31 दिसंबर 2022

जो आगे की ओर देखते हैं

गीतिका 

छंद- सरसी/ कबीर 

पदात- देखते हैं

समांत- ओर

दे जाए कुछ संदेशा कल, भोर, देखते हैं?

लेगा करवट ऊँट कौनसी, शोर देखते हैं?

साल खड़ा अब जाने को दिन, करें विदा हँस कर,

क्‍या पाने को, नाच रहा मन, मोर देखते हैं?

 सोपानों पर चढ़े उम्र पर, धीरे-धीरे अब,

कितनी है रफ्तार समय की, जोर देखते हैं?

करें आकलन क्‍या खोया इक, अदद तसल्‍ली को,

है कितनी मजबूत साँस की, डोर देखते हैं?

मिला बहुत हों, आभारी कुछ, कर गुजरें ‘आकुल’,

बनें युगंधर, जो आगे की, ओर देखते हैं? 

-आकुल     

30 दिसंबर 2022

गीत वह जो गुनगुनाया जा सके

 गीतिका

छंद- पियूष पर्व (मात्रिक)

मापनी- 2122 2122 212

पदांत- जा सके

समांत- आया

गीत वह जो गुनगुनाया जा सके।

रोते हुओं को भी’ हँसाया जा सके।1।

जो अकेले में भुला दे दर्द को 

और प्रियतम को बुलाया जा सके।2।

जो बना दे एक बंधन प्रीत का,

और जो गा कर लुभाया जा सके।3।

 टूट भी जाये हवायें जो चलें,

टूट कर भी जो निभाया जा सके।4।

जो कभी लौरी कभी रसिया बना

जी करे वैसा बनाया जा सके।5।

-आकुल

29 दिसंबर 2022

आया समय ना रोके रुका है

 गीतिका 

छंद- द्विगुणित गंग  (मात्रिक)
गण- तगण गुरु तगण गुरु
मापनी- 221 22 221 22
पदांत- है
समांत- उका

आया समय ना, रोके रुका है ।
वो ही जिया जो, हँस के झुका है।

जो भी किया है, अच्‍छा बुरा सब, 
इस जन्‍म में ही, सारा चुका है।

कोई कहे यह, पहले जनम का,
यह प्रश्‍न करना, ही बेतुका है।

कल जो किया था, वह सिलसिला ही,
नवरूप में जो, आना लुका है।

इस से नहीं बढ़, कर सत्‍य शाश्‍वत,
यह खेल सब जीवन मृत्‍यु का है।          

28 दिसंबर 2022

प्रेम और सद्भाव, हुए हैं हवा अभी तो

 गीतिका

छंद- रोला
पदांत- हैं
समांत- अले

विक्षोभों से आज कहीं मौसम बदले हैं।
कहीं बर्फ की मार समंदर भी उबले हें।1।
दोहन धरती, वृक्ष, क्षरण, जल प्‍लावन एवं, 
पर्यावरण खराब, जरूरी कुछ मसले हैं।2।
वक्रदृष्टि को देख, न समझें हालातों को,
चलते प्रकृति विरुद्ध, नहीं अब तक सँभले हैं।3।
प्रेम और सद्भाव, हुए हैं हवा अभी तो
मानवता पर आज, हो रहे जो हमले हैं।4।
अहंकार में मस्‍त, बना दानव है मानव,
बारूदों से आज, उसी के गढ़ दहले हैं।5।
दुख तो यह है मित्र, चाल शतरंजी है यह,
चलते तो हैं चाल, सदा प्‍यादे पहले हैं।6।  
लेगा करवट ऊँट, हवा भी रुख बदलेगी,
’आकुल’ तो है मौन, फालतू के जुमले हैं।7।

22 नवंबर 2022

जो काया है

 गीतिका
छंद- कन्या (वार्णिक)
मापनी- 2 222 (गुरु मगण)
पदांत- है
समांत- आया।
जो काया है।
वो छाया है।1।
प्रारब्धों की,
ही माया है।2।
कर्मों ने तो,
दौड़ाया है।3।
कर्तव्यों ने,
दी छाया है।4।
दायित्वों ने,
पौढ़ाया है।5।
संस्कारों से,
ही आया है।6।
संसारी तू,
हो पाया है।7।

10 नवंबर 2022

हाथ क्‍यों फिर दर्द में धरते नहीं

गीतिका
छंद- पियूषवर्ष   
मापनी- 2122 2122 212 
पदांत- नहीं 
समांत- अरते 

 
हाथ क्‍यों फिर दर्द में धरते नहीं।    
दर्द से क्‍या तुम भी गुजरते नहीं।  
 
कल हवाओं में भरा विष था भले,  
बाग में क्‍या फूल अब झरते नहीं।
 
 
इक तमाचा था समय का आदमी,
क्‍यों समय से आज भी डरते नहीं।
 
कर्म हो निष्फल भरा हो स्‍वार्थ से,
कर्मनाशा में कभी तरते नहीं। 
 
आदमी ही आदमी का शत्रु था,
दंभ ना होता अगर मरते नहीं।
 
प्रेम बिन जीवन सँवर जाते अगर, 
नाम रिश्‍तों के कभी धरते नहीं।
 
पाल रिश्‍तों को, सुखनवर दूर तक,  
स्‍वप्‍न में भी हाथ से, सरते नहीं । 
 
अब समय की क्‍यों प्रतीक्षा मान्‍यवर, 
क्यों सृजन कोई नया करते नहीं।

9 नवंबर 2022

एक समय था

मुक्‍तक (छंद आल्‍ह)

एक समय था खेल रहा था समय अनोखा अपना खेल ।
गाँव शहर को भाग रहे थे, जैसे छूटी नाक-नकेल ।
परंपराएँ, शिक्षा बदलीं, दकियानूसी मिटी लकीर,
कंटकीर्ण राहों पर भी थी, उम्‍मीदों की रेलम-पेल ।1।
 
एक समय था बीत रहा था, बचपन सबका दिशाविहीन ।
खेल रहा था समय खेल कुछ, देख रहे थे मौन अधीन ।
आज समझ आया क्‍यों पिछड़े, भेड़ चाल में समय गवाँ,
कितना दौड़ें पकड़ न पाएँ, 'आकुल' समय बड़ा संगीन ।2।