28 अगस्त 2018

करो खुल के बात सभी यार (गीतिका)

छंद-श्रृंगार (सम मात्रिक)
शिल्प विधान-16 मात्रा, आदि में त्रिकल (21/12/111)+
द्विकल (11/2) अंत में 21 अनिवार्य.
पदांत- यार 
समांत- अभी

करो खुल के बात सभी यार.
कहो जो कहना हो अभी यार.

पास आइये सीमाएँ तोड़,
दूरिया मिटेंगी तभी यार.

बाँट कर तो देखिए हुजूर,   
कम हुए हैं दर्द जभी यार.

नहीं वक़्त, जिंदगी अरु मौत,
देखते मुँह मोड़ के’ भी यार.       

चाहना यही है एक मात्र,
बने हमसफर तू कभी यार.


16 अगस्त 2018

अब घरों से आदमी निर्भय निकलना चाहिए (गीतिका)

छंद- गीतिका
मापनी 2122 2122 2122 212
पदांत- चाहिए.
समांत- अलना.
 
अब घरों से आदमी निर्भय निकलना चाहिए.
है जरूरत देश में यह राज चलना चाहिए.
 

कर्म का प्रतिफल मिले इतना कि हर घर हो सुखी, 
अब न बच्चा एक भी घर में मचलना चाहिए.

अब बग़ीचों में न कुचली जायेंकलियाँ एक भी,  
इस चमन में अब नहीं सैयाद पलना चाहिए.

बाढ़, सूखा, आपदा, भूकंप, जहरीली हवा, 
अब प्रदूषण से न धरती को दहलना चाहिए. 

लो चलो कश्मीर को अब फिर बनायें स्वर्ग सा,  
अब बरफ केसर कीगर्मी से पिघलना चाहिए.

15 अगस्त 2018

ध्‍वजदंड पर लहरा रहा ध्‍वज अब बड़े ही शान से (गीतिका)

छंद- हरिगीतिका 
मापनी- 2212  2212  2212  2212  
पदांत- से
ध्‍वजदंड पर लहरा रहा ध्‍वज अब बड़े ही शान से. 
स्‍वाधीनता के उन दिनों को याद कर अभिमान से.

कण-कण हुआ कृतकृत्‍य, जन-जन में बड़ा उत्‍साह था,

गूँजी है’ तब चारों दिशा, झूमा है’ तब धरती-गगन, 
समवेत स्‍वर में राष्‍ट्रगा(न) गाया है जब भी मान से

हमको रहेगा गर्व जीवन भर शहीदों का करम,  
उनसे ही’ तो हैं जी रहे हम आज इतमीनान से.

हों कम दिलों में दूरियाँ, अब हौसले कम हों नहीं, , 
अब देश ही सर्वोच्‍च हो, प्‍यारा हो’ अपनी जान से.

हो खत्‍म अब आतंक, भ्रष्‍ट आचारण, दुष्‍कर्म सब, 
हैं बढ़ रहे खतरे समझ ना पा रहे क्‍यों ध्‍यान से ,

कहती नहीं धरती कभी करके दिखाएगी सही, 
विप्‍लव कभी ऐसा कि सोचा भी न हो ईमान से. 

आवाज दो हम एक हैं, अब ध्‍वज न हो घायल कभी, 
अंदर भितरघाती से’ ना सरहद के’ बेईमान से.

14 अगस्त 2018

ध्‍वजदंड (मुक्‍तक)