गीतिका
छन्द–
माधवी मरहट्ठा
जीवन यह शतरंज की बिछी, ऐसी एक बिसात है।
जीवन में शत रंज झेलता, सुख-दुख के इनसान हर,
पैदल आम आदमी होते, शेष सभी सरदार हों,
बिना दिए बलिदान जीतना, है तिलिस्म को तोड़ना,
कूटनीति अरु राजनीति का, है ऐसा मैदान यह,
गीतिका
छन्द–
माधवी मरहट्ठा
जीवन यह शतरंज की बिछी, ऐसी एक बिसात है।
जीवन में शत रंज झेलता, सुख-दुख के इनसान हर,
पैदल आम आदमी होते, शेष सभी सरदार हों,
बिना दिए बलिदान जीतना, है तिलिस्म को तोड़ना,
कूटनीति अरु राजनीति का, है ऐसा मैदान यह,
गीत
सोच रहे बिन कुर्सी के भोगा कब सुख नेताजी।
उठा बोरिया-बिस्तर.....
सौ सुनार की इक लुहार की, चोट पड़ी तब समझे,
कहा जाय ना सहा जाय हालत बिगड़ी तब समझे,
खिसक लिए चुपचाप हवा का देख के रुख नेताजी।
उठा बोरिया-बिस्तर.....
जनादेश को देख धड़कनें बढ़ीं कहें अब किससे,
अब बेमानी कौन सुनेगा पाँच साल के किस्से,
लुटे-पिटे कैसे जाएंँ जनता सम्मुख नेताजी।
उठा बोरिया-बिस्तर.....
--00--
दिनांक 22.11.2023 को फेसबुक समूह 'मुक्तक-लोक
द्वारा चित्र मंथन समारोह- 494 में पुरुष वर्ग में श्रेष्ठ रचना के रूप में निम्न गीतिका के चयन पर मिला 'सृजन सम्मान'
गीतिका
छन्द आवृत्तिका (सार्द्ध चौपाई)पदांत- 0 समांत- आए
जीवन क्षणभंगुर है जाने, कब खो जाए।
जाना है सबको जो भी इस, जग में आए ।
पानी का बुदबुद है, तय है उसका खोना,
जब तब देखा प्रकृति अनोखे, खेल दिखाए।
कभी घरोंदों को लहरों से ढहते देखा,
कभी दामिनी जीवन को पल, भर में ढाए।
जीता है इनसान घिसट कर, कभी-कभी तो,
कभी-कभी इक ठोकर जीवन, को बिखराए,
करे लिहाज न मौत उम्र का, ‘आकुल’ कहता,
मोह न रखना मौत सीख सब, को समझाए।
छन्द आवृत्तिका (सार्द्ध चौपई)
पदांत-
0 समांत- आए
जीवन क्षणभंगुर है जाने, कब खो जाए।
जाना है सबको जो भी इस, जग में आए ।
पानी का बुदबुद है, तय है उसका खोना,
जब तब देखा प्रकृति अनोखे, खेल दिखाए।
कभी घरोंदों को लहरों से ढहते देखा,
कभी दामिनी जीवन को पल, भर में ढाए।
जीता है इनसान घिसट कर, कभी-कभी तो,
कभी-कभी इक ठोकर जीवन, को बिखराए,
करे लिहाज न मौत उम्र का, ‘आकुल’ कहता,
मोह न रखना मौत सीख सब, को समझाए।
नवगीत
गीत
आधार छंद- उल्लाला
हिन्दी इक वरदान है।
करना अब सम्मान है।
स्वाभिमान है देश का,
आन बान अरु शान है।
हिन्दी इक वरदान है।।
भारतीय हर देश का,
किसी भेष-परिवेश का,
सम्प्रेषण का सेतु है
होता गर्व स्वदेश का।
उत्तरोत्तर विकास का,
स्वपोषित प्रतिदान है।
स्वाभिमान है देश का,
आन बान अरु शान है।
हिन्दी इक वरदान है।।
बोध न सम्भव बिन पढ़े,
शोध न सम्भव बिन चढ़े,
क्रोध शमन ना मौन बिन,
नींव न प्रस्तर अनगढ़े।
भाषा ही ना मात्र यह,
अनुपम यह विज्ञान है।
स्वाभिमान है देश का,
आन बान अरु शान है।
हिन्दी इक वरदान है।।
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, हर घर फहराएँ, संदेश।
मेरी
माटी मेरा देश ..........
आज है स्वाधीनता दिवस पर्व,
होना
भारतीय है गर्व,
वंदेमातरम्,
जन गण मन,
गायेंगे
हम सभी सगर्व,
चलो प्रेम का दूर क्षितिज तक, भी यह पहुँचाएँ संदेश।
मेरी
माटी मेरा देश..........
केसरिया रंगी है घाटी,
तिलक
भाल पर ले कर माटी,
वर्षा
ने बौछार करी है,
हरियाली
कण कण में बाँटी,
शतक
मनाएँगे इक दिन हम, यह भी पहुँचाएँ संदेश।
मेरी
माटी मेरा देश..........
शहीदों और वीरांगनाओं को,
देना है सम्मान सोच लें,
पंच
प्राण को पूर्ण करेंगे,
ले
कर इक अभियान सोच लें,
है
‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ यह भी पहुँचाएँ संदेशा।
गीत
सर्वधर्म
समभाव जहाँ वह,
हिन्दुस्तान है।
नृत्य
गीत, संगीत जहाँ की, इक पहचान है।
धर्म
कर्म शिक्षा के अनुपम, देता है संस्कार,
योग
ध्यान चिंतन मंथन से देता है सुविचार,
देश
जहाँ हर वेश में'
घूमे, हर इनसान है।1।
जलनिधि
पाँव पखारे, हिमगिरि, है जिसका प्राचीर,
गंगा, यमुना को छूकर बहती है मलय समीर,
राम-कृष्ण की भूमि मुझे इस, पर अभिमान है।2।
राष्ट्रीय
गीत वंदेमातरम्, धरती से जोड़े,
राष्ट्रगान
जन गण मन हमको, जन जन से जोड़े,
'सत्यमेव
जयते’
भारत का, वाक्य प्रधान है।3।
'अहिंसा परमोधर्म'
सुनीति, गौरव बनी हुई,
लोक
परम्पराओं से जिसकी डोर है बँधी हुई।
जहाँ
गीत संगीत का श्रेष्ठ, शास्त्र विधान है।4।
नदियों के तटतीर्थों पर, करते जन जन देशाटन।
दश-क्षीर, दश-कुलवृक्षों से ऊर्जित हर वृन्दावन।
दशावतारों
की यह धरती, स्वर्ग समान है।5।
दश-क्षीर- ऊँटनी, गधी, बकरी, गाय, भेड़, भैंस, घोड़ी़, हथिनी, हरिणी और स्त्री का दूध ।
दश-कुलवृक्ष- आँँवला, इमली, कदंब, करंज, गूलर, नीम, पीपल, बरगद, बेल, नीम और लसौढ़ा के वृक्ष।
दशावतार- 24 अवतारों में ये प्रमुख दस अवतार- मत्स्य, कच्छप, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि
गीतिका
छंद- रसाल
अभेद्य दुर्ग द्वार, भवितव्य जीत कर सहेज ।
हवा बहे सदैव, बस सुख-शांति की चहुँ ओर,
नहीं समय देता, सुअवसर बार-बार मित्र,
हुआ बहुत विनाश, अब न और हो विनाश,
दिखावटी ना हो, व्यवहार आचार-विचार,
बना वही भविष्य, उसे पुनीत कर सहेज।5।गीतिका
छंद- दीपकी
विधान- प्रति
चरण मात्रा २० मात्रा, चरणांत
तीन लघु या गुरु लघु (जगण (121), तगण
(221), नगण (111)।
पदांत- 0, समांत- आस
सदैव सूर्य ही देता रहा उजास।
चंद्रमा
में भी है उसी का विभास।1।
कितने
सूरज हैं छिपाए है गगन,
हर
सितारा सूर्य है पर हैं न पास।2।
इस
धरा इस सृष्टि को मिली है भेंट,
सौरऊर्जा
से हुआ जग में विकास।3।
चाँद
सूरज ने किए हमको यहाँ,
कितने
ही संस्कार और वाग्विलास।4।
क्रियाकलाप
सूर्य से होते सभी,
सृष्टि
की अनुपम सौग़ात है प्रभास।5।
प्रकाश
ही है सूर्य का संजीवनी,
चेतना
के मूल में इसका निवास।6।
सूर्य
से ही रक्षित पंचतत्व हैं,
असंतुलन
न हो करते रहें प्रयास।7।
गीतिका
कान्हा कृष्णमुरारी तुम ।
ग्वाल सखा गोपाला थे,
शीश मुकुट गल वैजंती,
इंद्रदमन लीला कर के,
लीलाओं से जग जाना,
सार्थक जब अवतार हुआ,
गीता का संदेश दिया,
गीतिका
छंद- अरिल्ल
सच से पर्दा सत्य उघाड़े,
सच का सीधामार्ग बोल सच,
झूठ भागता दृढ़ रहता सच,
लाख परेशानी आएँ पर,
देता झूठा लाख दुहाई,
सच है ‘सत्यमेव जयते’ ही,
जो कर सके न जीवन में, उसका कर नहीं फिक्र।
ठहरा सदा प्रदूषित जल, प्रकृति सरित् की प्रवाह,
तीर्थ पुज रहे नदी तटों, बाँधों इन पर न सेतु,
गीतिका
छंद- शिव (मात्रिक)
विधान- 11 मात्रा भार, 3,3,3, 2 का संयोजन, अंत सगण/ मगण/ नगण (112/222/111), यति अंत में।
पदांत- कभी नहीं
समांत- अते
सत्य परेशान हो, हारते कभी नहींं।
झूठ के न पाँव हैं, जीतते कभी नहीं।1।
बात सिर्फ यही सच, स्वर्ग नर्क यहीं है,
गीतिका
छंद- मंगलवत्थु / मंगलमाया
विधान- 22 मात्रा। दोहे के सम चरण की दो अवृत्तिा 11, 11
पर यति अंत 2 गुरु से
पदांत- 0
समांत- आनी
छंदबद्ध हर
गीत, बना सकते ज्ञानी ।
दोनों हाथों खूब, दिया करते दानी ।
देशभक्ति
की राह,
गँवाते प्राणों को,
वे शहीद कहलायँ, सदा पढ़ते बानी ।
पीने भर को
जहाँ,
रोज जब पानी हो.
वे ही समझें मूल्य, बचा रखते पानी ।
महँगाई का
दौर,
बंद रक्खो मुट्ठी,
बनो कूप मंडूक, बैल फिरते घानी ।
'आकुल' जीवन श्रेष्ठ, अगर चूल्हा साझा,
एकाकी रसपान, कहाँ रखते सानी ।