28 दिसंबर 2023

जीवन यह शतरंज की बिछी ऐसी एक बिसात है

 गीतिका

छन्‍द– माधवी मरहट्ठा

विधान- प्रति चरण मात्रा 29. 16, 13 (चौपाई +दोहे का विषम चरण ) पर यति
पदान्त- है, समान्‍त– आत

जीवन यह शतरंज की बिछी, ऐसी एक बिसात है।

पग-पग पर उत्‍थान-पतन की, बातें, शह अरु मात है।

जीवन में शत रंज झेलता, सुख-दुख के इनसान हर,

देखे, लाभ-हानि का होता, नित्‍य यहाँ उत्‍पात है।

पैदल आम आदमी होते, शेष सभी सरदार हों,

आम आदमी लगे दाँव पर, मिलती नहीं निजात है।

बिना दिए बलिदान जीतना, है तिलिस्म को तोड़ना,  

लिखे गए इतिहास सैंकड़ों, मिली नहीं खैरात है।

कूटनीति अरु राजनीति का, है ऐसा मैदान यह,

जीत सिवा मंजूर नहीं कुछ, हार यहाँ अपघात है।   

8 दिसंबर 2023

उठा बोरिया-बिस्तर चले छिपा कर मुख नेताजी

गीत 
===
उठा बोरिया-बिस्तर चले छिपा कर मुख नेताजी।

सोच रहे बिन कुर्सी के भोगा कब सुख नेताजी।

उठा बोरिया-बिस्तर.....

सौ सुनार की इक लुहार की, चोट पड़ी तब समझे,

कहा जाय ना सहा जाय हालत बिगड़ी तब समझे,

खिसक लिए चुपचाप हवा का देख के रुख  नेताजी।

उठा बोरिया-बिस्तर.....

जनादेश को देख धड़कनें बढ़ीं कहें अब किससे,

अब बेमानी कौन सुनेगा पाँच साल के किस्से,

लुटे-पिटे कैसे जाएंँ जनता सम्मुख नेताजी।

उठा बोरिया-बिस्तर.....

--00--

    




27 नवंबर 2023

मुक्‍तक-लोक केे'चित्र मंथन समारोह 494' का 'सृजन सम्‍मान'

दिनांक 22.11.2023 को फेसबुक समूह 'मुक्‍तक-लोक

द्वारा चित्र मंथन समारोह- 494 में पुरुष वर्ग में श्रेष्‍ठ रचना के रूप में निम्‍न गीतिका के  चयन पर मिला 'सृजन सम्‍मान'

गीतिका

छन्‍द आवृत्तिका (सार्द्ध चौपाई) 

पदांत- 0 समांत- आए

जीवन क्षणभंगुर है जाने, कब खो जाए।

जाना है सबको जो भी इस, जग में आए ।

पानी का बुदबुद है, तय है उसका खोना,

जब तब देखा प्रकृति अनोखे, खेल दिखाए।

कभी घरोंदों को लहरों से ढहते देखा,

कभी दामिनी जीवन को पल, भर में ढाए।

जीता है इनसान घिसट कर, कभी-कभी तो,

कभी-कभी इक ठोकर जीवन, को बिखराए,

करे लिहाज न मौत उम्र का, ‘आकुल’ कहता,

मोह न रखना मौत सीख सब, को समझाए।

23 नवंबर 2023

जीवन क्षणभंगुर है

छन्‍द आवृत्तिका (सार्द्ध चौपई) 

पदांत- 0 समांत- आए

जीवन क्षणभंगुर है जाने, कब खो जाए।

जाना है सबको जो भी इस, जग में आए ।

पानी का बुदबुद है, तय है उसका खोना,

जब तब देखा प्रकृति अनोखे, खेल दिखाए।

कभी घरोंदों को लहरों से ढहते देखा,

कभी दामिनी जीवन को पल, भर में ढाए।

जीता है इनसान घिसट कर, कभी-कभी तो,

कभी-कभी इक ठोकर जीवन, को बिखराए,

करे लिहाज न मौत उम्र का, ‘आकुल’ कहता,

मोह न रखना मौत सीख सब, को समझाए।

12 नवंबर 2023

एक नई दस्तक देनी है (नवगीत)

त्योहारों-पर्वों को भी अब
आए पहले देव कनागत,
हुई देवियों की भी आगत
बाद दिवाली और दशहरा
होना नव सत्ता का स्वागत
रामराज्य के लिए
लगा अब
अग्नि परीक्षा तक देनी है
अपने ही अपनों से आहत,
होगा कौन-कौन शरणागत
अहं और बल की शह पर प्रभु
हो न एक और महाभारत
लोकतंत्र के
शाने पर अब
कुछ को तो रुखसत देनी है
उत्साहों में कमी नहीं पर
पैरों में अब जमीं नहीं पर
लागू है आचार संहिता
खुशियाँ ही हैं गमी नहीं पर
तूफाँ से पहले की शांति है
आहुतियाँ अब
तय देनी है
चलो दीप से दीप जलाएँ
एक सूत्र बँध पर्व मनाएँ
देखें अब उजास उन्नति का
प्रेम और सौहार्द बढ़ाएँ
फैले प्रभा
क्षितिज तक किरणें
धरती से नभ तक देनी है

- आकुल
१ नवंबर २०२३
('अनुभूति' के दीपावली विशेषांक में प्रकाशित)

शुभ दीपावली 2023


 

7 नवंबर 2023

घर वृन्‍दावन हो जाए (गीत)

घर वृन्दावन हो जाए, तन चन्दन, मन कस्तूरी । 
हे मृगनयनी तुझसे ही, घर आँगन बनें कपूरी । 
मेरे घर की बगिया में, अब फूल खिलें सिन्दूरी। 

छननन छननन नूपुर भी बोलें जैसे चिंखूरी।
घर वृन्दावन हो जाए, तन चन्दन मन कस्तूरी। 

वेणी रजनीगन्धा की, महकी है सेज सुहाई। 
पैरों में प्रीत महावर, हाथों में मेहँदी भाई। 
कटि में पहनी करधनी, खनकाती घर में आई। 

सौभाग्य माँग में चहके, बिन्दी ललाट की नूरी। 
घर वृन्दावन हो जाए, तन चन्दन मन कस्तूरी । 

साँसों की लय पर दहके, कुन्दन सा तन बाहों में। 
जीवन बगिया में महके, मन सुन्दरवन राहों में। 
छम-छम करती तू घूमे, घर-आँगन अब छाहों में।

घर की अब होगी पूरी, मेरी हर आस अधूरी। 
घर वृन्दावन हो जाए, तन चन्दन मन कस्तूरी ।

24 अक्तूबर 2023

राम का अवतार रहा दृष्टांत एक

 नवगीत

प्रवृत्तियाँ
आजकल कुछ संक्रमित हैं
मानवीयता की है
आवश्यकता आज।
कहते हैं नेक साथ हो
यदि नाव में
तूफान में फँसे हुए
लगे हैं पार
रावणों के बीच में
विभीषण हो बस
भले ही राक्षसी हलचल
बढ़ें हजार
ज्यादतियाँ
आजकल कुछ संक्रमित हैं
सहिष्णुता की है
आवश्यकता आज।
राम का अवतार रहा
दृष्टांत एक
आसुरी प्रवृत्तियों के
उपरांत नेक
संस्कारों के अधीन
जीवन बढ़ा फि
राष्ट्रहित चिंतन का था
सिद्धांत एक
परिस्थितियाँ
आजकल कुछ संक्रमित हैं
मर्यादाओं की है
आवश्यकता आज।
विश्व में है फैल रहा
संक्रमण नित
हों आँकड़े इतिहास में
अब सम्मिलित
क्या हवा बदलाव अब
लाएगी नया
क्या चमत्कार के हैं
आसार किंचित्
हस्तियाँ भी
आजकल कुछ संक्रमित हैं
राष्ट्रीयता की है
आवश्यकता आज।

15 सितंबर 2023

हिन्दी इक वरदान है

गीत

आधार छंद- उल्लाला

हिन्दी इक वरदान है।

करना अब सम्मान है।

स्वाभिमान है देश का,

आन बान अरु शान है।

हिन्दी इक वरदान है।।


भारतीय हर देश का,

किसी भेष-परिवेश का,

सम्प्रेषण का सेतु है

होता गर्व स्वदेश का।

उत्तरोत्तर विकास का,

स्वपोषित प्रतिदान है।

स्वाभिमान है देश का,

आन बान अरु शान है।

हिन्दी इक वरदान है।।


बोध न सम्भव बिन पढ़े,

शोध न सम्भव बिन चढ़े,

क्रोध शमन ना मौन बिन,

नींव न प्रस्तर अनगढ़े।

भाषा ही ना मात्र यह,

अनुपम यह विज्ञान है।

स्वाभिमान है देश का,

आन बान अरु शान है।

हिन्दी इक वरदान है।।


16 अगस्त 2023

मेरी माटी मेरा देश (गीत)

मेरी माटी मेरा देश, घर घर पहुँचाएँ, संदेश।

विजयी विश्‍व तिरंगा प्‍यारा, हर घर फहराएँ, संदेश।

मेरी माटी मेरा देश ..........

आज है स्‍वाधीनता दिवस पर्व,

होना भारतीय है गर्व,

वंदेमातरम्, जन गण मन,

गायेंगे हम सभी सगर्व,

चलो प्रेम का दूर क्षितिज तक, भी यह पहुँचाएँ संदेश।

मेरी माटी मेरा देश..........

केसरिया रंगी है घाटी,

तिलक भाल पर ले कर माटी,

वर्षा ने बौछार करी है,

हरियाली कण कण में बाँटी,

शतक मनाएँगे इक दिन हम, यह भी पहुँचाएँ संदेश।

मेरी माटी मेरा देश..........

शहीदों और वीरांगनाओं को,

देना है सम्‍मान सोच लें,

पंच प्राण को पूर्ण करेंगे,

ले कर इक अभियान सोच लें,

है ‘एक भारत श्रेष्‍ठ भारत’ यह भी पहुँचाएँ संदेशा।

मेरी माटी मेरा देश..........      

23 जून 2023

सर्वधर्म समभाव जहाँँ वह हिन्‍दुस्‍तान है

 गीत

सर्वधर्म समभाव जहाँ वह, हिन्दुस्तान है।

नृत्य गीत, संगीत जहाँ की, इक पहचान है।

 

धर्म कर्म शिक्षा के अनुपम, देता है संस्‍कार,

योग ध्‍यान चिंतन मंथन से देता है सुविचार,  

 

देश जहाँ हर वेश में' घूमे, हर इनसान है।1।

 

जलनिधि पाँव पखारे, हिमगिरि, है जिसका प्राचीर,

गंगा, यमुना को छूकर बहती है मलय समीर,        

 

राम-कृष्‍ण की भूमि मुझे इस, पर अभिमान है।2।

 

राष्‍ट्रीय गीत वंदेमातरम्,  धरती से जोड़े,

राष्‍ट्रगान जन गण मन हमको, जन जन से जोड़े,

 

'सत्यमेव जयतेभारत का, वाक्य प्रधान है।3।


'अहिंसा परमोधर्म' सुनीति, गौरव बनी हुई,

लोक परम्‍पराओं से जिसकी डोर है बँधी हुई।  

 

जहाँ गीत संगीत का श्रेष्‍ठ, शास्त्र विधान है।4।


नदियों के तटतीर्थों पर, करते जन जन देशाटन।

दश-क्षीर, दश-कुलवृक्षों से ऊर्जित हर वृन्‍दावन।

 

दशावतारों की यह धरती, स्वर्ग समान है।5।


दश-क्षीर- ऊँटनी, गधी, बकरी, गाय, भेड़, भैंस, घोड़ी़, हथिनी, हरिणी और स्‍त्री का दूध ।

दश-कुलवृक्ष- आँँवला, इमली, कदंब, करंज, गूलर, नीम, पीपल, बरगद, बेल, नीम और लसौढ़ा के वृक्ष।

दशावतार- 24 अवतारों में ये प्रमुख दस अवतार- मत्‍स्‍य, कच्‍छप, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्‍ण, बुद्ध और कल्कि 

14 जून 2023

अभेद्य दुर्ग द्वार भवितव्‍य जीत कर सहेज

 गीतिका

छंद- रसाल

विधान- प्रति पद २४ मात्रा, यति 10,14, पदारंभ-पदांत लघु-गुरु-लघु (जगण-121).
पदांत- कर सहेज
समांत- ईत 

अभेद्य दुर्ग द्वार, भवितव्य जीत कर सहेज ।

बना सके जीवन, को स्‍वर्ग प्रीत कर, सहेज ।1।

हवा बहे सदैव, बस सुख-शांति की चहुँ ओर, 

बना सके मिसाल उसे अभिजीत कर सहेज।2।

नहीं समय देता, सुअवसर बार-बार मित्र,

दिखा सके कमाल तभी अभिनीत कर सहेज।3।

हुआ बहुत विनाश, अब न और हो विनाश,

निभा सके निसर्ग, को अनुगृहीत कर सहेज।4।      

दिखावटी ना हो, व्‍यवहार आचार-विचार,

बना वही भविष्‍य, उसे पुनीत कर सहेज।5।   

 

13 जून 2023

सदैव सूर्य ही देता रहा उजास

 गीतिका

छंद- दीपकी

विधान-  प्रति चरण मात्रा २० मात्रा, चरणांत तीन लघु या गुरु लघु (जगण (121), तगण (221), नगण (111)।

पदांत- 0, समांत- आस

सदैव सूर्य ही देता रहा उजास।

चंद्रमा में भी है उसी का विभास।1।    

 

कितने सूरज हैं छिपाए है गगन,

हर सितारा सूर्य है पर हैं न पास।2।


इस धरा इस सृष्टि को मिली है भेंट,

सौरऊर्जा से हुआ जग में विकास।3।

 

चाँद सूरज ने किए हमको यहाँ,

कितने ही संस्‍कार और वाग्‍विलास।4।

 

क्रियाकलाप सूर्य से होते सभी,

सृष्टि की अनुपम सौग़ात है प्रभास।5।

   

प्रकाश ही है सूर्य का संजीवनी,

चेतना के मूल में इसका निवास।6।

 

सूर्य से ही रक्षित पंचतत्‍व हैं,

असंतुलन न हो करते रहें प्रयास।7।   


   

11 जून 2023

कान्‍हा कृष्‍णमुरारी तुम

गीतिका

छंद- मानव
पदांत- तुम
समांत- आरी

कान्‍हा कृष्‍णमुरारी तुम ।

मुरलीधर बनवारी तुम ।1।

ग्‍वाल सखा गोपाला थे,

ब्रज के रास बिहारी तुम ।2।

शीश मुकुट गल वैजंती, 

चक्र सुदर्शनधारी तुम ।3।

इंद्रदमन लीला कर के,

बन बैठे गिरिधारी तुम।4।

लीलाओं से जग जाना,

आए बन अवतारी तुम।5।

सार्थक जब अवतार हुआ,

लौटे बन संसारी तुम ।6।

गीता का संदेश दिया,

खेले विजयी पारी तुम ।7।

5 जून 2023

सच की कोई होड़ नहीं है

 गीतिका

छंद- अरिल्‍ल

चार चरण,  सम मात्रिक छंद
चरणांत में भगण (211) या यगण (122)
पदांत- नहीं है
समांत- ओड़

सच की कोई होड़ नहीं है। 
सच का कोई जोड़ नही है।1।

सच से पर्दा सत्‍य उघाड़े,

झूठ कहीं बेजोड़ नही है।2।

सच का सीधामार्ग बोल सच,

सत्‍यमार्ग में मोड़ नही है।3।

झूठ भागता दृढ़ रहता सच,

सच कोई रणछोड़ नहीं है।4।

लाख परेशानी आएँ पर,

सच कोई घरफोड़ नहीं है।5।

देता झूठा लाख दुहाई,

सच्‍चे का गठजोड़ नही है।6।    

सच है ‘सत्‍यमेव जयते’ ही,

सच का कोई तोड़ नही है।7।

जीवन जिसका सदा चला, वह ही जिए सानंंद

गीतिका
छंद- गीता
प्रत्येक चरण में 26 मात्राएँ होती हैं; 14,12 पर यति होती है , आदि में सम कल होता है ; अंत में 21 आता है और 5,12,19,26 वीं मात्राएँ अनिवार्यतः लघु 1 होती हैं।
पदांत- 0, समांत- अंद
 
जीवन जिसका  सदा चला, वह ही जिए सानंद।
रुका मौत से भेंट हुई, बचा जिए स्‍वच्‍छंद। 1।

जो कर सके न जीवन में, उसका कर नहीं फिक्र।

जितना चले जीत उतनी, अमोल वचन आनंद ।2।          

ठहरा सदा प्रदूषित जल, प्रकृति सरित् की प्रवाह,

रोको मत तुम बाँध बना, तट रह न जाएँ चंद।3।

तीर्थ पुज रहे नदी तटों, बाँधों इन पर न सेतु,

हो शायद तटतीर्थ कहीं, तब हो न जाएँ बंद।4।

 पानी हवा आग रखते, सदैव धरा का ध्‍यान,

प्रकृति रखे मानव ऐसी,  गति  हो न जाए मंद।5।                                  

2 जून 2023

सत्‍य परेशान हो, हारते कभी नहीं

गीतिका

छंद- शिव (मात्रिक)
विधान- 11 मात्रा भार, 3,3,3, 2 का संयोजन,  अंत सगण/ मगण/ नगण (112/222/111), यति अंत में।
पदांत- कभी नहीं
समांत- अते   

सत्‍य परेशान हो, हारते कभी  नहींं।
झूठ के न पाँव हैं, जीतते कभी नहीं।1।


लोग झूठ के लिए, झूठ कई बोलते,
झूठ जो न बोलते, सोचते कभी नहीं।2।

सत्‍य है कि न्‍याय को, साक्ष्‍य सदा चाहिए,
भले मिले देर से, छूटते कभी नहीं।3।

मौन से कभी कभी, हादसे कई हुए,
झूठ से अगर रुके, टोकते कभी नहीं।4।

बात सिर्फ यही सच, स्‍वर्ग नर्क यहीं है,

सत्‍य बोल कष्‍ट वे, भोगते कभी नहीं।5।


29 मई 2023

छंदबद्ध हर गीत बना सकते ज्ञानी

 गीतिका

छंद- मंगलवत्‍थु / मंगलमाया  

विधान- 22 मात्रा। दोहे के सम चरण की दो अवृत्तिा 11, 11

पर यति अंत 2 गुरु से

 

पदांत- 0

समांत- आनी

 

छंदबद्ध हर गीत, बना सकते ज्ञानी
दोनों हाथों खूब, दिया करते दानी

 

देशभक्ति की राह, गँवाते प्राणों को,
वे शहीद कहलायँ, सदा पढ़ते बानी ।

 

पीने भर को जहाँ, रोज जब पानी हो. 
वे ही समझें मूल्य, बचा रखते पानी ।

 

महँगाई का दौर, बंद रक्खो मुट्ठी,
बनो कूप मंडूक, बैल फिरते घानी ।

 

'आकुल' जीवन श्रेष्‍ठ, अगर चूल्हा साझा,
एकाकी रसपान, कहाँ रखते सानी ।