8 मई 2022

उसका आँँचल भरना है

गीतिका

छंद- लावणी/कुकुभ/ताटंक

विधान- 30 मात्रा भार, 16, 14 (चौपाई +14) पर यति अंत एक/दो/तीन गुरु से
पदांत- है
समांत- अना
छिपा हुआ मेरी रग-रग में, बस माँ का हर सपना है। 
सब माँ का ही है, कहने को, यह तन मेरा अपना है।
 
उसने ही तो मुझे बुलाया, कहा दिखाया सुंदर जग,
तुझको मेरी आशाओं की, गोद हरी अब करना है।
 
हाथ-पाँव क्या, चाल-ढाल क्या, नाक-नक्श बातें मेरी,
कहते हैं सब माँ सा है क्या, मन भी माँ के जितना है।
 
निश्छल स्वार्थ बिना जीवन में करे समर्पण माँ हरदम,
तत्पर रहती सोच-विचार बिना दुख चाहे कितना है।
 
माँ की ममता कोई भी क्या, मोल कर सका है अब तक,
उऋण रहूँगा खुशियों से अब, उसका आँचल भरना है।