गीतिका
छंद- लावणी/कुकुभ/ताटंक
दोस्त फ़रिश्ते होते हैं. बाक़ी सब रिश्ते होते हैं.
गीतिका
छंद- लावणी/कुकुभ/ताटंक
1
ज्ञान
ध्यान दे सुसंज्ञान दे, शक्ति-भक्ति का विधि-विधान दे,
माया, साया संग निरोगी काया दे पर निरभिमान दे,
वंशवृद्धि
और सुख समृद्धि दे रिद्धि-सिद्धि में दे अभिवृद्धि,
मय सद्भाव प्रेम-प्रीति यह नव सम्वत्सर ससम्मान दे।
2
मत
देना, ऐसा अभाव प्रभु, मत्सर का स्वभाव, पालूँ,
न हाव-भाव, न मनोभाव में, द्वेष मोह माया पालूँ,
जीवन हो उर्जित, सम्वत्सर, का प्रभाव इतना हो बस,
बीते, हितार्थ, शेष जीवन, दुर्भाव कभी भी ना पालूँ।
छंद- अवतार (मात्रिक)
विधान- मात्रा भार 23। 13, 10 पर यति
सहायक मापनी- 2212 1212 2212 12
पदांत- कर समांत- आल
अनमोल जिंदगी इसे, रखना सँभाल कर।
हर आंधियों का' सामना, करना सँभाल कर।1।
जो भी कदम उठा सको, पीछे न खींचना,
हैं कंटकीर्ण मार्ग पग, धरना सँभाल कर।2।
क्यों शर्म क्यों करें बहाने, झूठ कब छिपा,
संकट टले असत्य से, कहना सँभाल कर।3।
शिक्षा सिवा नहीं कहीं, कोई विकल्प है,
कोई विषय बुरा नहीं, चुनना सँभाल कर।4।
यह जिंदगी रुकी नहीं, चलती रही सदा,
आगाह तो करे समय, चलना सँभाल कर।5।
गीतिका
छंद- सरसी
संक्षिप्त विधान- मात्रा भार- 27. 16, 11 पर यति, सम चरण दोहे के समान, इसलिए अंत गुरु-लघु आवश्यक
पदांत- 0, समांत- आर
उँगली से बढ़ कर जीवन में, देखा नहीं उदार ।
तन में गाँँठ रखे फिर भी वह करती है सहकार ।1।
लंबाई में सभी उँगलियाँँ, होतीं कब समरूप,
फिर भी रहती संग निभातीं, बस अपना किरदार ।2।
वक्त पड़े तो झुक कर, जुड़ कर मुट्ठी हरती पीर,
सामंजस्य रखे जीवन को, सरल अरु खुशगवार ।3 ।
घायल हो जाए इक उँगली, होता सबको दर्द,
उसका दर्द बाँँटतीं मिलकर जब तक वह लाचार ।4।
लगी हथेली दसों उँगलियाँँ,जब हों तेरे संग
दो-दो हाथ दिए हैं आकुल', खोल स्वर्ग के द्वार ।5।
गीतिका
विश्व महिला दिवस की शुभकामनाएँ
गीतिका