19 सितंबर 2020

भुट्टे हैं रस भरे बड़े

 नवगीत

भुट्टे हैं रस भरे बड़े

गोरे पीले नरम कड़े
भुट्टे हैं रस भरे बड़े

पत्ते हरे गुलाबी नर्म
इस पर होते ढके हुए
बाली तुर्रा माथे पर
कुलह सरीखे टँगे हुए
दूध दाँत के जैसे बीज
पंक्तिबद्ध बत्तीसी से
इन्हें बचाने को रेशे
लिपटे रहते पड़े हुए

पत्तों से ये घिरे हुए
खेतों में भी उगें छड़े

सिकते हैं गोरे भुट्टे
और रसीले हो जाते
प्राय: सब भुट्टे पीले
फूलों जैसे खिल जाते
पौपकौर्न चाहें बच्चे
बड़े आँच पर सिकवायें
कुछ छीलें या गरम गरम
दाँतों से सीधे खाते

कुदरत की खूबी देखो
कच्चे रहते सख्त गड़े

मक्के दी रोटी हो संग
हो सरसों का साग सखे
बनें ढोकले बाटी भी
हो चटनी का साथ सखे
बनें पकौड़े या कटलेट
रहें कुरकुरे देर तलक
बेसन सा आटा होता
पीला औ भुरभुरा सखे

भुट्टे नीबू नमक लगा
खाओ यारो खड़े खड़े

- आकुल
१ सितंबर २०२०

14 सितंबर 2020

हिंदी ने ही हिंदुस्‍तान बनाया है.

गीत 
हिंदी ने हमको इतिहास बताया है.
जिसने हम को यह संज्ञान कराया है.
हम हैं हिन्‍दुस्‍तानी हिन्‍दी भाषा का,
हो समग्र उत्‍थान संकल्‍प उठाया है.
हिंदी ने ही हिंदुस्‍तान बनाया है.

हिन्‍दी है रससिद्ध सकल गुणनिधान है.
यह सुबोध है इसका रचना विधान है. 
देवनागरी यह संस्‍कृतकुलवल्लभा,
वैज्ञानिकता लिए है’ रसना प्रधान है. 

हो कटिबद्ध समर्पित हिन्‍दी को जन-जन 
हिंदी ने दे कर बलिदान सजाया है.
हम हैं हिन्‍दुस्‍तानी हिन्‍दी भाषा का,
हो समग्र उत्‍थान संकल्‍प उठाया है.
हिंदी ने ही हिंदुस्‍तान बनाया है.

एक सूत्र है यह साहित्‍य व संस्‍कृति का.
एक सेतु है यह भाषा की संसृति का.
हिंदी-हिंदू-हिंदुस्‍तान यही है सत्‍य,
है उद्देश्‍य यही संकल्पित सम्‍प्रति का.

कुछ कर गुजरें हों सन्‍नद्ध लें’ शपथ सभी,
हिंदी ने हमको यह ज्ञान कराया है.
हम हैं हिन्‍दुस्‍तानी हिन्‍दी भाषा का,
हो समग्र उत्‍थान संकल्‍प उठाया है.
हिंदी ने ही हिंदुस्‍तान बनाया है.

अब हो हर द्विविधा का आकुल पटाक्षेप
इस पर कोई, कभी न कहीं लगे आक्षेप,
मानवता, साहित्‍य, संस्‍कृति की पोषक,
विकसित हो बंधुत्‍व, सचेतक हो प्रत्‍येक.

हिंदी अब सर्वतोमुखी सम्‍बद्ध रहे
दशों दिशाओं में यह गान गुँजाया है.
हम हैं हिन्‍दुस्‍तानी हिन्‍दी भाषा का
हो समग्र उत्‍थान संकल्‍प उठाया है. 
हिंदी ने ही हिंदुस्‍तान बनाया है.
--00--
 

10 सितंबर 2020

देख रहा दिन रात फ़ज़ीता है इनसान

गीतिका
छंद- निश्‍चल (मापनीमुक्‍त)
विधान- 23 मात्रा. 16, 7 पर यति. अंत गुरु लघु से. 
पदांत- है इनसान 
समांत- ईता

देख रहा दिन रात फ़ज़ीता, है इनसान.
बुझा न पाया आग पलीता, है इनसान.

आज देश दुनिया में कोरोना आतंक
लगा हलाहल पी कर जीता, है इनसान.

देख विवश गलियारे सत्‍ता, के हैं भ्रष्‍ट,
गईं नौकरी बिल्‍कुल रीता, है इनसान.

मौतें बढ़ीं विवादित किस्‍से, बनते नित्‍य,
निर्बल होता बिना सुभीता, है इनसान.

मन विचलित हो धर्म कर्म की, बने न सोच,
नहीं आजकल पढ़ता गीता, है इनसान

जंग लगा तन मन रहता कुंठित स्‍तब्‍ध,
पारस कैसे बने न छीता है इनसान.

‘आकुल’ बचा हुआ मुँह को जो रखता बंद, 
और फटे को रहता सीता, है इनसान.

6 सितंबर 2020

रूठ कर चला गया शहर मिला नहीं मुझे

 
 गीत
रूठ कर चला गया, शहर मिला नहीं मुझे. 
पुकारता फिरा किया, मगर मिला नहीं मुझे.

रुक गई चहल पहल
न शोरगुल न धूम है
बंद हैं दुकान सब,
न भीड़ ना हुजूम है.
सोच में बैठा हरेक
कोसता नसीब को
दर्द एक सा मिला
अमीर को गरीब को
एलन केरियर इंस्‍टीट्यूट, कोटा
बच्चा न हो डरा हुआ, वो घर मिला नहीं मुझे.
रूठ कर चला गया, शहर,......

मेरे शहर को लग गई
शायद बुरी नज़र कोई
देश के कोने कोने से
आ रहा था हर कोई.
गली गली से बहती थी
सरस्‍वती सुबह से शाम
हवा चली ऐसी कि उसके
स्‍वप्‍न उड़ गए तमाम.
काशी सा जो पुजा किया, मंज़र मिला नहीं मुझे.
रूठ कर चला गया, शहर,......

आदमी ही आदमी से
सिटीमॉल, बिग बाजार, कोटा
दूर है जैसे अछूत
इस कदर डरा हुआ है
आदमी लगता है भूत
लुभाता था आतिथ्‍य से
कोई न भेद भाव था
अटूट थे रिश्‍ते बने
अनोखा इक लगाव था
रात दिन देखा किया, आदर मिला नहीं मुझे.
रूठ कर चला गया, शहर......

सुलग रहे हैं श्मसान
जल रहा हर स्वप्‍न है
मेरे शहर की हर गली में
एक लाश दफ़्न है.
जानवर सी हो गई गत
अंत्‍यकर्म है कि जैसे
लाश है शैतान की.  
कितनों ने जन्म लिया, युगंधर मिला नहीं मुझे.
रूठ कर चला गया, शहर......

झालरों व शंख से
न तालियों से ही कहीं
लौटीं नहीं खुशियाँ मेरी
दीवालियों से भी कहीं
रात -दिन मेरे मगर
यह वक्‍त बपौती नहीं.
सोऊँ मैं कितना आँख भी
अब स्‍वप्‍न सँजोती नहीं.
सरोवर तट से रात का विहंगम दृश्‍य सेवन वंडर्स, कोटा
हर पहर बजा किया, गजर मिला नहीं मुझे.
रूठ कर चला गया, शहर......

कहता न कोई घोषणा
करता है उसे लापता
लौट आएगा वो एक दिन
उन्‍हें भी है पता.
लौट आ मेरे शहर !!!
कोई तुझे भूला नहीं
गरीब के घर आजकल
जलता अभी चूल्‍हा नहीं.
अभी तो जल रहा दिया, फ़जर मिला नहीं मुझे.
रूठ कर चला गया शहर......
--00--