसमांत- इतहिंदी आभूषण है शोभित, होना
चाहिए।हिंदी वर्णमाल अब पोषित, होना
चाहिए। हम कृतार्थ हों जाएँ यदि,
सिर पर हाथ हो, मधुर राष्ट्रवाणी को राजित,
होना चाहिए। बस मन-वचन-कर्म से इसको,
अपनाएँ सभी,अभिव्यक्ति से यह सम्मोहित,
होना चाहिए।अब हिंदी का ध्वज विराट,
फहराए सदा,गंगाजल से अब आकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4904950878415243126.post-22954287900259828322024-03-11T10:33:00.005+05:302024-03-11T16:12:32.218+05:30बोलिए न कटु वचन न बढ़़कर आफत पालिए गीतिका प्रदत्त छंद- गगनांगनाविधान- चौपाई (16) + 9 मात्रा, अंत रगण (212)। पदांत- पालिएसमांत- अत बोलिए न कटु वचन, न बढ़ कर,
आफत पालिए।सोच समझ कर बोल सको वह, आदत पालिए ।दुखदायी बन जाती कोई , पहल कभी-कभी,नई मुसीबत नहीं किसी भी, बाबत
पालिए। नीम हकीमों के झाँसे में, पड़ें नहीं कभी, घाव बने नासूर न ऐसी, हालत पालिए।नहीं दलालों के चक्कर में, आना साथियो, आकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4904950878415243126.post-88651103678565253682024-03-10T09:39:00.007+05:302024-03-10T09:42:05.772+05:30इधर-उधर न भटक तू जतन कर गीतिकाछंद- शशिकला (वर्णिक )गण विधान- म म म म म ग मापनी- 111 111 111 111 111 2पदांत- कर तूसमांत- अनइधर-उधर न भटक, जतन कर तू।सुन कटु वचन क्षणिक, मनन कर तू।बस कह मृदु वचन ढक नयन अपनेप्रभु पद मन धर कर, सहन कर तू।कपट, छल, बल, कल, सब सहज नहीं,बिन दम मत अनबन, किमपि कर तू।न कर गड़बड़ कुपित, बन घर जले,सुधर जल बन अनल, शमन कर तू।वन, उपवन, जल, थल, नभ, खुश तभी,अब समय हर तरफ, अमन कर तू। आकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4904950878415243126.post-45969896392703872812024-03-09T10:42:00.000+05:302024-03-09T10:42:16.171+05:30दगा न करना गुनाह तेरा है बोझ पीछा सदा करेगा गीतिका छन्द- वचतुर्यशोदा (मापनीयुक्त मात्रिक छंद)मापनी- 12122 12122 12122 12122 पदांत- करेगासमांत- अदा दगा न करना, गुनाह तेरा है’ बोझ पीछा सदा करेगा। ये' कर्ज है तू, न चाह कर भी, इसी जनम में अदा करेगा।तबाह जीवन अगर हुए हैं, ते’रे गुनाहों की' ही वजह से,कभी खबर जो, तुझे पड़ेगी, मलाल तू सर्वदा करेगा। अहं यहाँ पर, रहा नहीं फिर, करे अहं क्यों, वजह तलाशो,अगर न आभार मानता हैआकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4904950878415243126.post-13595099212592881982024-03-05T08:15:00.007+05:302024-03-05T08:20:56.973+05:30धूप शाखों में अभी गहरी हुई हैगीतिकाछन्द- पीयूष निर्झरमापनी- 2122 2122 2122पदांत- हुई हैसमांत- अहरीधूप शाखों पे अभी गहरी हुई है।झील आँखों में अभी ठहरी हुई है।1।आ रही आहट बहारों की चमन में,अब बयारों से खिजाँ सिहरी हुई है।2।साँझ धुँधली लौटते घर को पखेरू,शाम गोधूली से' सुनहरी हुई है।3।हैं घरों से देहरी जब से नदारद,नारियों पे दृष्टि अब जहरी हुई है।4।अब नहीं गाँवों घरों में सादगीपन,अब रहनगत गाँव की शहरी हुई है।5।अब नहीं रिश्तों आकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4904950878415243126.post-8912817902994716102024-03-02T20:16:00.008+05:302024-03-02T20:19:18.687+05:30 हे राम ! अब तेरा ही, जीवन में है सहारा(आधार
लय- 2212 122 2212 122)हे
राम ! अब तेरा ही, जीवन में है सहारा।इस
कर्मभूमि में अब, मुश्किल में है गुजारा।। हे राम !.....हर
शाख पे है उल्लू, किसको कहें हम अपना,आएगा
कब यहाँ पर, अब राम राज्य अपना,मुँह
पे तो राम है पर, छुरियाँ लिए बगल में,हर
एक कर रहा है, अब उल्लू सीधा अपना,चुप
रह के जी रहे राम ! है अब न कोई चारा। इस
कर्मभूमि में अब मुश्किल में है गुजारा।। हे राम !.....हैआकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4904950878415243126.post-77323478647907093632024-02-29T15:38:00.001+05:302024-02-29T15:38:07.814+05:30कंधे से कंधा मिला रहीं गीतिका छंद – सिंह विलोकितचार चरण सम मात्रिक छंद चरणांत लघु गुरुपदांत- रहींसमांत- इलाकंधे से कंधा मिला रहीं।आसमान पे झिलमिला रहीं।जग रही बेटियाँ, याद सब,वीर नारियों की दिला रहीं।दोयम समझ आँका जिन्हें अब,दुश्मनों के किले हिला रहीं।अति उत्साह जिम्मेदारियाँ,निभाती सभी खिलखिला रहीं।इतिहास साक्षी है देश में, राष्ट्र प्रमुख शीर्ष महिला रहीं।आकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4904950878415243126.post-24940912897023608052024-02-28T08:41:00.008+05:302024-02-28T09:40:19.490+05:30मनहर ऋतु बसंत आई है गीतिका छंद- चौपाईपदांत- हैसमांत- आईमनहर ऋतु बसंत आई है, चली पवन भी सरसाई है।भेजा है सौरभ निसर्ग ने, ली मौसम ने अँगड़ाई है।नई कोंपलें डाल डाल पर, पंछी उड़ते नभ विशाल पर,सरसों के खेतों ने पहनी, पीत चुनरिया लहराई है।खेत मुस्कुराए सरसों के, कृषक मुस्कुराए बरसों के, पवन चली सौरभ अब हरसू, भुनगों में मस्ती छाई है। हर कलियों के तन गदराए, यौवन पा कर वह इतराए,करने लगे भ्रमर आकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4904950878415243126.post-83661279862653870372024-02-27T11:03:00.005+05:302024-02-29T15:40:23.445+05:30बढ़े न आय खर्च पे लगाम खींचियेगीतिकाछन्द- अनंद (वर्णिक)मापनी-121 212 121 212 12 (ज र ज र ल ग)सहज
मापनी - 12 12 12 12 12 12 12पदांत- 0समांत- इयेबढ़े न आय खर्च पे, लगाम खींचिये ।ना बैंक ना महाजनी उधार लीजिये। न खत्म हों, स्वभाव, आदतें, बुराइयाँ,रहें मौन और जोड़-भाग कीजिये ।सभी न दूध के धुले, हुए समाज में, कहीं न देखिए कमी, न दोष दीजिये।बजार हाट जाइए न कार आदि से,कभी कभार मोल-भाव से खरीदिये।
न शेषता रहेआकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4904950878415243126.post-81703388920590114692024-02-25T22:07:00.006+05:302024-02-28T09:41:46.094+05:30बालाओं को आज पढ़ाना ही होगा गीतिकाछन्द- रासपदांत- ही होगासमांत- आनाबालाओं को आज पढ़ाना, ही होगा।क्यों आवश्यक राज़ बताना, ही होगा।घर या बाहर देखरेख अब, हो पूरी,पहली आदत आज बनाना ही होगा।आत्मसुरक्षा की तकनीकें, आज सभी,बचपन से हर हाल सिखाना ही होगा शिक्षित हों सब जन जाग्रति की, हाथों में,क्रांति मशालें आज जलाना, ही होगा। अपरिहार्य हालातों, चाहे, मजबूरी,संग रखें या जुगत लगाना, ही होगा।गिद्ध दृष्टि, नाआकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4904950878415243126.post-1677401065369076822024-02-25T10:06:00.006+05:302024-02-25T10:13:40.349+05:30नारी ना बन जाए इक दिन अवतारी गीतिकाछंद- रासपदांत- 0समांत- आरीमातु शारदे वरद हस्त पा, कर नारी।शिक्षा संस्कृति कला खेल में, है न्यारी।कोई क्षेत्र न बचा ¡जहा वह ना शामिल,लोहा मनवाती अब उसकी छवि
भारी।धन वैभव, में अव्वल नेत्री, अभिनेत्री,फर्श से अर्श है पहुँची वह है, अधिकारी।प्रथम नागरिक बन कर भी चौंकाया है,अब इसको कह मत करना त्रुटि, बेचारी।कोख उजाड़ी, बचपन लूटा, कर विकृत,नारी का अब धैर्य न छूटे इस बारी।प्रकृति साथ होगीआकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4904950878415243126.post-39706938149247899712024-02-24T17:04:00.007+05:302024-02-24T17:09:18.015+05:30सर्वोपरि हो महिलाओं का अब सम्मानगीतिकाछन्द- निश्चल पदान्त-0 समान्त- आन सर्वोपरि हो महिलाओं का अब सम्मान।दृष्टि तभी जाएगी उनका, हो गुणगान।कर लें गणना घर या बाहर, कितनी व्यस्त,जिम्मेदारी से जाएगा, उन पर ध्यान।जितना काम प्रमुख उतना ही, घर-कुटुम्ब,शीर्ष प्रबन्धन में रहती वह, सदा प्रधान।नारी का सर्वोपरि रहता, संचय
शोध,सदा निरर्थक खर्चों का, रहता है भान।नारी पर अति से ही आए, घने प्रकोप,फलत: आकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4904950878415243126.post-68168238582256033452024-02-21T16:33:00.009+05:302024-02-24T17:08:28.598+05:30बेटी हो, नारी हो या हो, बाल श्रमिक बंधा मजदूरगीतिकाछन्द आल्हपदांत- 0समांत– ऊर बेटी हो, नारी हो या हो, बाल, श्रमिक बंधा मजदूर।गाँव शहर ढाणी में ढूँढो, शायद मिले नशे में चूर।इसी दासता की बेड़ी ने, रोका है हमको हर वक्त,रही सदा हर दम है दिल्ली, भय के ही साये में दूर।तीन तलाक, नीरजा से भी, बन न सके हम यदि चैतन्य,फिर लुटते दिख जाएगी हर, मोड़ निर्भया इक मजबूर।शिक्षा से घर-घर में फैले, जीने की भी बदले सोच,अब न कहीं फलने पाएँ, कुप्रथाएँ आकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4904950878415243126.post-20303453982673139772024-02-19T10:38:00.003+05:302024-02-19T10:38:24.935+05:30सोच समझ कर सारे निर्णय कर इनसान गीतिकाछंद- निश्चलपदांत- इनसानसमांत- अरसोच समझ कर सारे निर्णय, कर इनसान। तू बस कर संघर्ष कभी मत, डर इनसान।असफलता से डर कर पीछे, कभी न लौट, उड़ना तुझको रख सॅभाल कर, पर इनसान। दर्द बाँटता, सँग हो दुख में,
वह ही मित्र, दुखती रग पर हाथ कभी ना, धर
इनसान।नाम रहे कर गुजर अनूठा,
बरखुरदारहो जाते खँडहर तमाम भी, घर इनसान।सभी अकेले आए जग में, क्यों आकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4904950878415243126.post-37708794551495478112024-02-17T21:26:00.006+05:302024-02-17T21:49:31.023+05:30राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय कोटा में पांच दिवसीय साहित्य महाकुम्भ (पुस्तक मेले) में आकुल के चार पुस्तकों का प्रदर्शन एवं 2 पुस्तकों का लोकार्पण पुस्तक 'गीत संजीवनी' का विमोचन करते साहित्यकार- बायें से ओज कवि एवं संचालक श्री राजेंद्र पँवार, वरिष्ठ साहित्यकार जितेंद्र निर्मोही, पूर्व निदेशक प्रचार प्रधानमंत्री कार्यालय एवं सिंधी साहित्य के ख्यात नाम साहित्यका, आकुल, मंडल पुस्तकालयाध्यक्ष, साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ. प्रभात सिंघल एवं सहा. पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ. शशि जैन, व्याख्याता एवं अन्य पाँच
दिवसीय संभाग आकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4904950878415243126.post-3393962556666634252024-02-15T08:52:00.001+05:302024-02-15T08:52:41.144+05:30शिक्षित हों सारे पढ़ के छन्द- मणिमध्या (वार्णिक)गण विधान- भगण मगण सगणमापनी- 211 222 112पदांत- केसमांत- अढ़आफत लें आगे बढ़ के ।काम बिगाड़ें वो रढ़ के।हो सकते थोड़े सनकी,वे जिनकी हो भौं चढ़ के।क्या समझें पैदाइश ही,ईश्वर ने भेजा गढ़ के?माँ न कुसंस्कारी जनती,संगत दे जाती मढ़ के।‘आकुल’ का तो है कहना,शिक्षित हों सारे पढ़ के।आकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4904950878415243126.post-20037061095022156482024-02-14T11:48:00.009+05:302024-02-14T17:32:26.254+05:30स्वीकार हो माँँ दण्डवत ============स्वीकार हो दण्डवत============गीत============स्वीकार हो माँँ दण्डवत============स्वीकार हो माँ दंडवत, आकुल तो एक भक्त है।लेखनी से लिख सका हूँ, यह भावना अभिव्यक्त है।स्वीकार हो माँ दंडवत......तेरा ही शुभाशीष पा, लिखती रही है लेखनी,तेरे दिशा निर्देश से, निखरती रही है लेखनी,चिंतन मनन तेरा करूँ, पाता हूँ नित स्फूर्ति सदा,तेरे स्मरण मात्र से ही, चलती प्रखर है लेखनीतेरी न हो यदि दृष्टि तो, आकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4904950878415243126.post-43888979745896672222024-02-13T11:04:00.003+05:302024-02-13T11:04:53.247+05:30स्वप्न सजाएँँ सारे छन्द- मुक्तामणिविधान- प्रति चरण 25
मात्रीय छन्द। यह दोहा परिवार का छंद है। जिसमें 13, 12 पर यति होती है। दोहा के
चरणांत में लघु को गुरु कर देने से यह छन्द सिद्ध होता है। अर्थात् दोहे की तरह
13, 11 के स्थान पर 13, 12 इस छन्द की प्रकृति है।पदान्त- सारेसमान्त– आएँकहें जिंदगी चार दिन, स्वप्न सजाएँ सारे।आपस में सद्भाव से, मिलें मिलाएँ सारे।1।वैमनस्य कटुता सभी, रखते तनाव मानो,है निदान बस प्रेम आकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4904950878415243126.post-8442274238910259412024-02-11T09:21:00.010+05:302024-02-11T09:21:59.308+05:30करें प्रकृति से मित्रता गीतिका छन्द- मुक्तामणिविधान- प्रति चरण 25 मात्रीय छन्द। यह दोहा परिवार का छंद है।
जिसमें 13, 12 पर यति होती है। दोहा के चरणांत में लघु को गुरु कर देने से यह छन्द
सिद्ध होता है। अर्थात् दोहे की तरह 13, 11 के स्थान पर 13, 12 इस छन्द की
प्रकृति है।पदान्त- सारेसमान्त– आएँकरें प्रकृति से मित्रता, ध्येय
बनाएँ सारे।बन जायेंगे वन सघन, पेड़
लगाएँ सारे।करें सूर्य से दोस्ती, सब प्रकाश आकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4904950878415243126.post-74814066825921245802024-02-10T20:50:00.002+05:302024-02-10T20:59:52.006+05:30प्रकृति पर दोहे 1करें प्रकृति से मित्रता, ध्येय
बनाएँ एक। बन जायेंगे वन सघन, पेड़
लगाएँ एक।2करें सूर्य से दोस्ती, लें
प्रकाश कुछ देर।छत या बाहर घूमिए, चाहे देर
सवेर।3हो तनाव यदि मानसिक, रहें
प्रकृति के संग।करे प्रभावित मन प्रकृति, दे
खुशियों के रंग ।4चढ़ें नित्य ही सीढ़ियाँ,
मंदिर की अविराम।प्रभु समक्ष नित कीजिए, इक
साष्टांग प्रणाम।5नित्य नियम से लीजिए, लंबी
लंबी श्वास।होगा यदि अवरोध तो, देगी आकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4904950878415243126.post-45382478641887653372024-02-08T07:54:00.001+05:302024-02-08T07:54:17.104+05:30इतिहास करे अनुवाद तुम्हें गीतिकाछंद- लावणीविधान- प्रति चरण 30 मात्रा। 16, 14 पर यति अंत एक गुरु वर्ण अनिवार्य। पदांत- तुम्हेंसमांत- आद
कौन करेगा तुम्हें अनुसरण, कौन रखेगा याद तुम्हें।अगर मिट गए पैरों के ही, चिह्न तुम्हारे बाद तुम्हें ।1।होगी जो उठ-बैठ तुम्हारी, पहचानेंगे लोग तभी ,प्रतिभा से कायल होंगें सब, होगा ना अवसाद तुम्हें ।2।जिनके कदमों ने रोका है, तूफानों को हुए कई,पीछे मुड़ ना वीर देखते, हो शायदआकुलhttp://www.blogger.com/profile/14932213967425336949noreply@blogger.com0