28 जनवरी 2023

रेलगाड़ी रेलगाड़ी

बाल गीत

रेलगाड़ी रेलगाड़ी

रेलगाड़ी रेलगाड़ी।

बड़ी अनोखी है यह गाड़ी।
धरती पर सबसे लंबी है,
रहती सबसे सदा अगाड़ी।
रेलगाड़ी.....
कई तरह की होतीं गाड़ी
बग्‍घी, टमटम, घोड़ा गाड़ी।
बैल गाड़ी, भैंसा गाड़ी।
रेतों पर हो ऊँट गाड़ी।
आसमान में चील गाड़ी  
तारों पर यह झूला गाड़ी।
ढोती रेलें माल टनों में,
उनको कहते मालगाड़ी ।
रेल गाड़ी.....
तेजस, जन शताब्‍दी रेलें
मेमो, संपर्क क्रांति रेलें
बुलट, दुरंतो मेट्रो रेलें
वंदे भारत भी है रेलें,
बागों में यह टॉय ट्रेनें
पर्वत पर यह जॉय ट्रेनें
सड़कों पर चलती है ट्राम
होती अजब सवारी गाड़ी।
रेलगाड़ी.....
रात और दिन ये चलती हैं
नहीं कभी भी ये थकती हैं
जंगल पर्वत खेत लाँघते,
पुल भी इसके लिए बाँधते,
जहाँ न रुकती गाँव शहर में
लोग घरों से इसे झाँकते
चाहे वर्षा हो तूफान यह
नहीं देखती कभी पिछाड़ी।
रेलगाड़ी.....
केवल पटरी पर ही चलती
पटरी से ही राह बदलती
अब डीज़ल बिजली से चलती
लहराती इठलाती चलती
सीमाएँ इसने ना बाँधी
इसने अपनी हद ना लाँघी
पार किया आदेश मिला तब
गुफा, नदी, नाले क्‍या खाड़ी।
रेल गाड़ी..... 
अपने और पराये सबको
पार कराती मंजिल सबको
बैर भाव ना इसने पाला
कभी समय ना इसने टाला
सुख सुविधा जन सुविधा इसमें
तय है वही किराया इसमें
सजा मिले जिसने भी इसकी
कभी कहीं भी दशा बिगाड़ी।
रेल गाड़ी.....
नहीं भाप इंजन अब होते
रेल म्‍यूजियम में यह होते
डिब्‍बे सभी सुसज्जित होते
टीटी गार्ड ड्राइवर होते
रेलों के स्‍टेशन होते
यात्री सभी वहॉं से चढ़ते।
सब देशों में होती है यह
सुंदर और अनोखी गाड़ी।
रेलगाड़ी.....
रेलगाड़ी रेलगाड़ी।

26 जनवरी 2023

गणतंत्र दिवस भी हुआ आज, वासंती है

 गीतिका

गणतंत्र दिवस भी हुआ आज, वासंती है।
गौरवान्वित भी हुआ स्वराज, वासंती है।1।
घर-घर फहर रहा राष्ट्रीय, ध्वज अपना,
हर गली गाँव, हर घर समाज, वासंती है।2।
खेत लहलहा रहे चारसू, सरसों की,
चादर फैली नभ पर सिराज, वासंती है।3।
हुई फाग की आहट जाने को है शरद,
मौसम का भी अब मिजाज, वासंती है।4।
गाओ गीत सुमंगल पहना, कर ‘आकुल’
गणतंत्र दिवस को आज ताज, वासंती है।5।
-आकुल

24 जनवरी 2023

गुरु का हाथ अरु सदाचरण अनिवार्य है

 मुक्‍तक
1
उत्‍थान-पतन जीवन में अपरिहार्य है।
गुरु का हाथ अरु सदाचरण अनिवार्य है।
'आकुल' उड़ पतंग की भाँति छू ले गगन,
थाम लेंगे यदि किया शिरोधार्य है।
2
कृत्रिम प्रकाश की बेलों से अब रोशन होते हैं त्‍योहार।
कृत्रिम लड़ि‍यों, फुलबतियों से अब रोशन होते घर द्वार।
कृत्रिमता ने जीवन में भी दिये कई कृत्रिम दस्‍तूर,
कृत्रिम मुस्‍कानों से नि‍भते अब व्‍यवहार, अतिथि-सत्‍कार ।

23 जनवरी 2023

सच का पीट न ढोल

छंद- हंसगति
विधान- 20 मात्रिक भार। 11, 9 पर यति। छंद का विषम चरण, दोहे का सम चरण होना अनिवार्य,
यति के पूर्व-पश्चात् त्रिकल, अंत दो गुरु/वाचिक से।
मुक्‍तक
1
जितना हो सच बोल, बोलना हो जब ।
कम ही मुँह को खोल, खोलना हो जब।
सच का तब ही मोल, समय पर बोलें,
सच का पीट न ढोल, मोल ना हो जब ।
2
बचत व्यर्थ ही मान, काम ना आए ।
वही श्रेष्ठ है दान, नाम ना आए।
संकट में हो जान, सदा सौदे में,
होता ही नुकसान, दाम ना आए।

14 जनवरी 2023

मिलता सुअवसर दुबारा नहीं

 गीतिका
छंद- विध्‍वंकमालिका (मात्रिक)
मापनी- 221 221 221 2
पदांत- नहीं
समांत- आरा

मिलता सुअवसर दुबारा नहीं।
किस्‍मत बदलता सितारा नहीं।1।

धीरज रखा खूब मौके मिले,
जो भी बुरे वक्‍त हारा नहीं।2।

बच के रहें आग, पानी,  हवा,
करते दया या इशारा नहीं।3।

काँटे मिले प्रेमियों को सदा,
है दग्ध ही चाँद, तारा नहीं।4।

‘आकुल’ समझना कि दुनिया भरे,
बैठे बिठाये गुजारा नहीं।5।

11 जनवरी 2023

छेड़ें न पर्वतों को पर्वत तड़क रहे हैं

मापनी- 2212 122 2212 122
पदांत- रहे हैं
समांत- अड़क

छेड़ें न पर्वतों को, पर्वत तड़क रहे हैं।
सड़कें न पुल बनाएँ, जंगल भड़क रहे हैं।1।

दर घर गँवा रहे उन, रहवासियों से’ पूछो,
आँखों में रात बीतें, हर दिन कड़क रहे हैं।2।

हर साल हों तबाही, फिर भी नहीं सँभलते,
अब पर्वतों की बारी, मौसम हड़क रहे हैं।3।

धरती न फट पड़े दे, अनहोनियों को दावत,
दिग्मूढ़ हैं नहीं क्यों, रग-रग फड़क रहे हैं।4।

सीने न पर्वतों के, चीरो बहुत हुआ अब,
छेड़ो न वादियों को, पत्ते खड़क रहे हैं।5।

अब हो निसर्ग ऐसा, सब स्वर्ग कह सकें जो,
हर मोड़ की गवाही, देते सड़क रहे हैं।6।

पीढ़ी न आज झेले, अनहोनियाँँ करो कुछ,
कब से सभी प्रदूषित,  कण कण गड़क रहे है।7।

8 जनवरी 2023

कोई बता रहा

छंद- अवतार 
मापनी- 2212 1212 2212 12
पदांत- रहा कोई बता रहा,
समांत-
इक और साल छा रहा कोई बता रहा ।
गत वर्ष मुँह छिपा रहा कोई बता रहा ।1।
कोई लुटा बजार में ना होश है उसे,
यह ही मलाल खा रहा कोई बता रहा ।2।
देखे मिजाज ठंड के नव वर्ष में कड़े,
कुछ को अभी न भा रहा कोई बता रहा ।3।
आगाज ही अलग-थलग हो क्या करे कहो,
परमाणु युद्ध आ रहा कोई बता रहा ।4।
है लाजमी गुजारना ‘आकुल’ समय अभी
फिर से सुकून जा रहा कोई बता रहा।5।

7 जनवरी 2023

दाँतों की इस भीड़ में.... (कुंडलिया छंद)

 1

कटती दाँतों से रही, जिह्वा कितनी बार ।

लड़ते फिर भी संग में, करते सब व्‍यवहार ।

करते सब व्यवहार, स्‍वाद भी सँग-सँग चखते ।

मगरमच्‍छ से बैर, नहीं पानी में रखते । 

एक अकेली कीर्ति, जीभ की कभी न घटती ।

दाँतों की बत्‍तीस, सोचते रात न कटती ।।  

कर दे सबको आलसी, जमे रहें बत्‍तीस ।

दाँत काटकर जीभ को, झाड़ें अपनी खीस

झाड़ें अपनी खीस, जीभ में धीरज इतना ।

यह भी जानें दाँत, प्रेम वह करती कितना ।

चखती पहले स्‍वाद, बाद दातों को भर दे ।

निगले फिर वह साफ, सभी दाँतों को कर दे ।।

3

दाँतों की इस भीड़ में, जीभ अकेली एक ।

शत्रु भले बत्‍तीस हों, नीयत रखनी नेक

नीयत रखनी नेक, एक दिन उन्हें बिछड़ना ।

टूटेंगे सब दाँत, अंत तक उन्‍हें न छड़ना ।

बनते हरदम ढाल, धनी वह भी बातों की ।

इसीलएि तो ध्‍यान, रखे वह भी दाँतों की ।।