30 जुलाई 2019

चमक रही हैं गगन में’ बिजली


छंद- अनंगशेखर
मापनी- 12122 12122 12122 12122
पदांत- हैं बारिशों की
समांत- आयें
(छुपा लो दिल में यूँ प्‍यार मेरा, कि जैसे मंदिर में लौ दिये की)

चमक रही हैं गगन में’ बिजली घिरी घटायें हैं’ बारिशों की
लुभा रही है, चमन में’ ठंडी, चली हवायें, हैं’ बारिशों की

धरा खुशी से, महक रही है, जगह जगह पर, हैं’ खुश बगीचे,
नदी विटप वन, दरों, पथों पे, दिखी छटायें, हैं’ बारिशों की.

थमी कहाँ अब, न कोयलों की, कुहुक दबे स्‍वर, न दादुरों के
सभी निरखते, घरों छतों से, दसों दिशायें, हैं’ बारिशों की.

कहीं पखेरू, निमग्‍न चहकें, कहीं किलोलें, करें भ्रमर भी,
कहीं रिझायें, कली सुनायें, हृदय कथायें, हैं’ बारिशों की.

मिटी धरा से, अदावतें भी, मिला है सूरज समंदरों से,
सदा सुनी जो, समंदरों ने, मिली दुआयें, हैं’ बारिशों की.   

25 जुलाई 2019

आज की ताज़ा खबर है


छंद- मनोरम
मापनी- 2122 2122
पदांत- है
समांत- अर

आज की ताज़ा खबर है।
बढ़ रहा अब जालघर है।1

डाइबीटिज रोग का भी,
हर तरफ फैला असर है।2

टूटते रिश्तों का' बोझा,
आज मोबाइल के सर है।3

है भरा आक्रोश इतना,
अब न बच्चों में सबर है।4

अब नहीं माँ बाप का वश,
और कम उनकी कदर है ।5

बढ़ रहे अपराध इतने
अब पुलिस का भी न डर है।6

देखते हैं ऊँट बैठे,
कौनसी करवट नज़र है।7

19 जुलाई 2019

सद्बुद्धि देना, हमें शक्ति देना

छंद- विध्‍वंकमाला
मापनी- 221 221 221 22
पदांत- देना
समांत- अक्ति

सद्बुद्धि देना, हमें शक्ति देना,
भजते रहें हम तुम्‍हें भक्ति‍ देना.

तेरी शरण आज लेना हमें भी,
तुम में हमेशा ही’ आसक्ति देना.

हों ना विमुख और नास्तिक नहीं हो,
ऐसा न कोई हमें व्‍यक्ति देना.

देखूँ सभी को प्रकृति की है’ रचना,
स्‍नेहिल भरी आत्‍म अभिव्‍यक्ति देना.

सुंदर जगत् है असुंदर न हो बस
ऐसी अटल आज अविभक्ति देना.

16 जुलाई 2019

दर्प तू रखना नहीं

छंद- मालिका
मापनी- 2122 212
पदांत- नहीं
समांत- अना

सर्प सा चलना नहीं
दर्प तू रखना नहीं. 

चार दिन की जिंदगी,
कर्म से भगना नहीं.

जो करे नि:स्‍वार्थ कर,
फ़र्क तू करना नहीं.

देश पर कुर्बान हो,
शर्म से मरना नहीं.

सभ्‍यता, संस्‍कृति तथा
धर्म से कटना नहीं.

मातृ भू को छोड़ कर,
स्‍वर्ग में रहना नहीं.

ढाई’ आखर प्रेम के,
मर्म की तुलना नहीं.